मानहानि मामला: मेधा पाटकर की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपराज्यपाल को नोटिस दिया

सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ एक टीवी चैनल पर उनके खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानिकारक प्रेस बयान जारी करने के लिए दो मामले दायर किए थे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर की एक याचिका पर दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना को बृहस्पतिवार को नोटिस जारी किया। पाटकर ने उक्त याचिका में सक्सेना के खिलाफ वर्ष 2000 के अपने मानहानि मामले में नये गवाह से जिरह करने की अनुमति मांगी है। न
र्मदा बचाओ आंदोलन की नेता पाटकर ने सक्सेना के खिलाफ एक मामला दायर किया है। पाटकर ने सक्सेना के खिलाफ उक्त मामला उनके द्वारा गुजरात में एक एनजीओ का नेतृत्व करते हुए कथित तौर पर एक मानहानिकारक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए दायर किया है।
न्यायमूर्ति शालिंदर कौर ने सक्सेना से जवाब मांगा जब पाटकर ने एक निचली अदालत के 18 मार्च के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसने उक्त याचिका खारिज कर दी थी।
सुनवायी के दौरान पाटकर के वकील ने अदालत से निचली अदालत में जारी कार्यवाही पर रोक लगाने का आग्रह किया, जो मामले में सक्सेना का बयान दर्ज करेगी।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने कोई आदेश पारित नहीं किया और सुनवाई 20 मई को करना निर्धारित किया। 18 मार्च को निचली अदालत ने पाटकर की एक नये और अतिरिक्त गवाह से जिरह करने की याचिका खारिज कर दी थी।
अदालत ने कहा कि वर्तमान मामला 24 वर्षों से लंबित है और शिकायतकर्ता ने उन सभी गवाहों से जिरह कर ली है, जिन्हें शिकायत दायर करते समय शुरुआती दौर में सूचीबद्ध किया गया था।
निचली अदालत ने यह भी कहा कि यदि पक्षों को विलंबित चरण में मनमाने ढंग से नये गवाह पेश करने की अनुमति दी गई, तो मुकदमे कभी समाप्त नहीं होंगे। सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ एक टीवी चैनल पर उनके खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानिकारक प्रेस बयान जारी करने के लिए दो मामले दायर किए थे।
सक्सेना उस समय अहमदाबाद स्थित एनजीओ ‘काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज’ के प्रमुख थे। सक्सेना द्वारा दायर किए गए एक मामले में, दिल्ली की एक अदालत ने पाटकर को एक जुलाई, 2024 को पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी।
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