अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे की परछाई के पीछे निहितार्थ बहुतेरे

Arvind Kejriwal
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केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जनता दरबार में दोबारा से पहले जैसी सहानुभूति पाना चाहते हैं। केजरीवाल ने दिल्ली वासियों से कह दिया है कि वह अब तभी मुख्यमंत्री पद पर बैठेंगे, जब जनता चाहेगी। मतलब पानी की तरह बिल्कुल साफ है। यानी अगले चुनाव की बिसात उन्होंने बिछा दी हैं।

भारतीय राजनीति में अरविंद केजरीवाल का आगमन बहुत अलहदा और अकल्पनीय रहा है। अब एक और नए प्रयोग की ओर अग्रसर हुए हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में मात्र 4-5 महीने शेष हैं। इस दरम्यान आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेताओं में शामिल एक पूर्व मंत्री का भारतीय जनता पार्टी में चले जाना। सैकड़ों कार्यकताओं का मोहभंग होना? उनका टूटकर दूसरे दलों में जाने का सिलसिला शुरू हो जाना। दूसरा, अभी कुछ दिनों पहले दिल्ली एमसीडी स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव में आम आदमी पार्टी का कमजोर पड़ जाना, इसके अलावा भाजपा का समूची दिल्ली में केजरीवाल के खिलाफ प्रचार-प्रसार करना कि उनके कुर्सी से चिपके रहने की जिद ने राजधानी को दलदल की खाईं में धकेल दिया। भाजपा-कांग्रेस का आप पार्टी पर हमलवर होने जैसे से दिल्ली वासियों में केजरीवाल के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोट का धीरे-धीरे पनपना, जैसे तमाम वैचारिक और राजनैतिक मसलों ने आखिरकार अरविंद केजरीवाल को इस्तीफा देने पर विवश कर दिया। केजरीवाल के निर्णय को दिल्ली के लोग बहुत देरी से लिया गया फैसला बता रहे हैं। हालांकि, उनके इस निर्णय को चुनावी पंडित भाजपा को फंसता हुआ भी बता रहे। वो मानते हैं कि केजरीवाल की जेल, बेल फिर इस्तीफा देने के खेल में भाजपा की तय चुनावी रणनीति फंस गई है।

  

बहरहाल, अरविंद केजरीवाल ने 15 सितम्बर को आम आदमी पार्टी के मुख्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अपने पद से इस्तीफा देने का ऐलान करके सबको चौंका दिया है। जब उन्होंने इस्तीफा देने की बात कही तो सभा में मौजूद सैकड़ों पार्टी कार्यकर्ताओं-समर्थकों ने हाथ उठाकर ‘नहीं-नहीं’ बोलने लगे। केजरीवाल ने सार्वजनिक ऐलान करके कह दिया है कि अगले दो दिनों के भीतर वह कुर्सी छोड़ देंगे। इस्तीफे के निर्णय से केजरीवाल समझतें हैं कि उनका ये बड़ा सियासी दांव साबित होगा, इससे पार्टी की बीच में गड़बड़ाई स्थिति में सुधार होगा और पिछले तीन चुनावों में उनकी पार्टी का जो प्रदर्शन रहा, वह 2025 के विधानसभा चुनाव में भी बरकरार रहेगा। देश इस बात से वाकिफ है कि पिछले दो चुनाव उनके लिए कश्मिई रहे, जिनमें 70 सीटों में 67 और 62 सीटें जीतकर दिल्ली में क्लीन स्वीप किया था। कांग्रेस का मानो पूरी तरह से सफाया ही कर दिया था। लेकिन अब भाजपा की तैयारियां भी अच्छी हैं। आगामी चुनाव में भाजपा अच्छा प्रदर्शन करेगी, ये बात खुद केजरीवाल स्वीकारते हैं।

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दरअसल, केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जनता दरबार में दोबारा से पहले जैसी सहानुभूति पाना चाहते हैं। केजरीवाल ने दिल्ली वासियों से कह दिया है कि वह अब तभी मुख्यमंत्री पद पर बैठेंगे, जब जनता चाहेगी। मतलब पानी की तरह बिल्कुल साफ है। यानी अगले चुनाव की बिसात उन्होंने बिछा दी हैं। क्योंकि मौजूदा सरकार का कार्यकाल तकरीबन समाप्ति की ओर हैं। इसलिए केजरीवाल ने गेंद को जनता के पाले में फेंककर बड़ा सियासी दांव चल दिया है। हालांकि ये तो वक्त ही बताएगा कि जनता अगले चुनाव में गेंद को केजरीवाल की ओर किक करती है या तमतमाई बैठी भाजपा के पाले में गेंद को उछालेगी। केजरीवाल अगर वास्तव में सियासत दांव नहीं खेलते तो वह विधानसभा भंग करके तुरंत चुनाव में भी कूद सकते थे। लेकिन उन्हें ऐसा इसलिए नहीं किया, क्योंकि ये वक्त उनके मुताबिक नहीं है। भाजपा ने अभी उनसे एमसीडी का स्टैंडिंग कमेटी का चुनाव जीता है। भाजपा के लोग तभी से मैदान में एक्टिव हो गए हैं, जब से केजरीवाल जेल गए थे।

दिल्ली को जीतने के लिए भाजपा आगामी चुनाव में किसी भी हद को पार करेगी। क्योंकि केजरीवाल एंड कंपनी ने सीधे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को चुनाव जीतने के लिए ललकारा है। संसद से लेकर सार्वजनिक सभाओं में आप पार्टी के नेता कहते हैं कि मोदी-शाह की जोड़ी दिल्ली में कभी भी केजरीवाल को नहीं हरा सकती। सूचनाएं ऐसी हैं कि भाजपा आगामी चुनाव में अपनी फायर ब्रांड नेत्री स्मृति ईरानी को केजरीवाल के मुकाबले मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर उतारने की तैयारी में हैं। इसके लिए दिल्ली के सातों सांसद को अभी से अंदरखाने चुनावी मैदान में तैयारियों के लिए उतारा हुआ हैं। भाजपा का मुख्य मुद्दा ‘दिल्ली शराब घोटाला’ ही रहेगा। ये ऐसा मुद्दा है जिसके बूते वो अगला चुनाव जीतने की फिराक में है। लेकिन वहीं, इस मुद्दे की हवा निकालने के लिए केजरीवाल की टीम भी कमर कसकर बैठी है। शराब घोटाले को आम आदमी पार्टी शुरू से फेक बताती आई है। फिलहाल भाजपा नहीं चाहती थी कि केजरीवाल इस्तीफा दें, क्योंकि उन्होंने प्रचार-प्रसार के कुछ स्लोगन बना रखे थे, जैसे ‘दिल्ली का जिद्दी मुख्यमंत्री’, ‘लालची मुख्यमंत्री’ और ‘बिना मुख्यमंत्री की दिल्ली’ इत्यादि।

अरविंद केजरीवाल के बाद कौन होगा दिल्ली का मुख्यमंत्री? ये सवाल भी दिल्ली की सियासत में चर्चाओं का विषय बना हुआ है। केजरीवाल अपने इस्तीफे के बाद यहां एक और सहानुभूति वाला दांव चल सकते हैं। किसी मुख्य चेहरे वाले विधायक या वरिष्ठ नेता को सीएम नहीं बनाएंगे। ऐसे किसी विधायक को मुख्यमंत्री की कमान सौंप सकते हैं जो बिल्कुल सामान्य, सरल और साधारण होगा, ताकि जिससे दिल्ली की जनता में यह  संदेश जाए कि देखिए केजरीवाल की पार्टी वास्तव में आम आदमियों की पार्टी है। एक सामान्य कार्यकर्ता भी उनकी पार्टी में मुख्यमंत्री बन सकता है। केजरीवाल फिलहाल जेल से बाहर आ गए है, उनके आने के बाद से उनकी पार्टी में और दिल्ली की सियासी गलियारों में हलचलें तेज हो गई हैं। दिल्ली विधानसभा-2025 के चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आते आएंगे, राजधानी में नित नए राजनैतिक डृमे देखने को मिलते रहेंगे। देखने वाली बात यही होगी, कि दिल्ली की जनता क्या केजरीवाल पर उतरा ही भरोसा करेगी जितना 10 सालों से करती आई है या फिर बदलाव के लिए मूड़ बना चुकी है।

- डॉ. रमेश ठाकुर

सदस्य, राष्ट्रीय जन सहयोग एवं बाल विकास संस्थान (NIPCCD), भारत सरकार!

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