अगड़ी जातियों के खिलाफ राहुल गांधी का हल्ला बोल- कांग्रेस को किस रास्ते पर ले जाना चाहते हैं?

Rahul Gandhi
ANI

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी अपनी पार्टी के जनाधार को लगातार बढ़ाने के लिए बिहार का दौरा कर रहे हैं। वर्ष 2025 में ही राहुल गांधी अब तक तीन बार बिहार जा चुके हैं।

बिहार में इसी वर्ष अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा का चुनाव होना है। तमाम राजनीतिक दल इस विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से तैयारियों में जुट गए हैं। एक तरफ जेडीयू के मुखिया नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन है, जिसमें विधायकों की संख्या के आधार पर बीजेपी नंबर वन की भूमिका में है। वहीं दूसरी तरफ आरजेडी के नेतृत्व में विपक्षी महागठबंधन है,जिसमें कांग्रेस दूसरे नंबर की बड़ी पार्टी है। हालांकि यह भी एक तथ्य है कि कांग्रेस के नेता विपक्षी गठबंधन के लिए महागठबंधन शब्द की बजाय इंडिया गठबंधन का ही प्रयोग करने लगे हैं।

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी अपनी पार्टी के जनाधार को लगातार बढ़ाने के लिए बिहार का दौरा कर रहे हैं। वर्ष 2025 में ही राहुल गांधी अब तक तीन बार बिहार जा चुके हैं। अपने मिशन बिहार के तहत राहुल गांधी सोमवार (7 अप्रैल) को बिहार की धरती पर थे। पिछले कुछ महीनों के दौरान उनकी यात्राओं की बात करें तो यह राहुल गांधी का तीसरा बिहार दौरा था। इससे पहले राहुल गांधी 18 जनवरी और 4 फरवरी को बिहार के दौरे पर गए थे।

इसे भी पढ़ें: Bihar में बोले Rahul Gandhi, जातीय जनगणना नहीं चाहती BJP-RSS, लेकिन हम करवा कर रहेंगे

लेकिन अपने बिहार दौरे के दौरान, राहुल गांधी ने सोमवार को जिस अंदाज में अपर कास्ट यानी अगड़ी जातियों पर हमला बोला,वो सबके लिए काफी चौंकाने वाला रहा। राहुल गांधी ने कहा कि, "इस देश में अगर आप अपर कास्ट के नहीं हैं, तो आप सेकंड क्लास सिटिजन हैं। ये बात मैं यूंही नहीं कह रहा। यह बात इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि मैंने सिस्टम को बहुत गहराई से देखा और समझा है। हमने तेलंगाना में जातिगत जनगणना की और उसके परिणामों को देखते हुए तेलंगाना में आरक्षण बढ़ा दिया। मैंने ख़ुद नरेंद्र मोदी के सामने कहा है कि अगर आपकी सरकार आरक्षण की दीवार नहीं खत्म करेगी तो हम आरक्षण में 50 प्रतिशत की सीमा वाली दीवार तोड़ देंगे।"

राहुल गांधी यहीं नहीं थमे। उन्होंने अगड़ी जातियों के खिलाफ बाकायदा एक माहौल बनाने की कोशिश करते हुए आगे कहा, "हमने कांग्रेस के जिला अध्यक्ष चुनें और ये बहुत जरूरी कदम है। पहले हमारे जिला अध्यक्षों में अपर कास्ट के लोग थे, लेकिन अब नई लिस्ट में दो तिहाई लोग- ईबीसी, ओबीसी, दलित, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग से हैं। मैंने और खरगे जी ने बिहार की टीम को साफ संदेश दे दिया है कि आपका काम- बिहार की गरीब जनता का प्रतिनिधित्व करना है। दलितों, ईबीसी, ओबीसी, गरीब सामान्य वर्ग और महिलाओं को जगह देना है।" 

बिहार का यह दुर्भाग्य रहा है कि वहां के नेताओं ने बिहार को जातियों के आधार पर खंड-खंड बांटने का काम किया है। रही-सही कसर नीतीश कुमार ने ओबीसी में से ईबीसी और दलितों में से महादलितों को निकाल कर पूरी कर दी है। ऐसे में राहुल गांधी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ाने और कांग्रेस के जनाधार को मजबूत बनाने के लिए ओबीसी, ईबीसी, दलित, महादलित और महिलाओं की बात करें, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।

लेकिन कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय और सबसे पुरानी पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान में भी पार्टी आलाकमान की भूमिका निभा रहे राहुल गांधी से अगड़ी जातियों को लेकर इस तरह की भाषा की उम्मीद तो कतई नहीं की जा सकती है। जबकि कांग्रेस और खासतौर से गांधी परिवार ने बीडीएम अर्थात बी से ब्राह्मण (इसमें तमाम अगड़ी जातियों को जोड़ा जाता है), डी से दलित और एम से मुस्लिम फॉर्मूले के आधार पर दशकों तक देश पर राज किया है। बिहार में भी इसी फॉमूले के आधार पर दशकों तक कांग्रेस की सरकारें बनती रही हैं। 

यह भी एक सर्वविदित तथ्य है कि दलित और ओबीसी मतदाताओं को एक साथ नहीं साधा जा सकता। उत्तर प्रदेश में मायावती की पार्टी बीएसपी के साथ गठबंधन करने के बावजूद यूपी के दलितों ने अखिलेश यादव के उम्मीदवारों को वोट नहीं दिया था। बिहार में भी लालू यादव अपनी ही पार्टी के दिग्गज दलित नेता और बिहार के दूसरे दलित मुख्यमंत्री रहे रामसुंदर दास को जनता दल विधायक दल की बैठक में हरा कर ही 1990 में पहली बार राज्य में मुख्यमंत्री बने थे। ऐसे में राहुल गांधी जिस अंदाज में एक ही साथ पिछड़ों और दलितों को साधने की कोशिश कर रहे हैं, उसका असफल होना तय माना जा रहा है। 

राहुल गांधी को शायद यह पता नहीं है या हो सकता है कि उन्हें अब तक उनके करीबी लोगों ने यह नहीं बताया है कि बीजेपी समेत बिहार में चुनाव लड़ रहे तमाम राजनीतिक दलों ने ओबीसी, ईबीसी, दलित और महादलित को जातियों के हिसाब से बांट कर, उस पर अपना कब्जा जमा लिया है। ऐसे में कांग्रेस के लिए वहां बहुत ही कम स्कोप बचता है। कांग्रेस को यह भी याद रखना चाहिए कि अगड़ी जातियों के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल कर, राजनीति का सफर शुरू करने वाली मायावती भी पूर्ण बहुमत हासिल कर अपने दम पर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य की मुख्यमंत्री तभी बन पाई थी, जब उन्होंने अगड़ी जातियों को भी बसपा के साथ जोड़ा था।

बिहार में दलित प्रदेश अध्यक्ष बनाकर राहुल गांधी ने पहले ही बड़ा दांव खेल दिया है। ऐसे में अगर वह गांधी परिवार के पुराने विनिंग फॉर्मूले पर अमल करते हुए अगड़ी जातियों को लुभाने की कोशिश करते तो कांग्रेस का संगठन और ज्यादा मजबूत होता नजर आता। बिहार में वर्ष 2022 में कराए गए जाति सर्वे में आए आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में सवर्ण वर्ग की कुल आबादी 2 करोड़ से भी ज्यादा यानी 15.52 प्रतिशत है। वहीं दलितों की कुल आबादी 19.65 प्रतिशत यानी 2.56 करोड़ है। अगर राहुल गांधी कांग्रेस उम्मीदवारों के पक्ष में अगड़ी जातियों और दलितों की बड़ी आबादी को लुभाने में कामयाब हो जाते हैं तो बीजेपी को हराने के नाम पर मुसलमान भी कांग्रेस के साथ खड़े हो जाएंगे। बता दें कि, बिहार में मुसलमानों की कुल आबादी 17.7 प्रतिशत है। ऐसे में राहुल गांधी फिर से बीडीएम फॉर्मूले के तहत कांग्रेस के लिए मजबूत वोट बैंक बनाने की शुरुआत कर सकते हैं। लेकिन उनके भाषण से यह साफ-साफ लग रहा है कि राहुल गांधी गलत ट्रैक पर चले गए हैं और इसका खामियाजा आने वाले दिनों में निश्चित तौर पर कांग्रेस को उठाना पड़ सकता है।

- संतोष कुमार पाठक

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं। 

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़