छह महीने पहले जिन्हें कौन अखिलेश वखिलेश कहा गया था, उन्होंने मैन ऑफ द मैच बनकर दिखा दिया

akhilesh yadav
ANI

जिन अखिलेश पर समाजवादी पार्टी को मनमाने ढंग से चलाने का आरोप लगता था, उन अखिलेश ने सबको साथ लेकर चलना शुरू किया तो सफलता कदम चूमने लगी। यही नहीं, गठबंधन धर्म का पालन करते हुए अखिलेश यादव ने उदार दिल दिखाया और कांग्रेस को उसकी हैसियत से ज्यादा सीटें दीं।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का जन्मदिन आज उनकी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता धूमधाम से मना रहे हैं। विभिन्न दलों के नेता भी अखिलेश यादव को जन्मदिन पर बधाइयां दे रहे हैं। अखिलेश यादव के लिए इस बार का जन्मदिन बेहद खास है इसलिए वह बहुत खुश नजर आ रहे हैं। दरअसल इस बार के लोकसभा चुनावों में मैन ऑफ द मैच बनकर उभरे अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी को लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनवा कर अपनी नेतृत्व क्षमता साबित कर दी है। संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद समाजवादी पार्टी पहली बार पूरी तरह अखिलेश यादव की नीतियों और नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरी थी और उसने बड़ी कामयाबी हासिल की। लोकसभा चुनावों में अखिलेश यादव अपने परिवार के सदस्यों को तो चुनाव जितवाने में सफल रहे ही साथ ही पार्टी को एकजुट कर उन्होंने जिस तरह से हर वर्ग का समर्थन हासिल किया वह अभूतपूर्व था।

देखा जाये तो कुछ समय पहले तक चाचा शिवपाल सिंह यादव जैसे अपने लोगों के अलावा बाहरी लोग भी अखिलेश यादव को महत्व नहीं दे रहे थे। याद कीजिये मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान जब अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के लिए कांग्रेस से कुछ सीटें मांगी थीं तो कमलनाथ ने कहा था- कौन अखिलेश वखिलेश। लेकिन जब मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार हुई तो उसके सुर एकदम से बदल गये और राहुल गांधी सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ नजर आने लगे। यही नहीं, पिछले साल मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव से पहले अखिलेश ने जिस तरह चाचा शिवपाल सिंह यादव को साथ लेकर पूरे परिवार को एकजुट किया उससे भी उनकी कामयाबी की राह आसान हुई।

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जिन अखिलेश यादव पर समाजवादी पार्टी को मनमाने ढंग से चलाने का आरोप लगता था, उन अखिलेश यादव ने सबको साथ लेकर चलना शुरू किया तो सफलता कदम चूमने लगी। यही नहीं, गठबंधन धर्म का पालन करते हुए अखिलेश यादव ने उदार दिल दिखाया और कांग्रेस को उसकी हैसियत से ज्यादा सीटें दीं। साथ ही राष्ट्रीय लोकदल के लिए भी सात सीटें छोड़ दीं। लोकसभा चुनावों से ठीक पहले जब जयंत चौधरी एनडीए के साथ चले गये तब भी अखिलेश यादव निराश नहीं हुए क्योंकि उन्होंने जो सोशल इंजीनियरिंग की थी उसकी सफलता पर उन्हें पूरा भरोसा था। जब चुनाव परिणाम आये तो उन लोगों के चेहरों की हवाइयां उड़ गयीं जो अखिलेश यादव के पीडीए का मजाक उड़ाते थे।

लोकसभा चुनाव परिणामों का विश्लेषण करेंगे तो पाएंगे कि अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को सिर्फ इसलिए वोट नहीं मिले हैं क्योंकि जनता मोदी और योगी सरकार से नाराज थी। अखिलेश यादव को वोट इसलिए भी मिले हैं क्योंकि जनता उनकी नीतियों से प्रभावित थी। अखिलेश यादव को वोट इसलिए भी मिले हैं क्योंकि मुस्लिमों का पूरा समर्थन उनके साथ आ गया है। भले आजम खान या कोई और मुस्लिम नेता अखिलेश यादव से नाराज दिखा लेकिन आम मुस्लिम अखिलेश यादव के समर्थन में खड़ा नजर आया। अखिलेश यादव को वोट इसलिए भी मिले हैं क्योंकि दलित, ओबीसी या पिछड़े वर्ग का ही नहीं बल्कि सवर्णों का भी अच्छा खासा समर्थन समाजवादी पार्टी को मिला है। लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश का जो परिणाम आया है वह दर्शा रहा है कि जनता ने सिर्फ भाजपा को सबक नहीं सिखाया है बल्कि अखिलेश यादव को सिर आंखों पर भी बैठाया है। जो लोग अखिलेश यादव पर आरोप लगा रहे थे कि वह सनातन धर्म का अपमान करने वालों को बढ़ावा दे रहे हैं उन लोगों को अखिलेश यादव ने अयोध्या की संसदीय सीट जीतकर दिखा दिया। जब राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाने का निमंत्रण अखिलेश यादव ने ठुकराया था तो भाजपा का कहना था कि जो राम का नहीं वो किसी काम का नहीं, लेकिन अयोध्या-फैजाबाद की जनता ने अखिलेश यादव की पार्टी को जिताकर भाजपा के आरोपों को खारिज कर दिया और संदेश दिया कि जो काम का है उसे ही जनता पसंद करती है।

यही नहीं, जब लोकसभा चुनावों के बीच में ही अखिलेश यादव बार-बार कई संसदीय सीटों पर अपने प्रत्याशी बदल रहे थे तो उन्हें नौसिखिया तक करार दिया जा रहा था। लेकिन चुनाव परिणाम दर्शा रहे हैं कि अखिलेश के वह सभी फैसले सही सिद्ध हुए। देखा जाये तो पूरे चुनावों के दौरान सपा मुखिया ने जिस तरह अपने गठबंधन के बीच सामंजस्य बनाये रखा, चुनाव के हर चरण के लिए नई नीति अपनाई, अपनी पार्टी को एकजुट रखा, कार्यकर्ताओं को निचले स्तर तक सक्रिय किया, सोशल मीडिया के जरिये अपने चुनाव अभियान को आगे बढ़ाया, जनता के बीच अपने घोषणापत्र की बातों को पहुँचाया और भाजपा को त्वरित तथा तगड़ा जवाब दिया उससे अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश की राजनीति के नये स्टार के रूप में उभरे हैं। देखा जाये तो जब अखिलेश यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे तब उसमें उनका अपना कोई योगदान नहीं था क्योंकि अपने पिता की बदौलत उन्हें वह कुर्सी मिली थी। अपने बलबूते अखिलेश यादव को सबसे बड़ी राजनीतिक सफलता इस बार के लोकसभा चुनावों में मिली है। इस बार समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 37 सीटें जीत कर भाजपा का मजा खराब कर दिया है। यही नहीं, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का जो शानदार प्रदर्शन रहा है वह भी समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बलबूते ही संभव हो पाया है। इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जहां सपा को कमजोर समझा जाता था वहां भी पार्टी का जोरदार प्रदर्शन दर्शा रहा है कि पूरे उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव का सिक्का चल गया है। देखना होगा कि आगामी विधानसभा उपचुनावों में सपा का प्रदर्शन कैसा रहता है?

-नीरज कुमार दुबे

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