भागवत का ज्ञान, बनाएगा मैदान, अखिलेश के PDA फॉर्मूले को डिकोड करेगा RSS

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अभिनय आकाश । Jul 2 2024 1:41PM

यूपी में आरएसएस की सक्रियता लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली करारी हार पर मरहम लगा सकता है क्योंकि यूपी में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। बीजेपी के सामने अखिलेश के पीडीए फॉर्मूले को डिकोड करने की चुनौती है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का कथित तौर पर मानना ​​है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की हालिया हार मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी (एसपी) और कांग्रेस द्वारा दलित और पिछड़े वर्ग के वोट बैंक में सेंध के कारण हुई है। आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबले की अगुवाई में हुई बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई। आरएसएस की वार्षिक बैठक के दौरान, उत्तर प्रदेश के प्रमुख क्षेत्रों के 'प्रचारकों' को भी फिर से नियुक्त किया गया। सूत्र बताते हैं कि आरएसएस बीजेपी की सीटों में कमी का कारण उसके दलित और पिछड़े वर्ग के वोट बैंक का सपा की ओर खिसकना बता रहा है। सूत्रों ने कहा कि मतदाताओं की निष्ठा में इस बदलाव ने भाजपा के प्रदर्शन पर काफी प्रभाव डाला। अब उत्तर प्रदेश में बीजेपी के बिछड़ने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सुपर एक्टिव मोड में दिख रहा है। सूत्रों के मुताबिक यूपी बीजेपी को संघ का साथ मिलने वाला है। यूपी में समाजवादी पार्टी के पीडीएफ मॉडल को पछाड़ने के लिए संघ खुलकर कमान संभालने की तैयारी में है। हरेक प्रक्रिया पर मंथन के बाद संघ का प्लान ऑफ एक्शन काम करेगा। यूपी में आरएसएस की सक्रियता लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली करारी हार पर मरहम लगा सकता है क्योंकि यूपी में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। बीजेपी के सामने अखिलेश के पीडीए फॉर्मूले को डिकोड करने की चुनौती है।

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क्या है अखिलेश का पीडीए फार्मूला जो चुनाव में हिट रहा

पिछड़े (पिछड़े वर्ग), दलित, अल्पसंख्यक (अल्पसंख्यक) के प्रति सपा की प्रतिबद्धता दिखाने के लिए अखिलेश ने लोकसभा चुनाव से पहले पीडीए फॉर्मूला पर जोर दिया था। इस कदम का भरपूर चुनावी लाभ मिला क्योंकि एसपी ने लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीतीं। अखिलेश यादव को डिप्टी स्पीकर उम्मीदवार पर इंडिया ब्लॉक के फैसले का इंतजार है। वह संविधान के अनुसार जाति जनगणना की वकालत करते हुए आरक्षण विरोधी रुख के लिए भाजपा की आलोचना करते हैं। अखिलेश ने बाबा साहब, लोहिया जी और नेताजी के दृष्टिकोण को याद किया। उन्होंने पीडीए परिवार के खिलाफ भेदभाव को उजागर करते हुए भाजपा पर उत्तर प्रदेश में बहुजन समुदाय, दलितों और आदिवासियों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया।  गैर यादव ओबीसी को टेक्ट देकर समजवादी पार्टी ने बीजेपी के वोट में सेंध लगाई। संविधान का मुद्दा उठाकर दलित वोट इंडिया गठबंधन के पक्ष में गया और मुस्लिम वोटर्स एकजुट होकर सपा-कांग्रेस गठबंधन के पक्ष में वोट किया। यादव की अगवाई में समाजवादी पार्टी ने पीडीए समीकरण के तहत 2014 से हिट चल रही बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग को ध्वस्त कर दिया। धर्म के राजनीति को जातीय समीकरण से साधा। नतीजा यह हुआ कि लगातार चुनाव में मिल रही जीत के बाद अब बीजेपी यूपी में खोई हुई जमीन तलाश रही है।

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नौ सीटों के विधायक बने हैं सांसद

उत्तर प्रदेश की 10 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। नौ सीट विधायकों के संसद पहुंचने जबकि एक सीट विधायक के सजा होने के बाद खाली हुई है। जिन सीटों पर उपचुनाव होने हैं उनमें मैनपुरी की करहल, अयोध्या की मिल्कीपुर, अंबेडकर नगर की कटेहरी, संभल की कुंदरकी, गाजियाबाद, अलीगढ़ की खैर, मीरापुर, फूलपुर, मझवां और सीसामऊ शामिल हैं। लोकसभा चुनाव में मिली जीत से उत्साहित समाजवादी पार्टी अब विधानसभा उपचुनाव में पीडीए फॉर्मूला लागू कर उम्मीदवार उतारेगी। पार्टी ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। सपा इस खास रणनीति से यूपी में भविष्य की राजनीति में खुद को मजबूत करने की फिराक में है। 

गोरखपुर में संघ के विस्तार पर हुई थी चर्चा

पहले गोरखपुर फिर वाराणसी और गाजीपुर से वाया मिर्ज़ापुर संघ प्रमुख मोहन भागवत पिछले कुछ दिनों से पूर्वांचल का दौरा कर रहे हैं। मोहन भागवत ने गोरखपुर में कार्यकर्ता शिविर में संघ के विस्तार, राजनीतिक परिदृश्य और सामाजिक सरोकारों पर चर्चा की थी. इसमें काशी, गोरखपुर, कानपुर और अवध क्षेत्र में संघ की जिम्मेदारी संभाल रहे संघ के करीब 280 स्वयंसेवक कार्यकर्ता विकास वर्ग शामिल हुए थे। मोहन भागवत ने परमवीर चक्र विजेता शाहिद वीर अब्दुल हमीद की जयंती कार्यक्रम में हिस्सा लिया। इसके साथ ही उनके बेटे की लिखी पुस्तक मेरे पापा परमवीर का विमोचन भी किया। इससे पहले सुबह वाराणसी में संघ प्रमुख ने शाखा लगाई। जिसके साथ ही बौद्धिक सत्र का आयोजन हुआ, जिसमें प्रांतीय पदाधिकारी भी शामिल हुए। गौर करने वाली बात ये है कि इन तमाम मौकों पर मोहन भागवत ने कोई भी राजनीतिक बयान नहीं दिया। संघ पदाधिकारी का कहना है कि शताब्दी वर्ष के आयोजन तक संघ के व्यापक विस्तार के लक्ष्य के साथ ही स्वयं सेवकों को एक वर्ष के लिए शताब्दी विस्तारक बनाकर अलग-अलग 80 जिलों के क्षेत्र में भेजना और गांव-गांव में संघ को मजबूत करने का प्लान इस बैठक में चर्चा में लाया गया है।

भागवत के मौन में कई संदेश छिपे हैं

संघ का मकसद बिना किसी राजनीतिक बयानबाजी के बीजेपी की खोई हुई सियासी जमीन को वापिस हासिल करना है। दरअसल, लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्वांचल में खासा नुकसान हुआ है। अब आरएसएस की कोशिश इसी का डैमेज कंट्रोल करने की है। इसके लिए आरएसएस पूर्वांचल में जातीय गठजोड़ को एकजुट करने के लिए जुट गया है। 

संघ की सोशल इंजीनियरिंग

चुनाव के बाद आरएसएस लगातार उत्तर प्रदेश में मंथन कर रहा है। इसी कड़ी में संघ प्रमुख मोहन भागवत का पूर्वांचल दौरा भी देखा जा रहा है। संघ की ओर से दलित बस्तियों में सामाजिक समरसता कार्यक्रम चलाए जाएंगे। सभी जातिवाद को संघ से जोड़ने की कोशिश होगी। यूपी के गांव में संघ का विस्तार किया जाएगा। हर ग्राम पंचायत में शाखा शुरू होगी। हर गांव में साप्ताहिक बैठक होगी।

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