Gyan Ganga: अथ श्री महाभारत कथा- जानिये भाग-5 में क्या क्या हुआ
हस्तिनापुर में यह खबर आग की तरह फ़ैल गई कि पांचों पांडव और माँ कुंती अब इस दुनिया में नहीं रहे। दुर्योधन उनकी मृत्यु के प्रति एकदम आश्वस्त था। उसने आनन फानन में पांडवों का अंतिम संस्कार भी करवा दिया।
ॐ नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॐ
अथ श्री महाभारत कथा अथ श्री महाभारत कथा
कथा है पुरुषार्थ की ये स्वार्थ की परमार्थ की
सारथि जिसके बने श्री कृष्ण भारत पार्थ की
शब्द दिग्घोषित हुआ जब सत्य सार्थक सर्वथा
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमअधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।
भारत की है कहानी सदियो से भी पुरानी
है ज्ञान की ये गंगाऋषियो की अमर वाणी
ये विश्व भारती है वीरो की आरती है
है नित नयी पुरानी भारत की ये कहानी
महाभारत महाभारत महाभारत महाभारत।।
पिछले अंक में हम सबने पढ़ा कि---- दुर्योधन द्वारा बनाए गए मायावी लाक्षागृह में कुंती सहित पाँचों पांडवों की हत्या की साजिश महात्मा विदुर ने अपनी समझदारी से विफल कर दी और कुंती सहित पाँचों पांडवों को लाक्षागृह से एक सुरंग के द्वारा सुरक्षित बाहर निकाल लाने में सफल रहे।
आइए ! आगे की कथा अगले प्रसंग में चलें-----
आपको बता दें कि दुर्योधन ने मामा शकुनि के कहने पर मंत्री पुरोचन की सहायता से पांडवों को जलाकर मार डालने की जो योजना बनाई थी उसमें वह कामयाब नहीं हो सका।
उधर, हस्तिनापुर में यह खबर आग की तरह फ़ैल गई कि पांचों पांडव और माँ कुंती अब इस दुनिया में नहीं रहे। दुर्योधन उनकी मृत्यु के प्रति एकदम आश्वस्त था। उसने आनन फानन में पांडवों का अंतिम संस्कार भी करवा दिया।
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भीम और हिडिंबा का मिलन:-
लाक्षागृह की घटना के बाद दुर्योधन के षड्यंत्र से पांडव अत्यंत दुखी हुए उन्होने राजमहल में लौटने से इंकार कर दिया। जिसके बाद वे एक गरीब ब्राह्मण का वेश धारण करके एकचक्रा नगरी में चले गए और वहाँ गुप्त रूप में निवास करने लगे।
इस दौरान भीम बकासुर जैसे अनेक राक्षसों का वध करके गांव वालों की रक्षा करते हैं। जंगल में भटकने के दौरान ही भीम हिडिंब नाम के एक राक्षस से भी अपनी माता और भाइयों को बचाते हैं, लेकिन हिडिंब की बहन हिडिंबा को भीम से प्रेम हो जाता है और माता कुंती के आशीर्वाद से भीम का विवाह एक राक्षसी कन्या हिडिंबा से हो जाता है।
हालांकि पहले माता कुंती और दूसरे पांडव इस विवाह का अनुमोदन नहीं करते, लेकिन जब हिडिंबा यह कहती है कि जब वह गर्भवती हो जाएगी। तब वह भीम को वापस आपके साथ भेज देगी। जिसपर सभी लोग भीम और हिडिंबा के विवाह के लिए हामी भर देते हैं। आगे चलकर हिडिंबा के गर्भ से घटोत्कच का जन्म होता है और बाद में घटोत्कच को भी एक पुत्र हुआ जो बर्बरीक के नाम से जाना गया। इन दोनों की गणना महाभारत के मुख्य पात्रों में होती हैं।
द्रौपदी का स्वयंवर:-
यह कहानी तब की है जब पांचाल नरेश राजा द्रुपद गुरु द्रोणाचार्य से पराजित होने के बाद उनको परास्त करने के उद्देश्य से अग्नि देव के आशीर्वाद से द्रौपदी और धृष्टद्युम्न को उत्पन्न करते हैं और फिर वे द्रौपदी के विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन करते हैं। उस स्वयंवर में यह शर्त रखी जाती है कि जो भी राजकुमार या युवराज मत्स्य भेदन करेगा, द्रौपदी उसी क्षत्रिय के गले में वरमाला डालेगी।
उधर, एकचक्रा नगरी में भ्रमण के दौरान महर्षि वेदव्यास पांडवों को पांचाल राज्य में होने वाले मत्स्य भेदन की जानकारी देते हैं। अर्जुन स्वयंवर में पहुंचता है और मत्स्य भेदन करने में सफल होता है। शर्त के अनुसार पांचाल नरेश राजा द्रुपद अपनी प्रिय पुत्री द्रौपदी का हाथ अर्जुन के हाथ में सौंप देते हैं।
हालांकि तब तक किसी को यह ज्ञात नही होता है कि ये पांडव अर्जुन है, क्योंकि समस्त पांडव तो ब्राह्मण का वेश धारण किए हुए थे। जबकि उस सभा में दुर्योधन और कर्ण जैसे महान योद्धा भी मौजूद थे। हालांकि अर्जुन से पहले मत्स्य भेदन कर्ण ने किया था, लेकिन द्रौपदी ने कर्ण को सूत पुत्र कहकर उसके साथ विवाह करने से मना कर दिया था।
इधर स्वयंवर में जीत हासिल करने के पश्चात जब अर्जुन द्रौपदी के साथ अपनी माता कुंती का आशीर्वाद प्राप्त के लिए उनके पास लेकर जाते हैं और दरवाजे पर से ही कहते हैं कि मां देखो मैं क्या लेकर आया हूँ ? तब माता कुंती बिना सोचे समझे यह कह देती हैं कि जो भी लाए हो उसे पांचों भाई आपस में बांट लो । इस प्रकार, द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी हो जाती है। द्रौपदी इस घटना से और यह सोचकर कि “मैं पाँच पुरुषों की पत्नी” अत्यंत विस्मित हो जाती है। ठीक उसी समय भगवान श्री कृष्ण वहाँ आते हैं और द्रौपदी को स्मरण कराते हैं कि अपने पिछले जन्म में तुमने ही युधिष्ठिर जैसा धर्म और न्याय प्रिय, भीम जैसा बलशाली, अर्जुन जैसा शक्तिशाली, नकुल जैसा सुन्दर और सहदेव जैसे ज्ञानी जीवनसाथी का वरदान भगवान शिव से मांगा था। ये समस्त गुण केवल एक पुरुष में नहीं हो सकते। तुमने जो चाहा था भगवान शिव ने उसकी पूर्ति की है।
इसलिए विस्मित और हैरान होने की जरूरत नहीं है। प्रसन्नता पूर्वक इन पांचों पांडवों को अपने पति परमेश्वर के रूप में स्वीकार करते हुए पत्नी धर्म का निर्वाह करो। द्रौपदी ने श्रीकृष्ण का परामर्श शिरोधार्य किया और पांचों पांडवों को पति के रूप में स्वीकार करते हुए और पत्नी धर्म का निर्वाह करते हुए जीवन व्यतीत करने लगी।
आगे की कथा अगले प्रसंग में
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
- आरएन तिवारी
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