भारत के 3 दुश्मनों का जीना होगा दुश्वार, मिडिल ईस्ट पर कैसा होगा रुख, ट्रंप के अमेरिका का बॉस बनने पर कैसे बदलेगी दुनिया?

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अभिनय आकाश । Nov 7 2024 2:44PM

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते हुए भारत और अमेरिका के रिश्ते बहुत मजबूत हुए थे। बाइडेन-कमला हैरिस के कार्यकाल में दोस्ती को बनी रही। लेकिन टकराव भी हुआ। जैसे इस वक्त कनाडा से भारत के टकराव और आतंकी पन्नू को लेकर भारत और अमेरिका के रिश्ते में टकराव दिख रहा है।

हार के बाद हार के विलाप और उसके बाद की बगावत के बाद 78 साल के आदमी ने चुनाव लड़ा और एक बार फिर डेमोक्रेटिक पार्टी को शिकस्त दे दी है। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे ये तय हो गया है। लेकिन इसके साथ ही ट्रंप के कमान संभालने के बाद दुनियाभर में भी बदलाव देखने को मिलेगा। ट्रंप की वापसी ने दुनियाभर में खलबली मचा दी है। यहां तक की उन देशों की बेचैनी भी बढ़ गई है जो बाइडेन प्रशासन के दौरान अमेरिका के करीबी रहे हैं। 

भारत पर क्या होगा असर

वाइट हाउस में ट्रंप की वापसी से भारत और अमेरिका के बीच सामरिक भागीदारी और मजबूत होने की उम्मीद की जा रही है। एक्सपर्ट का कहना है कि ट्रंप 2.0 में क्वाड और मजबूत होगा। क्वाड में ऑस्ट्रेलिया, भारत, अमेरिका और जापान शामिल हैं। ट्रंप प्रशासन चीन के बढ़ते दबदबे को रोकने की भी कोशिश करेगा, जिसका फायदा भारत को भी मिलेगा। भारत और अमेरिका के बीच रक्षा, सुरक्षा, काउंटर टेररिज्म और इंटेलिजेंस शेयरिंग की पार्टनरशिप और गहरी होने की उम्मीद।  एक्सपर्ट एक अंदेशा भी जता रहे हैं कि ट्रंप चीन समेत कई देशों के माल पर ज्यादा इंपोर्ट ड्यूटी लगा सकते हैं भारत से टेक्सटाइल्स, ऑटोमोबाइल्स और दवाओं का बड़ा निर्यात अमेरिका को होता है। इन पर असर पड़ सकता है। ट्रंप की चीन विरोधी नीति के चलते अमेरिकी कंपनियां चीन के बजाय भारत में निवेश कर सकती हैं।

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चीन की बढ़ने वाली है मुश्किले?

इस बात पर हर किसी की निगाहें है कि नए अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भारत के साथ कैसा व्यवहार रखते हैं। बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यकों को लेकर ट्रंप ने खुलकर बयान दिया। भारत से दोस्ती रखना ट्रंप की जरूरत बताई जाती है। अमेरिका चीन को अपना दुश्मन नं 1 मानता है। चीन को घेरने में भारत की मददगार हो सकता है। चीन की विशाल अर्थव्यवस्था का अमेरिका पर भी सीधा असर है। यूरोपीय देशों के बाजार चीनी प्रोडक्ट से अटे पड़े हैं। अपनी विशाल आबादी का चीन ने भरपूर उपयोग किया है। लेबर सस्ती होने और मौसम अनूकुल होने का लाभ उसने भरपूर उठाया है। मैन्युफैक्चरिंग में चीन दुनिया के सभी देशों से आगे हैं। इसलिए चीन के माल को दरकिनार करना आसान नहीं है। इसके अलावा चीन ने अपनी सैन्य तैयारियों भी तेज कर रखी है। साल 2027 तक चीन ताइवान पर कब्जा करना चाहता है। इसके लिए चीन अपनी सैन्य शक्तियों में भी लगातार इजाफा कर रहा है। उसके युद्धपोत लगातार ताइवान को घेरकर उसे डराते रहते हैं। लेकिन ताइवान की ढाल बनकर अमेरिका खड़ा नजर आता है। चीन अगर कोई हिमाकत करता है तो ट्रंप को ताइवान को बचाने के लिए सेना भेजनी ही पड़ेगी। इसके साथ ही ट्रंप चीन के खिलाफ ट्रेड वार को तेज कर सकते हैं। 

जस्‍ट‍िन ट्रूडो की हालत होने वाली है खराब

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते हुए भारत और अमेरिका के रिश्ते बहुत मजबूत हुए थे। बाइडेन-कमला हैरिस के कार्यकाल में दोस्ती को बनी रही। लेकिन टकराव भी हुआ। जैसे इस वक्त कनाडा से भारत के टकराव और आतंकी पन्नू को लेकर भारत और अमेरिका के रिश्ते में टकराव दिख रहा है। जबकि डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते हुए भारत और अमेरिका की दोस्ती ज्यादा मजबूत नजर आई थी। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की नीतियां अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी से काफी मेल खाती हैं, ऐसे में उम्‍मीद करना चाहिए कि ट्रंप के आने से भारत को कनाडा पर दबाव बनाने में मदद मिलेगी। आपको याद होगा जब पिछले हफ्ते कनाडा के ह‍िन्‍दू मंद‍िर पर हमला हुआ, तो डोनाल्‍ड ट्रंप ने तुरंत आलोचना की थी। उनके बयान के बाद ही जस्‍ट‍िन ट्रूडो के सुर बदले नजर आए थे। तुरंत उनका भी बयान आया और हमले की निंदा की गई थी। इसके बाद कार्रवाई भी हुई और तीन लोगों को ग‍िरफ्तार क‍िया गया। खालिस्तान मुद्दे को लेकर भी ट्रंप का रुख साफ है। वे इस मामले मे किसी भी तरह की हिंसा नहीं चाहते।

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यूक्रेन-रूस युद्ध पर क्‍या होगा असर

डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि अगर मैं चुनाव जीत गया तो रूस और यूक्रेन की जंग को 24 घंटे में बंद करा दूंगा। भले ही 24 घंटे में ऐसा संभव नहीं हो पाए। लेकिन इसके पीछे ये साफ संकेत है कि यूक्रेन को सपोर्ट जरूर बंद या कम किया जा सकता है। जैसे ही अमेरिकन सपोर्ट यूक्रेन को कम होगा तो ये जाहिर सी बात है कि शांति वार्ता की पहल तेज हो जाएगी। नाटो और अमेरिका के समर्थन से ही यूक्रेन रूस के साथ अभी तक युद्ध में टिका हुआ है। इस बात की संभावना काफी तेज है कि ट्रंप के सत्ता संभालते ही यूक्रेन को सपोर्ट कम होगा और युद्ध बंद होने की दिशा में प्रयास किए जाएंगे। रूस पहले ही यूक्रेन की बहुत बड़ी जमीन पर कब्जा कर चुका है और बिना किसी डील के अगर युद्ध बंद होता है तो पुतिन बहुत खुश होंगे। ट्रंप और पुतिन कई बार पहले भी बातचीत कर चुके हैं। अगर जेलेंस्‍की ट्रंप की बात नहीं मानते हैं तो वह हथियारों की सप्‍लाई रोक सकते हैं। अमेरिकी हथियारों के बल पर ही यूक्रेन रूस से मुकाबला कर पा रहा है। इसके बाद भी यूक्रेनी सेना अभी बैकफुट पर है।

इजरायल को मिल जाएगी खुली छूट?

मीडिल ईस्ट में एक युद्ध का मोर्चा खुला हुआ है। इजरायल का गाजा में छेड़ा गया युद्ध अब उसके आसपास के इलाकों तक फैल चुका है। माना जा रहा है कि इजरायल ट्रंप की वापसी से काफी खुश है। वैसे तो अमेरिकी चुनाव में यहूदियों ने अधिकांश रूप से कमला हैरिस को सपोर्ट किया। लेकिन अब उम्मीद है कि ट्रंप गाजा युद्ध का सर्वमान्य हल निकाल पाएंगे। डॉनल्ड ट्रंप की नीति शुरू से इजरायल को फलस्तीनी अरब बस्तियों पर हमले की खुली छूट देने की रही है। अपने पिछले कार्यकाल में उन्होंने इजरायल स्थित अमेरिकी दूतावास को वहां की राजधानी तेल अवीव से येरुशलम ले जाने का फैसला किया था, जो एक तरह से संयुक्त राष्ट्र के फैसले को खारिज करते हुए इस प्राचीन शहर पर पूरी तरह से इजरायल का कब्जा घोषित करने जैसा था। 15 सितम्बर 2020 को बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के विदेश मंत्री इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसे मध्य पूर्व में एक नए युग की शुरुआत के तौर पर देखा गया था। ट्रंप ने कहा था कि हम आज दोपहर यहां इतिहास की दिशा बदलने के लिए यहां आए हैं। दशकों के विभाजन और संघर्ष के बाद हम एक नए मध्य पूर्व की सुबह का प्रतीक हैं।

ईरान के साथ कैसे रहेंगे संबंध 

ट्रंप की वापसी का इजरायल-फलस्तीन युद्ध पर इतना ही असर हो सकता है कि पिछले कई दिनों से ईरान की ओर से इस्राइल पर जवाबी हमले की तैयारियों की जो खबरें आ रही हैं, वे शायद गलत साबित हों और ईरान अपने इस इरादे को हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में डाल दे। उसने ऐसा नहीं किया तो उसे पहले से कहीं ज्यादा बड़े अमेरिकी दखल के लिए तैयार रहना होगा। यूं भी ट्रंप का रुख ईरान पर अधिक सख्ती बरतने का रहा है और उनकी वापसी से इस देश को भारी समस्या हो सकती है। गौरतलब है कि भारत ने ईरान के चाबहार में स्थित शाहिद बेहश्ती बंदरगाह टर्मिनल के परिचालन के लिए 10-वर्षीय अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। इससे भारत को मध्य एशिया के साथ कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी। साल 2018 में अमेरिका में रिब्लिकन रूल था और डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति थे। ट्रंप अक्सर धमकियों के जरिए भारत को डराने की कोशिश समय समय पर करते रहते थे। चाहे वो एस 400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम हो या चाबहार पोर्ट से जुड़ा मसला या फिर कोविड-19 के वक्त दवाई की बात हो। ट्रंप की तरफ से कितनी बार कहा गया कि प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, या कोई कार्रवाई की जा सकती है। एक बार तो लग रहा था कि चाबहार और रूस से एस 400 की खरीद के बाद भारत पर कुछ बंदिशें लग सकती हैं। लेकिन भारत की डिप्लोमेसी इतनी अच्छी थी। इसके साथ ही भारत की जरूरत अमेरिका को इतनी ज्यादा थी कि वो किसी भी किस्म की कार्रवाई से बचता रहा। ऐसे में ट्रंप द्वारा ईरान पर कोई भी कदम उठाने से पहले भारत का ध्यान रखना उसकी मजबूरी और जरूरी होगा। 

बांग्लादेश पर साफ कर चुके हैं रुख

भारत का पड़ोसी मुल्क, जिसके साथ दशकों तक भारत के अच्छे संबंध रहे। जिसके साथ भारत ने पूरी शिद्दत से दोस्ती निभाई लेकिन इस साल अगस्त महीने में शेख हसीना सरकार के तख्तापलट होते ही बांग्लादेश के सुर बदल गए। हिंदुओँ पर वहां लगातार हमले देखने को मिले। उनके घरों, पूजा स्थलों औऱ दुकानों-मकानों को निशाना बनाया गया। डोनाल्ड ट्रंप ने दीवाली की शुभकामनाएं देते हुए बांग्लादेश में हिंदुओं, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के खिलाफ बर्बर हिंसा की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि वहां पूरी तरह अराजकता की स्थिति बनी हुई है। उन्होंने कहा कि मेरे निगरानी में ऐसा कभी नहीं होता। 

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