PM मोदी के दोस्त ट्रंप अब अमेरिका के राष्ट्रपति, चीन होगा टाइट, कनाडा और खालिस्तान से होगी सीधी फाइट, क्या सच में भारत को खुश होने की जरूरत है?
अमेरिका को हर जगह पर भारत की जरूरत है। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप को लेकर तो मामला थोड़़ा अलग ही है। डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले हैं। उनका झुकाव भारत के प्रति, नरेंद्र मोदी के प्रति और हिंदुओं की तरफ व कट्टरपंथियों को लेकर विचार बिल्कुल क्लीयर है। डोनाल्ड ट्रंप ही वो नेता हैं जो नरेंद्र मोदी की दोस्ती को उस लेवल तक लेकर गए थे जब उन्होंने नरेंद्र मोदी के स्वागत के लिए अमेरिका में बड़ा कार्यक्रम तक करवाया था।
"कोई भी हारने वाले को पसंद नहीं करता। कोई भी धमकाया जाना पसंद नहीं करता। फिर भी हम खड़े हैं, हम धरती पर सबसे बड़ी महाशक्ति हैं और हर कोई हमारे हिस्से का खा रहा है। यह ठीक नहीं है। अगर मैं अपना धंधा ऐसे चलाता तो खुद को बाहर कर देता। अमेरिका को फिर से जीतना शुरु करना होगा। आओ हम सब मिलकर अमेरिका को मजबूत बनाएं और उसे फिर से महान बनाएं।"
इन शब्दों के साथ अकड़ते और हवा में मुट्टियां लहराते हुए डोनाल्ड जॉन ट्रंप ने जून 2015 में दुनिया की सबसे ताकतवर कुर्सी को हासिल करने के लिए अपने शुरु किए चुनाव प्रचार को जीत के साथ समाप्त किया। उस समय वे सिर्फ ट्रंप ऑर्गनाइजेशन के अध्यक्ष थे, एक प्रॉपर्टी कुबेर, जिसने मध्यवर्गीय मकान, बड़े बड़े रिसॉर्ट और गोल्फ कोर्स बनाए थे, और उन्होंने जो कुछ बनवाया, उस पर अपना उपनाम बड़े और सुनहरे अक्षरों में अंकित करवा दिया। लेकिन साल 2024 में जब दूसरी बार राष्ट्रपति पद की रेस में ट्रंप की दावेदारी रिपबल्किन की तरफ से सुनिश्चित की जाती है तो उनके भाषणों में वही आत्मविश्वास नजर आया। आज अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत हो गई है। जीत के बाद अपने पहले भाषण में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि अब ये एक नए महत्वपूर्ण स्तर पर पहुंचने जा रहा है। हम अपने देश को ठीक करने में मदद करने जा रहे हैं। हमारे पास एक ऐसा देश है जिसे मदद की ज़रूरत है और उसे मदद की सख्त ज़रूरत है। हम अपनी सीमाएं फिक्स करने जा रहे हैं। हम सब कुछ फिक्स करने जा रहे हैं। हमने इतिहास बनाया है। ट्रंप ने कहा कि हमने उन बाधाओं को पार कर लिया जिनके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था और अब यह स्पष्ट है कि हमने सबसे अविश्वसनीय राजनीतिक उपलब्धि हासिल की है और देखिए क्या हुआ।
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भारत की ताकत को दुनिया जानती है और वर्तमान दौर में उसे अमेरिका नजरअंदाज करने की गलती तो बिल्कुल नहीं कर सकता है। अमेरिका को हर जगह पर भारत की जरूरत है। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप को लेकर तो मामला थोड़़ा अलग ही है। डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले हैं। उनका झुकाव भारत के प्रति, नरेंद्र मोदी के प्रति और हिंदुओं की तरफ व कट्टरपंथियों को लेकर विचार बिल्कुल क्लीयर है। डोनाल्ड ट्रंप ही वो नेता हैं जो नरेंद्र मोदी की दोस्ती को उस लेवल तक लेकर गए थे जब उन्होंने नरेंद्र मोदी के स्वागत के लिए अमेरिका में बड़ा कार्यक्रम तक करवाया था। खुद डोनाल्ड ट्रंप इस इवेंट में आए थे। इसके बाद जब डोनाल्ड ट्रंप भारत आए तो इसी तरह के एक बड़े कार्यक्रम में शामिल हुए थे।
खालिस्तान समर्थक कनाडा के साथ खड़े अमेरिका के रुख में आएगा बदलाव?
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते हुए भारत और अमेरिका के रिश्ते बहुत मजबूत हुए थे। बाइडेन-कमला हैरिस के कार्यकाल में दोस्ती को बनी रही। लेकिन टकराव भी हुआ। जैसे इस वक्त कनाडा से भारत के टकराव और आतंकी पन्नू को लेकर भारत और अमेरिका के रिश्ते में टकराव दिख रहा है। जबकि डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते हुए भारत और अमेरिका की दोस्ती ज्यादा मजबूत नजर आई थी। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की नीतियां अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी से काफी मेल खाती हैं, ऐसे में उम्मीद करना चाहिए कि ट्रंप के आने से भारत को कनाडा पर दबाव बनाने में मदद मिलेगी। डोनाल्ड ट्रंप खुलकर पीएम मोदी से अपने अच्छे रिश्ते और दोस्ती की बात करते हैं। पीएम मोदी भी डोनाल्ड ट्रंप को अपना अच्छा दोस्त बता चुके हैं। ट्रंप की जीत के बाद पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए अपने दोस्त ट्रंप को बधाई भी दी है औऱ भारत-अमेरिका संबंधों को और मजबूत करने की प्रतिबद्धता भी जताई है।
बांग्लादेश के हिंदुओं के समर्थन में खुलकर दिया बयान
दोनों नेताओं की विचारधारा भी एक जैसी है। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका फर्स्ट की बात करते हैं और पीएम मोदी भी नेशन फर्स्ट की बात करते हैं। पीएम मोदी भारत के हितों को सबसे ऊपर रखते हैं। दोनों नेताओं की राष्ट्रवादी सोच भी एक दूसरे को कनेक्ट करती है। डोनल्ड ट्रंप भी कोई भी बात खुलकर बिना हिचक के कहते हैं। पीएम मोदी भी बिना लाग लपेट के सीधे बात करते हैं। इसलिए ट्रंप और मोदी की जोड़ी कनेक्टेड मानी जाती है। डोनाल्ड ट्रंप के लिए भारत में माहौल इसलिए भी बना क्योंकि वो एकलौते ऐसे नेता हैं जिन्होंने चुनाव के बीच बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई थी। डोनाल्ड ट्रंप ने दीवाली की शुभकामनाएं देते हुए बांग्लादेश में हिंदुओं, ईसाइयों और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के खिलाफ बर्बर हिंसा की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि वहां पूरी तरह अराजकता की स्थिति बनी हुई है। उन्होंने कहा कि मेरे निगरानी में ऐसा कभी नहीं होता। कमला हैरिस और जो बाइडन ने दुनिया भर में तथा अमेरिका में हिंदुओं की अनदेखी की है। वे इजराइल से लेकर यूक्रेन और हमारी अपनी दक्षिणी सीमा तक तबाही मचा चुके हैं, लेकिन हम अमेरिका को फिर से मजबूत बनाएंगे और पूरी ताकत से शांति को वापस लाएंगे। आपको याद होगा कि जो बाइडेन की सरकार पर ये आरोप लगता रहा कि उसने ही बांग्लादेश में खेल कराया।
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फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर होगी चोट?
हैरिस खुद को भारत के ज्यादा करीबी होने का दावा करती हैं क्योंकि उनकी मां भारतीय हैं। हैरिस इस मामले मैं बेहतर रही थी। लेकिन व्यापार में अमेरिकी हितों को सबसे ऊपर रखने से उन्हें भी गुरेज नहीं रहा। वो अमेरिकी कंपनियों को सब्सिडी देने की हिमायती रही ताकि देश में मैन्युफैक्चरिंग बेस बढ़े। उन्हें इसकी परवाह नहीं है कि इससे मुक्त व्यापार व्यवस्था को चोट पहुंचेगी। वैश्विक व्यापार के लिए डब्ल्यूटीओ के बनाए नियमों का पक्षधर रहा है। यानी चुनाव जो भी जीते, हमें अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए सचेत होना पड़ेगा।
चीन के खिलाफ सख्त स्टैंड वाले ट्रंप अवैध एंट्री करेंगे बंद
चीन' के खिलाफ कठोर स्टैंड रखने वाले ट्रंप, अब मेक्सिको के जरिए अमेरिका में अवैध एंट्री करने वालों पर शिकंजा कसेंगे। व्यापार की बात करें तो ट्रंप कह चुके हैं कि राष्ट्रपति बनने पर वह अमेरिका में आने वाली सभी चीजों पर 10% का आयात शुल्क लगाएंगे। चीनी सामानों पर उन्होंने 60% टैरिफ लगाने नए की बात कही है। वह चीन से मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का दर्जा भी छीन लेगे। वैसे तो इस दर्जे के छीने जाने से बहुत फर्क नहीं पड़ता, लेकिन इसका संकेत यह हो सकता है कि विदेश व्यापार को लेकर इतने वर्षों में जो नीतियां बनी हैं, कहीं उनका दौर खत्म होने को तो नहीं है। वहीं भारत के लिहाज से देखें तो पिछले दिनों एलएसी पर दोनों देशों ने अपने सैनिकों को पीछे हटाया है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार बताते हैं कि ट्रंप के आने के बाद सीमा सहित कई मसलों पर चीन अपनी ज्यादा दादागिरी नहीं दिखा सकेगा। इसका फायदा भारत को मिल सकता है।
H1B वीजा और कई चुनौतियां भी
ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री ने हमेशा एक दूसरे के प्रति रिश्ते गर्मजोशी से भरे नजर आए। उन दोनों के बीच इस खुशमिजाजी का नतीजा ये निकला कि पहली बार उनके कार्यकाल में ही भारत ने अमेरिका के साथ रक्षा और विदेश मंत्रालय के स्तर पर 2+2 डॉयलॉग हुआ है। कई मौकों पर मोदी की तारीफें करने के बावजूद ट्रम्प ने भारत की प्राथमिकताओं के विरुद्ध भी काम किए हैं, जिनमें शामिल हैं एच-1बी वीजा, जीएसपी और कश्मीर विवाद में मध्यस्थता के प्रस्ताव। भारत में अमेरिकी उत्पादों पर लगने वाले टैरिफ की डोनाल्ड ट्रंप आलोचना करते रहे हैं। उन्होंने भारत से स्टील और एल्यूमिनियम के आयात पर ड्यूटी लगा दी थी। वैसे तो ट्रंप की जीत के चलते भारत को कई मोर्चों पर काफी सहजता होगी। वही, ट्रंप की ओर से पेश आने वाली चुनौतियां भी कम नहीं होंगी।
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