कैसी होगी दूसरे कार्यकाल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की विदेश नीति?
दुनिया की महासत्ता होने के कारण अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव का असर पूरी दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। ऐसे में अमेरिका की विदेश नीति का रूख भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे विश्व व्यवस्था भी प्रभावित होती है।
डोनाल्ड ट्रम्प दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं। लगभग सारे चुनावी सर्वेक्षण और अनुमानों को ग़लत साबित करते हुए ट्रम्प ने अपनी प्रतिद्वंदी और अमेरिका की वर्तमान उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की।
दुनिया की महासत्ता होने के कारण अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव का असर पूरी दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। ऐसे में अमेरिका की विदेश नीति का रूख भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इससे विश्व व्यवस्था भी प्रभावित होती है। ट्रम्प की विदेश नीति क्या रह सकती है यह समझना ज़रूरी है।
राष्ट्रपति का चुनाव जीतते ही ट्रम्प को अलग अलग देशों के नेताओं की तरफ से बधाई संदेश भेजे गए। ट्रम्प ने कुछ नेताओं से फ़ोन पर भी बात की। जिन नेताओं से ट्रम्प ने सबसे पहले बात की उनमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतान्याहू और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान शामिल थे। इस बातचीत के मायने भी विदेश नीति की दृष्टि से देखते हैं।
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मोदी के साथ बात करना भारत और अमेरिका के मज़बूत रिश्तों को दर्शाता है। ट्रम्प के पहले कार्यकाल में भारत-अमेरिका संबंध मज़बूत हुए इसकी एक वजह थी मोदी और ट्रम्प की व्यक्तिगत मित्रता। दोनों नेता एक दुसरे को अपना दोस्त कहते हैं। हालांकि कूटनीति राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर की जाती है लेकिन ऐसी व्यक्तिगत मित्रता भी कई बार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ट्रम्प के दुसरे कार्यकाल में भी भारत से अमेरिका के दृढ संबंधों की अपेक्षा है।
इसका मतलब है की भारत और अमेरिका के बीच सामरिक रिश्ते और आगे बढ़ सकते हैं। चीन की चुनौती का मुक़ाबला करने में भारत को अमेरिका का सहयोग मिल सकता है। पाकिस्तान के साथ अमेरिका के रिश्तों पर भी ट्रम्प पुनर्विचार कर सकते हैं। आतंकवाद के ख़िलाफ़ पहले भी ट्रम्प भारत का समर्थन और पाकिस्तान का विरोध कर चुके हैं। हाल ही में चुनाव प्रचार के दौरान ट्रम्प ने बांग्लादेश में हिन्दुओं के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा की खुलकर आलोचना की थी। इस्लामिक आतंकवाद के विरुद्ध भारत की लड़ाई में ट्रम्प भारत के पक्ष में रहेंगे।
सुरक्षा के अलावा कूटनीति में भी विश्व स्तर पर भारत को संतुलन बनाए रखने की कवायद कम करनी पड़ सकती है। रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते भारत को रूस और पश्चिमी देशों से अपने रिश्ते सामान्य रखने के लिए काफ़ी प्रयास करने पड़ रहे हैं। रूस और रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रति ट्रम्प का रूख बाइडेन प्रशासन जितना सख़्त नहीं है। चुनाव प्रचार के दौरान ट्रम्प ने रूस-यूक्रेन युद्ध में दोनों पक्षों की सहमति से समाधान खोजने की बात कही थी।
साथ ही नेतन्याहू और मोहम्मद बिन सलमान से बात करना भी ट्रम्प की आगामी नीति के संकेत हैं। अमेरिका की विदेश नीति में इस्राएल को पारंपारिक रूप से दशकों से सैन्य और आर्थिक समर्थन मिलता आ रहा है। लेकिन जो बाइडेन के कार्यकाल में अमेरिका में इस्राएल-हमास युद्ध में हमास और फिलिस्तीन को भी इजरायल के ख़िलाफ़ काफ़ी समर्थन मिला है। लेकिन अब ट्रम्प के कार्यकाल में फिलिस्तीन और हमास पर अमेरिका का रूख कड़ा रह सकता है। उसी तरह सऊदी अरब से भी अमेरिका अपने करीबी रिश्तों को स्थिर रखना चाहेगा। अपने पहले कार्यकाल में ट्रम्प ने पश्चिम एशिया में कोई भी युद्ध शुरू नहीं किया था। बल्कि अमेरिका की मध्यस्थता से चार अरब देशों के इस्राएल के साथ कूटनीतिक संबंध प्रस्थापित हुए थे ।
अगर ट्रम्प रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-हमास युद्ध को ख़त्म करते हैं तो यह उनकी विदेश नीति की एक बड़ी सफलता होगी।
एक दिलचस्प बात यह है की राष्ट्रपति का चुनाव जीतते ही ट्रम्प ने जिन देशों के नेताओं से बात की, उनमें कोई भी यूरोपीय देशों के नेता नहीं थे। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है की ट्रम्प की यूरोप के प्रति नीति उनके पहले कार्यकाल जैसी ही होगी। 2016 से 2020 तक के अपने कार्यकाल में यूरोपीय देशों से ट्रम्प के रिश्ते बहुत अच्छे नहीं थे। यूरोपीय देशों ने अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ख़ुद उठानी चाहिए और अमेरिका पर हर वक़्त निर्भर नहीं रहना चाहिए यह ट्रम्प की नीति रही है। साथ ही जो यूरोपीय देश नाटो के सदस्य हैं वे नाटो में पर्याप्त आर्थिक योगदान न देने की वजह से भी ट्रम्प यूरोपीय देशों से नाराज़ रहे हैं। अगर ट्रम्प यूरोप को समर्थन देना बंद करते हैं तो अपने आप यूक्रेन को मिलने वाली आर्थिक और सैन्य मदद में भी कमी आएगी जिससे रूस-यूक्रेन युद्ध के समाप्त होने के आसार बढ़ सकते हैं।
हालांकि यह जानना भी आवश्यक है की ट्रम्प एक ऐसे व्यक्ति हैं जो कूटनीति में व्यापारिक दृष्टिकोण रखते हैं। एक उद्योगपति होने के कारण ट्रम्प हमेशा लाभ और हानि के नज़रिये से ही विदेश नीति को देखेंगे। अपने पहले कार्यकाल में भी ट्रम्प इसी नीति के लिए जाने जाते थे। इसका असर दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्व एशिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र पर पड़ सकता है। यूरोपीय देशों की तरह ट्रम्प दक्षिण कोरिया, जापान और ऑस्ट्रेलिया को भी सुरक्षा मामलों में आत्मनिर्भर होने के लिए कह सकते हैं। इससे इस क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर नियंत्रण पाना मुश्क़िल हो सकता है।
ट्रम्प की जीत को अमेरिका में ही नहीं, पूरी दुनिया में एक उलटफेर के तौर पर देखा जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है की ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल में विश्व व्यवस्था में भी काफ़ी बदलाव हो सकते हैं।
- निरंजन मार्जनी
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