दुनिया में क्यों हो गई कंडोम और गर्भ निरोधक गोलियों की किल्लत, महिलाओं पर पड़ने वाले हैं विनाशकारी प्रभाव
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UN Population Fund, UNFPA) की तरफ से एक आंकड़ा जारी किया गया है जिसमें कहा गया है कि निन्म और मध्य आय वालों में लगभग पांच करोड़ से भी ज्याद महिलाएं गर्भनिरोधक दवाईया नहीं ले सकीं हैं। पूरे देश में लॉकडाउन के हालत है और ऐसे में लोग अपने परिवार के साथ है।
दुनियाभर में इस समय कोरोना वायरस का कहर है। ऐसे में कोरोना के कहर रोकने के लिए दुनिया के ज्यादातर देशों को लॉकडाउन कर दिया है। लॉकडाउन से भले ही देश में कोरोना को फेलने से रोका जा रहा है लेकिन कोरोना के खत्म हो जाने के बाद दुनियाभर पर बड़ी मुसीबत आने वाली है आर्थिक मंदी के रूप में। जहां बड़ी बड़ी रिसर्च में ये अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले 4-5 साल काफी चुनौतापूर्ण होगें। ताजा रिपोर्ट की मानें तो जहां एक तरफ आर्थिक समस्या आने वाली है वहीं दूसरी तरफ जनसंख्या वृद्धि का भी अनुमान लगाया जा रहा है।
लॉकडाउन में स्वास्थ्य सेवाओं के बाधित होने से विकसित देशों में करीब पांच करोड़ महिलाएं गर्भनिरोधक नहीं ले पाई हैं।
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संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UN Population Fund, UNFPA) की तरफ से एक आंकड़ा जारी किया गया है जिसमें कहा गया है कि निन्म और मध्य आय वालों में लगभग पांच करोड़ से भी ज्याद महिलाएं गर्भनिरोधक दवाईया नहीं ले सकीं हैं। पूरे देश में लॉकडाउन के हालत है और ऐसे में लोग अपने परिवार के साथ है। जाहिर है पति पत्नी, कपल आदि के बीच इस दौरान फिजिकल रिलेशन बन रहे होंगे। ऐसे में कम जानकारी के आभाव में अनचाही प्रेगनेंसी की उम्मीद भड़ जाती है। लॉकडाउन के कारण स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं थप है ऐसे में कंडोम और गर्भनिरोधक दवाएं मिलना मुश्किल हो गया है।
इसी कारण संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने यह अनुमान लगाया है कि आने वाले महीनों में अनचाहे गर्भधारण (unintended pregnancies) के 70 लाख मामले सामने आ सकते हैं। जाहिर है इससे जनसंख्या में बढ़ोतरी की आशंका है।
परिवार नियोजन के साधनों का आभाव
इस जनसंख्या वृद्धि की आशंका के पीछे तमाम कारण है जिसमें से सबसे बड़ा कारण है कि लॉकडाउन के कारण मेडिकल सप्लाई काफी बाधित हुई है। इस समय केवल जरूरत की दवाइयों की ही सप्लाई हो रही है। सील इलाकों में घर से बाहर बी निकलना स्वीकार्य नहीं है ऐसे में समस्या है परिवार नियोजन के साधन लोगों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। यूएनएफपीए और सहयोगियों की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक माना जा रहा है कि लगातार ऐसी परिस्थिति के कारण यदि महिलाओं के साथ हिंसा के मामले भी बढ़ सकते हैं।
यूएनएफपीए के कार्यकारी निदेशक नतालिया कनीम ने चैताया
यूएनएफपीए के कार्यकारी निदेशक नतालिया कनीम ने कहा, "यह नया डेटा वैश्विक स्तर पर महिलाओं और लड़कियों पर पड़ने वाले विनाशकारी प्रभाव को दिखाता है। महामारी असमानताओं को गहरा कर रही है, लाखों अधिक महिलाएं और लड़कियां अब अपने परिवारों की योजना बनाने और अपने शरीर और उनके स्वास्थ्य की रक्षा करने की क्षमता खोने का जोखिम उठाती हैं," कनीम ने आगे कहा कि COVID-19 महामारी के टोल का एक स्पष्ट दृष्टिकोण केवल आकार लेने के लिए शुरू हो रहा है, विशेषज्ञों का अनुमान है कि मानव लागत असाधारण हो सकती है।
लिंग आधारित हिंसा
अध्ययन में कहा गया कि छह महीने के लॉकडाउन में लिंग आधारित हिंसा के अतिरिक्त 31 मिलियन मामले सामने आए। महामारी को भी महिला जननांग विकृति और बाल विवाह को समाप्त करने के लिए कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण देरी होने का अनुमान है, जिसके परिणामस्वरूप अगले दशक की तुलना में एफजीएम के अनुमानित दो मिलियन से अधिक मामले अन्यथा घटित होंगे।
वैश्विक स्तर पर बढ़ती आर्थिक संकट
वैश्विक स्तर पर बढ़ती आर्थिक कठिनाइयों के कारण ये विलंबित कार्यक्रम, अनुमानित 13 मिलियन अधिक बाल विवाह 10 वर्षों में हो सकते हैं। इसी अवधि के दौरान लिंग आधारित हिंसा के 31 मिलियन अतिरिक्त मामले भी सामने आएंगे, हर तीन महीने तक 15 मिलियन और अधिक मामले दर्ज होने की उम्मीद है।
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