भारत में इस जगह एक किलोमीटर के सफर के लिए लगता है सात हजार रूपए किराया, जानिए क्या है वजह
अगर हम आपको कहें कि केवल एक से डेढ़ किलोमीटर के सफर के लिए आपको नाव से सवारी करने के लिए 7000 रूपए किराया देना पड़ेगा तो क्या आप विश्वास करेंगे? लेकिन बिहार में एक ऐसी जगह है जहाँ एक मामूली से नाव में नदी पार करने के लिए 7000 रूपए किराया देना पड़ता है।
अगर हम आपसे पूछें कि सबसे महंगा परिवहन कौन सा है तो आप शायद हवाई जहाज का नाम लेंगे। हवाई जहाज से यात्रा करना सड़क मार्ग के मुकाबले महंगा पड़ता है। लेकिन अगर हम आपको कहें कि केवल एक से डेढ़ किलोमीटर के सफर के लिए आपको नाव से सवारी करने के लिए 7000 रूपए किराया देना पड़ेगा तो क्या आप विश्वास करेंगे? लेकिन बिहार में एक ऐसी जगह है जहाँ एक मामूली से नाव में नदी पार करने के लिए 7000 रूपए किराया देना पड़ता है।
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बक्सर जिले में 1 किलोमीटर के सफर के लिए 7000 रूपए किराया
बिहार के बक्सर जिले में गंगा नदी बिल्कुल सटकर बहती है। यहां गंगा नदी बिहार के बक्सर और उत्तर प्रदेश के बलिया जिले को अलग करती है। बक्सर से नाव में बैठकर गंगा पार जाकर लौटने के लिए लगभग 7000 रूपए का किराया लगता है। जबकि, दोनों जिलों के बीच में दूरी लगभग डेढ़ किलोमीटर ही है।
विशेष धार्मिक महत्व
बिहार के बक्सर जिले का विशेष धार्मिक महत्व है। इसे मिनी काशी के नाम से भी जाना जाता है। यहां गंगा नदी के किनारे रामरेखा नाम का एक घाट है जहां न केवल बिहार, बल्कि उत्तर प्रदेश और नेपाल से भी श्रद्धालु आते हैं। लोग इस घाट पर बच्चों के मुंडन संस्कार के लिए आते हैं। विशेष तिथि और मूहर्त में इस घाट पर जबरदस्त भीड़ उमड़ती है और घाट पर पैर रखने की भी जगह नहीं होती है। ऐसे अवसरों पर शहर की सड़कें जाम हो जाती हैं और गंगा पार जाने के लिए लंबी लाइन लगती है। इसी बात का फायदा उठाकर नाविक गंगा पार जाकर लौटने के लिए पर्यटकों से करीब 7000 रूपए किराया वसूल लेते हैं।
मुंडन संस्कार के लिए आते हैं लोग
सनातन धर्म में मुंडन संस्कार का विशेष महत्व है। यह सोलह संस्कारों में से आठवां संस्कार है। बक्सर के रामरेखा घाट पर लोग सपरिवार पहुंचकर अपने बच्चों का मुंडन संस्कार करवाते हैं। यहां पर मुंडन संस्कार के दौरान एक विशेष किस्म की रस्सी, जिसे स्थानीय भाषा में बाध कहा जाता है, से नदी के दोनों किनारों को नापा जाता है। फिर आम की लकड़ी से बने खूंटे पर रस्सी का एक छोर बांधकर लोग नाव से गंगा के पार जाते हैं और रस्सी का दूसरा छोर नदी के दूसरे किनारे पर खूंटा गाड़ कर बांधते हैं। इस दौरान नदी के दोनों किनारों पर पूजा की जाती है। नदी के एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाकर लौटने में करीब 30 से 40 मिनट का वक्त लगता है।
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एक बच्चे के मुंडन के लिए 1700 रुपए किराया
रामरेखा घाट पर एक बच्चे के मुंडन के लिए नाविकों ने 1700 रुपए किराया निर्धारित कर रखा है। इसमें नाव के सहारे नदी के एक छोर से दूसरे छोर तक जाकर लौटना शामिल है। विशेष मुहूर्त पर रामरेखा घाट पर भारी भीड़ उमड़ती है और नाविकों का संघ इसी बात का फायदा उठाकर खुलेआम मनमानी करता है। मुंडन का मुहूर्त हो तो एक परिवार से अधिकतम पांच लोगों को ही नाव पर सवार कराते हैं। अगर किसी परिवार के 10 लोगों को नाव पर सवारी करनी हो तो 3400 रूपए देने होंगे। जब घाट पर भीड़ अधिक होती है तो छोटी नाव वाले भी कम से कम 4 परिवारों को लेकर ही नाव को आगे बढ़ाते हैं। इस तरह प्रति परिवार 1700 रुपए की दर से 6800 रूपए वसूल करने के बाद ही नाव आगे बढ़ती है। हर परिवार से पांच लोग के हिसाब से इतने लोग हो जाते हैं कि नाव पर बैठने की जगह मुश्किल से बन पाती है।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि मुंडन संस्कार के मुहूर्त में ही नाविक अपनी सालभर की कमाई पूरी कर लेते हैं। क्योंकि सामान्य दिनों में उनके पास कोई खास काम नहीं रहता है। इतने अधिक किराए के सवाल पर नाविक का कहना है कि ठेकेदार नाव से लटकती रस्सियों को गिन लेता है। जितनी रस्सियाँ होंगी, उतने ही लोगों के लिए 1700 रुपए देने होंगे। हालांकि यह पूरा सच नहीं है।
जानिए क्या है पूरी सच्चाई
ठेकेदार पूरे रास्ते में चल रही नाव पर निगरानी जरूर रखता है लेकिन नाविक नाव से लटकती रस्सी को यह कहकर तोड़ देते हैं कि इससे उन्हें आगे बढ़ने में मुश्किल हो रही है। इस तरह 4 परिवारों को बिठाकर भी नाविक ठेकेदार को दो या तीन परिवारों की खबर देते हैं।
नाविक करते हैं मनमानी
लोगों का कहना है कि प्रशासन का मौन रामरेखा घाट इन नाविकों की मनमानी को बढ़ावा देता है। इसमें ठेकेदार की भी मिलीभगत रहती है। यहां इतनी भारी भीड़ होने के बाद भी नाव के किराए के निर्धारण की कोई जानकारी कहीं भी नहीं लिखी होती है। बाहर से आए लोग भी अपना कार्यक्रम को खराब नहीं करना चाहते हैं इसलिए यहां नाविकों ने लूट मचा रखी है।
- प्रिया मिश्रा
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