वर्तमान वैश्विक पटल पर भारत के लिए आपदा में अवसर हैं

modi jaishankar
ANI

कुल मिलाकर पूरे विश्व में विभिन्न देशों के बीच अब नए समीकरण बनते हुए दिखाई दे रहे हैं। यूरोपीयन यूनियन के समस्त सदस्य देश आपस में मिलकर अब अपनी सुरक्षा स्वयं करना चाहते हैं। अभी तक ये देश अमेरिका के सखा देश होने के चलते अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर रहते थे।

अमेरिका ने अन्य देशों से अमेरिका में होने वाली आयातित उत्पादों पर भारी भरकम टैरिफ लगाकर विश्व के लगभग समस्त देशों के विरुद्द एक तरह से व्यापार युद्ध छेड़ दिया है। इससे यह आभास हो रहा है आगे आने वाले समय में विभिन्न देशों के बीच सापेक्ष युद्ध न होकर व्यापार युद्ध होने लगेगा। चीन से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात पर तो अमेरिका ने 145 प्रतिशत का टैरिफ लगा दिया है। एक तरह से अमेरिका की ओर से चीन को यह खुली चुनौती है कि अब अपने उत्पादों को अमेरिका में निर्यात कर के बताए। 145 प्रतिशत के आयात कर पर कौन सा देश अमेरिका को अपने उत्पादों का निर्यात कर पाएगा, यह लगभग असम्भव है। इससे चीन की अर्थव्यस्था छिन्न भिन्न हो सकती है, यदि चीन, अमेरिका के स्थान पर विश्व के अन्य देशों को अपने उत्पादों का निर्यात नहीं बढ़ा पाया। बगैर प्रत्यक्ष युद्ध किए, अमेरिका ने चीन पर एक तरह से विजय ही प्राप्त कर ली है और चीन की अर्थव्यवस्था को भारी नुक्सान करने के रास्ते खोल दिए हैं, हालांकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी विपरीत रूप से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। परंतु, ट्रम्प प्रशासन ने विश्व के 75 देशों पर लागू किए गए टैरिफ को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया है। इससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर अन्यथा होने वाले विपरीत प्रभाव को बहुत बड़ी हद्द तक कम कर लिए गया है। अमेरिका संभवत चाहता है कि आर्थिक मोर्चे पर चीन पर इतना दबाव बढ़ाया जाए कि चीन की जनता चीन के वर्तमान सत्ताधरियों के विरुद्ध उठ खड़ी हो और चीन एक तरह से टूट जाए। अमेरिका ने लगभग इसी प्रकार का दबाव बनाकर सोवियत रूस को भी तोड़ दिया था। 

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कुल मिलाकर पूरे विश्व में विभिन्न देशों के बीच अब नए समीकरण बनते हुए दिखाई दे रहे हैं। यूरोपीयन यूनियन के समस्त सदस्य देश आपस में मिलकर अब अपनी सुरक्षा स्वयं करना चाहते हैं। अभी तक ये देश अमेरिका के सखा देश होने के चलते अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर रहते थे। परंतु, वैश्विक स्तर पर बदली हुई परिस्थितियों के बीच इन देशों का अमेरिका पर विश्वास कम हुआ है एवं यह देश आपस में मिलकर अपनी स्वयं की सुरक्षा व्यवस्था खड़ी करना चाहते हैं। आगे आने वाले समय में यूरोपीयन यूनियन के समस्त देश अपने सुरक्षा बजट में भारी भरकम वृद्धि कर सकते हैं। यहां, भारत के लिए अवसर निर्मित हो सकते हैं क्योंकि भारत में हाल ही के समय में सुरक्षा के क्षेत्र में उत्पादों की नई एवं भारी मात्रा में उत्पादन क्षमता निर्मित हुई है। भारत आज सुरक्षा के क्षेत्र में तेजी से न केवल आत्म निर्भर हो रहा है बल्कि भारी मात्रा में उत्पादों का निर्यात भी करने लगा है। आज सिंगापुर जैसे विकसित देश भी भारत से सुरक्षा उत्पाद खरीदने हेतु करार करने की ओर आगे बढ़ रहे हैं। यदि यूरोपीयन देशों के साथ भारत की पटरी ठीक बैठ जाती है तो सुरक्षा के क्षेत्र में भारत के लिए अपार सम्भावनाएं मौजूद है। भारत, यूरोपीयन देशों के साथ सामूहिक तौर पर द्विपक्षीय व्यापार समझौता करने के प्रयास भी कर रहा है। 

इसी प्रकार, आगे आने वाले समय में यदि चीन के निर्यात अमेरिका को कम होते हैं तो चीन से विनिर्माण इकाईयों का पलायन तेजी से प्रारम्भ होगा। संभवत इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र, टेक्स्टायल क्षेत्र, फार्मा क्षेत्र, सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र, प्रेशस मेटल के क्षेत्र में भारत के लिए अपार सम्भावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही है,  क्योंकि, उक्त समस्त क्षेत्रों से चीन, अमेरिका को भारी मात्रा में निर्यात करता है। अब 145 प्रतिशत के टैरिफ की दर पर चीन में निर्मित उत्पाद अमेरिका में नहीं बिक पाएंगे। अतः भारत के लिए इन समस्त क्षेत्रों में अपार सम्भावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही हैं। टेक्स्टायल के क्षेत्र में तो वर्तमान में भारत के पास बहुत भारी मात्रा में उत्पादन क्षमता भी उपलब्ध है। टेक्स्टायल के क्षेत्र में भारत के पड़ौसी देश ही अधिक प्रतिस्पर्धी बने हुए हैं, जैसे बंगलादेश, पाकिस्तान, चीन, वियतनाम आदि। इस समस्त देशों पर अमेरिका द्वारा लगाई गई टैरिफ की दर, भारत की तुलना में कहीं अधिक है। अतः टेक्स्टायल के क्षेत्र में भारत में निर्मित विभिन्न उत्पाद तुलनात्मक रूप से अधिक प्रतिस्पर्धी बन गए हैं। इसका सीधा सीधा लाभ भारतीय टेक्स्टायल उद्योग द्वारा उठाया जा सकता है। इसी प्रकार, मोबाइल फोन का उत्पादन करने वाली विश्व की सबसे बड़ी कम्पनियों में से सैमसंग एवं ऐपल नामक कम्पनियां भारत में अपनी उत्पादन क्षमता में भारी भरकम वृद्धि करने के बारे में विचार कर रही हैं। वर्ष 2024 में भारत से 2040 करोड़ अमेरिकी डॉलर के मोबाइल फोन का निर्यात विभिन्न देशों को हुआ हैं, यह वर्ष 2023 में हुए निर्यात की राशि से 44 प्रतिशत अधिक है। और, मोबाइल फोन के निर्यात में हुई इस भारी भरकम वृद्धि में ऐपल एवं सैमसंग कम्पनियों का योगदान सबसे अधिक रहा है। केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई उत्पादन प्रोत्साहन योजना का लाभ भी भारत में मोबाइल निर्माता कम्पनियों ने भारी मात्रा में उठाया है। भारत आज स्मार्ट मोबाइल के उत्पादन के क्षेत्र में पूरे विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। यदि वैश्विक स्तर पर परिस्थितियां इसी प्रकार बनी रहती हैं तो शीघ्र ही भारत मोबाइल उत्पादन के क्षेत्र में पूरे विश्व में प्रथम स्थान पर आ जाएगा। 

अन्य क्षेत्रों में उत्पादन करने वाली बहुराष्ट्रीय बड़ी बड़ी कम्पनियां भी अपनी विनिर्माण इकाईयों को चीन से स्थानांतरित कर भारत में स्थापित कर सकती हैं। कोविड महामारी के खंडकाल के समय भी यह उम्मीद की जा रही थी और चीन+1 नीति का अनुपालन करने के सम्बंध में कई कम्पनियों ने घोषणा की थी परंतु उस समय पर कई कम्पनियां अपनी विनिर्माण इकाईयों को ताईवान, वियतनाम, एवं थाईलैंड, आदि जैसे छोटे छोटे देशों में ले गईं थी और इसका लाभ भारत को बहुत कम मिला था। परंतु, आज परिस्थितियां बहुत बदली हुई हैं। छोटे छोटे देशों में बहुत भारी मात्रा में उत्पादन करने वाली विनिर्माण इकाईयां स्थापित करने की बहुत सीमाएं हैं। इन देशों में श्रमबल की उपलब्धता सीमित मात्रा में है। जबकि भारत में इस दौरान आधारिक संरचना एवं मूलभूत सुविधाओं में अतुलनीय सुधार हुआ है और भारत में श्रमबल भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।    

आज जापान, इजराईल, ताईवान, रूस, जर्मनी, फ्रान्स, आस्ट्रेलिया आदि विकसित देश श्रमबल की कमी से जूझ रहे हैं। कई विकसित देशों में जनसंख्या वृद्धि दर लगभग शून्य के स्तर पर आ गई है। बल्कि, कुछ देशों में तो जनसंख्या में कमी होती हुई दिखाई दे रही है। दूसरे, इन देशों में प्रौढ़ नागरिकों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही है और इन प्रौढ़ नागरिकों की देखभाल के लिए भी युवा नागरिकों की आवश्यकता है। अब कुछ देशों जैसे जापान, इजराईल, ताईवान आदि ने भारत सरकार से भारतीय नागरिकों के इन देशों में बसाने के बारे में विचार करने को कहा है। इजराईल सरकार ने लगभग 1 लाख भारतीयों की मांग भारत सरकार से की है, जापान सरकार ने भी लगभग 2 लाख भारतीयों की मांग की है एवं ताईवान सरकार ने भी लगभग 1 लाख भारतीयों की मांग की है। भारत आज विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे युवा देश है। अतः भारत आज इस स्थिति में है कि अपने नागरिकों को इन देशों में बसाने के लिए भेज सके। वैसे भी विश्व के कई देशों में आज लगभग 4 करोड़ भारतीय मूल के नागरिक निवास कर रहे हैं एवं इन देशों की अर्थव्यवथा में शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मजबूत भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। भारतीय नागरिक वैसे भी हिंदू सनातन संस्कृति का अनुपालन करते हैं एवं इन देशों में शांतिपूर्ण तरीके से जीवन यापन करते हैं। इतिहास गवाह है कि भारत ने कभी भी किसी भी देश पर अपनी ओर से आक्रमण नहीं किया है। भारतीय नागरिक “वसुधैव कुटुम्बकम” की भावना में विश्वास रखते हैं अतः किसी भी देश में वहां के स्थानीय नागरिकों के साथ तुरंत घुलमिल जाते हैं। अतः भारत के लिए विभिन्न देशों को श्रमबल उपलब्ध कराने के क्षेत्र में भी अपार सम्भावनाएं बनती हुई दिखाई दे रही है। 

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कुल मिलाकर भारत सरकार ने भी विभिन्न देशों के साथ अपने द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को शीघ्रता के साथ अंतिम रूप देना प्रारम्भ कर दिया है क्योंकि आगे आने वाले समय में विश्व व्यापार संगठन की उपयोगिता लगभग समाप्त हो जाएगी और आगे आने वाले समय में विदेशी व्यापार के क्षेत्र में दो देशों के बीच आपस में किए गए द्विपक्षीय व्यापार समझौते ही अपनी विशेष भूमिका निभाते हुए नजर आएंगे। अतः भारत सरकार को इन देशों से होने वाले द्विपक्षीय समझौतों में भारत के हितों की रक्षा करने पर विशेष ध्यान देना होगा। बहुत सम्भव है कि भारत का अमेरिका के साथ भी द्विपक्षीय व्यापार समझौता आगामी 6 माह के अंदर सम्पन्न हो जाए और फिर भारत से अमेरिका को होने वाले विभिन्न उत्पादों के निर्यात के लिए एक नया रास्ता खुल जाए।      

प्रहलाद सबनानी 

(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)
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