Baisakhi 2025: 13 अप्रैल को मनाया जा रहा है बैसाखी का त्यौहार, इसी दिन गुरु गोविंद सिंह ने की थी खालसा पंथ की स्थापना

Baisakhi 2025
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सिख धर्म के लिए बैसाखी का पर्व बहुत महत्वपूर्ण होता है। साल 1699 में बैसाखी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस बार 13 अप्रैल 2025 को बैसाखी पर्व मनाया जा रहा है।

सिख धर्म के लिए बैसाखी का पर्व बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह पर्व न सिर्फ फसलों के पकने का संकते देता है, बल्कि सिख धर्म के नववर्ष का भी प्रतीक होता है। साल 1699 में बैसाखी के दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस बार 13 अप्रैल 2025 को बैसाखी पर्व मनाया जा रहा है। ऐसे में आइए जानते हैं बैसाखी के पर्व का इतिहास, महत्व और यह पर्व कैसे मनाया जाता है।

इतिहास

साल 1699 में सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी ने बैसाखी पर्व के मौके पर खालसा पंथ की स्थापना की। गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में एक सभा आयोजित की, जिसमें सिखों को एक नई पहचान दी। गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों को पंज ककार यानी केश, कंघा, कछहरा, कड़ा और कृपाण धारण करने को कहा। उनके आह्वान पर पांच सिखों ने अपनी सहमति दी। इन पांच सिखों को 'पंच प्यारे' कहा जाता है। इन पांच सिखों को गुरु गोबिंद सिंह जी ने अमृत छकाया और उन्हें खालसा पंथ में दीक्षित किया। इस पंथ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अन्याय के खिलाफ लड़ना और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करना था।

महत्व

माना जाता है कि बैसाखी पर्व के दिन सूर्य सभी 12 राशियों का चक्र पूरा करके मेष राशि में गोचर करते हैं। यह सिख नववर्ष की शुरूआत का प्रतीक होता है। खालसा पंथ की स्थापना की याद में यह पर्व मनाया जाता है। वहीं यह रबी की फसल की कटाई का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व सिख समुदाय को एक साथ लाता है और उनकी एकता को मजबूत करने का काम करता है। पंजाब के अलावा देश के कई अन्य हिस्सों में यह पर्व भव्यता और उत्साह के साथ मनाया जाता है।

कैसे मनाते हैं ये पर्व

हर साल बैसाखी का पर्व मेष संक्रांति के दिन मनाया जाता है। बैसाखी के मौके पर गुरुद्वारों को सजाया जाता है और प्रार्थनाएं की जाती है। इस दिन लोग पारंपरिक कपड़े पहनते हैं और ढोल-नगाड़ों पर नाचते हैं। यह पर्व सिख धर्म के इतिहास और संस्कृति का एक अहम हिस्सा है।

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