सोमनाथ मंदिर में ज्योतिर्लिंग के साथ दर्शन के लिए और भी बहुत कुछ है
मंदिर में पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी, गंगा एवं नन्दी की मूर्तियां स्थापित हैं। भूमि के ऊपरी भाग में शिवलिंग से ऊपर अहल्येश्वर की मूर्ति है। मंदिर परिसर में गणेश जी का मंदिर भी बना है और उत्तर द्वार के बाहर अघोरलिंग की मूर्ति स्थापित की गई है।
विद्युत के प्रकाश से आलोकित सोमनाथ मंदिर का शिखर दूर से ही नजर आ रहा था। मंदिर के चारों ओर परकोटा दिखाई दे रहा था। पूरा माहौल बहुत ही आकर्षक लग रहा था। हमें बताएं अनुसार हमने अपने मोबाइल, पर्स आदि लॉकर में जमा करा दिया। परिसर में प्रवेश से पूर्व सुरक्षाकर्मियों ने हमारी जांच की और आगे जाने दिया। परिसर और मन्दिर को निहारते हुए जूते खोल कर मन्दिर तक जा पहुंचे। एक बार फिर से सुरक्षा जांच की गई। मन्दिर का पूरा माहौल भक्तिमय था और भोलेनाथ के जैकारे से गूंज रहा था, हम भी भक्तिभाव से जैकारे लगाने लगे। महिला और पुरुष भक्तों की अलग-अलग कतार लगी थी। ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर अविभूत हो गए, ज्योतिर्लिंग का फूलों से चित्ताकर्षक श्रृंगार देखते ही बन रहा था। श्रृंगारित ज्योतिर्लिंग के ऊपर चांदी छत्र लगा था। गर्भ गृह का परिवेश स्वर्ण मंडित आभा से जगमगा रहा था। बहुत ही आलौकिक दृश्य था। दर्शन कर गर्भगृह के समीप एक काउंटर से हमने सोमनाथ मंदिर का चांदी का सिक्का क्रय किया और बाहर आ गए।
मंदिर, गर्भगृह, सभामंडप और नृत्यमंडप- तीन प्रमुख भागों में विभाजित है। बाहर से ये जितने कारीगरी पूर्ण हैं अंदर से इनका पुरातन स्वरूप मन्दिर के अत्यंत प्राचीन होने की गवाही दे रहा था। मंदिर के गुम्बद और मेहराब पत्थरों को काटकर बनाये गये हैं जो सुन्दर कारीगरी के बेमिसाल नमूने हैं। मन्दिर का शिखर 150 फुट ऊंचा है। शिखर पर स्थित कलश का वजन दस टन है और इसकी ध्वजा 27 फुट ऊंची है। इस मंदिर का पुनर्निर्माण महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था।
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आपको बता दें मंदिर के गर्भगृह में किसी भी भक्त को प्रवेश की अनुमति नहीं है। भक्तों के लिए दर्शन के लिए लगे बेरीकेट पर एक फनल (कुप्पी) लगी है जिसमें जल डालने से यह जल पम्प के द्वारा ज्योतिर्लिंग तक पहुँच जाता है एवं ज्योतिर्लिंग का इस जल से अभिषेक हो जाता है। ध्यान रखने योग्य बात है की यहाँ भगवान का अभिषेक गंगाजल से ही किया है। गंगाजल मन्दिर ट्रस्ट के द्वारा संचालित दुकान पर उपलब्ध है। मन्दिर में सुबह 6.00 बजे, दोपहर 2.00 बजे और शाम 7.00 बजे मन्दिर में आरती की जाती हैं। आरती के समय कुछ समय पूर्व ही दर्शक मंडप में पहुंच जाना चाहिए।
मंदिर में पार्वती, सरस्वती, लक्ष्मी, गंगा एवं नन्दी की मूर्तियां स्थापित हैं। भूमि के ऊपरी भाग में शिवलिंग से ऊपर अहल्येश्वर की मूर्ति है। मंदिर परिसर में गणेश जी का मंदिर भी बना है और उत्तर द्वार के बाहर अघोरलिंग की मूर्ति स्थापित की गई है। आपकी यदि अभिषेक करने की इच्छा है तो आप मुख्य सोमनाथ मंदिर के सामने स्थित पुराने सोमनाथ मन्दिर में पूरी कर सकते हैं। इसका र्निर्माण इंदौर को महारानी देवी अहिल्या बाई होलकर द्वारा 1783 में करवाया गया था। वे स्वयं शिव भक्त थी। चूंकि सोमनाथ मन्दिर पर बार-बार आक्रमण होते रहते थे अतः उन्होंने मुख्य मन्दिर से थोड़ा हट कर इसका निर्माण सुरक्षा कारणों से तलघर में करवाया। यहां पुजारी पूरे भक्ति भाव से मंत्रोच्चार के साथ अभिषेक कराते हैं। इस मन्दिर का प्रबन्धन भी सोमनाथ ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
मन्दिर के बांई ओर से पीछे की तरफ सायं 7.30 से 8.30 बजे तक एक घण्टे का 'ध्वनि एवं प्रकाश“ के कार्यक्रम के माध्यम से मंदिर के इतिहास का प्रदर्शन किया जाता है जो अत्यंत रोचक होता है। इसे हमने अगले दिन शाम को देखा और मन्दिर के इतिहास से परिचय प्राप्त किया। इसके लिए टिकिट लेना पड़ता है। इसमें बताए गए विवरण के अनुसार सोमनाथ मंदिर में स्थित सोमेश्वर शिव लिंग भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में एक है। ज्योतिर्लिंग होने के कारण हिन्दुओं में इस मंदिर का विशेष महत्व हैं। मंदिर में निर्माण एवं पुनः निर्माण के अनेकों के दौर देखे तथा जितनी बार इस मंदिर को विध्वंस किया गया शायद ही किसी ओर मंदिर को किया गया हो। स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने देश के स्वाभिमान को जागृत करते हुए सोमनाथ मंदिर का भव्य निर्माण कराया। भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी इस मंदिर के भव्य निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। सोमनाथ के मूल मंदिर से कुछ दूरी पर ही स्थित है अहल्या बाई द्वारा बनवाया गया सोमनाथ का मंदिर।
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सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग बारे में मिली जानकारी के अनुसार इसकी महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में विस्तार से बताई गई है। कथानक के अनुसार दक्ष प्रजापति की 27 कन्याएं थीं। उन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। किंतु चंद्रमा का समस्त अनुराग व प्रेम उनमें से केवल रोहिणी के प्रति ही रहता था। उनके इस कृत्य से दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बहुत अप्रसन्न रहती थी।
उन्होंने अपनी व्यथा अपने पिता को सुनाई। दक्ष प्रजापति ने इसके लिए चंद्रदेव को अनेक प्रकार से समझाया। किंतु रोहिणी के वशीभूत उनके हृदय पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंततः दक्ष ने कुद्ध होकर उन्हें 'क्षयग्रस्त' हो जाने का शाप दे दिया। इस शाप के कारण चंद्रदेव तत्काल क्षयग्रस्त हो गए। उनके क्षयग्रस्त होते ही पृथ्वी पर सुधा-शीतलता वर्षण का उनका सारा कार्य रूक गया। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। चंद्रमा भी बहुत दुखी और चिंतित थे। उनकी प्रार्थना सुनकर इंद्रादि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषिगण उनके उद्धार के लिए पितामह ब्रह्माजी के पास गए। सारी बातों को सुनकर ब्रह्माजी ने कहा- 'चंद्रमा अपने शाप-विमोचन के लिए अन्य देवों के साथ पवित्र प्रभासक्षेत्र में जाकर मृत्युंजय भगवान् शिव की आराधना करें। उनकी कृपा से अवश्य ही इनका शाप नष्ट हो जाएगा और ये रोगमक्त हो जाएंगे।
कथानानुसार चंद्रदेव ने मृत्युंजय भगवान् की आराधना का सारा कार्य पूरा किया। उन्होंने घोर तपस्या करते हुए दस करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जप किया। इससे प्रसन्न होकर मृत्युंजय-भगवान शिव ने उन्हें अमरत्व का वर प्रदान किया। उन्होंने कहा- 'चंद्रदेव! तुम शोक न करो,मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही, साथ ही साथ प्रजापति दक्ष के वचनों की रक्षा भी हो जाएगी।
कृष्णपक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी, किंतु पुनः शुक्ल पक्ष में उसी क्रम से तुम्हारी एक-एक कला बढ़ जाया करेगी। इस प्रकार प्रत्येक पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होता रहेगा।' चंद्रमा को मिलने वाले इस वरदान से सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे। सुधाकर चन्द्रदेव पुनः दसों दिशाओं में सुधा-वर्षण का कार्य पूर्ववत् करने लगे।
शाप मुक्त होकर चंद्रदेव ने अन्य देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान् से प्रार्थना की कि आप माता पार्वतीजी के साथ सदा के लिए प्राणों के उद्धारार्थ यहाँ निवास करें। भगवान् शिव उनकी इस प्रार्थना को स्वीकार करके ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहाँ रहने लगे। चंद्रमा का एक नाम सोम भी है, उन्होंने भगवान् शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की थी। इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है। इसके दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप और दुष्कृत्यु विनष्ट हो जाते हैं। वे भगवान् शिव और माता पार्वती की अक्षय कृपा का पात्र बन जाते हैं। मोक्ष का मार्ग उनके लिए सहज ही सुलभ हो जाता है।
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मन्दिर के दर्शन कर इसके पौराणिक और ऐतिहासिक त्थयों की जानकारी प्राप्त कर दूसरे दिन हमने एक ऑटो में सोमनाथ के अन्य दर्शनीय स्थलों त्रिवेणी घाट, गीता मन्दिर, राम मन्दिर- परशुराम मन्दिर, आदि गुरु शंकराचार्य का मठ, बाण गंगा, आदि के दर्शन कर अपनी शाम सोमनाथ बीच पर बिताई। बीच पर घुड सवारी और उंट सवारी कर समुंदर की लहरों का आंनद लिया। रात में मन्दिर में पुनः दर्शन कर ध्वनी एवं प्रकाश का कार्यक्रम में मन्दिर के इतिहास से रूबरू हुए। मन्दिर से होटल जा कर अपना समान लिया और रेलवे स्टेशन जा कर रात 11 बजे द्वारका के लिए रवाना हो गए। रेल में सोमनाथ भ्रमण की स्मृतियां काफी देर तक जहन में तैरती रही और नींद की आगोश में समा गए।
आपको बता दे सोमनाथ हवाई, रेल एवं सड़क परिवहन सेवाओं से जुड़ा हैं। यहां से 55 किलोमीटर स्थित केशोड नामक स्थान से सीधे मुंबई के लिए वायुसेवा है। केशोड और सोमनाथ के बीच बस व टैक्सी सेवा उपलब्ध है। सोमनाथ एवं वेरावल स्टेशनों से अहमदाबाद व गुजरात के अन्य स्थानों और देश के अनेक स्थानों के लिए रेल सेवाएं उपलब्ध हैं। सड़क परिवहन द्वारा वेरावल से 7 किलोमीटर, मुंबई 889 किलोमीटर, अहमदाबाद 400 किलोमीटर, भावनगर 266 किलोमीटर, जूनागढ़ 85 और पोरबंदर से 122 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। पूरे राज्य में इस स्थान के लिए बस सेवा उपलब्ध है। सोमनाथ एवं वेरावल में ठहरने के लिए हर बजट के होटल,गेस्ट हाउस, विश्रामशाला व धर्मशाला की सुविधाएं उपलब्ध हैं। लजीज गुजराती व्यंजन के साथ-साथ सभी प्रकार के व्यंजन उपलब्ध हैं।
- डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
(लेखक अधिस्वीकृत वरिष्ठ पत्रकार हैं)
पूर्व जॉइंट डायरेक्टर,सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, राजस्थान
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