ध्वजवाहक ध्यानचंद ने जर्मन तानाशाह को पारंपरिक दाहिने हाथ की सलामी देने से किया इनकार, बाद में हिटलर को ही उन्हें सैल्यूट करना पड़ा
ओलंपिक हिस्ट्री: द इंडिया स्टोरी’ पुस्तक के अनुसार जब वह परेड करते हुए हिटलर के सामने से निकले तो उन्होंने उन्हें सैल्यूट करने से मना कर दिया। टीम द्वारा लिया गया यह राजनीतिक से अधिक भावनात्मक निर्णय था।
केंद्र सरकार की तरफ से खेल से जुड़ा बड़ा निर्णय लिया गया है। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड कर दिया गया है। पीएम मोदी ने इस फैसले का ऐलान करते हुए कहा कि ये अवॉर्ड हमारे देश की जनता की भावनाओं का सम्मान करेगा। वो दौर जब दद्दा कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद और उनकी टीम स्टिक लेकर मैदान पर उतरती थी तो दुनिया में कोई हराने वाला नहीं होता था। भारत के हॉकी के स्वर्णिम दौर के कितने किस्से चर्चित हुए हैं। वो किस्सा कि हिटलर के सामने भारत ने बर्लिन ओलंपिक में जर्मनी को बुरी तरह धोया। इतनी बुरी तरह की झल्लाकर तानााशाह हिटलर स्टेडियम से चला गया। मेजर ध्यानचंद को हॉकी खेलता देखकर हिटलर ने उन्हें जर्मन सेना में अफसर बनने का ऑफर दिया। या फिर वो किस्सा जब मेजर ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को कई बार तोड़ कर देखा गया। क्योंकि मैदान में जैसे उनकी हॉकी स्टिक से गेंद चिपक सी जाती हो। कितने किस्से हैं, कितने फसाने हैं। लेकिन शाश्वत सत्य ये भी है कि 1928 से चार दशक तक हॉकी में भारत की बादशाहत बरकरार रही। आज हम आपको मेजर ध्यानचंद से जुड़ा एक किस्सा सुनाने जा रहे हैं जब मेजर ध्यान चंद ने साल 1936 में बर्लिन में हुए ओलंपिक खेलों में उन्होंने ना सिर्फ हिटलर को सैल्यूट करने से मना कर दिया था, बल्कि उल्टा जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने उनको सैल्यूट किया था।
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1 अगस्त, 1936 को बर्लिन ओलंपिक का आगाज हुआ। पूरी दुनिया का ध्यान इस बात पर था कि संयुक्त राज्य अमेरिका उद्धाटन समारोह के दौरान हिटलर को पारंपरिक दाहिने हाथ की सलामी से इनकार कर रहा था। लेकिन किसी ने ये सोचा भी नहीं होगा कि सुनहरे 'कुल्लाह' और हल्के नीले रंग की पगड़ी पहने एथलीटों की एक टुकड़ी ऐसा अकल्पनीय काम करेगी। 1936 बर्लिन ओलंपिक में भारतीय दल के ध्वजवाहक ध्यानचंद थे। ओलंपिक हिस्ट्री: द इंडिया स्टोरी’ पुस्तक के अनुसार जब वह परेड करते हुए हिटलर के सामने से निकले तो उन्होंने उन्हें सैल्यूट करने से मना कर दिया। टीम द्वारा लिया गया यह राजनीतिक से अधिक भावनात्मक निर्णय था।
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यूं तो 15 अगस्त के भारत के इतिहास में बहुत खास मायने हैं लेकिन इसी तारीख को सन् 1947 से 11 साल पहले भारतीय झंडा दुनिया के किसी दूसरे कोने में सबसे ऊंचा लहराया जा रहा था। ये साल 1936 के बर्लिन ओलंपिक की बात है। हॉकी ओलंपिक फाइनल में भारत का सामना मेजबान जर्मनी से था। 40 हजार दर्शकों के साथ ओलिंपिक का फाइनल देखने एडोल्फ हिटलर भी स्टेडियम में मौजूद था। फाइनल मुकाबले के दिन मेजर ध्यानचंद ने एक बार फिर जादुई खेल दिखाया और भारत ने हॉकी में लगातार तीसरा ओलिंपिक गोल्ड जीता। 1936 के ओलिंपिक फाइनल में ध्यानचंद 6 गोल किए और भारत ने मैच 8-1 से जीता। स्टेडियम में मौजूद 40 हजार दर्शक उस समय हैरान रह गए जब हिटलर ने उनसे हाथ मिलाने के बजाय सैल्यूट किया। हिटलर ने ध्यान चंद से कहा, 'जर्मन राष्ट्र आपको अपने देश भारत और राष्ट्रवाद के लिए सैल्यूट करता है। उनके खेल से प्रभावित होकर हिटलर ने उन्हें सेना में सबसे ऊंचे पद का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने विनम्रता के साथ यह कहकर इसे ठुकरा दिया, ''मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारत के लिए ही खेलूंगा।
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