गुजरात-हिमाचल चुनाव के बाद क्या होगी राजनीतिक दलों की आगे की रणनीति, UCC पर भाजपा का यह है प्लान
गठबंधन की राजनीति में बात करते हुए नीरज दुबे ने कहा कि इस चुनाव को आम आदमी पार्टी ने भी अकेले लड़ा। भाजपा ने भी अकेले लड़ा और कांग्रेस में भी अकेले लड़ा लड़ा। ऐसे में इनमें से जिसके पक्ष में परिणाम आते हैं, उनके पास गठबंधन के लिए कई पार्टियां पहुंच सकती हैं।
प्रभासाक्षी के खास कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस बार पर हमने देश के राजनीतिक स्थितियों पर चर्चा की। इस कार्यक्रम में हमेशा की तरह मौजूद रहे प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे। हमने पहला सवाल यही पूछा कि गुजरात, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली में चुनाव के लिए जो मतदान है, उसकी प्रक्रिया लगभग समाप्त हो चुकी है। दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में मतदान खत्म हो चुका है। गुजरात में सोमवार शाम तक यह खत्म हो जाएगा। इसके बाद नतीजों की बारी है। लेकिन हमने सवाल यही पूछा कि इस चुनाव के बाद आगे की क्या रणनीति सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से रहने वाली है? उन्होंने कहा कि इन तीनों ही राज्यों में जो चुनाव हुए हैं, उससे एक बात तो स्पष्ट हो रहा है कि भाजपा से या तो कांग्रेसी फाइट कर सकती है या फिर आम आदमी पार्टी। दिल्ली एमसीडी में भाजपा और आप आमने-सामने है। हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला रही। जबकि गुजरात में त्रिकोणीय मुकाबला का दावा किया जा रहा है। लेकिन भाजपा अभी भी मुख्य प्रतिद्वंदी कांग्रेस को ही मानती हैं।
आगे की राजनीति
गठबंधन की राजनीति में बात करते हुए नीरज दुबे ने कहा कि इस चुनाव को आम आदमी पार्टी ने भी अकेले लड़ा। भाजपा ने भी अकेले लड़ा और कांग्रेस में भी अकेले लड़ा लड़ा। ऐसे में इनमें से जिसके पक्ष में परिणाम आते हैं, उनके पास गठबंधन के लिए कई पार्टियां पहुंच सकती हैं। नीरज दुबे ने कहा कि अगर हिमाचल और गुजरात में कांग्रेस जीतती है तो कहीं ना कहीं उसका यूपीए में कद और भी मजबूत होगा। कांग्रेस को लेकर जो विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं, वह उससे गठबंधन की कोशिश करेंगे। अगर आम आदमी पार्टी जीतती है तो कहीं ना कहीं भारतीय राजनीति में उनका दबदबा बड़ा होगा। गठबंधन के लिए आम आदमी पार्टी के दरवाजे पर कई पार्टी खड़ी मिलेंगी। अगर भाजपा जीतती है तो कहीं ना कहीं पार्टी का दबदबा और भी बड़ा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि यह चुनाव विपक्षी एकजुटता प्रदर्शित करने का नहीं था। हमने यह देखा भी कि किसी बड़े राजनीतिक दल के नेता कांग्रेस या आम आदमी पार्टी के लिए प्रचार करने नहीं पहुंचे थे।
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नीरज दुबे ने कहा कि अगले एक-दो साल में होने वाले चुनाव में क्या कुछ होने वाला है, इसका पता चुनावी नतीजों के बाद ही चलेगा। नीरज दुबे ने साफ तौर पर कहा कि अगर बीजेपी दिल्ली एमसीडी, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव जीतती है तो कहीं ना कहीं उसके जीत के रथ को रोकना मुश्किल हो जाएगा। हालांकि, नीरज दुबे ने साफ तौर पर कहा कि भाजपा ने अब आगे की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। दिल्ली में दो दिवसीय बैठक भी बुला ली गई है। इसके अलावा आगे की रणनीति पर इसमें चर्चा होगी। साथ ही साथ सांसदों का रिपोर्ट कार्ड भी बनने की शुरुआत हो गई है। उन्होंने कहा कि एक ओर जहां गुजरात में भाजपा ने प्रचार खत्म किया तो वहीं जेपी नड्डा ने जयपुर में जन आक्रोश रैली में हुंकार भर दी। इसका मतलब साफ है कि भाजपा कहीं ना कहीं मजबूत चुनाव लड़ने की स्थिति में खुद को हमेशा तैयार रखती है।
कांग्रेस की रणनीति
हमने दूसरा सवाल यह पूछा कि क्या राहुल गांधी को कांग्रेस ने प्रचार से दूर रख कर फिर से 2024 से पहले उन्हें रीलॉन्च करने की तैयारी कर रही है। इसके जवाब में नीरज दुबे ने कहा कि राहुल गांधी को कोई प्रचार से दूर नहीं कर सकता, वह खुद ही प्रचार से दूर हुए हैं क्योंकि वह यह नहीं चाहते कि गुजरात, हिमाचल या दिल्ली में हार का ठीकरा उनके ऊपर फोड़ा जाए। हालांकि, नीरज दुबे ने यह भी कहा कि कांग्रेस के प्रचार से सिर्फ राहुल गांधी दूर रहें, ऐसा मैं नहीं मानता। उन्होंने कहा कि इन तीनों चुनाव के लिए कांग्रेस की ओर से जो स्टार प्रचारकों की सूची जारी की गई थी, उसमें से कितने लोग प्रचार करने पहुंचे, यह बड़ा सवाल है। क्योंकि बहुत सारे नेता प्रचार में नहीं पहुंचे। नीरज दुबे ने इस बात को भी स्वीकार किया कि कांग्रेस राहुल गांधी को रीब्रांडिंग करने की कोशिश कर रही है। बीजेपी राहुल गांधी पर चुनावी हिंदू का आरोप लगाते रही है। लेकिन राहुल गांधी उस छवि को तोड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं।
भाजपा का एजेंडा
हिंदुत्व की राजनीति पर भी हमने नीरज दुबे से सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि हां, यह बात सही है कि कई राजनीतिक दल अब हिंदुत्व की राजनीति करने की कोशिश में है। लेकिन इसमें जो महारत है वह भाजपा को हासिल है। इसके बाद हमने समान नागरिक संहिता को लेकर भी सवाल पूछा। नीरज दुबे ने इस पर कहा कि कहीं ना कहीं बीजेपी भी समान नागरिक संहिता को लेकर थोड़ा डर-डर के काम कर रही है। क्योंकि हमने देखा कि जब सीएए आया तो देश भर में प्रदर्शन हुए। इससे देश की छवि पर असर पड़ा। यही कारण है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इसे राज्य पर राज्य लाने की कोशिश कर रही है। उत्तराखंड में इसकी शुरुआत हुई, वहां कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ। जबकि वहां पर सरकार बन गई। हिमाचल में और गुजरात में भी कमेटी गठित करने की बात कह दी गई है। मध्यप्रदेश में भी मुख्यमंत्री ऐलान कर चुके हैं। तो कहीं ना कहीं भाजपा यह चाह रही है कि पहले राज्य स्तर पर समान नागरिक संहिता को लाया जाए। उसके बाद केंद्रीय रूप से इसे लाने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
- अंकित सिंह
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