भांग के औषधीय गुणों की खोज में मददगार हो सकती है नई शोध परियोजना

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भांग को आमतौर पर उसके मादक गुणों के लिए जाना जाता है। लेकिन, भांग के चिकित्सीय उपयोग के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। कैनबिनोइड्स भांग में पाए जाने वाले रसायनों को कहते हैं, जबकि टरपीन हाइड्रोकार्बन वर्ग का असंतृप्त यौगिक है।

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला केंद्रीय सुगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के वैज्ञानिकों द्वारा संचालित एक शोध परियोजना के तहत कैनाबिडिओल (सीबीडी), टेट्राहाइड्रोकैन्नाबिनॉल (टीएचसी) और कैनबिनोइड्स टरपीन से युक्त भांग की प्रजातियों की पहचान करने के प्रयास किए जा रहे हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये तत्व अवसाद, घबराहट और दौरे जैसी स्थिति के उपचार में प्रभावी हो सकते हैं।

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मुख्य शोधकर्ता डॉ. बिरेन्द्र कुमार ने बताया कि इस परियोजना के तहत गंभीर दुष्प्रभाव पैदा करने वाली सिंथेटिक और रासायनिक दवाओं के प्राकृतिक विकल्प के रूप में भांग के अर्क की उपयोगिता का वैज्ञानिक परीक्षण किया जाएगा। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ महीनों में टीएचसी, सीबीडी, टीएचसी-ए और कैनबिनोइड्स टरपीन के विभिन्न स्तरों वाले भांग के कई रूपों की खोज की गई है, जो अंतरराष्ट्रीय औषधीय उद्योग में मूल्यवान साबित हो सकते हैं।

भांग को आमतौर पर उसके मादक गुणों के लिए जाना जाता है। लेकिन, भांग के चिकित्सीय उपयोग के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। कैनबिनोइड्स भांग में पाए जाने वाले रसायनों को कहते हैं, जबकि टरपीन हाइड्रोकार्बन वर्ग का असंतृप्त यौगिक है। इसी तरह, कैनाबिडिओल (सीबीडी) एक फाइटोकैनबिनोइड (पौधे से प्राप्त कैनबिनोइड्स) है। सीबीडी ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर क्रिया करके मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को बदल देते हैं। इनके सेवन के बाद मूड, सोच, चेतना एवं व्यवहार में परिवर्तन देखने को मिलता है।

सीमैप के वैज्ञानिक डॉ मनोज सेमवाल ने बताया कि इस परियोजना का एक अन्य उद्देश्य सीबीडी भांग की अधिक पैदावार देने वाली किस्मों की खोज करना है, जो औषधीय रूप से उपयोगी हो सकते हैं। डॉ सेमवाल ने बताया कि सीबीडी और टीएचसी दोनों की आणविक संरचना समान होती है। इन दोनों तत्वों के अणुओं की संरचना में सामान्य अंतर होने से भी इसके गुणों में भी भिन्नता हो सकती है, जिसका शरीर पर असर अलग-अलग हो सकता है।

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सीमैप की यह परियोजना मुंबई की कंपनी मैसर्स आशीष कॉन्सेंट्रेट्स इंटरनेशनल द्वारा संयुक्त रूप से संचालित की जा रही है। भांग का उपयोग आयुर्वेदिक, सिद्धा और यूनानी दवाइयों में बड़े पैमाने पर किया जाता रहा है। सीमैप द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण मिलते हैं कि भांग के सभी जेनेटिक मैटेरियल रूपों का उद्गम स्थल भारतीय उपमहाद्वीप रहा है।

सीमैप के निदेशक डॉ. प्रबोध कुमार त्रिवेदी ने बताया कि “इंडस्ट्री के साथ शुरू की गई यह परियोजना देश में भांग की खेती तथा उसके उत्पादों को प्रचलित करने में मदद कर सकती है। इससे किसानों को आमदनी के अतिरिक्त अवसर भी मिल सकते हैं।" उन्होने बताया कि परियोजना के पहले वर्ष में सीमैप के सीनियर प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. बीरेंद्र कुमार की देखरेख में 15 वैज्ञानिकों की एक टीम इससे संबंधित विस्तृत अध्ययन कर रही है।

इंडिया साइंस वायर

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