ग्रीन हाइड्रोजन प्राप्त करने के लिए नया उत्प्रेरक
वुड अल्कोहल से हाइड्रोजन उत्पादन में दो समस्याएं थीं। पहली समस्या यह थी कि इस प्रक्रिया में 300 डिग्री सेल्सियस तक उच्च तापमान और उच्च दबाव शामिल रहते हैं। दूसरे, इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का सह-उत्पादन होता है, जो एक ग्रीनहाउस गैस है।
दुनिया जैसे-जैसे जीवाश्म ईंधन के विकल्प खोजने की ओर बढ़ रही है, हाइड्रोजन गैस स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन का सबसे अच्छा स्रोत बनकर उभरी है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने एक उत्प्रेरक विकसित किया है, जो कार्बन डाइऑक्साइड उत्पादन किये बिना वुड अल्कोहल से हाइड्रोजन गैस उत्पन्न कर सकता है।
हाइड्रोजन उत्पादन या तो पानी के विद्युत रासायनिक विभाजन से होता है या अल्कोहल जैसे जैव-व्युत्पन्न रसायनों से इसका उत्पादन होता है। नई विधि में, मेथनॉल-रिफॉर्मिंग नामक प्रक्रिया में उत्प्रेरक का उपयोग करके मिथाइल अल्कोहल (वुड अल्कोहल) से हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाता है।
वुड अल्कोहल से हाइड्रोजन उत्पादन में दो समस्याएं थीं। पहली समस्या यह थी कि इस प्रक्रिया में 300 डिग्री सेल्सियस तक उच्च तापमान और उच्च दबाव शामिल रहते हैं। दूसरे, इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड का सह-उत्पादन होता है, जो एक ग्रीनहाउस गैस है। हालाँकि, शोधकर्ताओं की टीम ने इसका हल खोज लिया है।
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शोधकर्ताओं का कहना है कि यह प्रक्रिया सरल होने के साथ-साथ पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित है। यह विधि फॉर्मिक एसिड का उत्पादन भी करती है, जो मूल्यवान औद्योगिक रसायन है। यह अध्ययन, मेथेनॉल को भावी 'लिक्विड ऑर्गेनिक हाइड्रोजन कैरियर' (एलओएचसी) के रूप में पेश करता है, जिससे हाइड्रोजन-मेथेनॉल अर्थव्यवस्था के विकास के नये रास्ते खुल सकते हैं।
आईआईटी गुवाहाटी में रसायन विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अक्षय कुमार ने कहा है- "इस अध्ययन में, केकड़े के पंजे की तरह उत्प्रेरक डिजाइन करने के लिए स्मार्ट रणनीति का उपयोग किया गया है, जो चुनिंदा रूप से बहुमूल्य फॉर्मिक एसिड और क्लीन-बर्निंग हाइड्रोजन उत्पादन करती है।"
टीम ने उत्प्रेरक का एक विशेष रूप विकसित किया है, जिसे 'पिंसर' उत्प्रेरक कहा जाता है, जिसमें एक केंद्रीय धातु और कुछ विशिष्ट कार्बनिक लिगेंड होते हैं। इसे पिंसर कहा जाता है, क्योंकि कार्बनिक लिगेंड एक केकड़े के पंजे की तरह होते हैं, जो धातु को एक जगह स्थिर रखते हैं। इस अनूठी व्यवस्था के कारण उत्प्रेरक बहुत विशिष्ट और चयनात्मक हो जाता है।
इस प्रकार, वुड अल्कोहल को हाइड्रोजन में तोड़ा जाता है, और इस प्रक्रिया में कार्बन डाइऑक्साइड के बजाय फॉर्मिक एसिड उत्पन्न होता है। यह रिएक्शन 100 डिग्री सेल्सियस पर होता है, जो पारंपरिक मेथनॉल-रिफॉर्मिंग के लिए आवश्यक तापमान से बहुत कम है। उत्प्रेरक को पुन: उपयोगी बनाने के लिए भी शोधकर्ताओं ने प्रयास किया है, जिससे कई चक्रों में उत्प्रेरक का पुन: उपयोग किया जा सके।
वुड एल्कोहल से हाइड्रोजन और फॉर्मिक एसिड का उत्पादन करने वाली नई उत्प्रेरक प्रणाली को 2050 तक पृथ्वी को कार्बन रहित करने के वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक प्रभावी कदम माना जा रहा है।
शोध पत्रिका एसीएस कैटेलिसिस में प्रकाशित इस अध्ययन के शोधकर्ताओं में डॉ अक्षय कुमार के अलावा विनय अरोड़ा, एलीन यास्मीन, निहारिका तंवर, वेंकटेश आर. हथवार, तुषार वाघ, और सुनील ढोले शामिल हैं।
(इंडिया साइंस वायर)
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