सौर प्रेक्षणों के रिकॉर्ड डिजिटाइज्ड होने से खुले अनुसंधान के नये द्वार
शोधकर्ताओं का कहना है कि फोटोग्राफिक प्लेटों/फिल्मों पर लिये गए 100 से अधिक वर्षों के सौर प्रेक्षणों का डिजिटल रिकॉर्ड दुनियाभर के वैज्ञानिकों को सौर परिवर्तनशीलता और जलवायु पर इसके प्रभाव के अध्ययन को मजबूती प्रदान करने में उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
भारतीय शोधकर्ताओं ने सौर धब्बों के प्रेक्षणों के दुनिया के सबसे लंबे और समरूप रिकॉर्ड को डिजिटाइज़ किया है। इस अध्ययन के दौरान, सौर प्रेक्षणों से संबंधित आँकड़े सबसे पुरानी खगोलीय वेधशालाओं में शामिल भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (आईआईए), बेंगलुरु के फील्ड स्टेशन कोडैकानल सौर वेधशाला (कोसो) से प्राप्त किये गए हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि फोटोग्राफिक प्लेटों/फिल्मों पर लिये गए 100 से अधिक वर्षों के सौर प्रेक्षणों का डिजिटल रिकॉर्ड दुनियाभर के वैज्ञानिकों को सौर परिवर्तनशीलता और जलवायु पर इसके प्रभाव के अध्ययन को मजबूती प्रदान करने में उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
जलवायु को प्रभावित करने वाली सौर परिवर्तनशीलता के अध्ययन और महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष अन्वेषण परियोजनाओं को आकार देने में भी सौर प्रेक्षणों के डिजिटलीकरण को एक सहायक पहल के रूप में रेखांकित किया जा रहा है।
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दिलचस्प बात यह है कि इन प्रेक्षणों को पूरी समयावधि में एक ही सेटअप के साथ लिया गया है, जो इस डेटा को अनूठे और दीर्घकालिक सौर परिवर्तनशीलता के अध्ययन के लिए सबसे उपयुक्त बनाता है।
शोधकर्ताओं का कहना है - "लगभग 115 वर्षों (1904-2017) को कवर करने वाली अद्यतन सौर-धब्बा क्षेत्रों की यह श्रृंखला शोध- समुदाय के लिए उपलब्ध करायी जा रही है, जो सूर्य की दीर्घकालिक परिवर्तनशीलता का अध्ययन करने के लिए एक अनूठा स्रोत होगी।"
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने कहा है कि ये ऐतिहासिक प्रेक्षण वैज्ञानिकों को अपने निकटतम तारे के आरंभिक चरण के व्यवहार को समझने में सक्षम बना सकते हैं, जिसके आधार पर, वे इसके भविष्य के संबंध में अनुमान लगा सकते हैं। यही नहीं, इससे सूर्य को समझने की हमारी कोशिशों को बल मिलेगा, और अंतरिक्ष अन्वेषण की भावी योजनाओं को आकार देने में भी मदद मिल सकती है, क्योंकि सूर्य; अंतरिक्ष की मौसमी परिस्थितियों को निर्धारित करने वाला एक प्रमुख कारक है।
शोधकर्ताओं में शामिल, आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एरीज), नैनीताल, उत्तराखंड के निदेशक दीपंकर बनर्जी ने कहा, " हाथ से खींची गई तस्वीरों और तस्वीरों से डेटा प्राप्त करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग किया जा रहा है। इस प्रकार, सबसे पुराने, दुर्लभ, एवं निरंतर सौर आँकड़ों का एक संग्रह तैयार किया जा रहा है, जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों के शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी होगा।"
दीपंकर बनर्जी के साथ-साथ इस अध्ययन के अन्य पाँच शोधकर्ताओं में विभूति कुमार झा, मंजूनाथ हेगड़े, आदित्य प्रियदर्शी, सुदीप मंडल और बी. रवींद्र शामिल हैं। यह अध्ययन शोध पत्रिका फ्रंटियर्स इन एस्ट्रोनॉमी ऐंड स्पेस साइंसेज में प्रकाशित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)
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