अपने सांसदों की जुबानी जंग पर अखिलेश यादव क्यों चुप?
रामपुर में आजम खां का मजबूत सियासी दुर्ग रहा है। वह खुद तो लंबे अरसे तक विधायक और सांसद रहे, अपने बेटे और करीबियों को भी उन्होंने लखनऊ के सदन तक पहुंचाया है। पत्नी को भी राज्यसभा सदस्य बनवाया।
राजनैतिक दलों के भीतर हार के बाद हाहाकार होते तो कई बार देखा गया है, लेकिन रिकार्ड जीत के पश्चात भी पार्टी की टॉप लीडरशिप के बीच हंगामा खड़ा हो जाये तो उस पर लोग चटकारे तो लेते ही हैं। बात समाजवादी पार्टी के जेल में बंद दिग्गज नेता आजम खान और रामपुर के नये नवेले सांसद के बीच टकराव की हो रही है, जिसमें अखिलेश की खामोशी बड़ा फैक्टर नजर आ रहा है। कहने को, यह दो दिग्गजों का अपना मत हो सकता है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे सपा में चल रही गुटबाजी के चलते वर्चस्व का कारण माना जा रहा है, जिसके भविष्य में और भी तूल पकड़ने की संभावना है।दरअसल, लोकसभा चुनाव के परिणाम को आए अभी हफ्ता भर हुआ है और सपा के दो सांसदों में पार्टी महासचिव आजम खां को लेकर जुबानी जंग छिड़ गई है। यह बात पार्टी फोरम में होती, तो ठीक थी। बयानबाजी सार्वजनिक रूप से की गई है। रामपुर के नवनिर्वाचित सांसद मोहिबुल्लाह नदवी ने आजम खान को सुधार गृह में बताते हुए दुआ की जरूरत बताई। जबकि मुरादाबाद की सांसद रुचि वीरा ने आजम से मिलने जाने की बात कहते हुए मोहिबुल्लाह को ही अपरिपक्व बता दिया। वैसे यह झगड़ा चुनाव के दौरान भी दबी जुबान से समाजवादी नेताओं के बीच चर्चा का विषय रहा था।
दरअसल, रामपुर में आजम खां का मजबूत सियासी दुर्ग रहा है। वह खुद तो लंबे अरसे तक विधायक और सांसद रहे, अपने बेटे और करीबियों को भी उन्होंने लखनऊ के सदन तक पहुंचाया है। पत्नी को भी राज्यसभा सदस्य बनवाया। रामपुर में सपा का मतलब आजम ही माने जाते रहे हैं, लेकिन इस बार रामपुर में अखिलेश ने आजम की इच्छा के विरूद्ध नदवी को टिकट दिया था। ऐसा इसलिये हो पाया था क्योंकि 2019 के बाद से आजम खान पर ताबड़तोड़ मुकदमे दर्ज होने के बाद उनके दुर्ग में कई नेता सेंधमारी में लगे हुए हैं। स्थिति यह हुई कि इस लोकसभा चुनाव में उनकी मंशा के विपरीत सपा के शीर्ष नेतृत्व ने मोहिबुल्लाह को सपा प्रत्याशी बनाया और आजम खेमे के विरोध के बाद भी उन्हें रिकॉर्ड मतों से जिता लिया गया।
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बताते चलें अबकी से नवाब खानदान और आजम परिवार इस चुनाव से सीधे नहीं जुड़े थे, इसलिए पहले से ही माना जा रहा था कि जीतने वाला रामपुर की राजनीति को धार देने वाला नया धुरंधर होगा। मोहिबुल्लाह नदवी के आजम को सुधार गृह में बताना इसी दिशा में एक कदम माना जा रहा है। नदवी की आजम के खिलाफ इतनी घटिया बयानबाजी करने की हिम्मत इस लिये बढ़ी क्योंकि वह आजम की मर्जी के बिना चुनाव जीतने में सफल रहे थे। आजम खेमे के विरोध के बाद भी उन्होंने रामपुर में जीत हासिल की। जिस रामपुर के मुस्लिम मतदाता कभी आजम खां के साथ रहते थे, आज वह मोहिबुल्लाह के साथ हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए अपनी अलग पहचान के लिए यह बयान उनकी रणनीति का हिस्सा है, क्योंकि सपा के जिलाध्यक्ष, प्रदेश के दो सचिव और विधायक भी आजम खां के इशारे पर ही पार्टी के विरोध में आ गए थे और चुनाव बहिष्कार करने तक की घोषणा कर दी थी।
उधर, मुरादाबाद की नई नवेली सांसद रुचि वीरा ने रामपुर के निर्वाचित सांसद को अपरिपक्व बताकर जाहिर कर दिया कि वह आजम खां के साथ खड़ी हैं। रूचि वीरा को बेहद नाटकीय ढंग से मुरादाबाद के उस समय के सांसद का ऐन मौके पर टिकट काट कर मैदान में उतारा गया था। उन्हें यह टिकट आजम खां की पैरवी से ही टिकट मिला था। पार्टी में मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए उन्हें इस सहारे की जरूरत भी है, लेकिन मुरादाबाद की राजनीति में इसके साइड इफेक्ट हो सकते हैं, क्योंकि निवर्तमान सांसद डा. एसटी हसन अपना टिकट कटने की वजह आजम खां को ही मानते हैं। उन्होंने चुनाव में रुचि वीरा का विरोध तो नहीं किया, लेकिन समर्थन भी नहीं दिया। वह पूरे प्रचार के दौरान घर पर ही बैठे रहे। इसके अलावा मुरादाबाद और आसपास के जिलों में सक्रिय पार्टी के मुस्लिम नेताओं की एक लॉबी अंदरखाने आजम के बजाए पार्टी में अपना वर्चस्व चाहती है। उसने एसटी हसन को टिकट दिलाने को एड़ी से चोटी का जोर भी लगाया था। ऐसे में यह लॉबी रुचि वीरा की राह में आगे चलकर रोड़ा पैदा कर सकती है।
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