समाजवादी पार्टी की साइकिल पर कब तक सवारी करेगी कांग्रेस

Akhilesh Yadav Rahul Gandhi
Prabhasakshi
अजय कुमार । Jun 7 2024 4:04PM

कांग्रेस की यह महत्वाकांक्षा भविष्य में समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किल का सबब बन सकती है, क्योंकि तब एक दूसरे के वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश होगी, जहां से दोनों दलों के बीच सियासी तलवार खींचना निश्चित है।

आम चुनाव में उत्तर प्रदेश से जो नतीजे आये उससे एनडीए गठबंधन का खेल मुश्किल गया, वहीं इंडी गठबंधन को बड़ी सफलता मिली है। इसके चर्चे भी खूब हो रहे हैं। इससे पहले 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में राहुल-अखिलेश का साथ आना और 2019 के लोकसभा चुनाव के समय मायावती-अखिलेश के एकजुट होने की नाकामयाब पटकथा लिखी जा चुकी थी, इसलिए इस बार भी राहुल-अखिलेश की जोड़ी से किसी को ज्यादा उम्मीद नहीं थी, लेकिन इस बार तो राहुल-अखिलेश ने चमत्कार दिखाते हुए बीजेपी से आगे-पीछे का सारा हिसाब एक ही बार में बराबर कर लिया। इसके मुख्य किरदार सपा प्रमुख अखिलेश यादव है,जिन्होंने न केवल समाजवादी पार्टी को शानदार जीत दिलाई बल्कि कांग्रेस को भी यूपी में एक बार फिर से उभरने का मौका दिया, जिसकी वजह से नवगठित मोदी सरकार की स्थिति पहले जैसी मजबूत नहीं लग रही है। परंतु सबसे बड़ा सवाल यही है कि इस गठबंधन का भविष्य कितना लम्बा है। ऐसा इसलिये पूछा जा रहा है क्योंकि चुनाव नतीजे आये कुछ ही दिन नहीं हुए हैं और गांधी परिवार और कांग्रेस यूपी को लेकर नई रणनीति बनाने लगी है। ऐसे में समाजवादी पार्टी की साइकिल पर चढ़कर उत्तर प्रदेश में शानदार प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस यदि जल्द सपा की साइकि से उतर कर यूपी की राजनीति में अपना पुराना मुकाम हासिल करने की कोशिश करें तो किसी को आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए।

कांग्रेस की यह महत्वाकांक्षा भविष्य में समाजवादी पार्टी के लिए मुश्किल का सबब बन सकती है, क्योंकि तब एक दूसरे के वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश होगी, जहां से दोनों दलों के बीच सियासी तलवार खींचना निश्चित है। यह सब कब शुरू होगा यह तो निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है लेकिन धीरे धीरे दोनों दलों के बीच दूरियां बढ़ाना शुरू होगी जो अंत में विस्फोटक रूप धारण कर सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि आज जो समाजवादी पार्टी का वोट बैंक है वह कभी कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक हुआ करता था। कांग्रेस इसे फिर से हासिल करना चाहती है। इस बात के संकेत मिलना भी शुरू हो गए हैं. कहां जा रहा है की यूपी में कांग्रेस को पुरानी प्रतिष्ठा लौटाने के लिए राहुल गांधी, मां सोनिया गांधी के समझाने पर रायबरेली से ही सांसद बने रहने को तैयार हो गए हैं। 

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लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस की पहली बैठक और परिवार के साथ रायशुमारी के बाद उन्होंने यह फैसला किया। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, राहुल दोनों सीटों में से कौन सी सीट चुनें, उनकी इस दुविधा को सोनिया गांधी ने दूर कर दिया है। सोनिया ने राहुल को समझाया कि यूपी कांग्रेस के लिए बेहद जरूरी है। इसलिए उन्हें रायबरेली अपने पास रखना चाहिए। यह भी कहा जा रहा है कि प्रियंका दोबारा यूपी प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी संभाल सकती हैं। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में हार के बाद उन्होंने इस पद को छोड़ दिया था। राहुल के सीट छोड़ने पर प्रियंका वायनाड से उपचुनाव लड़ सकती हैं। गांधी परिवार इसके जरिए उत्तर के साथ दक्षिण में पकड़ मजबूत रखना चाहता है।

राहुल के रायबरेली में बने रहने की सहमति के पीछे मां सोनिया की वह भावुक अपील भी है, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘आपको बेटा सौंप रही हूं।’ राहुल ने भी चुनाव नतीजे आने के पहले ही दिन पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसका संकेत दिया था। उन्होंने यूपी को स्पेशल थैंक्यू बोला था।पार्टी के एक सीनियर लीडर ने बताया कि रायबरेली की जीत इस लिहाज से भी बड़ी है कि परिवार ने अमेठी की खोई सीट भी हासिल कर ली है। रायबरेली में राहुल को वायनाड से बड़ी जीत मिली। ऐसे में वह रायबरेली छोड़ेंगे तो यूपी में गलत राजनैतिक मैसेज जाएगा। नेहरू-गांधी परिवार का दशकों पुराना यूपी से रिश्ता भी कमजोर हो जायेगा। क्योंकि गांधी परिवार के मुखिया ने हमेशा यूपी से ही राजनीति की। पिता राजीव गांधी अमेठी और परदादा जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद से चुनाव लड़ते रहे हैं। रायबरेली सीट उनकी मां, दादी इंदिरा और दादा फिरोज गांधी की सीट है।

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