कश्मीर में कर्फ्यू में भी जनाजों में उमड़ता था हुजूम, कोरोना के डर से माहौल ही बदल गया
कोरोना के भय से जम्मू-कश्मीर में शोक सभाएं तक नहीं हो रही हैं। किसी आम मृतक के घर शोक जताने के लिए आने वाले लोगों को मना किया जा रहा है। इससे पहले वादी में जब भी हालात तनावपूर्ण होते थे तो भी शोक सभाएं होती थीं।
कोरोना जैसी बीमारी ने कश्मीर को भी बदल कर रख दिया है इसके प्रति कोई दो राय नहीं है। यह हैरान कर देना वाला नजारा है कि कश्मीर में जहां किसी आम नागरिक या आतंकी की मौत पर हजारों की भीड़ जुट जाया करती थी, अब वहां शोक जताने भी कोई नहीं जा रहा है। चौंकाने वाली तो यह है कि डर और अफवाहों का बाजार इतना गर्म है कि लोग फोन पर भी शोक प्रकट करने से कतरा रहे हैं, इस डर से कि कहीं फोन के रास्ते कोरोना न हो जाए। लेकिन इस बीमारी के माहौल के बीच केंद्र सरकार ने डोमिसाइल नीति लागू कर दी है जिससे कुछ लोग नाराज हो गये हैं। माना कि केंद्र सरकार ने दो दिनों के भीतर जम्मू-कश्मीर के लिए नोटिफाइड डोमिसाइल कानून में बदलाव किया है पर जम्मू-कश्मीर के लोगों की नजर में वह अधूरा है।
दरअसल केंद्र सरकार ने शुक्रवार रात को अपने दो दिन पुराने आदेश में बदलाव किया और जम्मू-कश्मीर में सारी नौकरियों को केंद्र शासित क्षेत्र के मूल निवासियों (डोमिसाइल) के लिए आरक्षित कर दिया जो राज्य में कम से कम 15 साल रह रहे हैं। बुधवार को डोमिसाइल के लिए नियम तय करते हुए सरकार ने केवल समूह चार तक के लिए नौकरियां आरक्षित की थीं। केंद्र द्वारा किए गए इस संशोधन पर कहीं खुशी और कहीं गम का माहौल है। यही नहीं राजनीतिक दलों ने इसे आधी जीत बताते हुए आंदोलन को और आगे ले जाने की बात कही है। दरअसल कश्मीर के राजनीतिक दल अब यह मांग कर रहे हैं कि डोमिसाइल कानून में उस श्रेणी को हटाया जाए जिसके अनुसार, 7 साल तक प्रदेश में पढ़ने वाले भी निवासी होने के हकदार होंगे।
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सच में कश्मीर की यही दशा है। अभी तक यही कहा जाता था कि जोड़ियां ऊपर वाला बनाता है और जमीन पर कोरोना उन्हें मिलने नहीं देता। पहले यह बात कश्मीर में लगातार लगने वाले कर्फ्यू के लिए कही जाती थी। कश्मीर में मार्च में सैंकड़ों शादी समारोह रद् कर दिए गए थे। अप्रैल में भी यही हालत है। आगे की तारीखों के समारोह भी स्थगित किए जा रहे हैं। इसकी जानकारी प्रतिदिन अखबारों, रेडियो और स्थानीय चैनलों में दी जा रही है। शोक सभाएं तक नहीं हो रही हैं। किसी आम मृतक के घर शोक जताने के लिए आने वाले लोगों को मना किया जा रहा है। इससे पहले वादी में जब भी हालात तनावपूर्ण होते थे तो भी शोक सभाएं होती थीं। पाबंदियों या कर्फ्यू के बीच भी हजारों लोग मृतक के जनाजे या फातेह में शामिल होते थे, लेकिन लॉकडाउन के बीच शोक सभाएं तक नहीं होने से हर कोई चिंतित हो उठा है। लोग न तो अपनों की मौत पर मातम कर पा रहे हैं और न दिवंगत के अंतिम दीदार कर रहे हैं। सरकार की ओर से भी एक जगह भीड़ इकट्ठा न करने के निर्देश जारी किए गए हैं। रजिया बीबी नामक वृद्ध महिला ने कहा कि मैंने जिंदगी में कभी ऐसा मंजर नही देखा।
दरअसल कोरोना संक्रमण रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन ने कश्मीरियों की सामाजिक जिंदगी में भी बदलाव ला दिया है। संक्रमण के डर से कश्मीर में लोग अपनों से दूर रहने लगे हैं। हजारों शादियां स्थगित कर दी गई हैं, शोक सभाएं तक भी नहीं हो रहीं। यहां तक कि जनाजों में भी चंद लोग ही शामिल हो रहे हैं। इन दिनों अखबारों, केबल नेवटवर्क व निजी रेडियो चैनलों में सूचनाएं खूब आ रही हैं।
अनंतनाग के फाजिली का कहना था कि प्रशासन ने लॉकडाउन हमारी सुरक्षा के लिए किया है। दुख है कि यह महामारी अपनों के बिछुड़ने पर हमें चार आंसू बहाने की इजाजत नहीं दे पा रही है। एक बीमारी ने समाज को बदल दिया है। बेमिना के रहने वाले मुहम्मद मजीन वालत ने कहा कि मेरे चाचा का परिवार श्रीनगर के लाल बाजार में रहता है। दो दिन पहले देर शाम उनकी मौत हो गई। हम लोग पहुंच नहीं पाए। चाचा को रात के अंधेरे में दफनाया गया था। परिवार को हिदायत दी थी कि भीड़ जमा नहीं हो।
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ कुरैशी ने कहा कि कोरोना के कारण अखबारों में सूचनाओं के विज्ञापन बढ़ गए हैं। विवाह समारोह अगर किसी ने स्थगित नहीं किया तो रिश्तेदार भी नहीं पहुंच रहे। 15 दिनों में यहां अखबारों व सोशल मीडिया पर कई लोग घर में हुई मौतों की सूचना देते हुए अपील कर रहे हैं कि कोई नहीं आए। सभी को संक्रमण का खतरा सता रहा है। एक कश्मीरी विशेषज्ञ का कहना था कि कश्मीर में लोग परिस्थितियों के मुताबिक जीना सीख लेते हैं। मेरी जिंदगी का यह पहला अनुभव है, जब लोग किसी प्रियजन की मौत पर अपने रिश्तेदारों से शोक जताने के लिए घर न आने की अपील कर रहे हों। गत दिनों पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला के छोटे बहनोई डॉ. अली मुहम्मद मट्टू का देहांत हुआ था। उन्होंने भी लोगों से अपील की थी कि कोई शोक जताने के लिए न घर पर और न कब्रिस्तान में जमा हो।
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यह भी सच है कि केंद्र सरकार ने अपने डोमिसाइल नीति पर विवाद को तभी समझा था जब स्थानीय राजनीतिक दलों की तीखी प्रतिक्रिया के बाद जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (राज्य कानूनों का अनुकूलन) आदेश-2020 लाते हुए केंद्र शासित प्रदेश के डोमिसाइल के लिए नौकरियां आरक्षित कर दी गई थीं। संशोधित अधिसूचना में कहा गया है, कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के तहत किसी भी पद पर नियुक्ति के उद्देश्य के लिए उपयुक्त शर्तें पूरी करने वाला कोई भी व्यक्ति केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर का डोमिसाइल होगा। इससे पहले सरकार ने बुधवार को एक गजट अधिसूचना जारी की थी जिसमें जम्मू-कश्मीर के 138 कानूनों में कुछ संशोधनों की घोषणा की गयी थी। इनमें केंद्र शासित प्रदेश के मूल निवासियों को ही समूह-4 तक की नौकरियां देने संबंधी संशोधन भी शामिल था।
पर केंद्र के इस संशोधन ने सभी को खुशी नहीं दी है। सिवाय प्रदेश भाजपा के कोई भी पक्ष खुश नहीं है। यही कारण था कि जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ बुखारी ने डोमिसाइल में संशोधन के बाद उन्होंने लोगों को यह विश्वास दिलाया कि जब तक डोमिसाइल में शामिल अन्य खामियों को दूर कर केंद्र सरकार यह कानून जम्मू-कश्मीर के लोगों की आकांक्षाओं के मुताबिक नहीं बनाती, उनका प्रयास जारी रहेगा।
बुखारी ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके निजी हस्तक्षेप की वजह से ही इतने कम समय में कानून में संशोधन संभव हो पाया। उन्होंने कहा कि गृहमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने जम्मू-कश्मीर के युवाओं के आरक्षण की बात को समझा और नौकरियों में उनके अधिकारों को संरक्षित कर बहुत बड़ी राहत दी है। उन्होंने दोनों की सराहना करते हुए कहा कि समय पर उनके द्वारा किए गए हस्तक्षेप से ही यह संभव हो पाया।
बुखारी ने जम्मू-कश्मीर के लोगों विशेषकर युवाओं के एक साझा मुद्दे पर एकजुट होने के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता भी व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह पहली बार था जब जम्मू और कश्मीर डिवीजन के लोग एक ही मुद्दे पर बात कर रहे थे। इससे यह स्पष्ट हो गया कि जम्मू-कश्मीर के युवा भी नए कानून से खुश नहीं थे। वे नहीं चाहते थे कि जम्मू-कश्मीर की नौकरियों, जिन पर उनका अधिकार है, कोई दूसरे राज्य का आदमी सांझा करे। बुखारी ने अपील की कि डोमिसाइल कानून में और भी कई कमियां हैं, जिसे दूर करने की जरूरत है, ऐसे में लोगों में एकता की भावना तब तक रहनी चाहिए जब तक इन सभी खामियों को दूर नहीं किया जाता।
अन्य राजनीतिक दलों की ही तरह अपनी पार्टी के अध्यक्ष ने इसके खिलाफ अपनी मुहिम जारी रखने का ऐलान किया। जम्मू-कश्मीर में निवास करने के लिए बाहरी राज्यों के निवासियों के लिए अनिवार्य कार्यकाल, जम्मू-कश्मीर में रह रहे गैर निवासियों के लिए निर्धारित मानदंड आदि कई मुद्दे हैं, जो यहां के स्थायी नागरिकों की मांग के अनुसार ठीक नहीं है। उन्होंने इसमें संशोधन करने के लिए अपनी पार्टी की ओर से जल्द मुहिम शुरू करने का ऐलान भी किया।
वैसे भी यह पहला मुद्दा था जिस पर प्रदेश के दोनों संभागों के लोग और राजनीतिक दल एकमत थे और उन्होंने संयुक्त प्रयासों के साथ नया आंदोलन छेड़ने का आगाज किया है। यह बात अलग है कि प्रदेश के लोगों का नेतृत्व करने का दावा करने वाली प्रदेश भाजपा की किरकिरी इसलिए हो रही थी क्योंकि वह केंद्र के कानूनों का पूर्ण समर्थन करते हुए प्रदेश के लोगों की आंकांक्षाओं को नजरअंदाज करने की कोशिश में जुटी थी।
-सुरेश एस डुग्गर
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