इंडिया गठबंधन की हालत सूत न कपास जुलाहों में लठ्ठम लठ जैसी
इंडिया गठबंधन में नेतृत्व का मसला पहले भी कई बार उठ चुका है। गठबंधन का हर घटक दल नेतृत्व का दावा जताता रहा है। हास्यादपद यह है कि दावा जताने वाले अपने प्रभाव वाले राज्य में भी भाजपा को हराने में कामयाब नहीं हो सके।
सूत न कपास, जुलाहों में लठ्ठम लठ। इंडिया गठबंधन के विपक्षी दलों की हालत कुछ ऐसी हो गई है। भाजपा गठबंधन से मुकाबला करने में विफल रहे विपक्षी दल के नेता नेतृत्व की कलह से जूझ रहे हैं। भाजपा से बुरी तरह शिकस्त खाने और राजनीतिक धरातल पर हैसीयत को स्वीकार किए बगैर विपक्षी नेता गठबंधन के नेतृत्व के जरिए भविष्य का प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए हैं। इन दलों का आधार बेशक एक राज्य से ज्यादा नहीं हो, किन्तु देश को नेतृत्व देने की आपसी होड़ में पीछे नहीं है। विपक्षी दलों के पास भाजपा से मुकाबला करने के लिए कोई एजेंडा तक नहीं है। लोकसभा चुनाव और हाल ही हुए उपचुनावों में इंडिया गठबंधन के दल आपस में ही मुकाबला करते रहे। विपक्षी दलों का ख्वाब है कि जिसके हाथ में नेतृत्व की कमान होगी, उसी के हाथ में देश की बागडोर होगी। ठोस रणनीति के अभाव में यह दिन में ख्वाब देखने जैसा है। इंडिया गठबंधन के दलों में आपस में ही नेतृत्व की होड़ मची हुई है। भाजपा के खिलाफ कोरी बयानबाजी से विपक्षी दलों के नेता बयानवीर साबित हो रहे हैं। लोकसभा और उससे पहले विधानसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन ताश के पत्तों की तरह बिखर गया। विपक्षी दलों ने चुनाव जीतने के लालच में गठबंधन की धज्जियां उड़ाने में कसर बाकी नहीं रखी। गठबंधन की हालत उसे घोड़ागाड़ी जैसी हो गई जिसके घोड़े को हर घुडसवार अपने हिसाब से हांकना चाहता है। ऐसे में यह गठबंधन देश को नेतृत्व देने के मामले में आगे बढऩे के बजाए पीछे खिसकता जा रहा है। इसी का परिणाम है कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को चारों खाने चित्त कर दिया।
इंडिया गठबंधन में नेतृत्व का मसला पहले भी कई बार उठ चुका है। गठबंधन का हर घटक दल नेतृत्व का दावा जताता रहा है। हास्यादपद यह है कि दावा जताने वाले अपने प्रभाव वाले राज्य में भी भाजपा को हराने में कामयाब नहीं हो सके। इस बार नेतृत्व की दुदंभी तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और पश्चिमी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरफ से बजाई गई है। ममता बनर्जी ने हालिया चुनावों और उपचुनावों में इंडिया ब्लॉक के प्रदर्शन पर निराशा जाहिर की और कहा कि वह इसकी कमान संभालने को तैयार है। ममता ने हालिया हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव में इंडिया ब्लॉक के खराब प्रदर्शन पर असंतोष जाहिर किया है और संकेत दिया कि अगर मौका मिला तो वह इंडिया ब्लॉक की कमान संभालने के लिए तैयार है। टीएमसी सुप्रीमो ने कहा कि वह बंगाल की मुख्यमंत्री के रूप में अपनी भूमिका जारी रखते हुए विपक्षी मोर्चे को चलाने की दोहरी जिम्मेदारी संभाल सकती हैं। ममता बनर्जी ने कहा कि मैंने इंडिया ब्लॉक का गठन किया था, अब मोर्चा का नेतृत्व करने वालों पर इसका प्रबंधन करने की जिम्मेदारी है। अगर वे इसे नहीं चला सकते, तो मैं क्या कर सकती हूं? मैं सिर्फ इतना कहूंगी कि सभी को साथ लेकर चलना होगा। ममता के इस बयान के बाद अन्य विपक्षी दलों के नेताओं की अतृप्त इच्छा में उबाल आ गया। गठबंधन के दल के नेता अब नेतृत्व का दावा ठोक रहे हैं। कांग्रेस सांसद वर्षा गायकवाड़ ने कहा कि ममता बनर्जी को ऐसा लगता है पर हमें ऐसा नहीं लगता। इस पर चर्चा करेंगे। उनके कहने से उनकी पार्टी चलती है। हम तो कांग्रेस के कहने से चलते हैं, वहीं कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा कि ममता जी बड़ी नेता हैं लेकिन राहुल गांधी के अलावा देश में कोई नेतृत्व करने की स्थिति में नहीं है।
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लेफ्ट नेता डी राजा ने कहा कि कांग्रेस को आत्मचिंतन करने की जरूरत है। हालात इंडिया ब्लॉक की मीटिंग की मांग करते हैं। कांग्रेस ने हरियाणा और महाराष्ट्र चुनावों में गठबंधन सहयोगियों को समायोजित नहीं किया। अगर कांग्रेस ने इंडिया ब्लॉक सहयोगियों की बात सुनी होती तो लोकसभा और हरियाणा-महाराष्ट्र में नतीजे अलग होते। शिवसेना यूबीटी के सांसद संजय राउत ने कहा कि हमें ममता बनर्जी की राय पता है। हम चाहते हैं कि ममता हमारे साथ रहें। हम सभी एक साथ हैं। अगर कोई मतभेद भी हैं तो वो छोटे मोटे हैं। हम कोलकाता जाकर ममता बनर्जी से बात करेंगे। सपा प्रवक्ता उदयवीर सिंह ने कहा कि अगर ममता जी ने कोई इच्छा जाहिर की है तो इंडिया ब्लॉक नेता उस पर विचार करके उनका सहयोग लें। इससे इंडिया गठबंधन मजबूत होगा। नेतृत्व को लेकर मचे इस घमासान में लालू यादव की पार्टी कैसे पीछे रह सकती है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने भी ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन का नेता बनाने की मांग कर दी। लालू ने कहा कि कांग्रेस की आपत्ति का कोई मतलब नहीं है। हम ममता का समर्थन करेंगे। ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व दिया जाना चाहिए। लालू यादव का यह बयान कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि लालू यादव लंबे समय से कांग्रेस के पुराने साथी रहे हैं। लालू यादव की यह मांग कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकती है। गठबंधन में शामिल कुछ दल पहले से ही ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन की कमान सौंपने की वकालत कर चुके हैं। आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि बीजेपी के खिलाफ विपक्षी गठबंधन के असली आर्किटेक्ट लालू प्रसाद यादव हैं। उनकी पहल पर ही पटना में इंडिया गठबंधन की पहली बैठक हुई थी। इस बैठक में ममता बनर्जी भी शामिल हुई थी। सभी अपने-अपने राज्यों में बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में जुटे हुए हैं। अभी झारखंड में हमें सफलता मिली है। पश्चिम बंगाल में बीजेपी के खिलाफ ममता बनर्जी मजबूती से लड़ाई लड़ती हैं। अब 2025 में बिहार की बारी है। बीजेपी के खिलाफ हमारा गठबंधन पूरी तरह एकजुट है।
गौरतलब है कि इंडिया गठबंधन को नेतृत्व देने की रस्साकसी में जुटे विपक्षी दलों के नेताओं में लोकसभा चुनाव से पूर्व हुई बैठकों में घोषणा पत्र को लेकर एकराय कायम नहीं हो सकी। घटक दल चुनावों में सीटों के वितरण को लेकर भी मतभेद का शिकार रहे। इनकी आपसी फूट का फायदा भाजपा को मिला। भाजपा गठबंधन तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब रहा। ममता बनर्जी का यह कहना कि वे बंगाल से बाहर नहीं जा सकती, ऐसे में चुनाव के दौरान देशभर में रैलियां और सभाओं की जिम्मेदारी कैसे निभा पाएंगी। यदि गठबंधन के दल ममता को नेता मान भी लें तो फिर वही यक्ष प्रश्न सीटों के बटवारे और राष्ट्रीय स्तर पर घोषणा पत्र को लेकर फिर से खड़ा होगा।
भाजपा विपक्षी गठबंधन पर मुस्लिम प्रेम और भ्रष्टाचार को लेकर हावी रही है। काफी हद तक भाजपा के लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव में सफलता पाने की भी यही प्रमुख वजह मानी जाती है। इसके विपरीत इंडिया गठबंधन के सदस्य इन दोनों मुद्दों पर या तो खामोश रहे या फिर बंटे हुए नजर आए।
आश्चर्य यह है कि विपक्षी दलों ने लोकसभा और कुछ राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव और उप चुनावों के नतीजों से भी कोई सबक नहीं सीखा। गठबंधन के अनुभवी और दिग्गज नेता देश के मतदाताओं का मूड भांपने में नाकामयाब रहे हैं। इसके बावजूद नेतृत्व को लेकर जंग मची हुई। यह निश्चित है कि इंडिया गठबंधन का नेतृत्व चाहे किसी भी दल के नेता हो, जब तक गठबंधन की नीतियां स्पष्ट और दूरगामी नहीं होंगी, तब तक राष्ट्रीय स्तर पर देश के मतदाताओं का विश्वास जीतना आसान नहीं होगा।
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