कांग्रेस ने खड़े किए हाथ, उत्तर प्रदेश में नहीं लड़ेगी उपचुनाव
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि जल्द ही चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा हो जाएगी। कहा जा रहा है कि कांग्रेस की नजर उप चुनाव पर नहीं आने वाले विधानसभा चुनाव पर है। इसलिए कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मिली जीत से कार्यकर्ताओं में उपजे हौसले को बरकरार रखना चाहती है।
यूपी में होने वाले विधान सभा के उप चुनाव में एनडीए और इंडी गठबंधन में शमिल राजनैतिक दलों के बीच मतभेद खुलकर समाने आ गया है। चुनाव में बीजेपी और समाजवादी पार्टी अपर हैंड में नजर आ रही हैं। वहीं देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को समाजवादी पार्टी के सामने तो संजय निषाद की पार्टी को बीजेपी नेताओं के सामने सीटों के लिये चिरौरी करना पड़ रही है। कांग्रेस का तो यह हाल है कि वह यही नहीं समझ पा रही है कि चुनाव लड़े या नहीं। इससे हास्यास्पद क्या हो सकता है कि लोकसभा चुनाव के समय यूपी में हुआ सपा व कांग्रेस का गठबंधन तो बना रहेगा पर कांग्रेस विधानसभा उपचुनाव में एक भी सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगी। ऐसा इसलिये नजर आ रहा है क्योंकि कांग्रेस नहीं चाहती है कि यूपी में लोकसभा चुनाव में मिली जीत के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच का जोश किसी वजह से फीका पड़ जाये। कांग्रेस के चुनाव नहीं लड़ने की जो सबसे बड़ी बात समझ में आ रही हैं उसके अनुसार कांग्रेस को अपने हिस्से आईं खैर व गाजियाबाद सीटों पर भाजपा से मुकाबला करना आसान नहीं दिख रहा है। माना जा रहा है कि इसके चलते ही कांग्रेस अब इन दोनों सीटों को भी सपा की झोली में डालने का मन बना चुकी है। वैसे कुछ लोग इस बात की भी आशंका जता रहे हैं कांग्रेस ने सम्मानजनक सीटें नहीं ़मिलने की वजह से अपने आप को चुनाव की रेस से बाहर किया है।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि जल्द ही चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा हो जाएगी। कहा जा रहा है कि कांग्रेस की नजर उप चुनाव पर नहीं आने वाले विधानसभा चुनाव पर है। इसलिए कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मिली जीत से कार्यकर्ताओं में उपजे हौसले को बरकरार रखना चाहती है। वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का कहना है कि उपचुनाव में हार से कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटेगा। पार्टी के लिए यह समय संगठन को मजबूत करने व कार्यकर्ताओं की सक्रियता बढ़ाए रखने का है। कांग्रेस का मुख्य मकसद भाजपा को हराना है और इसके लिए कांग्रेस सभी सीटों पर सपा प्रत्याशियों को जिताने के लिए अपनी पूरी ताकत लगाएगी।
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उत्तर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने भी यह संदेश केंद्रीय नेतृत्व को दे दिया है। हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सपा को एक भी सीट नहीं दी थी। आईएनडीआईए में शामिल सहयोगी दलों से कांग्रेस की खींचतान भी देखने को मिलती रही है। लोकसभा चुनाव में सपा ने 80 में से केवल 17 सीटें कांग्रेस को दी थीं। कांग्रेस इनमें से सात सीटें जीतकर अपनी साख बचाने में कामयाब रही थी और अब प्रदेश में संगठन को नए सिरे से खड़ा करने का प्रयास हो रहा है। कांग्रेस दो सीटें छोड़कर सहयोगी दलों को अपने त्याग का संदेश भी देना चाहेगी। उधर,यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने उपचुनाव के लिए पांच सीटों पर दावेदारी का प्रस्ताव केंद्रीय नेतृत्व को दिया था। सपा के सात सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित करने के बाद यह पूरी तरह से साफ हो गया था कि उत्तर प्रदेश में साइकिल वाले दल का पलड़ा भारी है। कांग्रेस ने उसके हिस्से आईं दो सीटों को बदलवाने का प्रयास भी किया पर बात नहीं बनी। कांग्रेस ने खैर व गाजियाबाद के बदले फूलपुर व मझवां सीट उसे दिए जाने का प्रस्ताव भी दिया पर सपा इसके लिए राजी नहीं हुई। इसके बाद कांग्रेस ने सभी सीटों से अपनी दावेदारी छोड़ने का मन बना लिया है।
गाजियाबाद की बात करें तो लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस की डाली शर्मा चुनाव मैदान में थीं और भाजपा प्रत्याशी अतुल गर्ग ने उन्हें 3,36,965 मतों के भारी अंतर से हराया था। गाजियाबाद विधानसभा क्षेत्र में अतुल गर्ग को 1,37,206 वोट मिले थे और डाली शर्मा को 73,950 वोट ही मिले थे। वहीं अलीगढ़ सीट सपा के हिस्से थी।
बात एनडीए के सहयोगी निषाद पार्टी की कि जाये तो वह भी उपचुनाव में लड़ने को तैयार है। पार्टी के अध्यक्ष व मत्स्य मंत्री संजय निषाद ने बताया कि मझंवा व कटेहरी विधानसभा सीट पर हम अपने चुनाव चिन्ह पर प्रत्याशी लड़ाएगें। उन्होंने कहा कि भले ही भाजपा हो, लेकिन चुनाव चिन्ह निषाद पार्टी का होना चाहिए।
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