Munshi Premchand Birth Anniversary: आधुनिक हिंदी के पितामह थे मुंशी प्रेमचंद, युवाओं के लिए प्रेरणा हैं उनकी रचनाएं

Munshi Premchand
Prabhasakshi

आज ही के दिन यानी की 31 जुलाई को बनारस के एक छोटे से गाँव लमही में मुंशी प्रेमचंद का जन्म हुआ था। मुंशी प्रेमचंद सिर्फ लेखक ही नहीं, बल्कि साहित्यकार, उपन्यासकार, नाटककार भी थे।

हिंदी भाषा की अपनी खूबसूरती है। यह एक ऐसी भाषा है जो हर किसी को अपना लेती है। यह भाषा सरल के लिए बेहद सऱल और कठिन के लिए बहुत कठिन है। हिंदी भाषा को अपने शब्दों में पिरोने वाले एक साहित्यकार लेखक मुंशी प्रेमचंद थे। वह प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के थे। उन्होंने हिंदी भाषा की काया को पलट दिया था। मुंशी प्रेमचंद एक ऐसे लेखक थे, जो समय के साथ बदलते रहे और हिंदी साहित्य को आधुनिक रूप देने का काम किया। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 31 जुलाई को मुंशी प्रेमचंद का जन्म हुआ था। मुंशी प्रेमचंद एक लेखक ही नहीं बल्कि साहित्यकार, उपन्यासकार, नाटककार भी थे।

जन्म और शिक्षा

बनारस के एक छोटे से गाँव लमही मे 31 जुलाई 1880 को मुंशी प्रेमचंद का जन्म हुआ था। वह एक छोटे और सामान्य परिवार में जन्मे थे। मुंशी प्रेमचंद के दादाजी गुरु सहाय पटवारी थे। वहीं उनके पिता अजायब राय पोस्ट मास्टर थे। प्रेमचंद का बचपन और जीवन संघर्षों के बीच बीता। महज 8 साल की उम्र में एक गंभीर बीमारी से मुंशी प्रेमचंद की माता का निधन हो गया था। प्रेमचंद को बचपन  से ही माता-पिता का प्यार नहीं मिल पाया। 

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जहां सरकारी नौकरी के कारण उनके पिता का ट्रांसफर गोरखपुर हो गया तो वहीं कुछ समय बाद ही उन्होंने दूसरा विवाह कर लिया। सौतेली मां ने प्रेमचंद को कभी नहीं अपनाया। वहीं प्रेमचंद का बचपन से ही हिंदी की तरफ एक अलग लगाव था। जिसके चलते उन्होंने इसे सीखने का प्रयास किया। प्रेमचंद की शुरुआती शिक्षा उनके गांव लमही के एक छोटे से मदरसे से शुरू हुई। मदरसे से शिक्षा प्राप्त करने के दौरान प्रेमचंद ने हिंदी के साथ ही उर्दू और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया।

उन्होंने अपने आगे की शिक्षा को स्वयं के बलबूते आगे बढ़ाने का काम किया। वहीं स्नातक की पढ़ाई के लिए प्रेमचंद ने बनारस के एक कॉलेज में एडमिशन लिया। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। हालांकि जैसे-तैसे करके उन्होंने मैट्रिक पास की। इसके बाद साल 1919 में फिर से बीए की पढ़ाई जारी कर बीए की डिग्री प्राप्त की।

विवाह

महज 15 साल की उम्र में पुराने रीति-रिवाजों और पिता के दबाव में प्रेमचंद का विवाह हो गया। उनका विवाह एक ऐसी कन्या के साथ हुआ जो झगड़ालू स्वभाव की होने के साथ ही बदसूरत भी थी। प्रेमचंद के पिता ने सिर्फ अमीर परिवार देखकर कन्या से विवाह करवा दिया था। लेकिन पिता की मृत्यु के बाद परिवार का भार प्रेमचंद के कंधों पर आ गया। वहीं पत्नी से भी प्रेमचंद की नहीं जमती थी। जिसके चलते उन्होंने पत्नी को तलाक दे दिया। कुछ समय बाद उन्होंने 25 साल की उम्र में अपनी पसंद से एक विधवा से विवाह कर लिया। दूसरा विवाह संपन्न रहा और इसके बाद प्रेमचंद को तरक्की मिलती चली गई। 

कार्यशैली

अपना गांव छोड़ने के बाद प्रेमचंद करीब 4 साल तक कानपुर में रहे। इस दौरान उन्होंने एक पत्रिका के संपादक के मुलाकात कर कई लेख और कहानियों को प्रकाशित करवाया। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए भी कई कविताएं लिखी। धीरे-धीरे प्रेमचंद की कहानियां, कविताएं और लेख आदि लोगों के बीच फेमस होने लगे। इस सराहना के चलते ही उन्हें प्रमोशन मिला और उनका ट्रांसफर गोरखपुर हो गया। लेकिन इस दौरान भी मुंशी प्रेमचंद लिखते रहे। वहीं उन्होंने गांधी जी के आंदोलनों में भी सक्रिय भागीदारी निभाई। 

नौकरी से इस्तीफा

साल 1921 में पत्नी से सलाह करने के बाद प्रेमचंद ने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपना पूरा समय लेखन पर लगाने लगे। एक समय के बाद प्रेमचंद ने लेखन में बदलाव लाने के लिए सिनेमा जगत में किस्मत आजमाने का फैसला किया। जिसके लिए वह मुंबई पहुंच गए और फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी। लेकिन किस्मत का साथ न मिलने के कारण वह फिल्म पूरी न हो सकी। इस दौरान प्रेमचंद को नुकसान भी झेलना पड़ा और वह वापस बनारस आ घए। 

प्रमुख रचनाएं

वैसे तो प्रेमचंद की सभी रचनाएं प्रमुख थीं। उनकी किसी भी एक रचना को अलग से संबोधित नहीं किया जा सकता है। मुंशी प्रेमचंद ने हर तरह की रचनाएं लिखी। उनकी रचनाओं में गवन, गोदान, कफन, ईदगाह, बड़े घर की बेटी, नमक का दरोगा, पूस की रात और दो बैलों की कथा आदि शामिल हैं।

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