Guru Tegh Bahadur Jayanti: 'हिंद की चादर' गुरु तेग बहादुर को जान से प्यारा था धर्म, ऐसे दी थी औरंगजेब को शिकस्त

Guru Tegh Bahadur
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सिक्खों के 9वें गुरु तेग बहादुर का आज के दिन यानि की 1 अप्रैल को जन्म हुआ था। वह बचपन से ही निडर और वीर थे। उन्होंने महज 14 साल की उम्र में अपने पिता के साथ एक युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया था।

गुरु तेग़ बहादुर जी सिक्खों के नौवें गुरु के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें प्रेम से 'हिंद की चादर' भी कहा जाता है। गुरु तेग बहादुर जी की बहुत सी रचनाएं ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं। उन्होंने कई रचनाएं की थीं। बता दें कि गुरु तेग बहादुर सिंह 20 मार्च साल 1664 को सिक्खों के गुरु नियुक्त हुए थे। जिसके बाद वह 24 नवंबर 1675 तक गद्दी पर आसीन रहे। आज के दिन यानी कि 1 अप्रैल को गुरु तेग बहादुर का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर उनसे जुड़ी कुछ खास बातें...

गुरु तेग़ बहादुर जी सिक्खों के नौवें गुरु थे। गुरु तेग बहादुर जी को प्रेम से कहा जाता है- ‘हिन्द की चादर’ भी कहा जाता है। उनकी बहुत सी रचनाएँ ग्रंथ साहब के महला 9 में संग्रहित हैं। उन्होंने शुद्ध हिन्दी में सरल और भावयुक्त ‘पदों’ और ‘साखी’ की रचनायें की। तेग़ बहादुर सिंह 20 मार्च, 1664 को सिक्खों के गुरु नियुक्त हुए थे और 24 नवंबर, 1675 तक गद्दी पर आसीन रहे। तेग़ बहादुर सिंह 20 मार्च, 1664 को सिक्खों के गुरु नियुक्त हुए थे और 24 नवंबर, 1675 तक गद्दी पर आसीन रहे।

जन्म और शिक्षा

पंजाब के अमृतसर में 1 अप्रैल 1621 को गुरु तेग़ बहादुर का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह और माता का नाम नानकी देवी था। गुरु तेग़ बहादुर अपने माता-पिता की 5वीं संतान थे। उनके बचपन का नाम त्यागमल था। वहीं उनकी शुरूआती शिक्षा मीरी-पीरी के मालिक गुरु-पिता गुरु हरिगोबिंद साहिब ने पूरी करवाई। गुरु तेज बहादुर ने गुरुबाणी, धर्मग्रंथों के साथ-साथ शस्त्रों तथा घुड़सवारी आदि की शिक्षा ली। बता दें कि सिखों के 8वें गुरु गुरु हरिकृष्ण राय जी की अकाल मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद गुरु तेग बहादुर को अगला गुरु बनाया गया। वहीं महज 14 साल की उम्र में उन्होंने वीरता का परिचय दिया था। उनकी वीरता से प्रभावित होकर पिता ने उनका नाम तेग बहादुर रख दिया। 

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धर्म का प्रचार-प्रसार

धर्म के प्रचार-प्रसार व लोक कल्याणकारी कार्य के लिए गुरु तेग बहादुर ने कई स्थानों का भ्रमण किया। वह आनंदपुर से कीरतपुर, रोपड, सैफाबाद के लोगों को संयम तथा सहज मार्ग का पाठ पढ़ाते हुए खिआला पहुंचे। यहां से वह लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने का उपदेश देते हुए कुरुक्षेत्र पहुंचे। कुरुक्षेत्र से कड़ामानकपुर पहुंचने पर गुरु तेग बहादुर ने साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया। इसके बाद वह पटना, असम, बनारस और प्रयागराज भी गए। उन्होंने सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक के लिए कई रचनात्मह और सराहनीय कार्य किए। 

मुगलों से किया विद्रोह

तेग बहादुर के समय में मुगल शासक औरंगजेब था। वहीं देश में शासक के तौर पर औरंगजेब की छवि कट्टर बादशाह के रूप में थी। जब औरंगजेब के शासनकाल में जबरन हिंदूओं का धर्म परिवर्तन किया जा रहा था तो इसके सबसे ज्यादा शिकार और अत्याचार कश्मीरी पंडितों पर किया गया। वहीं औरंगजेब के अत्याचारों से तंग आकर कश्मीरी पंडितों का एक दल मदद के लिए गुरु तेग बहादुर के पहुंचा था। तब गुरु तेग बहादुर ने कश्मीरी पंडितों को रक्षा का आश्वासन दिया था।

महीनों कैद में रहे गुरु तेग बहादुर

गुरु तेग बहादुर ने हिन्दुओं को बलपूर्वक मुस्लिम बनाने का खुले स्वर में विरोध किया और इसका इसे रोकने का जिम्मा उन्होंने अपने सिर पर लिया। गुरु तेग बहादुर के इस फैसले ने औरंगजेब में गुस्सा भर दिया। जब साल 1675 में गुरु तेग बहादुर अपने पांच सिक्खों के साथ आनंदपुर से दिल्ली के लिए जा रहे थे तो औरंगजेब ने उन्हें रास्ते में पकड़ लिया और उनको कैद में डाल दिया। इस दौरान औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर के साथ अत्याचार की सारी सीमाएं लांघ डाली। 

गुरु तेग बहादुर ने औरंगजेब के सामने एक शर्त थी कि यदि उन्होंने इस्लाम कुबूल कर लिया तो कश्मीरी पंडित भी इस्लाम कुबूल कर लेंगे। लेकिन अगर मुगल शासक औरंगजेब उन्हें इस्लाम कुबूल नहीं करवा पाया तो वह कभी भी किसी पर इस्लाम अपनाने के लिए अत्याचार नहीं करेगा। इस शर्त को औरंगजेब ने स्वीकार कर लिया था। जब औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को पकड़वा लिया तो उन्हें तरह-तरह के लालच दिए। जब बात नहीं बनी तो उसने गुरु तेग बहादुर पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। लेकिन गुरु तेग बहादुर इस्लाम कुबूल करने के लिए तैयार नहीं हुए।

बलिदान

एक समय बाद जब औरंगजेब गुरु तेग बहादुर पर अत्याचार कर-कर के थक गया तो उसने उनके दो शिष्यों को मारकर उन्हें डराने की कोशिश की। लेकिन इसके बाद भी गुरु तेग बहादुर अपनी बात पर अड़े रहे। इस तरह से औरंगजेब को भी गुरु तेग बहादुर के सामने अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी। औरंगजेब ने 24 नवंबर 1675 को दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग़ बहादुर जी का शीश काटने का आदेश दे दिया। वर्तमान में गुरु तेग बहादुर की शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा शीशगंज साहिब स्थित है।

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