भारत के स्टीपलचेज़ चैंपियन Avinash Sable की नजरें पेरिस ओलंपिक पर, एशियन गेम्स में जीता था स्वर्ण

Avinash Sable
प्रतिरूप फोटो
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Anoop Prajapati । Jun 25 2024 7:18PM

अपने कठिन परिश्रम की बदौलत अगले माह फ्रांस में होने वाले पेरिस ओलंपिक के लिए भारत के स्टीपलचेज़ चैंपियन अविनाश साबले ने क्वालीफाई कर लिया है। कुछ साल पहले ट्रैक पर उतरने के बाद स्टीपलचेज़र अविनाश साबले ने इस पीढ़ी के भारत के प्रमुख लंबी दूरी के धावक के रूप में खुद को तेज़ी से स्थापित किया है।

भारत के स्टीपलचेज़ चैंपियन अविनाश साबले ने अपने कठिन परिश्रम की बदौलत अगले माह फ्रांस में होने वाले पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालीफाई कर लिया है। कुछ साल पहले ट्रैक पर उतरने के बाद स्टीपलचेज़र अविनाश साबले ने इस पीढ़ी के भारत के प्रमुख लंबी दूरी के धावक के रूप में खुद को तेज़ी से स्थापित किया है। उनके माता-पिता किसान थे और सार्वजनिक परिवहन की सुविधा उपलब्ध नहीं होने के कारण उन्हें अपने स्कूल जाने के लिए हर दिन छह किलोमीटर दौड़ना पड़ता था। अविनाश साबले ने कभी भी बड़े होकर किसी भी खेल को अपना करियर बनाने के बारे में नहीं सोचा और अपने परिवार की मदद करने के लिए सेना में शामिल होने का मन बना लिया।

महाराष्ट्र के बीड जिले के मांडवा गांव में अविनाश साबले का जन्म 13 सितंबर 1994 को हुआ था। अविनाश मुकुंद साबले का परिवार बेहद साधारण था। बहरहाल, घर की माली हालात बहुत अच्छी नहीं थी, माता-पिता किसान थे। वहीं, अविनाश को स्कूल जाने के लिए हर दिन छह किलोमीटर दौड़ना पड़ता था, क्योंकि उस रूट पर सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध नहीं था। अविनाश साबले ने कभी भी बड़े होकर किसी भी खेल को अपना करियर बनाने के बारे में नहीं सोचा, वह सेना में शामिल होकर अपने परिवार की मदद करना चाहते थे। अविनाश साबले 12वीं कक्षा पास करने के बाद भारतीय सेना में भर्ती हुए और 5 महार रेजिमेंट का हिस्सा बने। 

महार रेजिमेंट का हिस्सा बनने के बाद वह सियाचिन, राजस्थान और सिक्किम में तैनात रहे। दरअसल, कहा जाता है कि इस दौरान उन्होंने दो जलवायु के बीच काफी संघर्ष किया, क्योंकि जहां सियाचिन का तापमान आमतौर पर माइनस में रहता है, तो वहीं राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में तापमान 50 डिग्री आम बात है। सेना के एथलेटिक्स कार्यक्रम में शामिल होने के बाद अविनाश साबले ने 2015 में ही स्पोर्ट्स रनिंग के बारे में थोड़ी बहुत बात समझी। अपने सहयोगियों के आग्रह पर 2015 में पहली बार अंतर-सेना क्रॉस कंट्री दौड़ में भाग लिया था। उन दिनों अविनाश का वजन काफी अधिक था, लेकिन राष्ट्रीय शिविर में शामिल होने से पहले तीन महीने उन्होंने 20 किलोग्राम वजन कम किया। फिर 2018 में सेबल कोच कुमार के पास वापस चले गए, क्योंकि वहां की दिनचर्या उन्हें शूट नहीं कर रहा था। 

टखने की चोट के कारण 2018 एशियाई खेलों के लिए क्वालीफाई करने में असफल रहे थे। इसके बाद उन्होंने शानदार वापसी करते हुए भुवनेश्वर में 2018 नेशनल ओपन चैंपियनशिप में 8:29.80 का समय लेकर गोपाल सैनी के 8:30.88 के 37 साल पुराने राष्ट्रीय रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया। साल 2019 में दोहा विश्व चैंपियनशिप के बाद अविनाश साबले भारतीय एथलेटिक्स के नए स्टार बनकर उभरे। साबले यहां भी रूकने वाले नहीं थे, उन्होंने दो बार अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा। हीट में वह अपने राष्ट्रीय रिकॉर्ड समय से तीन सेकेंड तेज दौड़े, हालांकि वह रेस विवादों से घिरी रही। वहीं, इसके बाद साल 2020 के दिल्ली हाफ मैराथन में उन्होंने अपने 1:00:30 रन की मदद से मौजूदा हाफ मैराथन राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी बनाया। बताते चलें कि अविनाश साबले 61 मिनट से भी कम समय में हाफ मैराथन खत्म करने वाले महज एकलौते भारतीय हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में सिल्वर मेडल जीतने के बाद अविनाश साबले की निगाहें अब 2024 पेरिस ओलंपिक पर होंगी।

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