न्याय तंत्र का इतिहास, अंग्रेजों के बनाए क्रिमिनल कानून, नए क्रिमिनल लॉ के रास्ते में क्या बड़ी चुनौतियां

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Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Jul 1 2024 2:34PM

केंद्र सरकार ने तीन ऐसे बिल लोकसभा में पेश किए थे। इन विधेयकों को पेश करते हुए शाह ने कहा कि देश में गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करने के पीएम मोदी सरकार के पांच प्रण के अनुरूप इन विधेयकों को लाया गया है। अब नए कानून के लागू होने के बाद देश के गृह मंत्री ने इसके बदलावों को समझाया।

एक शख्स था थोमस बैबिंगटन मैकाले ये भारत तो आया था अंग्रेजी की पढ़ाई करने लेकिन उसके बाद इसी भारत में अगर किसी ने देशद्रोह का कानून ड्राफ्ट किया तो वो लार्ड मैकाले ही था। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले साल 15 अगस्त में पांच प्रण दिए थे। उसमें उन्होंने कहा था कि गुलामी की जितनी भी निशानियां हैं उससे मुक्ति पाना सबसे पहले काम है। गुलामी की सबसे बड़ी निशानी होने का ठप्पा आईपीसी, सीआरपीसी और एविडेंश एक्ट पर था। 1830, 1856, 1872 उस दौरान इन सब चीजों को लाया गया और हम अब तक ढो रहे थे। लेकिन अब न्याय के नये अध्याय की शुरुआत 1 जुलाई से हो गई है। केंद्र सरकार ने तीन ऐसे बिल लोकसभा में पेश किए थे। इन विधेयकों को पेश करते हुए शाह ने कहा कि देश में गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करने के पीएम मोदी सरकार के पांच प्रण के अनुरूप इन विधेयकों को लाया गया है। अब नए कानून के लागू होने के बाद देश के गृह मंत्री ने इसके बदलावों को समझाया। 

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नए आपराधिक कानूनों पर क्या बोले गृह मंत्री अमित शाह

आजादी के करीब 77 साल बाद हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली पूरी तरह से 'स्वदेशी' हो रही है। यह भारतीय लोकाचार पर कार्य करेगा। 75 साल बाद इन कानूनों पर विचार किया गया और आज से जब ये कानून लागू हुए हैं तो अंग्रेज के कानून निरस्त होकर और भारतीय संसद में बने कानूनों को व्यवहार में लाया जा रहा है। 'दंड' की जगह अब 'न्याय' होगा। देरी के बजाय स्पीडी ट्रायल और त्वरित न्याय मिलेगा। पहले, केवल पुलिस के अधिकारों की रक्षा की जाती थी, लेकिन अब, पीड़ितों और शिकायतकर्ताओं के अधिकारों की भी रक्षा की जाएगी। मैं विश्वास के साथ कहता हूं कि ये तीनों कानून के लागू होने के बाद सबसे आधुनिक न्याय प्रणाली का सृजन करेगी।

न्याय तंत्र का इतिहास 

जब से सभ्यता का उदय हुआ कानून का भी वजूद है। क्योंकि बड़ी संख्या आपस में रह पाए उसके लिए व्यवस्था और अनुशासन तो स्थापित करना ही पड़ता है। इसलिए कानून ठीक ठीक कब वजूद में आया होगा इसके लिए सही तारीख बता पाना कठिन है। लेकिन आधुनिक कानून को हम जिस अर्थ में समझता है कि लिखित डाक्यूमेंट होंगे, पुलिस होगी, अदालतें होगी। उसका जन्म 1215 में अस्सित्व में आया जब मैग्ना कार्टा अस्तित्व में आया। मैग्ना कार्टा के सिद्धांत बहुत विस्तरित व्यवस्था की बात तो नहीं करते लेकिन इतना जरूर बताते हैं कि राजा या उसकी सरकार कानून से ऊपर नहीं हो सकते। इसका सीधा सा मतलब है कि कानून का अपना अस्तित्व है, जिसका स्रोत न राजा है और न ही सरकार। ये तो हो गई यूरोपियन परंपरा की बात। लेकिन भारतीय परंपरा में मनु का जिक्र मिलता है। मनु कानून की आवश्यकता के पीछे एक तर्क दिया जाता है। कहा जाता है कि समाज में न्याय की स्थापना के लिए कानून होना चाहिए। मनु की आलोचना भी कई वर्गों की ओर से होती रहती है। भारत में जितनी विविधता है वो हमारी प्राचीन और मध्यकालीन न्याय परंपरा में भी नजर आती है। अनेक राज्य थे, जिन्हें बदलते काल के साथ अलग अलग शासन व्यवस्थाएं मिली। कभी कोई रिपब्लिक हुआ। कहीं कोई सामंती व्यवस्था रही। फिर उसी हिसाब से कानून भी बदलता गया। 

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अंग्रेजों ने न्याय व्यवस्था में कई सारे बदलाव किए

आज जिस नक्शे को हम हिंदुस्तान कहते हैं उस पूरे भू-भाग के लिए एक केंद्रीय न्याय व्यवस्था 1947 में अस्तित्व में आई और उसके बीज अंग्रेजों के दौर से पड़े। अंग्रेजों ने न्याय व्यवस्था में कई सारे बदलाव किए। 1770 के दशक में गवर्नर जनरल वॉरेन हैस्टिंग ने केस को सिविल और क्रिमिनल में बांट दिया। सिविल मामलों के लिए दीवानी कोर्ट और क्रिमिनल मामलों के लिए फौजदारी कोर्ट बनी। गवर्नर जनरल कॉर्नवॉलिस ने भी कई बड़े बदलाव किए। इस दौर में कलकत्ता में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना भी हुई। 1828 में विलियम बेंटिंक गवर्नर बने। इन्होंने थोमस बैबिंगटन मैकाले के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई। इस कमेटी में देश में कानूनी का कोडिफिकेशन किया। कानूनों को एक जगह सिक्वेशन में लिखे गए। 1860 में आईपीसी, 1861 में सीआरपीसी और 1872 में इंडियन एविडेंस एक्ट बना। इंडियन पिनल कोड (आईपीसी) सभी अपराधों का लेखा जोखा है। हर क्राइम की परिभाषा और उसका एप्लीकेशन है। 

बीएनएस में नये अपराध

भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) ने 163 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की जगह लिया है और आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव लाती है। आईपीसी की तुलना में, जिसमें 511 धाराएं थीं, बीएनएस में 358 धाराएं हैं। आईपीसी के मुकाबले बीएनएस में 21 नए अपराध जोड़े गए हैं। 41 अपराध ऐसे हैं जिसमें जेल का समय बढ़ाया गया है। 82 अपराधों में जुर्माने की रकम बढ़ी है। 25 अपराध ऐसे हैं जिनमें न्यूनतम सजा का प्रावधान किया गया है। छह तरह के अपराध पर कम्युनिटी सर्विस करनी होगी. 19 धाराएं हटाई गई है। बीएनएस ने कुछ नए अपराध पेश किए हैं। उनमें से उल्लेखनीय है खंड 69 जिसमें छल पूर्वक संबंध स्थापित करने पर दंडित किए जाने का प्रावधान है। इस विधेयक में महिलाओं के खिलाफ अपराध और उनके सामने आने वाली कई सामाजिक समस्याओं का समाधान किया गया है। प्रस्तावित कानून में पहचान छिपाकर किसी महिला से शादी करने के अलावा रोजगार, पदोन्नति के झूठे वादे के तहत महिलाओं के साथ पहली बार संबंध बनाना अपराध होगा। शादी का वादा करके शारीरिक संबंध बनाने के मामले को भी कानून में अलग से परिभाषित किया गया है। नए कानून के तहत कहा गया है कि अगर कोई शादी का वादा कर संबंध बनाता है और वो वादा पूरा करने की मंशा नहीं रखता है तो ऐसे मामलों को रेप की परिभाषा से अलग रखा गया है। ऐसे में दोषी पाए जाने पर अधिकतम 10 साल कैद की सजा हो सकती है। बीएनएस, खंड 103 के तहत, पहली बार नस्ल, जाति या समुदाय के आधार पर हत्या को एक अलग अपराध के रूप में मान्यता देता है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में केंद्र को लिंचिंग के लिए एक अलग कानून पर विचार करने का निर्देश दिया था। नया प्रावधान अब ऐसे अपराधों को सुनिश्चित कर सकता है, जो हाल के वर्षों में बढ़ रहे हैं, उन्हें कानूनी मान्यता मिल सकती है। बीएनएस सामुदायिक सेवा को सजा के रूप में भी पेश करता है। हालाँकि, इस सज़ा की सटीक प्रकृति स्पष्ट नहीं की गई है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह ली है। सीआरपीसी में 484 की तुलना में बीएनएसएस में 531 धाराएं हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने पहले कहा था कि बीएनएसएस परीक्षणों को पूरा करने के लिए सख्त समयसीमा लाकर पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाता है। इसलिए, आपराधिक मामलों में फैसला सुनवाई पूरी होने के 45 दिनों के भीतर आना चाहिए और पहली सुनवाई के 60 दिनों के भीतर आरोप तय किए जाने चाहिए। साथ ही, दुष्कर्म पीड़िताओं की जांच करने वाले चिकित्सा विशेषज्ञों को सात दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट जांच अधिकारी को सौंपनी होगी।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) साक्ष्य को संसाधित करने के तरीके में बदलाव लाता है। बीएसए इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड की अनुमति देता है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है, जिसमें ईमेल, सर्वर लॉग, कंप्यूटर, लैपटॉप या स्मार्टफ़ोन पर संग्रहीत फ़ाइलें, वेबसाइट सामग्री, स्थान डेटा और टेक्स्ट संदेश शामिल हैं। बीएसए मौखिक साक्ष्य को इलेक्ट्रॉनिक रूप से लेने की भी अनुमति देता है। इसके अतिरिक्त, पीड़िता को अधिक सुरक्षा प्रदान करने और बलात्कार के अपराध से संबंधित जांच में पारदर्शिता लागू करने के लिए, पीड़िता का बयान ऑडियो-वीडियो माध्यम से दर्ज किया जाएगा। बीएसए ने मौखिक और लिखित स्वीकारोक्ति को शामिल करने के लिए "द्वितीयक साक्ष्य" का भी विस्तार किया है। इसमें कहा गया है कि द्वितीयक साक्ष्य में "उस व्यक्ति का साक्ष्य शामिल होगा जिसने किसी दस्तावेज़ की जांच की है, जिसके मूल में कई खाते या अन्य दस्तावेज़ शामिल हैं जिनकी जांच आसानी से अदालत में नहीं की जा सकती है।

जज, पुलिस और आम आदमी पर असर

नए कानूनों में पुलिस की हिरासत की अवधि में बढ़ोतरी जैसे नियमों से पुलिस उत्पीड़न के मामले और आम लोगों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। नए कानून में मुकदमों के जल्द ट्रायल, अपील और इसके फैसले पर जोर दिया गया है। पुराने मुकदमों में फैसलों के बगैर नए मुकदमों पर जल्द फैसले से जजों के सामने नई चुनौती आ सकती है। नए कानून से सबसे ज्यादा बोझ पुलिस पर पड़ेगा। पुराने केस में अदालतों में पैरवी के लिए उन्हें पुराने कानून की जानकारी चाहिए होगी, जबकि नए मुकदमों की जांच नए कानून के अनुसार होगी। नए कानूनों में फोरेंसिक जांच को डिजिटलाइज और जल्द ट्रायल करने के प्रावधान किए गए हैं। ऐसे में कई राज्यों में जरूरी इन्फ्रा मौजूद ना होने के कारण दिक्कतें आएंगी। इन्फ्रा डेवलपमेंट के लिए गृह मंत्रालय ने लगभग 2,254 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं, लेकिन इनको शुरू होने में चार साल से ज्यादा का वक्त लग सकता है। 

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