कमाने की चिंता, खाने के पड़े लाले, मई दिवस से महरूम प्रवासी मजदूर
दुनिया कोरोना संकट काल से गुजर रही है और मजदूर मुसीबत में हैं। देश में कोरोना के चलते लगाए गए लॉकडाउन का असर प्रवासी मजदूरों पर सबसे ज्यादा भारी पड़ा है। जिंदगी चौराहे पर है। काम बंद हैं, लेकिन पेट में भूख की आग जल रही है।
हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे, इक खेत नहीं, इक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे। ये लाइने आपने पढ़ी या सुनी होंगी। नहीं सुनी तो हम बता देते हैं ये मशहूर नज्म फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ द्वारा लिखी गई है। दुनिया चाहे ईश्वर ने बनाई हो, पर इसको बदला और गढ़ा मजदूरों ने है। ऐसे काम जिसे हम और आप सिर्फ सपने में ही सोच सकते हैं, वो इनके दो हाथ बड़े आसानी से अंजाम तक पहुंचा देते हैं और बदले में मांगते हैं सिर्फ और सिर्फ आठ घंटे काम के लिए, आठ घंटे आराम के लिए और आठ घंटे हमारी मर्जी पर। जी हां, बस इतना सा इतिहास और संघर्ष है मजदूर का। लेकिन हक की लड़ाई में इन मजदूरों के हिस्से में क्या आया। आज उनका दिन है। मई दिवस यानी की मजदूर दिवस के वर्तमान परिदृश्य पर चर्चा करने से पहले आपको थोड़ा इतिहास में लिए चलते हैं।
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1886 की बात है, मई का महीना था और तारीख थी पहली। विश्व महाशक्ति कहे जाने वाले अमेरिका के शिकागो के हेमोर्केट मार्केट में मजदूर आंदोलन कर रहे थे। इनकी मांग थी कि वे 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करेंगे। इस हड़ताल के दौरान शिकागो की हेमार्केट में बम ब्लास्ट हुआ। जिससे निपटने के लिए पुलिस ने मजदूरों पर गोली चला दी जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। इसके बाद 1889 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में ऐलान किया गया कि हेमार्केट नरसंघार में मारे गये निर्दोष लोगों की याद में 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा और इस दिन सभी कामगारों और श्रमिकों का अवकाश रहेगा।
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भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत
पूरा विश्व मजदूर अपने संघर्षों से जूझ रहा था तो इससे भारत कैसे अछूता रह सकता था। मई दिवस भारत में पहली बार 1923 में मनाया गया जिसकी अगुवाई की सिंगारवेलुचेट्टीयार ने जो देश के कम्युनिस्टों में से एक हैं और प्रभावशाली ट्रेड यूनियन तहरीक के नेता थे। भारत में लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान ने 1 मई 1923 को मद्रास में इसकी शुरुआत की थी। हालांकि उस समय इसे मद्रास दिवस के रूप में मनाया जाता था।
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देश में कितने प्रवासी मजदूर हैं ये भी जान लीजिए। 16 मार्च 2020 को श्रम राज्य मंत्री संतोष गंगवार ने लोकसभा में कुछ अनुमानित आंकड़ा बताया था। उन्होंने बताया था कि 2011 की जनगणना के समय देश में 48.2 करोड़ मजदूर थे। ये आंकड़ा 2016 में 50 करोड़ से ज्यादा हो सकता है। अगर मान लें कि इसमें 20 प्रतिशत प्रवासी मजदूर होंगे तो 2016 में प्रवासी मजदूरों की संख्या 10 करोड़ से ज्यादा होगी।
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अब आते हैं वर्तमान में दुनिया कोरोना संकट काल से गुजर रही है और मजदूर मुसीबत में हैं। देश में कोरोना के चलते लगाए गए लॉकडाउन का असर प्रवासी मजदूरों पर सबसे ज्यादा भारी पड़ा है। जिंदगी चौराहे पर है। काम बंद हैं, लेकिन पेट में भूख की आग जल रही है। भूख मिटाने के लिए कोई नई राह निकाल रहा है, तो कोई हारकर रोड पर खड़ा हो जा रहा है...इस इंतजार में कोई सामाजिक संगठन आएगा और खाने का पैकेट दे देगा। कोरोना महामारी के चलते मजदूरों की जिंदगी बेपटरी हो गई है। लॉकडाउन के चलते हजारों श्रमिक राजधानी समेत विभिन्न जगहों पर फंसे हैं। मजदूर दिवस पर यह जानने की कोशिश की गई कि कैसे उनकी जिंदगी चल रही है। लेकिन उन्हें जब ये पता चला की जिन फैक्ट्रियों और काम धंधे से उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ होता था, वह न जाने कितने दिनों के लिए बंद हो गया है, तो वे घर लौटने को छटपटाने लगे। ट्रेन-बस सब बंद थीं। घर का राशन भी इक्का-दुक्का दिन का बाकी था। जिन ठिकानों में रहते थे उसका किराया भरना नामुमकिन लगा। हाथ में न के बराबर पैसा था। और जिम्मेदारी के नाम पर बीवी बच्चों वाला भरापूरा परिवार था। तो फैसला किया पैदल ही निकल चलते हैं। चलते-चलते पहुंच ही जाएंगे। यहां रहे तो भूखे मरेंगे।
भारत में करोड़ों कामगारों पर सीधा असर
- विश्न बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में 4 करोड़ प्रवेशी कामगार मजदूर लॉकडाउनसे प्रभावित हुए हैं।
- भारत में लॉकडाउन के दौरान 50 से 60 हजार लोगों ने शहरों से गांवो की ओर किया पलायन।
आर्थिक चुनौतियों के साथ मनोवैज्ञानिक परेशानी
- लॉकडाउन के कारण लाखों की नौकरियां अचानक चली गई, रोजगार बंद होने आजीविका का संकट उभरा।
- हजारों कामगार छंटनी व वेतन कटौती से आर्थिक और मनोवैज्ञानिक चुनौती का भी सामना कर रहे।
- छोटे-मोटे काम धंधे भी ठप्प पड़े हैं, हर नौकरीपेशा इस डर के साये में जी रहा है कि कब नौकरी चली जाए।
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हालांकि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देश में जगह-जगह फंसे प्रवासी मजदूरों, पर्यटकों और विद्यार्थियों को अपने घर जाने की इजाजत देकर न सिर्फ उन्हें बल्कि उनके परिजनों को भी भारी राहत दी है। इस तरह लॉकडाउन में फंसा एक बड़ा पेच सुलझ गया है। आगामी तीन मई को लॉकडाउन हटेगा या बढ़ाया जाएगा, यह अभी साफ नहीं हुआ है लेकिन प्रवासी मजदूरों को उनके घर भेजने की अनुमति ने एक समस्या से निजात मिलने की उम्मीद जगा दी है।
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