क्यों काफ़िर माने जाते हैं अहमदिया मुसलमान और होना पड़ता है जुल्म का शिकार

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अभिनय आकाश । Feb 14 2020 5:34PM

पाकिस्तान में 1953 में पहली बार अहमदियों के खिलाफ दंगे हुए। जब उन दंगों की जांच पड़ताल हुई तो पता चला कि वो कट्टरपंथियों के उकसाने पर किए गए थे। 1974 में पाकिस्तानी संविधान में संशोधन किया गया और अहमदी को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया। इस दौरान हजारों अहमदिया परिवारों को घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा।

रोहिंग्या मुसलमान ये नाम बीते कुछ बरस से हमेशा चर्चा में रहता है। दावा किया जाता है कि जिन पर म्यांमार में ज़ुल्म हो रहा है और वो देश छोड़कर भाग रहे हैं। म्यांमार सेना कह रही है कि वो उग्रवादियों को मार रही है। एनआरसी और सीएए को लेकर इन दिनों वैसे तो देशभर में घमासान मचा है। वहीं दूसरी तरफ रोहिंग्या शरणार्थियों की जल्द से जल्द सुरक्षित घर वापसी को लेकर भारत और बांग्लादेश मिलकर रास्ता तलाशने में लगी हैं। जिसका जिक्र बीते दिनों लोकसभा में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लिखित जानकारी के तहत देते हुए  बताया कि मंत्रालय को यह भी रिपोर्ट मिली है कि इनमें से कुछ रोहिंग्या शरणार्थी गैरकानूनी गतिविधियों में लगे हैं। वहीं श्री श्री रविशंकर ने पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों पर अत्याचार का जिक्र करते हुए भारत से उनके बारे में भी सोचे जाने  का जिक्र किया है। आखिर कौन हैं ये अहमदिया जिनके नाम के साथ तो मुसलमान लगा है लेकिन 98 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले देश पाकिस्तान में उन्हें खतरा क्यों है? खुद को मुसलमान कहने वाले अहमदिया को आखिर कट्टरपंथी क्यों नहीं मानते हैं मुसलमान? ऐसे तमाम सवाल हैं जिसके बारें में आज आपको बतातें हैं।

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सबसे पहले आपको धर्म के आधार पर बने पाकिस्तान के धार्मिक पृष्ठभूमि से अवगत कराते हैं। पाकिस्तान में 95 से 98 प्रतिशत इस्लाम को मानने वाले लोग हैं। यहां के मुसलमान 3 अभिजात में विभाजित हैं जिनमें सुन्नी, शिया और अहमदिया शामिल हैं। आम सुन्नी मुसलमानों का मत हैं कि इस्लाम के अंतर्गत 'अहमदिया' वो भटके हुए लोग हैं जिनका इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है और ये अपनी हरकतों से लगातार इस्लाम का नाम खराब कर रहे हैं। 

अहमदिया मुसलमान

मुख्यतः 19 वीं सदी में आये अहमदिया पंथ की शुरुआत मिर्जा गुलाम अहमद (1835-1908) ने की थी। बता दें कि अहमदिया समुदाय के अनुयायी इन्हें मोहम्मद साहब के बाद एक और पैगम्बर मानते हैं और इनकी स्तृति करते हैं। लेकिन आम मुसलमान हजरत मुहम्मद के अलावा किसी को अपना रसूल नहीं मानते हैं और ऐसे में मिर्जा गुलाम अहमद को अपने को रसूल या फिर रसूल का वारिस कहना आम मुसलमानों को स्वीकार नहीं हुआ। अपने शुरूआती दौर में मिर्ज़ा ने पहले स्वयं को नबी घोषित किया था और बाद में उन्होंने अपने चाहने वालों को बताया था कि वो मसीहा हैं जिसे ईश्वर ने लोगों की सेवा के लिए भेजा है। बताया जाता है कि तब भी मिर्जा गुलाम अहमद की इस बात से काफी विवाद हुआ था और तब ही इस्लाम के जानकारों ने उन्हें इस्लाम से खारिज कर दिया था। गौरतलब है कि आज के समय में पूरे विश्व में करीब 20 लाख अहमदिया मुसलमान वास करते हैं और इनकी एक बहुत बड़ी संख्या पाकिस्तान और उसके बाद इंडोनेशिया और अल्जीरिया में वास करते हैं।

पाकिस्तान में 1953 में पहली बार अहमदियों के खिलाफ दंगे हुए। जब उन दंगों की जांच पड़ताल हुई तो पता चला कि वो कट्टरपंथियों के उकसाने पर किए गए थे। सितंबर 1974 में पाकिस्तानी संविधान में संशोधन किया गया और अहमदी जमात को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया। इस दौरान हजारों अहमदिया परिवारों को अपना घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। 28 मई साल 2010 को पाकिस्तान में तालिबान ने दो अहमदी मस्जिदों को निशाना बनाया। लाहौर की बैतुल नूर मस्जिद पर फायरिंग की गई और ग्रेनेड फेंके गए साथ ही जिस्म पर बम बांधकर आतंकी मस्जिद में घुस गए जिसमें 94 लोग मारे गए। हिंदुस्तान में भी अहमदी जमात पर शिकंजा कसने की कोशिशें हुईं और देवबंद के दारुल-उलूम ने अहमदियों को काफिर कहे जाने वाले उस फतवे की हिमायत की जो मौलाना अहमद रज़ा ने 1893 में जारी करवाया था।

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