क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक, इसे लागू कराने में क्या है बाधाएं, 5 लाइनों में समझें
नागरिकता संशोधन विधेयक में नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन का प्रस्ताव है। इस संशोधन के मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के 6 धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को नागरिकता मिलेगी जो पलायन करके भारत आए। इनमें हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाई और पारसी लोग शामिल हैं।
घुसपैठियों को देश से बाहर करने की बात मोदी सरकार द्वारा समय-समय पर किया भी जाता रहा है। इस दिशा में सबसे पहले असम में एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस पर काम हुआ। वर्तमान में नागरिकता संशोधन विधेयक को भी इसी कवायद का हिस्सा माना जा रहा है। कैबिनेट बैठक में इस विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद एक बार से नागरिकता संशोधन विधेयक चर्चा के केंद्र में है। ऐसा कहा जा रहा है कि इस बिल के तहत भारत के कुछ पड़ोसी देशों से आए धार्मिक समूहों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाने का प्रावधान है। इसलिए हमने सोचा की नागरिकता संशोधन विधेयक के पूरे मामले को आसान से तथ्यों के आधार पर आपके सामने रख दें। पहले ये समझ लें कि नागरिकता संशोधन विधेयक है क्या?
इसे भी पढ़ें: नागरिकता संशोधन बिल को मोदी कैबिनेट की मंजूरी, कल संसद में होगा पेश
इसे भी पढ़ें: नागरिकता विधेयक संविधान के मूलभूत सिद्धांत को करता है कमतर: थरूर
- नागरिकता संशोधन विधेयक जिसके बारे में विवाद ये है कि इसे मुस्लिम विरोधी बताया जा रहा है और कहा जा रहा है कि घुसपैठियों को लेकर धर्म के आधार पर अंतर किया जा रहा है। इस पर सरकार का मानना है कि गैर मुस्लिम धार्मिक प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आए। इन्हें नागरिकता मिलनी चाहिए।
- देश के पूर्वोत्तर राज्यों में इस विधेयक का विरोध किया जा रहा है, और उनकी चिंता है कि पिछले कुछ दशकों में बांग्लादेश से बड़ी तादाद में आए हिन्दुओं को नागरिकता प्रदान की जा सकती है।
- विपक्ष का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, जो समानता के अधिकार की बात करता है।
- नागरिकता (संशोधन) विधेयक का संसद के निचले सदन लोकसभा में आसानी से पारित हो जाना तय है, लेकिन राज्यसभा में, जहां केंद्र सरकार के पास बहुमत नहीं है, इसका पारित हो जाना आसान नहीं होगा।
- बीजेपी के सांसदों से उस समय संसद में उपस्थित रहने के लिए कहा गया है, जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह बिल प्रस्तुत करेंगे।
अन्य न्यूज़