राजस्थान के मंत्री ने रेप को मर्दानगी से जोड़ा! हंगामे के बाद बोले- मेरी जुबान गलती से फिसली

Rajasthan minister
रेनू तिवारी । Mar 10 2022 1:55PM

राजस्थान विधानसभा में बृहस्पतिवार को विपक्षी विधायकों के भारी हंगामे के बीच संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने सदन में बुधवार रात को पुलिस विभाग की अनुदान मांगों पर बहस के दौरान दिये गये अपने बयान पर माफी मांगी और कहा कि ‘‘उनकी जुबान फिसल’’ गई थी।

राजस्थान में लगातार महिलाओं को लेकर बढ़े अपराध पर जब सरकार से जवाब मांगा गया तब सरकार के एक मंत्री ने ऐसा जवाब दिया जिसे लेकर सियासी पारा काफी चढ़ गया हैं और लोग अपने मंत्री के जवाब से काफी हैरान हैं। राजस्थान के संसदीय कार्य मंत्री शांति कुमार धारीवाल ने बुधवार को विधानसभा में कहा कि राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामलों में सख्त कार्रवाई की गई है। उन्होंने कहा कि "राज्य बलात्कार के मामलों में नंबर एक पर है" क्योंकि "राजस्थान पुरुषों का राज्य है"। राजस्थान को पुरुषवादी राज्य बातते हुए उन्होंने अपनी सरकार का बचाव किया। उनके इस विवादित बयान पर विधानसभा में हंगामा हो गया। विपक्ष लगातार उनकी तीखी अलोचना कर रहा हैं। बढ़ते विवाद के बाद शांति कुमार धारीवाल ने अपने बयान को लेकर विधानसभा में माफी मांगी है और कहा कि उनके बयान का गलत मतलब निकाला गया है।

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राजस्थान विधानसभा में बृहस्पतिवार को विपक्षी विधायकों के भारी हंगामे के बीच संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने सदन में बुधवार रात को पुलिस विभाग की अनुदान मांगों पर बहस के दौरान दिये गये अपने बयान पर माफी मांगी और कहा कि ‘‘उनकी जुबान फिसल’’ गई थी। राजस्थान विधानसभा की कार्यवाही बृहस्पतिवार सुबह 11 बजे जैसे ही शुरू हुई प्रतिपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने कहा कि मंत्री का बयान बेहद आपत्तिजनक है और जनता का अपमान है। विधानसभा अध्यक्ष सी पी जोशी ने उनसे प्रश्नकाल में एक मामला नहीं उठाने को कहा, लेकिन विपक्षी सदस्यों का हंगामा जारी रहा। कटारिया ने कहा कि धारीवाल का बयान देश के लिये लड़ने वालों का अपमान है।

 

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उन्होंने कहा कि ‘‘ यह महिलाओं, जनता और बहादुर पुरूषों का अपमान है। ’’ हंगामे के बीच धारीवाल ने कहा कि पुलिस विभाग की अनुदान मांगों के लिये बहस के जवाब के दौरान उनके मुंह से कुछ अपशब्द निकले और जैसे ही उन्हें इस बात का अहसास हुआ उन्होंने पीठासीन अधिकारी से शब्दों को हटाने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा, ‘‘बहस का जवाब देते समय मेरी जुबान फिसल गई थी इसके लिये मैं खेद प्रकट करता हूं।मैं मरू प्रदेश के लिये कुछ कहना चाहता था। मैं व्यक्तिगत रूप से महिलाओं का सम्मान करता हूं और आगे भी करता रहूंगा। अगर मेरी टिप्पणियों से किसी को ठेस पहुंची है तो मैं माफी मांगता हूं।’’ इस दौरान विपक्षी भाजपा के सदस्य सदन में प्रदर्शन करते रहे। उन्होंने धारीवाल के खिलाफ नारेबाजी की और उनके इस्तीफे की मांग की।

राजस्थान के संसदीय कार्य मंत्री शांति कुमार धारीवाल ने अपने बयान में आगे कहा था कि अनिवार्य प्राथमिकी व्यवस्था के माध्यम से कमजोर वर्ग को न्याय मिला है। उन्होंने कहा कि पुलिस विभाग में सहायक उप निरीक्षक के 3500 अतिरिक्त पद सृजित किए गए हैं जिससे कांस्टेबल की पदोन्नति के अवसर बढ़ेंगे। धारीवाल गृह मंत्री की ओर से विधानसभा में पुलिस विभाग की अनुदान मांगों पर हुई बहस का जवाब दे रहे थे। चर्चा के बाद पुलिस से संबंधित अनुदान मांगों को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। मंत्री ने कहा, ‘‘राज्य में निर्बाध एफआईआर पंजीकरण के माध्यम से कमजोर वर्ग के लोगों को फायदा हुआ है। अपराध में वृद्धि होना और पंजीकरण होना दोनों में बहुत अन्तर है।’’ उन्होंने बताया कि 2013 के मुकाबले 2019 में अपराध 14 प्रतिशत ही बढ़ा था, यानी प्रति वर्ष केवल 2.3 प्रतिशत बढ़ा था। यह एक सामान्य वृद्धि है और राष्ट्रीय औसत 22 प्रतिशत से भी कम है। 

लेकिन यह इसलिए हुआ क्योंकि इन वर्षों में निर्बाध एफआईआर पंजीकरण नहीं हुआ था। मौजूदा सरकार के आने के बाद निर्बाध एफआईआर पंजीकरण होने से 2018 की तुलना में 2019 में वृद्धि हुई। धारीवाल ने कहा कि निर्बाध प्राथमिकी पंजीकरण को सख्ती से लागू करने के लिए पुलिस अधीक्षक कार्यालय से थानों की जांच करने के लिए अभियान भी चलाये गए। धारीवाल ने कहा कि कोविड-19 के समय में पुलिस कर्मियों की जिम्मेदारी को सदैव याद रखा जायेगा। कोरोना महामारी के समय पुलिस ने अभूतपूर्व हौसला दिखाया है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि हिंसक अपराध के मामलों में उत्तर प्रदेश पूरे देश में प्रथम स्थान पर रहा है, जहां राजस्थान के मुकाबले दुगने से भी ज्यादा हिंसक घटनाएं हुई है। हत्या, दहेज, अपहरण जैसे अपराधों में भी उत्तर प्रदेश शीर्ष स्थान पर रहा है। उन्होंने कहा कि राजस्थान में 2017-18 में बलात्कार जैसे अपराधों में 30 प्रतिशत से अधिक पीड़ित महिलाओं को प्रकरण दर्ज कराने के लिए अदालत जाना पड़ता था। इसमें गत तीन सालों में लगातार गिरावट आई है।

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