Ayodhya Ram Mandir में प्राण प्रतिष्ठा की तारीख पर उठा सवाल तो मुहूर्त निकालने वाले काशी के पंडित ने विस्तार से दिया जवाब
कुछ लोग कह रहे हैं कि यह तिथि सही नहीं है। ऐसे में महाराष्ट्र के एक व्यक्ति ने प्राण प्रतिष्ठा की तारीख निकालने वाले वाराणसी के ज्योतिषी को पत्र लिख कर सवाल पूछा तो उन्होंने जवाब में सारे तथ्य प्रस्तुत कर दिये हैं। उम्मीद है कि इस विस्तृत जवाब के बाद सारे दुष्प्रचार बंद हो जाएंगे।
अयोध्या राम मंदिर में भगवान श्रीराम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की तारीख जैसे ही नजदीक आ रही है वैसे-वैसे कुछ लोग तमाम तरह के दुष्प्रचार फैला रहे हैं। कांग्रेस की ओर से आरोप लगाया गया कि अयोध्या में कुछ भी शास्त्र सम्मत तरीके से नहीं किया जा रहा है और शंकराचार्यों की सहमति भी नहीं ली गयी है। इस पर शंकराचार्यों ने बयान जारी कर सारी अफवाहों को खारिज कर दिया। अब सवाल उठाया जा रहा है कि 22 जनवरी का दिन ही प्राण प्रतिष्ठा के लिए क्यों तय किया गया? कुछ लोग कह रहे हैं कि यह तिथि सही नहीं है। ऐसे में महाराष्ट्र के एक व्यक्ति ने प्राण प्रतिष्ठा की तारीख निकालने वाले वाराणसी के ज्योतिषी को पत्र लिख कर सवाल पूछा तो उन्होंने जवाब में सारे तथ्य प्रस्तुत कर दिये हैं। उम्मीद है कि इस विस्तृत जवाब के बाद सारे दुष्प्रचार बंद हो जाएंगे।
पंडितजी को भेजा गया पत्र
श्रीगणेशाय नमः
सेवा में,
आदरणीय श्री गणेश्वरशास्त्री द्राविडजी
सादर नमस्कारपूर्वक निवेदन
दिनांक 22 जनवरी 2024 पौष शुक्ल 12 सोमवार को मेषलग्न में वृश्चिक नवांश में अभिजित मुहूर्त में अयोध्या में रामजन्मभूमि स्थानपर श्रीरामजी की नूतन मंदिर में प्रतिष्ठा होने वाली है, जिसका मुहूर्त आपने दिया है। कुछ लोगों का कहना है कि मंदिर में अभी शिखर का कार्य पूर्ण नहीं हुआ है तथा 22 जनवरी के पूर्व भी विजयादशमी किंवा बलिप्रतिपदा के दिन के बाद प्रतिष्ठा हो सकती थी तथा 22 जनवरी 2024 रामनवमी के दिन किंवा उसके आगे भी किसी अच्छे मुहूर्त में रामप्रतिष्ठा हो सकती थी। 22 जनवरी 2024 को जान बूझकर प्रतिष्ठा का मुहूर्त निकाला गया है। ऐसी स्थिति में मुख्य रूप से दो प्रश्न उपस्थित होते हैं।
1. क्या शिखर का कार्य पूर्ण न होने की स्थिति में राममंदिर में मंदिर अधूरा रहने पर श्रीरामजी की प्रतिष्ठा शास्त्रसम्मत है?
2. 22 जनवरी 2024 को छोड़ अन्य मुहूर्त क्यों नहीं लिया गया?
कृपया इन दोनों प्रश्नों का उत्तर देने की कृपा करें।
निवेदक
ब. ल. मस्के
(बबन लक्ष्मणराव मस्के)
आळंदी देवाची
जिला पुणे
महाराष्ट्र
पत्र का जवाब
श्रीगणेशाय नमः
श्रीगुरुभ्यो नमः
हरिभक्तिपरायण बबन लक्ष्मणराव मस्के महोदय को सादर निवेदन। अयोध्या के राममन्दिर की प्रतिष्ठा के विषय में आपने दिनांक 11/1/2024 के पत्र में दो प्रश्न पूछे हैं। उनका क्रमश: उत्तर लिखा जा रहा है।
प्रथम प्रश्नः क्या शिखर का कार्य पूर्ण न होने की स्थिति में राममन्दिर में मन्दिर अधूरा रहने पर श्री रामजी की प्रतिष्ठा शास्त्रसम्मत है?
प्रथम प्रश्न का उत्तर:
देवमन्दिर की प्रतिष्ठा दो प्रकार से होती है
-सम्पूर्ण मन्दिर बन जाने पर तथा
-मन्दिर में कुछ काम शेष रहने पर भी जहाँ पर सम्पूर्ण मन्दिर बन जाने पर देवप्रतिष्ठा होती है वहाँ गर्भगृह में
देवप्रतिष्ठा होने पर मन्दिर के ऊपर कलशप्रतिष्ठा संन्यासी के द्वारा की जाती है। कलशप्रतिष्ठा गृहस्थ के द्वारा नहीं होती। गृहस्थ के द्वारा कलशप्रतिष्ठा होने पर वंशक्षय होता है। मन्दिर का पूर्ण निर्माण हो जाने पर देवप्रतिष्ठा के साथ मन्दिर के ऊपर कलशप्रतिष्ठा होती है। जहाँ पर मन्दिर पूर्ण नहीं बना रहता वहाँ देवप्रतिष्ठा के बाद मन्दिर का पूर्ण निर्माण होने पर किसी शुभदिन में उत्तम मुहूर्त में मन्दिर के ऊपर कलशप्रतिष्ठा होती है।
अतएव वैदिक-मूर्धन्य श्री अण्णाशास्त्री वारे महोदय द्वारा निर्मित 'कर्मकाण्ड प्रदीप' ग्रन्थ में पत्र 338 में
इति व्रतोद्यापन-वद्द्व्यहःसाध्यः सर्वदेवप्रतिष्ठाप्रयोगः समाप्तः" के बाद "अथ कलशारोपणविधिः" से आरम्भ कर "इति प्रतिष्ठासारदीपिकोक्त: कलशारोपणविधिः" तक स्वतन्त्र रूप से कलशारोपणविधि दी गयी है।
पाञ्चरात्रागम में ईश्वरसंहिता का अग्रिमवचन भी उक्त व्यवस्था के विरुद्ध नहीं है। वचन इस प्रकार है:
"प्रासादाङ्गेषु विप्रेन्द्राः! क्रमान्निगहितेषु च। देवताधारभूतेषु यद्यदऊंग् न कल्पितम् ॥ यत्र वा तत्तदधिकं तत्रापि च समाचरेत् । तत्तत्स्थाने तु बुद्ध्या तु देवतान्यासमूहतः ॥" (ईश्वरसंहिता अध्याय 3 श्लोक 165-166 पृष्ठ 32)
बृहन्नारदीयपुराण में कहा है:
"अकृत्वा वास्तुपूजां यः प्रविशेन्नवमन्दिरम् । रोगान् नानाविधान् केशानश्नुते सर्वसङ्कटम् ॥ अकपाटमनाच्छन्नमदत्तबलिभोजनम् । गृहं न प्रविशेदेवं विपदामाकरं हि तत्॥" (बृहन्नारदीय पुराण, पूर्वखण्ड, अध्याय 56 श्लोक 618-619, पत्र 116)
तदनुसार मन्दिर में द्वार (कपाट = किवार) जबतक नहीं बनता तथा मन्दिर पर जबतक आच्छादन नहीं होता अर्थात् मन्दिर जबतक नहीं ढका जाता और वहाँ वास्तुशान्ति जबतक नहीं होती तथा उसमें देवताओं को यथायोग्य माषभक्त बलि एवं पायसबलि नहीं दी जाती तथा वास्तुशान्ति का अङ्गभूत ब्राह्मणभोजन जबतक नहीं होता तबतक मन्दिर में देवप्रतिष्ठा नहीं हो सकती।
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लोकव्यवहार में एक मंजिल (भवन) बनने पर भी वास्तु-शान्ति करके लोग गृहप्रवेश करते हैं। बाद में गृह का ऊपरी भाग बनता है। अत: पूर्ण भवन बनने पर ही वास्तु प्रवेश होगा ऐसा नहीं कहा जा सकता। देवमन्दिर देवगृह है, अतः उसमें उक्त नियम लागू होगा। अयोध्या के राममन्दिर में प्रतिष्ठा के पूर्व वास्तुशान्ति, प्रस्तुत बलिदान एवं ब्राह्मणभोजन होने वाला है। मन्दिर के दरवाजे लग गये हैं। गर्भगृह पूर्ण रूप से शिलाओं द्वारा ढका गया है। अत: उसमें रामप्रतिष्ठा करने में कोई दोष नहीं है। मन्दिर का काम पूर्ण होने पर कर्मकाण्ड प्रदीप में उद्धृत प्रतिष्ठासार दीपिकोक्त कलशारोपणविधि के अनुसार कलशारोपण होगा।
द्वितीय प्रश्न: 22 जनवरी 2024 को छोड़ अन्य मुहूर्त क्यों नहीं लिया गया?
द्वितीय प्रश्न का उत्तर:
22 जनवरी 2024 पौष शुक्ल द्वादशी सोमवार मृगशीर्ष नक्षत्र के दिन सर्वोत्तम मुहूर्त है इसकारण उसे लिया गया।
-22 जनवरी 2024 के पूर्व विजयादशमी के दिन गुण- वत्तर लग्न नहीं मिलता। गुरु वक्री होने से दुर्बल है।
-बलि प्रतिपदा को मंगलवार है। यह वार गृहप्रवेश में निषिद्ध है। अनूराधानक्षत्र में घटचक्र की शुद्धि नहीं है। अग्निबाण भी है। अग्निबाण में मन्दिर में मूर्तिप्रतिष्ठा होने पर आग लगकर हानि होती है।
-25 जनवरी 2024 पौष शुक्ल पूर्णिमा को मृत्युबाण है। मृत्युबाण में प्रतिष्ठा होने पर लोगों की मृत्यु हो सकती है।
-माघ फाल्गुन में कहीं बाण शुद्धि नहीं मिलती तो कहीं पक्षशुद्धि नहीं मिलती तथा कहीं तिथ्यादि की शुद्धि नहीं मिलती। भाष शुक्ल आदि में गुरु कर्काश (उच्चांश) का नहीं है।
-14 मार्च 2024 से खरमास है। अर्थात् मीनार्क है। मीनार्क में उत्तर भारत में प्रतिष्ठादि शुभ कार्य नहीं होते।
-9 अप्रैल 2024 को वर्षारम्भ दिन है। उसमें मंगलवार, वैधृति एवं क्षीणचन्द्र दोष हैं।
-रामनवमी 17 अप्रैल 2024 को मेषलग्न पापाक्रान्त है तथा उसे लेने पर द्वादश में बुध-शुक्र जाते हैं। वृषलग्न लेने द्वादश में गुरु एवं चतुर्थेश सूर्य जाते हैं। बाद में आश्लेषा नक्षत्र है।
-24 अप्रैल वैशाखकृष्ण प्रतिपदा को मृत्युबाण है।
-28 अप्रैल को शुक्र का वार्धक्यारम्भ है।
-5 मई को गुरु का वार्धक्यारम्भ है।
-7 जुलाई 2024 रथयात्रा के दिन रविवार है।
-17 जुलाई से चातुर्मास्य है।
-12 अक्टूबर 2024 विजयादशमी को शनिवार है। गुरु वक्री है।
-2 नवम्बर बलिप्रतिपदा को शनिवार है। गुरु वक्री है।
-3 फरवरी तक गुरु वक्री होने से मुहूर्त में गुरुबल नहीं ।
-माघ शुक्ल दशमी शुक्रवार को शुद्ध एवं बलवत्तर लग्न नहीं मिलता।
-माघ शुक्ल त्रयोदशी सोमवार 10 फरवरी 2025 को अग्निबाण है। पुनर्वसूनक्षत्र पापाक्रान्त है।
-आगे कहीं चन्द्रशुद्धि नहीं। कहीं पक्ष की शुद्धि नहीं। कहीं शुद्ध नक्षत्र नहीं। कहीं बाणशुद्धि नहीं। कहीं तिथि-वार की शुद्धि नहीं।
-फाल्गुन पूर्णिमा 14 मार्च को खरमासारम्भ।
-30 मार्च 2025 को वर्षारम्भ के दिन रविवार।
-रामनवमी के दिन रविवार।
-आगे कहीं यतीपात, कहीं वैधृति, कहीं इतर अशुद्धि।
-गुरु शत्रुराशि में होने से मुहूर्त में गुरुबाण की कमी।
-2 जून 2026 को गुरु कर्क में जायेगा। उस समय अधिक जयेष्ठ कृष्णपक्ष रहेगा।
-16 जून 2026 से शुद्ध ज्येष्ठ शुक्ल प्रारंभ होगा। पूर्ण लग्नशुद्धि नहीं मिलती।
-तब तब तक प्रतीक्षा कर शुद्ध मुहूर्त को खोजने चलने पर कौन रहेगा? कौन नहीं रहेगा जानकार विद्वान्?
अत: इन सब बातों का विचार करके 22 जनवरी 2024 का राम प्रतिष्ठा मुहूर्त दिया गया है।
पूर्व में आनन-फानन में जो मुहूर्त लोगों ने दिया उसमें कुछ कमी थी इसी कारण मन्दिर तोड़े गये। अत: सभी बातों को ध्यान में रखकर 22 जनवरी 2024 को प्रतिष्ठा का मुहूर्त दिया गया है। इसमें लग्नस्थ गुरु की दृष्टि पश्चम, सप्तम एवं नवम पर होने से मुहूर्त उत्तम है। मकर का सूर्य हो जाने से पौषमास का वर्ज्यत्व (दोष) समाप्त हो जाता है। भगवान् की कृपा से, गुरुजनों के आशीर्वाद से उपर्युक्त उत्तम मुहूर्त मिला है। अधकचरे लोगों द्वारा बिना प्रमाण के प्रश्न उपस्थापित एवं प्रचारित किये जाते हैं उनमें कोई तत्व नहीं है। शुभं भवतु।
गणेश्वरशास्त्री द्राविड
परीक्षाधिकारिमन्त्री
श्रीगीर्वाण वाग्वर्धिनीसभा
साङ्वेद विद्यालय
रामघाट, वाराणसी
(उत्तर प्रदेश)
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