Parliament Diary: One Nation One Election Bill Lok Sabha में पेश, Rajya Sabha में संविधान पर चर्चा, लोकसभा ने अनुपूरक मांगों को दी मंजूरी

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विधेयक पर विपक्षी दलों के विरोध के बीच केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जब मंत्रिमंडल में चर्चा के लिए विधेयक आया था, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं मंशा जताई थी कि इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के विचार के लिए भेजा जाना चाहिए।

लोकसभा में आज एक देश एक चुनाव संबंधी विधेयक पेश किया गया और साथ ही सदन ने अनुपूरक मांगों के प्रथम बैच और उससे संबंधित विनियोग (संख्याक-3) विधेयक 2024 को ध्वनिमत से पारित कर दिया। वहीं राज्यसभा में संविधान पर चर्चा के दौरान विपक्ष ने सरकार को जमकर घेरा और सरकार ने जवाबी पलटवार किया।

एक देश एक चुनाव

सबसे पहले लोकसभा की बात करें तो आपको बता दें कि सरकार ने देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले विधेयक को विपक्षी दलों के भारी विरोध के बीच निचले सदन में पेश किया और कहा कि इस पर व्यापक विचार-विमर्श के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाएगा। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024’ और उससे जुड़े ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024’ को निचले सदन में पुर:स्थापित करने के लिए रखा, जिनका विपक्षी दलों ने पुरजोर विरोध किया। सदन में मत विभाजन के बाद ‘संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024’ को पुर:स्थापित कर दिया गया। विधेयक को पेश किए जाने के पक्ष में 269 वोट, जबकि विरोध में 198 वोट पड़े। इसके बाद मेघवाल ने ध्वनिमत से मिली सदन की सहमति के बाद ‘संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024’ को भी पेश किया। दोनों विधेयकों को पुर:स्थापित किए जाने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अपराह्न करीब एक बजकर 55 मिनट पर सदन की कार्यवाही अपराह्न तीन बजे तक के लिए स्थगित कर दी। यह पहली बार था कि नए सदन में किसी विधेयक पर इलेक्ट्रॉनिक मत विभाजन हुआ।

विधेयक पर विपक्षी दलों के विरोध के बीच, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जब मंत्रिमंडल में चर्चा के लिए विधेयक आया था, तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं मंशा जताई थी कि इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के विचार के लिए भेजा जाना चाहिए। वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने विधेयक पेश किए जाने का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि यह संविधान के मूल ढांचे पर हमला है तथा देश को ‘तानाशाही’ की तरफ ले जाने वाला कदम है। उन्होंने यह भी कहा कि विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रमुख सहयोगी तेलुगू देसम पार्टी (तेदेपा) और शिवसेना ने विधेयक का समर्थन किया। कानून मंत्री मेघवाल ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से संबंधित प्रस्तावित विधेयक राज्यों की शक्तियों को छीनने वाला नहीं है, बल्कि यह विधेयक पूरी तरह संविधान सम्मत है। उन्होंने विधेयक को जेपीसी के पास भेजने की विपक्ष की मांग पर भी सहमति जताई। विधेयक का विरोध करते हुए कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि यह विधेयक बुनियादी ढांचे पर हमला है और इस सदन के विधायी अधिकार क्षेत्र से परे है। उन्होंने कहा कि भारत राज्यों का संघ है और ऐसे में केंद्रीकरण का यह प्रयास पूरी तरह संविधान विरोधी है। उन्होंने आग्रह किया कि इस विधेयक को वापस लिया जाना चाहिए। विधेयक का विरोध करते हुए समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने दावा किया, ‘‘यह संविधान की मूल भावना को खत्म करने का प्रयास है और तानाशाही की तरफ ले जाने वाला कदम है।’’ यादव ने कहा कि इस विधेयक को वापस लिया जाना चाहिए।

तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि यह प्रस्तावित विधेयक संविधान के मूल ढांचे पर हमला है और यह ‘अल्ट्रा वायर्स’ (कानूनी अधिकार से परे) है। उन्होंने दावा किया कि इस विधेयक को स्वीकार नहीं किया जा सकता। बनर्जी ने कहा कि राज्य विधानसभाएं केंद्र और संसद के अधीनस्थ नहीं होती हैं, यह बात समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से संसद को कानून बनाने का अधिकार है, उसी तरह विधानसभाओं को भी कानून बनाने का अधिकार है। तृणमूल कांग्रेस सांसद ने कहा कि यह राज्य विधानसभाओं की स्वायत्तता छीनने का प्रयास है। उन्होंने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि कोई भी दल हमेशा सत्ता में नहीं रहेगा, एक दिन सत्ता बदल जाएगी। बनर्जी ने कहा, ‘‘यह चुनावी सुधार नहीं है, एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षाओं और सपनों को पूरा करने के लिए लाया गया विधेयक है।’’ द्रमुक नेता टीआर बालू ने सवाल किया कि जब सरकार के पास दो- तिहाई बहुमत नहीं है तो फिर इस विधेयक को लाने की अनुमति आपने कैसे दी? इस पर बिरला ने कहा, ‘‘मैं अनुमति नहीं देता, सदन अनुमति देता है।’’ बालू ने कहा, ‘‘मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि इस विधेयक को जेपीसी के पास भेजा जाए और विस्तृत विचार-विमर्श के बाद इसे सदन में लाया जाए।’’ 

आईयूएमएल के नेता ईटी मोहम्मद बशीर ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यह लोकतंत्र, संविधान और संघवाद पर हमले का प्रयास है। शिवसेना (उबाठा) के सांसद अनिल देसाई ने भी विधेयक का विरोध किया और कहा कि यह विधेयक संघवाद पर सीधा हमला है और राज्यों के अस्तित्व को कमतर करने की कोशिश है। लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने कहा कि ये दोनों विधेयक संविधान और नागरिकों के वोट देने के अधिकार पर आक्रमण हैं। उनका कहना था कि निर्वाचन आयोग की सीमाएं अनुच्छेद 324 में निर्धारित हैं और अब उसे बेतहाशा ताकत दी जा रही है। गोगोई ने कहा कि इस विधेयक से निर्वाचन आयोग को असंवैधानिक ताकत मिलेगी।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया कि यह संघवाद के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि संसद को ऐसा कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है जो मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। ओवैसी ने दावा किया कि यह क्षेत्रीय दलों को खत्म करने के लिए उठाया गया कदम है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता अमरा राम ने आरोप लगाया कि यह विधेयक संविधान को तहस-नहस करने के लिए लाया गया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसपी) की नेता सुप्रिया सुले ने कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों के कार्यकाल को एक दूसरे से जोड़ना उचित नहीं है। रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) के एनके प्रेमचंद्रन ने आरोप लगाया कि विधेयक संविधान में निहित संघवाद के मूल ढांचे पर हमला है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक लाने से पहले राज्यों के साथ चर्चा होनी चाहिए थी क्योंकि इस विधेयक के कानून बनने के बाद विधानसभाएं संसद और केंद्र के अधीनस्थ हो जाएंगी जो संवैधानिक नजरिये से उचित नहीं है। केंद्रीय मंत्री और तेदेपा के नेता चंद्रशेखर पेम्मासानी ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि इस विधेयक से चुनावी खर्च कम होगा। शिवसेना सांसद श्रीकांत शिंदे ने विधेयक का समर्थन किया और आरोप लगाया कि ‘‘कांग्रेस को सुधार शब्द से एलर्जी है’’। उन्होंने आपातकाल का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस न्यायाधीश ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आयोग्य ठहराया था, उसके साथ कैसा व्यवहार हुआ था, पूरा देश जानता है। कानून मंत्री मेघवाल ने कई विपक्षी सदस्यों की इस दलील को खारिज कर दिया कि यह विधेयक संसद की विधायी क्षमता से परे है। उन्होंने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 368 संसद को ऐसे संशोधन की शक्ति देता है। उनका कहना था कि संविधान का अनुच्छेद 327 संसद को विधानमंडलों के चुनाव के संदर्भ में अधिकार देता है। मेघवाल ने कहा कि इस विधेयक से न तो संसद की शक्ति कम होती है और न ही राज्यों की विधानसभाओं की शक्ति कम होती है। उन्होंने बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के एक कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि देश के संघीय ढांचे को कोई नहीं बदल सकता। मेघवाल ने कहा, ‘‘जिस वर्ग से बाबासाहेब आते थे, उसी वर्ग से मैं आता हूं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुझे यह अवसर दिया है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि सरकार का मत है कि इस विधेयक को जेपीसी के विचार के लिए भेजा जाए।

संविधान की भावना

वहीं राज्यसभा में विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों ने देश में हो रहे विकास के लाभ को समाज के कमजोर तबकों तक पहुंचाने को संविधान की भावना के अनुरूप करार देते हुए सुझाव दिया कि एससी, एसटी एवं ओबीसी वर्गों को आरक्षण का समुचित लाभ देते हुए उन्हें देश की मुख्यधारा में लाने का अवसर दिया जाना चाहिए। ‘भारत के संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा’ पर राज्यसभा में हो रही चर्चा में भाग लेते हुए कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने कहा कि काका कालेलकर की रिपोर्ट को पेश करने के बाद 22 साल तक दबा कर रखा गया। उन्होंने कहा कि 1974 में छात्रों को आंदोलन करने पर क्यों मजबूर होना पड़ा? उन्होंने कहा कि मोरारजी देसाई को छात्रों के आंदोलन के समर्थन में अहमदाबाद में आमरण अनशन करना पड़ा और लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने जब छात्रों के आंदोलन का समर्थन किया तो पुलिस ने उन पर लाठियां बरसाईं। ठाकुर ने कहा कि चंद्रशेखर को भी उस समय आंदोलन में उतरने के कारण जेल में डाला गया जबकि वह पहले कांग्रेस में थे। जनता दल (यू) नेता कहा कि उन्होंने भी इस दौरान जेल में दिन गुजारे थे। उन्होंने कहा कि छात्रों का आंदोलन उग्र होने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रातोंरात देश में आपातकाल लगा दिया। ठाकुर ने कहा कि समाज में कमजोर तबकों को उठाने की बात जो संविधान में लिखी गयी है, उसे पूरा करने के लिए, अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने का काम पहले क्यों नहीं किया गया? उन्होंने कहा कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर सहित जिस भी नेता ने इस वर्ग को आरक्षण दिया, उसकी सराहना की जानी चाहिए।

उन्होंने चौधरी चरण सिंह, जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के निर्णय की सराहना की। उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों को इन नेताओं को सम्मानित करने से किसने मना किया था? आम आदमी पार्टी के अशोक कुमार मित्तल ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि एक समय भारत को सांप-सपेरों का देश कहा जाता था, वह आज एक आत्मनिर्भरता वाला देश बन गया है, जिसका कारण भारत का संविधान है। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान में महिलाओं को मतदान का अधिकार दिया है। उन्होंने कहा कि 250 साल बाद भी अमेरिका में कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बन पायी जबकि भारत में संविधान लागू होने के मात्र 16 वर्ष में देश में पहली महिला प्रधानमंत्री बनी जो दुनिया की दूसरी महिला प्रधानमंत्री थीं। साथ ही भारत में अभी तक दो महिला राष्ट्रपति बन चुकी हैं। मित्तल ने कहा कि आज तक कोई भी सरकार देश के संविधान के मूल स्वरूप को नहीं बदल पायी है। आप सदस्य ने कहा कि एक हजार वर्ष बाद भी भारत का संविधान सरकार और देश की जनता का मार्गदर्शन करता रहेगा।

वाईएसआर कांग्रेस के गोला बाबूराव ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि सरकार को समाज के कमजोर एवं निर्धन तबकों के कल्याण के लिए मजबूत कदम उठाना चाहिए क्योंकि यह संविधान की भावना के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि कोई भी उन कारणों पर विचार नहीं कर रहा है कि संविधान को लागू हुए 75 वर्ष होने के बावजूद गरीब तबके का विकास क्यों नहीं हो पाया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस दिशा में ठोस प्रयास करना चाहिए। बाबूराव ने मणिपुर हिंसा का मुद्दा उठाते हुए कहा कि केंद्र सरकार को यहां सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए फौरन कदम उठाने चाहिए। राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि भले ही भाजपा सौ साल तक चुनाव जीत ले किंतु प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जहां खड़े थे, वे वहीं खड़े रहेंगे। उन्होंने कहा कि नेहरू हमेशा तानाशाही और अधिनायकवाद के खिलाफ थे। उन्होंने कहा कि आज जब संविधान पर बात हो रही है तो सभी का यह दायित्व है कि आजादी पर बात की जाए। उन्होंने कहा कि जब संविधान लागू होने के 100 साल बाद चर्चा होगी तो यह नहीं भूलना चाहिए कि उसमें आज की सरकार की भी आलोचना हो सकती है। झा ने कहा कि नेहरू, पटेल और आजाद ने देश की नींव डाली। उन्होंने कहा कि उन नेताओं से हो सकता है गलती हुई हो किंतु उन्हें खलनायक बनाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान में आय असमानता को दूर करने की बात कही गयी है। उन्होंने कहा कि आय असमानता के मामले में आज हम ‘टाइम बम’ पर बैठे हुए हैं।

राजद सदस्य ने प्रश्न किया कि सीवर में उतर कर कई सफाईकर्मियों की मौत होती है किंतु ‘क्या वे एक हैं तो सेफ हैं’ के नारे में नहीं आते हैं? उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में आज जो कुछ हो रहा है, वह उनकी पीड़ा को साझा करते हैं। झा ने कहा कि भारत एक परिपक्व लोकतंत्र हैं। उन्होंने कहा, ''बांग्लादेश एवं पाकिस्तान में आज अल्पसंख्यकों के साथ जो हो रहा है, यदि हम अपने देश में अल्पसंख्यकों के साथ पूरी तरह न्याय कर पाए होते तो हम इन दोनों देशों से जोर देर कर कह सकते थे।’’ उन्होंने एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर कहा कि यह ‘लोगों की इच्छा’ से जुड़ा मामला है और इसे अमली जामा पहनाने से पहले इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा कराये जाने की आवश्यकता है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के अब्दुल वहाब ने कहा कि समाज में कुछ ऐसे कमजोर तबके के लोग हैं, जिनके कल्याण के लिए सरकार और समाज को गंभीरता से सोचना चाहिए। उन्होंने कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के वायनाड से हाल में लोकसभा चुनाव जीतने की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि लोग एक परिवार का इसलिए सम्मान करते हैं क्योंकि गांधी परिवार ने देश के लिए बलिदान दिया है। उन्होंने कहा कि संविधान पर चर्चा के दौरान चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, सभी ने डॉ. भीमराव आंबेडकर की भूमिका की सराहना की और देश में उनका सम्मान लगातार बढ़ता जा रहा है।

बीजू जनता दल के निरंजन बिशी ने संविधान लागू होने के 75 वर्ष बाद भी अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को उच्च शिक्षा, रोजगार एवं पदोन्नति में समुचित आरक्षण नहीं मिल पाया है। उन्होंने एससी एवं एसटी समुदाय के लोगों के खिलाफ उत्पीड़न की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए कहा कि मणिपुर में हुई हिंसा में इन्हीं वर्गों के लोगों ने सबसे ज्यादा पीड़ा को झेला है। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने सपना देखा था कि एससी एवं एसटी वर्ग के लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाया जा सकेगा किंतु वे आज भी अपने वांछित स्थान तक नहीं पहुंच सके हैं। पीएमके के डॉ. अंबुमणि रामदास ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए कहा है किंतु इसके लिए समाज के कमजोर तबकों का विकास करना होगा। उन्होंने आरक्षण पर पचास प्रतिशत की सीमा को समाप्त करने की मांग की। उन्होंने कहा कि आज देश में सबसे ज्यादा अन्याय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के साथ हो रहा है। उन्होंने कहा कि आज देश में ओबीसी की आबादी 60 प्रतिशत से अधिक है जबकि उनको मात्र 27 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है। उन्होंने क्रीमी लेयर का विरोध करते हुए कहा कि यह संविधान विरोधी है। उन्होंने कहा कि एससी एवं एसटी के लिए जब क्रीमी लेयर का प्रावधान नहीं है तो ओबीसी के लिए यह क्यों हैं। रामदास ने जातिगत आरक्षण की मांग का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि इससे सबसे अधिक लाभ ओबीसी वर्ग को मिलेगा।

वहीं पूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल (सेक्युलर) के नेता एच डी देवगौड़ा ने मंगलवार को संसद से इस बात पर विचार करने को कहा कि आरक्षण जाति के आधार पर दिया जाना चाहिए या इसे बदलकर आर्थिक आधार पर कर देना चाहिए। राज्यसभा में ‘भारत के संविधान की 75 साल की गौरवशाली यात्रा’ विषय पर चर्चा में भाग लेते हुए देवगौड़ा ने कहा, ‘‘अतीत में जो कुछ हुआ, उस पर सदन को खुद विचार करना होगा कि क्या हमें इस देश में गरीबी के आधार पर ही आरक्षण देना चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि लोग उस आरक्षण से भी पीड़ित हैं जो हमने अतीत में दिया है और इसने उन लोगों को ऊपर नहीं उठाया है जो अभी भी दो वक्त की रोटी के लिए परेशान हैं। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि सदन को इस बारे में सोचना चाहिए कि क्या आरक्षण पहले की तर्ज पर ही जारी रखा जाना चाहिए या ‘केवल उन लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जो सबसे ज्यादा गरीबी से जूझ रहे हैं और जिनका जीवनयापन स्तर खराब है’। देवगौड़ा ने कहा, ‘‘यदि सदन और नेता इस पर विचार करते हैं तो आरक्षण पर कोई भी फैसला लेने से पहले प्रधानमंत्री (नरेन्द्र मोदी) इस पर विचार कर सकते हैं।’’ उन्होंने कहा कि डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा तैयार किया गया संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरा है। सदन के नेता जे पी नड्डा का जिक्र करते हुए देवगौड़ा ने कहा कि उन्होंने आरक्षण और विभिन्न अन्य मुद्दों पर विचारोत्तेजक भाषण दिया, जिसका देश ने पिछले 75 सालों में सामना किया है। देवगौड़ा से पहले नड्डा ने संविधान की यात्रा पर अपने विचार रखे थे।

वहीं, सत्ता पक्ष ने राज्यसभा में दावा किया कि संविधान की भावना को आगे बढ़ाते हुए उसने लोकसभा और विधानसभाओं में सरकारें बनाईं तथा देश को विकास के पथ पर अग्रसर किया और ‘‘सत्यमेव जयते’’ को चरितार्थ करते हुए जनता ने तीसरी बार उस पर भरोसा कर सत्ता सौंपी है। राज्यसभा में ‘भारत के संविधान की 75 साल की गौरवशाली यात्रा’ विषय पर चर्चा में भाग लेते हुए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि संविधान बनाते समय कई चुनौतियां सामने थीं और तब संविधान सभा के अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने उनका जिक्र भी किया था। उन्होंने कहा ‘‘चुनौतियां आज भी हैं, भले ही उनका रूप बदल गया है। तब हम 35 करोड़ थे और आज 140 करोड़ हो गए हैं। फिर भी संविधान की भावना को आगे बढ़ाते हुए हमने लोकसभा और विधानसभाओं में सरकारें बनाई हैं। हमारी जनता इसके लिए बधाई की पात्र है।’’ उन्होंने कहा कि संविधान की पुस्तिका जेब में रख कर चलने वालों को चुनाव में जनता ने ही जवाब दिया है क्योंकि तब यह दावा किया गया था कि ‘‘हम जीत गए तो हम संविधान बदल देंगे। यह भ्रम दूर हो गया। सत्य लोगों के सामने है। सत्यमेव जयते।’’ मौलिक अधिकारों का जिक्र करते हुए यादव ने कहा कि 75 साल में वह दौर भी आया था जब लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए थे। उन्होंने कहा कि तब असहमति की आवाजों को कुचला गया था और तत्कालीन सरकार का समर्थन करने वालों को रसूखदार पद दिए गए थे।

कांग्रेस पर सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए यादव ने कहा कि दिल्ली में 1984 में हुए दंगों की जांच के लिए न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग बनाया गया जिसने तमाम कांग्रेस नेताओं को क्लीन चिट दे दी थी। उन्होंने कहा कि 0 बाद में न्यायमूर्ति मिश्रा भारत के प्रधान न्यायाधीश, मानवाधिकाार आयोग के अध्यक्ष और राज्यसभा के सदस्य भी बनाए गए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने बार बार राज्यों की सरकारें गिराईं और उच्चतम न्यायालय को उसे उसका दायरा बताना पड़ा था। उन्होंने कहा ‘‘आपके ही शासन से हमने सीखा है कि जीत सत्य की होती है यानी सत्यमेव जयते और इसीलिए हमें तीसरी बार जनता ने चुना है।’’ यादव ने कहा ‘‘बीते दस साल में हमने देखा है कि जब भी देश में गौरवशाली मौके आए, कांग्रेस पीछे हटते नजर आई है। संविधान निर्माताओं ने जो मूल सिद्धांत दिया है वह यह है कि विचार विमर्श हो और सबको साथ ले कर चला जाए। ग्रामीण भारत को समृद्ध करने का संविधान निर्माताओं का जो निर्देश है उसी के अनुरूप आज कई योजनाएं ग्रामीण भारत के विकास के लिए हमारी सरकार चला रही है।’’ उन्होंने कहा कि कांग्रेस आदिवासियों की बात करती है लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने जनजातीय मंत्रालय बनाया। यादव ने कहा कि संविधान केवल चर्चा की वस्तु नहीं है बल्कि इसे आत्मा के साथ आत्मसात करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान निर्माताओं ने केंद्र और राज्यों के संबंध बेहतर तरीके से हों, इसके लिए संविधान में व्यवस्था दी है। उन्होंने कहा कि कल तिरुचि शिवा ने कहा था कि संसद के द्वार पर मकर द्वार लिखा गया जो उन्हें समझ नहीं आता। उन्होंने कहा ‘‘तमिल डिक्शनरी में मकर शब्द तमिल में ही लिखा है। इसलिए ऐसी बात यहां नहीं करना चाहिए। हम सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं।’’ यादव ने कहा कि वह और उनकी पार्टी देश की सभी प्राचीन भाषाओं का सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि इस बात को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिये भी आगे बढ़ाया गया है। उन्होंने कहा कि 75 साल की गौरवशाली यात्रा में यह भी सोचना चाहिए कि विकास की यात्रा को कैसे आगे बढ़ाया जाए और गलतियों को कैसे सुधारा जाए। उन्होंने कहा ‘‘बीते दस साल में भारत की गौरवशाली परंपरा का ध्यान रखा गया है और यही वजह है कि नये संसद भवन में तमिलनाडु से राजदंड ला कर रखा गया। कांग्रेस ने तो इस राजदंड को न्याय का प्रतीक मानने के बजाय इसे चलने में मदद करने वाली छड़ी समझा था।’’ कांग्रेस सदस्यों ने इस पर विरोध जताया। कांग्रेस के जयराम रमेश ने कहा कि राजदंड को लेकर सत्ता पक्ष एक झूठी कहानी फैला रहा है।

सदन के नेता जेपी नड्डा ने कहा कि सत्ता के हस्तांतरण के दौरान लार्ड माउंट बेटन ने सत्ता हस्तांतरण की परंपरा के बारे में पूछा था। और तब चोल वंश की सत्ता हस्तांतरण की प्रथा के बारे में सी राजगोपालाचारी ने बताया जिसके बाद मद्रास से विमान द्वारा चोल वंश के लोगों को लाया गया जिन्होंने पूरी प्रथा बताई और पूरी परंपरा के साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू को राजदंड सौंपा गया था। इस पर पीठासीन अध्यक्ष राजीव शुक्ला ने उन्हें कहा कि वे इसे सदन में प्रमाणित करें। तब नड्डा ने कहा कि वह सदन में इसे प्रमाणित करेंगे। यादव ने कहा ‘‘कई बार ऐसे संदर्भ आ जाते हैं। मैं कहना नहीं चाहता लेकिन मैं उच्चतम न्यायालय में वकील था और कांग्रेस ने वहां राम सेतु को लेकर उसके और राम के ही अस्तित्व पर सवाल उठा दिए थे। क्या कांग्रेस उसे प्रमाणित करेगी?’’ तृणमूल कांग्रेस की मौसम नूर ने कहा ‘‘जब स्वतंत्रता की बात की जाती है तो देखना चाहिए कि अंतरधार्मिक विवाहों के लिए किस तरह कानून बना दिए गए। करीब 100 पत्रकारों पर आए दिन हमले हुए हैं। यूएपीए जैसे कानूनों का दुरुपयोग हुआ है।’’ उन्होंने कहा कि हाथरस में दलित महिला से बलात्कार की घटना के बाद पत्रकार सिद्दिकी कप्पन को गिरफ्तार किया गया और वह दो साल जेल में रहे। यह कैसी लिबर्टी है।’’ कांग्रेस की रजनी अशोक राव पाटिल ने कहा ‘‘जब संविधान बना तो इसके लिए काम करने वाले करीब 300 लोगों में 15 महिलाएं थीं जिन्होंने आरक्षण की मांग नहीं की थी। उन्हें लगा था कि धीरे धीरे महिलाओं की राजनीति में संख्या बढ़ेगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।’’ उन्होंने कहा कि दूसरे देशों में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी है लेकिन भारत में बहुत कम है। उन्होंने कहा ‘‘पहली बार राजीव गांधी ने पंचायती राज विधेयक का सपना देखा और महिलाओं को आरक्षण दिया।’’ पाटिल ने कहा कि 1996 में महिला आरक्षण विधेयक लाया गया था तब भाजपा की उमा भारती ने उस विधेयक के टुकड़े कर दिए थे। उन्होंने कहा कि भाजपा और आरएसएस में आज तक महिला को अध्यक्ष नहीं बनाया गया। उन्होंने कहा कि सरकार ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम ला कर कहा कि अब महिलाओं को आरक्षण मिलेगा लेकिन यह आरक्षण 2029 में मिलेगा। उन्होंने कहा ‘‘यह बीरबल की खिचड़ी है।’’ यूपीपी (एल) के रवंगवरा नरजारी ने बोडो में अपनी बात रखी। आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने कहा ‘‘मोदी सरकार के कार्यकाल में आर्थिक असमानता चरम पर है। पांच प्रतिशत लोगों के पास देश की 60 फीसदी संपत्ति है। क्या यही मोदी सरकार की समाजवादी भावना और सोच है?’’ उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह पूरे देश में मस्जिदों के अंदर मंदिर खोज रही है। अन्नाद्रमुक सदस्य डॉ. एम थंबीदुरै ने कहा कि हिंदी को लेकर विरोध नहीं है लेकिन तमिल को भी सम्मान दिया जाना चाहिए।

मणिपुर के मुद्दे पर घेरा

मणिपुर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरते हुए राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस और माकपा ने दो टूक शब्दों में कहा कि संविधान की 75 साल की गौरवशाली यात्रा पर चर्चा में मणिपुर को हाशिये पर डाल देना ठीक नहीं है। ‘भारत के संविधान की 75 वर्षों की गौरवशाली यात्रा’ पर राज्यसभा में हो रही चर्चा के दूसरे दिन मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के जॉन ब्रिटॉस ने कहा ‘‘संविधान की 75 साल की यात्रा बेहद गौरवान्वित करने वाली है। लेकिन इसे संविधान की 65 साल की यात्रा कहना बेहतर होगा क्योंकि इस सरकार ने हमेशा यह बताने का प्रयास किया कि 65 साल तक तो देश में कोई विकास हुआ ही नहीं, जो कुछ भी विकास हुआ, वह इस सरकार के दस साल में ही हुआ।’’ ब्रिटॉस ने कहा कि लोकतंत्र विश्वास के आधार पर चलता है और संवैधानिक संस्थाओं पर विश्वास जरूरी है। उन्होंने सवाल किया कि कैग, चुनाव आयोग से लेकर संसद और मीडिया तक... क्या आज देश में विश्वास कहीं नजर आता है? उन्होंने कहा ‘‘केवल एक ही व्यक्ति को सरकार इन सबके लिए जिम्मेदार ठहराती है और वह हैं जवाहरलाल नेहरू।’’ ब्रिटॉस ने तंज करते हुए कहा ‘‘पिछली बार एक चर्चा में अपनी बात रखते हुए मैंने गृह मंत्री अमित शाह से आग्रह किया था कि नेहरू के लिए एक मंत्रालय बना दिया जाए ताकि एक मंत्री उनकी भूलों को सुधारते रहे।’’ उन्होंने कहा ‘‘सरकार कब तक हर समस्या के लिए जवाहरलाल नेहरू को जिम्मेदार ठहराती रहेगी ? आपने क्या किया है ?’’ माकपा सदस्य ने कहा कि आज देश में अघोषित आपातकाल है। उन्होंने कहा कि एक सप्ताह तक अमेरिकी उद्योगपति जार्ज सोरोस के मुद्दे पर संसद को चलने नहीं दिया गया और यह सत्ता पक्ष की ओर से हुआ। ब्रिटॉस ने कहा कि अगर देश में बाहरी हस्तक्षेप के तौर पर 95 साल के सोरोस की कोई भूमिका है तो जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति क्यों नहीं बनाई जाती। ‘‘पता करें कि जनता कर देती है और सोरोस के संगठन को कितना पैसा दिया गया। सरकार को कार्रवाई करने से किसने रोका है?’’

उन्होंने कहा कि संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर के अपमान की बात करने वाले यह क्यों नहीं देखते कि लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री बनाने के बजाय मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया गया। उन्होंने पूछा कि मुरली मनोहर जोशी का क्या हुआ? ब्रिटॉस ने कहा ‘‘मैं सत्ता पक्ष से पूछना चाहता हूं कि उम्र के जिस नियम को आधार बना कर आडवाणी और जोशी को मार्गदर्शक मंडल में डाल दिया गया, क्या वह नियम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भी लागू होगा क्योंकि वह 74 साल के हो चुके हैं।’’ माकपा सदस्य ने कहा ‘‘दूसरे सदन में प्रधानमंत्री ने दस मंत्र बताते हुए खुद कहा है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। जब आप कर्तव्यों की बात करते हैं तो आप अपने कर्तव्य का पालन क्यों नहीं करते ? आप क्यों आज तक मणिपुर नहीं गए।’’ उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के पास संसद सत्र के दौरान राज कपूर के परिवार से मिलने का समय है और प्रधानमंत्री ने उनके बच्चों के बारे में भी पूछा। ‘‘इसके लिए उनके पास समय है।’’ ब्रिटॉस ने सवाल किया कि क्या हमारे पास भूल सुधार करने का साहस नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर आपके पास (सरकार के पास) साहस है तो लोकतंत्र, धर्म निरपेक्षता और संघवाद को सम्मान दें क्योंकि ये तीनों स्तंभ देश को मजबूत करते हैं और आज कहीं न कहीं ये तीनों स्तंभ कमजोर हुए हैं। उन्होंने दावा किया कि विपक्ष शासित राज्यों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है और केरल इसका उदाहरण है जहां वायनाड प्राकृतिक आपदा में तहस नहस हो गया लेकिन केंद्र ने एक रुपये की भी मदद नहीं दी।

उन्होंने कहा ‘‘आप एक देश एक चुनाव की बात करते हैं लेकिन आप पहले सबको एक समान नजर से तो देखिए। आप एक देश एक चुनाव के नाम पर एक विचारधारा की बात कर विविधतापूर्ण इस देश की खूबसूरती को खत्म करना चाहते हैं।’’ तृणमूल कांग्रेस की सुष्मिता देव ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि बाबा साहेब आंबेडकर ने संविधान के माध्यम से देश में सभी को समानता का अधिकार दिया। ‘‘लेकिन आज हम यह नहीं कह सकते कि देश में समानता है क्योंकि देश की 40 फीसदी संपत्ति एक फीसदी लोगों के हाथ में हैं।’’ उन्होंने कहा कि आज ऊंची पढ़ाई पढ़ कर निकले युवा प्रतियोगी परीक्षा में भाग नहीं ले पाते, अगर वह भाग ले कर उत्तीर्ण हो जाते हैं तो उन्हें नौकरी नहीं मिलती। आज कारपोरेट घरानों के कर्ज माफ किए जाते हैं लेकिन किसानों के कर्ज माफ नहीं किए जाते। मध्यम वर्ग कर दे दे कर बेहाल है लेकिन उसे राहत कहां मिल रही है। सुष्मिता ने कहा कि नोटबंदी और लॉकडाउन सहित सरकार की विनाशकारी नीतियों ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी है। ‘‘यह आर्थिक असमानता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सामाजिक असमानता भी देखें। भाजपा के इतने सांसदों ने संविधान पर चर्चा में अपनी अपनी बात रखी लेकिन मणिपुर पर एक भी सांसद ने कुछ नहीं कहा, सब मौन रहे। पूर्वोत्तर की सांसद होने के नाते मैं मांग करती हूं कि मणिपुर पर मौन के लिए पूर्वोत्तर से सत्ता पक्ष के सभी सांसदों को और मंत्रियों इस्तीफा दे देना चाहिए।’’

उन्होंने कहा ‘‘हम संविधान की 75 साल की गौरवशाली यात्रा पर चर्चा कर रहे हैं लेकिन इस बात का जवाब कौन देगा कि मणिपुर में लोगों के कौन-कौन से संवैधानिक अधिकारों का हनन नहीं हुआ ? मणिपुर के लोगों के हर अधिकार निलंबित कर दिए गए।’’ सुष्मिता ने कहा ‘‘असम में एनआरसी की चर्चा है। क्यों? क्या यह जरूरी है ? आंबेडकर कभी नहीं चाहते थे कि देश में ‘एक देश एक चुनाव’ की अवधारणा हो लेकिन यह सरकार ‘एक देश एक चुनाव’ का विधेयक ले कर आई है।’’ उन्होंने कहा कि ‘एक देश एक चुनाव’ संबंधी विधेयक संघवाद की भावना के विरुद्ध है। 

पूर्व प्रधानमंत्री एवं जद(एस) नेता एचडी देवेगौड़ा ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि संविधान पर चर्चा करने से पहले ‘‘हमें आत्ममंथन करना चाहिए और सोचना चाहिए कि क्या यह चर्चा करना ही सब कुछ है या हम वास्तव में संविधान का पालन कर रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि संविधान के पालन की बदौलत ही देश आज ऊंचाई के इस मुकाम पर पहुंच पाया है और आगे भी यह सफर जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि पहले की तुलना में आज बहुत कुछ बदला है लेकिन अभी बहुत कुछ करना बाकी है। उन्होंने कहा कि समय समय पर संविधान में संशोधन किए गए जिनके बारे में कहा गया कि ये संशोधन जरूरी हैं। ‘‘लेकिन क्या ये संशोधन अपना उद्देश्य पूरा करने में सफल रहे?’’ देवेगौड़ा ने कहा कि किसानों की समस्या का हल निकालना जरूरी है क्योंकि वह देश के अन्नदाता हैं। उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि किसानों से यथाशीघ्र बातचीत कर उनकी समस्याओं का वाजिब समाधान निकाला जाए। चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के सैयद नसीर हुसैन ने कहा कि उन्हें भाजपा नेताओं द्वारा संविधान की उद्देशिका में ‘समाजवाद’ शब्द शामिल करने पर जो आपत्ति है, उसे लेकर हैरत होती है। उन्होंने कहा कि लोगों को भोजन शिक्षा आदि का अधिकार मिले, क्या इससे भाजपा के नेताओं को आपत्ति है? उन्होंने कहा कि कांग्रेस की विभिन्न सरकारों ने देश के विकास के लिए जो संविधान में जो संशोधन किए, उन पर आपत्ति करना बेमानी है। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार को सत्ता का नशा हो गया है और इसी लिए वह निर्वाचित प्रतिनिधियों की खरीद- फरोख्त कर चुनी गयी सरकारों को गिरा रही है। हुसैन ने कहा कि भारत के संविधान में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने की गारंटी दी गयी है। उन्होंने कहा कि ‘‘हम बहुत तेजी से अल्पसंख्यकों से घृणा करने वाले देश बनते जा रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि सत्तारुढ़ दल को अल्पसंख्यकों के बारे में भ्रम फैलाना बंद करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान में सभी को अपने धर्म के अनुसार अपनी मान्यताओं को मानने और पालन करने का अधिकार दिया गया है। कांग्रेस ने कहा कि आज अल्पसंख्यकों की वहीं स्थिति हो गयी है जो दूसरे विश्व युद्ध से पहले जर्मनी में यहूदियों की थी। तृणमूल कांग्रेस की ममता ठाकुर ने चर्चा में भाग लेते हुए अपनी बात बांग्ला में रखी और उन्होंने संविधान के निर्माण में डॉ. भीमराव आंबेडकर की भूमिका की सराहना की।

किसानों को नहीं मिल रहा लाभ

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राष्ट्रीय राजधानी में केंद्र की अनेक कृषि संबंधी योजनाओं को लागू नहीं करने के लिए दिल्ली सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि यह ‘अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण’ है कि यहां के किसानों को महत्वपूर्ण लाभों से वंचित किया जा रहा है। कृषि मंत्री चौहान ने लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य रामवीर सिंह विधूड़ी के पूरक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि दिल्ली सरकार को राजधानी के क्षेत्र में किसानों के फायदे के लिए केंद्र की योजनाओं को लागू करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘मैं दिल्ली सरकार से अनुरोध करता हूं कि किसानों के लाभ के लिए किसान केंद्रित योजनाओं को लागू करे।’’ चौहान ने कहा, ‘‘केंद्र सरकार किसानों को लाभान्वित करने के लिए राज्य सरकारों के साथ समन्वय से काम करती है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली सरकार अनेक केंद्रीय योजनाओं का लाभ नहीं उठा रही है, जिससे किसान प्रभावित होते हैं।’’ उन्होंने कहा कि दिल्ली में जैविक खेती में लगे किसानों को केंद्र से पूरी तरह सहयोग मिलेगा। चौहान ने कहा, ‘‘हम किसानों को जैविक खाद के लिए डीबीटी (प्रत्यक्ष लाभ अंतरण) के माध्यम से सीधे सहायता प्रदान करते हैं। दिल्ली में भी हम जैविक खेती कर रहे किसानों की मदद करेंगे।''

तेजी से बढ़ेगी भारतीय अर्थव्यवस्था

चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाई में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की 5.4 प्रतिशत की वृद्धि दर को अपेक्षा के अनुरूप नहीं बताते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि अर्थव्यवस्था में यह अस्थायी स्थिति है और आने वाली तिमाही में अर्थव्यवस्था बेहतर रफ्तार से बढ़ेगी। सीतारमण ने लोकसभा में वर्ष 2024-25 के लिए अनुदान की अनुपूरक मांगों के प्रथम बैच पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा, ‘‘पिछले तीन साल में देश की औसत जीडीपी दर 8.3 प्रतिशत रही और केवल दो तिमाहियों में यह 5.4 प्रतिशत रही है।’’ उन्होंने वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही की जीडीपी वृद्धि दर को अपेक्षा से कम बताते हुए कहा कि जिस साल भी लोकसभा चुनाव होते हैं तो संसाधनों और जमीनी खर्च अधिक होते हैं और इसके बाद वृद्धि दर भी बढ़ती है। वित्त मंत्री ने कहा कि इस साल की दूसरी तिमारी भारत और दुनिया के कई देशों के लिए चुनौतीपूर्ण रही है। सीतारमण ने कहा, ‘‘सरकार का मानना है कि दूसरी तिमाई में जीडीपी दर का यह स्तर अस्थायी है और अगली तिमाही में अर्थव्यवस्था तेज रफ्तार से बढ़ेगी।’

वित्त मंत्री के जवाब के बाद सदन ने 87,762.56 करोड़ रुपये के सकल अतिरिक्त व्यय के लिए 2024-25 की अनुदान की अनुपूरक मांगों के प्रथम बैच और उससे संबंधित विनियोग (संख्याक-3) विधेयक, 2024 को ध्वनिमत से पारित कर दिया। सीतारमण ने कहा कि पिछले तीन साल की औसत जीडीपी दर 8.3 प्रतिशत को देखें तो इससे दुनिया के कई देशों की जीडीपी की तुलना नहीं की जा सकती और भारत की वृद्धि दर वैश्विक मानकों पर उत्कृष्ट रही है। उन्होंने कहा कि भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है जिसमें जनता के योगदान और सरकार की नीतियों के दो पहिये मिलकर इसे चला रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए 15.02 लाख करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय क्षेत्रीय संपर्क, डिजिटल ढांचे, अवसंरचना आदि क्षेत्रों में कर रही है जो भारत के इतिहास में सबसे अधिक है। उन्होंने कहा कि 23 विनिर्माण क्षेत्रों में से औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के मामले में लगभग आधे मजबूत हैं। सीतारमण ने कहा, ‘‘मैं अर्थव्यवस्था के आगे बढ़ने को लेकर बहुत आशावादी हूं।’’ उन्होंने चर्चा में कुछ सदस्यों के मुद्रास्फीति बढ़ने के दावों को खारिज करते हुए कहा कि खुदरा मुद्रास्फीति कम हुई है जो कोविड के बाद सबसे कम स्तर पर है। उन्होंने कहा, ‘‘हम खाद्य मुद्रास्फीति के बेहतर प्रबंधन के लिए प्रतिबद्ध हैं जिसके लिए मौसम भी एक कारक है।’’ वित्त मंत्री ने कहा कि देश में सब्सिडी वाली दर पर विशेष दुकानों से भारत ब्रांड आटा और दाल समेत अन्य खाद्य उत्पाद सस्ते दाम पर खरीदे जा सकते हैं जहां दाल 60 रुपये प्रति किलोग्राम, आटा 30 रुपये प्रति किलोग्राम और चावल 34 रुपये प्रति किलोग्राम मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि खुदरा मुद्रास्फीति के पिछले 25 साल के ‘पैटर्न’ को देखें तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकारों में यह नियंत्रित रही है जबकि गैर-राजग या संयुक्त प्रगतिशील (संप्रग) की सरकार में यह दहाई अंक में पहुंच गई थी। उन्होंने कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति में भी यही तरीका देखा जा सकता है, वहीं ईंधन मुद्रास्फीति संप्रग-दो की सरकार में 8.9 प्रतिशत से घटकर 2014-2024 में 4.4 प्रतिशत हो गई। सीतारमण ने दावा किया कि भारत के पड़ोसी देशों नेपाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश में जहां एलपीजी सिलेंडर के दाम 1,000 रुपये अधिक हैं, वहीं देश में उज्ज्वला लाभार्थियों के लिए एक रसोई सिलेंडर का मूल्य 503 रुपये तथा गैर-उज्जवला उपभोक्ताओं के लिए (दिल्ली में) इसका प्रभावी दाम 803 रुपये है। बेरोजगारी पर विपक्षी सदस्यों की चिंताओं को खारिज करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के पेरोल के आंकड़ों के अनुसार इस साल पहली छमाही में ईपीएफओ अंशधारकों की संख्या 91.9 लाख बढ़ी है जिसमें दो-तिहाई 18 से 28 वर्ष की उम्र वाले हैं। पश्चिम बंगाल को मनरेगा और पीएम आवास-ग्रामीण योजना के लिए लंबित धन केंद्र की ओर से नहीं दिए जाने के तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों के आरोपों पर वित्त मंत्री ने कहा कि राज्य में मनरेगा के धन के दुरुपयोग की बात साबित हो गई है। उन्होंने कहा कि राज्य में मनरेगा में भ्रष्टाचार रुक जाएगा तो उसका पूरा धन दे दिया जाएगा। उन्होंने काले धन पर रोक लगाने के लिए भी सरकार के अनेक कदम गिनाए और कहा कि 120 मामलों में कार्रवाई की गई है तथा 33,393 करोड़ रुपये की अघोषित संपत्ति का पता चला है। उन्होंने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय पर कई तरह के आरोप लगते हैं, लेकिन उसने बड़े मामलो में 22,280 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की है।

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