ज्ञानपीठ पुरस्कार 2023 का हुआ ऐलान, गुलज़ार और जगद्गुरु रामभद्राचार्य को किया जाएगा सम्मानित

gulzar rambhadra
ANI
अंकित सिंह । Feb 17 2024 6:40PM

चित्रकूट में स्थित, तुलसी पीठ के संस्थापक और प्रमुख, रामभद्राचार्य एक प्रमुख हिंदू आध्यात्मिक गुरु, शिक्षक और 100 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं। जन्म से अंधे होने के बावजूद जगद्गुरु रामभद्राचार्य संस्कृत भाषा और वेद-पुराणों के प्रकांड विद्वान हैं।

प्रसिद्ध उर्दू गीतकार और कवि गुलज़ार और संस्कृत विद्वान जगद्गुरु रामभद्राचार्य को 2023 ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। दोनों शख्सियतें अपने-अपने क्षेत्र में मशहूर हैं। गुलज़ार को वर्तमान समय के बेहतरीन उर्दू कवियों में से एक माना जाता है, जिन्हें हिंदी सिनेमा में उनके काम के लिए सराहना मिली है। इससे पहले उन्हें 2002 में उर्दू के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2013 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार और 2004 में पद्म भूषण सहित अन्य पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त, उन्हें हिंदी सिनेमा में विभिन्न कार्यों के लिए पांच राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिले हैं।

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चित्रकूट में स्थित, तुलसी पीठ के संस्थापक और प्रमुख, रामभद्राचार्य एक प्रमुख हिंदू आध्यात्मिक गुरु, शिक्षक और 100 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं। जन्म से अंधे होने के बावजूद जगद्गुरु रामभद्राचार्य संस्कृत भाषा और वेद-पुराणों के प्रकांड विद्वान हैं। ज्ञानपीठ समिति ने एक बयान में कहा कि वर्ष 2023 के लिए प्रतिष्ठित पुरस्कार दो भाषाओं के प्रसिद्ध लेखकों, संस्कृत साहित्य के जगद्गुरु रामभद्राचार्य और प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार श्री गुलज़ार को देने का निर्णय लिया गया है। 2022 में गोवा के लेखक दामोदर मौजो को इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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आपको बता दें कि ज्ञानपीठ पुरस्कार सबसे पुराना और सर्वोच्च भारतीय साहित्यिक पुरस्कार है जो किसी लेखक को उनके "साहित्य के प्रति उत्कृष्ट योगदान" के लिए प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है। 1961 में स्थापित, यह पुरस्कार केवल भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में लिखने वाले भारतीय लेखकों को दिया जाता है। 1965 से 1981 तक, यह पुरस्कार लेखकों को उनके "सबसे उत्कृष्ट कार्य" के लिए दिया जाता था और इसमें एक प्रशस्ति पट्टिका, एक नकद पुरस्कार और ज्ञान की हिंदू देवी, सरस्वती की एक कांस्य प्रतिकृति शामिल थी। इस पुरस्कार के पहले प्राप्तकर्ता मलयालम लेखक जी. शंकर कुरुप थे, जिन्हें 1965 में उनके कविताओं के संग्रह के लिए यह पुरस्कार मिला था।

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