Shaurya Path: India-Maldives, Russian Army, India-Iran और Indian Navy से संबंधित मुद्दों पर Brigadier Tripathi से वार्ता

Brigadier DS Tripathi
Prabhasakshi

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि मुइज्जु ने पद संभालने के बाद अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत नयी दिल्ली की यात्रा नहीं की थी। वह सबसे पहले तुर्किये गए और फिर जनवरी में अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिए चीन को चुना।

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह भारत और मालदीव के सुधरते संबंधों, रूस-यूक्रेन युद्ध, ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता के भारत के बारे में दिये गये बयान और नौसेना कमांडरों के सम्मेलन से जुड़े मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार-

प्रश्न-1. मालदीव के विदेश मंत्री मूसा जमीर ने स्वीकार किया है कि राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के नेतृत्व वाली सरकार के शुरुआती दिनों में भारत-मालदीव संबंध कठिन दौर से गुजरे, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि दोनों देशों ने ‘गलतफहमियां’ दूर कर ली हैं। इसे कैसे देखते हैं आप?

उत्तर- दोनों देशों के संबंधों में सुधार इसलिए आ रहा है क्योंकि मालदीव के राष्ट्रपति को चीन की हकीकत और भारत की अहमियत समझ में आ गयी है। उन्होंने कहा कि इसीलिए मालदीव के विदेश मंत्री मूसा जमीर ने स्वीकार किया है कि राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के नेतृत्व वाली सरकार के शुरुआती दिनों में भारत-मालदीव संबंध कठिन दौर से गुजरे, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि दोनों देशों ने ‘गलतफहमियां’ दूर कर ली हैं। उन्होंने कहा कि अब मालदीव के मंत्री चीन और भारत सहित अन्य प्रमुख सहयोगियों के साथ अच्छे रिश्ते कायम करने के महत्व पर जोर दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि मालदीव के विदेश मंत्री ने श्रीलंका यात्रा के दौरान बयान दिया है कि भारत के साथ संबंधों में चुनौतियों का सामना करना पड़ा, खास तौर पर मालदीव से भारतीय सैनिकों की एक छोटी टुकड़ी हटाने के राष्ट्रपति मुइज्जू के अभियान के बाद से। उन्होंने कहा कि मालदीव के विदेश मंत्री ने साथ ही यह भी कहा है कि मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी के बाद दोनों देशों के बीच ‘गलतफहमियां’ दूर हो गई हैं।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मुइज्जू को चीन के प्रति झुकाव रखने के लिए जाना जाता है। उनके राष्ट्रपति पद पर काबिज होने के बाद भारत-मालदीव संबंध में खटास पैदा होने लगी। शपथ लेने के कुछ ही घंटों के भीतर मुइज्जू ने भारत से मालदीव को उपहार में दिए गए तीन सैन्य प्लेटफॉर्म पर तैनात भारतीय सैनिकों को वापस बुलाने की मांग की थी। दोनों पक्षों के बीच बातचीत के बाद भारतीय सैनिकों की जगह वहां तकनीकी कर्मियों की तैनाती की गई थी। उन्होंने कहा कि मालदीव के तीन उप मंत्रियों द्वारा सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी किये जाने के बाद दोनों देशों के रिश्तों में तनाव और बढ़ गया था हालांकि मालदीव के विदेश मंत्रालय ने खुद को इन टिप्पणियों से अलग कर लिया था और बाद में, ये तीनों मंत्री भी निलंबित कर दिए गए।

ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि मुइज्जु ने पद संभालने के बाद अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत नयी दिल्ली की यात्रा नहीं की थी। वह सबसे पहले तुर्किये गए और फिर जनवरी में अपनी पहली राजकीय यात्रा के लिए चीन को चुना। वह नौ जून को नयी दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि अब मुइज्जू के प्रवक्ता ने कहा है कि राष्ट्रपति ‘बहुत जल्द’ भारत की आधिकारिक यात्रा पर जाएंगे। उन्होंने कहा कि श्रीलंका यात्रा के दौरान मालदीव के विदेश मंत्री ने अपने देश के समक्ष मौजूद वर्तमान आर्थिक चुनौतियों को ‘अस्थाई’ करार दिया। उन्होंने कहा कि मालदीव के विदेश मंत्री ने मालदीव सरकार के आईएमएफ से बाहरी सहायता मांगे बिना वित्तीय स्थिति से निपटने के प्रति आश्वस्त होने का संकेत देते हुए कहा, ‘‘हमारे द्विपक्षीय साझेदार हैं, जो हमारी जरूरतों और हमारी स्थिति के प्रति बहुत संवेदनशील हैं।’’ उन्होंने कहा कि मालदीव के विदेश मंत्री ने परोक्ष रूप से चीन और भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती का भी उल्लेख किया और कहा कि ये देश मालदीव का समर्थन करने में महत्वपूर्ण रहे हैं। उन्होंने कहा कि मालदीव के विदेश मंत्री की यह टिप्पणी मालदीव की वित्तीय स्थिति के बारे में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की चेतावनियों के मद्देनजर आई है। उन्होंने कहा कि मालदीव पर इस समय 40.9 करोड़ अमेरिकी डॉलर का कर्ज है। देश का मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार 44.4 करोड़ अमेरिकी डॉलर का है।

प्रश्न-2. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी सेना के विस्तारीकरण की बड़ी योजना पेश की है इसे कैसे देखते हैं आप और रूस-यूक्रेन संघर्ष अब किस मोड़ पर है?

उत्तर- ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने देश की सशस्त्र सेनाओं का विस्तार करना चाहते हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि उनकी महत्वाकांक्षाएं रूस की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि क्रेमलिन द्वारा प्रकाशित एक आदेश के अनुसार, सोमवार को पुतिन ने सेना को अपने सैनिकों की संख्या में 180,000 की वृद्धि करने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि इससे रूसी सैन्य कर्मियों की कुल संख्या 2.38 मिलियन हो जाएगी, जिसमें से 1.5 मिलियन सक्रिय सैनिक होंगे। उन्होंने कहा कि दिसंबर में प्रभावी होने वाला यह विस्तार रूस को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना बना देगा, जो केवल चीन से पीछे और अमेरिका और भारत से आगे है। उन्होंने कहा कि फरवरी 2022 में रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद से पुतिन ने पहली बार सेना का विस्तार करने की कोशिश नहीं की है। रूसी नेता ने अगस्त 2022 में 137,000 सैनिकों की वृद्धि का आदेश दिया था उसके बाद दिसंबर 2023 में 170,000 की वृद्धि की। उन्होंने कहा कि यह वृद्धि रूस की चल रही युद्ध योजना के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि रूस का मानना है कि वह 2025 तक मौजूदा सैन्य और उपकरण घाटे को सहन कर सकता है, इस विश्वास के साथ कि "जीत 2026 तक हासिल की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि 2026 के बाद, रूस के पास टैंक और बख्तरबंद लड़ाकू वाहनों का मौजूदा स्टॉक खत्म होने लगेगा और उसे नए उत्पादन पर निर्भर रहना होगा। उन्होंने कहा कि इससे यह सवाल उठता है कि रूस अपनी बड़ी सेना को कैसे संसाधन दे सकता है, जबकि वह पहले से ही तनाव में है। उन्होंने कहा कि सवाल उठता है कि "संसाधन कहां से आएंगे? भर्ती कैसे काम करेगी?" उन्होंने कहा कि सेना में वृद्धि रूस के लिए खतरनाक समय पर हुई है क्योंकि उसे यूक्रेन में अपने सैन्य उद्देश्यों को युद्ध के कारण अपनी अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव के साथ संतुलित करना है।

प्रश्न-3. ईरान के सर्वोच्च नेता इजराइल से भिड़ने की बात कर रहे थे मगर अचानक उन्होंने अपनी जुबानी बंदूक का रुख भारत की ओर मोड़ दिया। आखिर इसके क्या कारण हो सकते हैं?

उत्तर- ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ईरान के सर्वोच्च नेता सैयद अली हुसैनी खामेनेई ने सोमवार को गाजा और म्यांमार के साथ भारत को भी उन जगहों में शामिल किया, जहां मुसलमान पीड़ित हैं। उन्होंने कहा कि इस पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत ने टिप्पणियों की “कड़ी निंदा” की और उन्हें “गलत सूचना” और “अस्वीकार्य” बताया। उन्होंने कहा कि X पर एक पोस्ट में खामेनेई ने कहा, “हम खुद को मुसलमान नहीं मान सकते अगर हम म्यांमार, गाजा, भारत या किसी अन्य स्थान पर एक मुसलमान द्वारा झेली जा रही पीड़ा से अनजान हैं।” उन्होंने कहा कि इसके कुछ घंटों बाद, विदेश मंत्रालय ने “ईरान के सर्वोच्च नेता द्वारा की गई अस्वीकार्य टिप्पणियों पर वक्तव्य” शीर्षक से एक तीखे शब्दों वाला बयान जारी किया। उन्होंने कहा कि इसमें कहा गया, “हम ईरान के सर्वोच्च नेता द्वारा भारत में अल्पसंख्यकों के बारे में की गई टिप्पणियों की कड़ी निंदा करते हैं। ये गलत सूचना अस्वीकार्य है। अल्पसंख्यकों पर टिप्पणी करने वाले देशों को सलाह दी जाती है कि वे दूसरों के बारे में कोई भी टिप्पणी करने से पहले अपना रिकॉर्ड देखें।” उन्होंने कहा कि संयोग से, खामेनेई की यह टिप्पणी महसा अमिनी की मृत्यु की दूसरी वर्षगांठ पर आई है। 22 वर्षीय ईरानी महिला को हिजाब के खिलाफ़ प्रदर्शन करने के लिए गिरफ़्तार किया गया था और पुलिस हिरासत में पीट-पीटकर मार डाला गया था, जिसके बाद ईरान में आक्रोश फैल गया और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। उन्होंने कहा कि हालाँकि यह पहली बार नहीं है जब ईरान के आध्यात्मिक नेता ने भारत को एक ऐसी जगह बताया है जहाँ मुसलमान पीड़ित हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उन्हें यह टिप्पणी करने के लिए किस बात ने उकसाया। उन्होंने कहा कि मार्च 2020 में, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के दंगों की आलोचना के बाद, खामेनेई ने दंगों को “मुसलमानों का नरसंहार” कहा था और भारत से “कट्टरपंथी हिंदुओं और उनकी पार्टियों” के खिलाफ कार्रवाई करने का आह्वान किया था ताकि इसे “इस्लाम की दुनिया से अलग-थलग” होने से रोका जा सके। उन्होंने कहा कि खामेनेई, जो 1989 से ईरान के आध्यात्मिक नेता हैं, उन्होंने उस समय ट्वीट किया था: “भारत में मुसलमानों के नरसंहार से पूरी दुनिया के मुसलमानों का दिल दुखी है। भारत सरकार को चरमपंथी हिंदुओं और उनकी पार्टियों का सामना करना चाहिए और मुसलमानों के नरसंहार को रोकना चाहिए ताकि भारत को इस्लाम की दुनिया से अलग-थलग होने से रोका जा सके।” इसके बाद उन्होंने हैशटैग के साथ ट्वीट का समापन किया: #IndianMuslimslnDanger। उन्होंने कहा कि इसके अलावा अगस्त 2019 में, सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के दो सप्ताह बाद, खामेनेई ने कश्मीर में मुसलमानों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि ईरानी नेता ने उस समय ट्वीट किया था, "हम कश्मीर में मुसलमानों की स्थिति के बारे में चिंतित हैं। भारत के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं, लेकिन हम उम्मीद करते हैं कि भारत सरकार कश्मीर के महान लोगों के प्रति न्यायपूर्ण नीति अपनाएगी और इस क्षेत्र में मुसलमानों के उत्पीड़न और उत्पीड़न को रोकेगी।" उन्होंने कहा कि हालांकि भारत ने उनकी टिप्पणियों को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, तेहरान ने आखिरी बार 2002 के गुजरात दंगों और एक दशक पहले 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद भारत की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि 1992, 2002 और 2020 ऐसे क्षण हैं जब खामेनेई ने भारतीय मुसलमानों पर बात की, उन्होंने कई बार कश्मीर का मुद्दा उठाया है, आखिरी बार अगस्त 2019 में।

प्रश्न-4. नौसेना के शीर्ष कमांडरों के सम्मेलन में गहरा मंथन हो रहा है। आखिर भारत के समक्ष कौन-सी प्रमुख समुद्र सुरक्षा चुनौतियां खड़ी हैं?

उत्तर- नौसेना के शीर्ष कमांडरों ने चार दिवसीय सम्मेलन में हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति समेत समुद्री सुरक्षा चुनौतियों की व्यापक समीक्षा की है। उन्होंने कहा कि कमांडरों ने लाल सागर और आसपास के इलाकों की समग्र स्थिति पर भी विचार-विमर्श किया होगा, जहां कुछ हफ्ते पहले तक हूती आतंकवादियों ने मालवाहक जहाजों पर कई हमले किए थे। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में परिचालन तैयारियों की व्यापक समीक्षा, नौसेना की क्षमता बढ़ाने की योजना पर चर्चा, स्वदेशीकरण के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को बढ़ावा देने और नौसैनिक बलों की युद्धक दक्षता को साकार करने पर जोर दिया गया होगा। उन्होंने कहा कि सम्मेलन में सरकार की सैन्य ‘थियेटर’ बनाने की महत्वाकांक्षी योजना पर भी प्रमुखता से विचार-विमर्श किया गया है। उन्होंने कहा कि नौसेना के कमांडर का सम्मेलन शीर्ष स्तर का द्विवार्षिक आयोजन है जिसमें महत्वपूर्ण रणनीतिक, परिचालन और प्रशासनिक मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया। उन्होंने कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय अपेक्षाओं से संबंधित विषयों पर कमांडरों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि सेना और वायु सेना के प्रमुखों के साथ प्रमुख रक्षाध्यक्ष (सीडीएस) ने तीनों सेनाओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देने और सैन्य ‘थियेटर’ गठित करने की दिशा में एकरूपता के लिए नौसेना अधिकारियों के साथ बातचीत की। उन्होंने कहा कि सम्मेलन की शुरुआत नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी के उद्घाटन भाषण से हुई।

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