LoC पर PoK से चंद मीटर की दूरी पर PM Modi ने लगवा दिया India's 1st Post Office का बोर्ड

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डाकपाल शाकिर भट के मुताबिक यह डाकघर 1947 से ही सक्रिय है और इसने कभी भी अपनी सेवाएं बंद नहीं कीं। शाकिर भट ने कहा, ''युद्धविराम (2021 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ समझौता) से पहले बाहर जाना, डाक पहुंचाना या डाक उठाना बहुत जोखिम भरा काम था।

कुछ साल पहले तक देश के सीमावर्ती गांव विकास के लिए तो तरसते ही थे साथ ही आखिरी गांव का जो ठप्पा उन पर लगा हुआ था उससे भी वह परेशान रहते थे। लेकिन समय बदला और सीमावर्ती गांवों तक विकास पहुँचने लगा और जिन गांवों के बाहर कल तक आखिरी गांव का बोर्ड लटका रहता था आज वहां पहले गांव का बोर्ड लगा दिखाई देता है। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी सीमा से सटे भारतीय गांवों की बात करें तो यहां हाल के वर्षों में अभूतपूर्व विकास हुआ है और सुविधाएं भी बढ़ायी गयी हैं। अब सरकार का जो नया फैसला आया है उसके तहत जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलओसी) के पास किशनगंगा नदी के तट पर स्थित पिन कोड संख्या-193224 वाले डाकघर को भारत के 'पहले' डाकघर के रूप में जाना जाएगा। हम आपको बता दें कि यह डाकघर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से चंद मीटर की दूरी पर स्थित है। हाल तक इसे देश के आखिरी डाकघर के रूप में जाना जाता था। लेकिन, अब इसके पास लगे साइनबोर्ड पर इसे 'भारत का पहला डाकघर' बताया गया है, क्योंकि दूरी के मामले में यह एलओसी या सीमा से पहला डाकघर है।

इस बारे में डाक विभाग के बारामूला मंडल के अधीक्षक अब्दुल हामिद कुमार ने कहा, ‘‘पहले इसे देश के अंतिम डाकघर के रूप में जाना जाता था, क्योंकि हम इसके आगे डाक सामग्री की आपूर्ति नहीं कर सकते। फिर, सेना ने इसे देश के पहले डाकघर का नाम दिया क्योंकि दूरी के मामले में एलओसी या सीमा से यह पहला डाकघर है।’’ दूसरी ओर, गांव के लोगों का कहना है कि डाकघर भारत की आजादी या पाकिस्तान के अस्तित्व में आने से पहले से ही काम कर रहा था। बताया जाता है कि यह डाकघर 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध अथवा लगातार सीमा पार से हुई गोलाबारी की घटनाओं के दौरान भी संदेश पहुंचाने का काम करता रहा।

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डाकपाल शाकिर भट के मुताबिक यह डाकघर 1947 से ही सक्रिय है और इसने कभी भी अपनी सेवाएं बंद नहीं कीं। शाकिर भट ने कहा, ''युद्धविराम (2021 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ समझौता) से पहले बाहर जाना, डाक पहुंचाना या डाक उठाना बहुत जोखिम भरा काम था। आज हम शांति महसूस कर रहे हैं और हम चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच शांति बनी रहे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे 1992 में डाक विभाग में नियुक्त किया गया था। वर्ष 1993 की बाढ़ के बाद, डाकघर मेरे घर से काम कर रहा है।’’ शाकिर भट ने कहा कि उन्हें घर से डाकघर संचालित करने के लिए कोई किराया नहीं मिलता है और वह कोई किराया नहीं मांग रहे हैं। हम आपको यह भी बता दें कि वर्ष 1993 में केरन सेक्टर में आई बाढ़ में यह डाकघर भी बह गया था। 

बहरहाल, हम आपको यह भी बता दें कि संघर्षविराम के चलते सीमावर्ती क्षेत्रों के लोगों को अब जब तब अपने परिवार और कीमती सामान को लेकर बंकरों में नहीं भागना पड़ता है। संघर्षविराम के चलते सीमावर्ती क्षेत्रों के किसानों को अपनी फसल की देखरेख करने में भी आसानी होती है और गोलाबारी के चलते उनकी फसल को कोई नुकसान नहीं पहुँचता है। साथ ही सीमावर्ती क्षेत्रों को जिस तरह विकसित किया जा रहा है उससे यहां पर्यटक भी आ रहे हैं जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर मिल रहे हैं।

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