सीबीआई को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच टकराव की स्थिति ! नया कानून बनाए जाने की जरूरत
सीबीआई के प्रमुख प्रवक्ता रहे एस एम खान ने कहा कि राज्यों द्वारा सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस लेना कोई नयी घटना नहीं है। जब से सीबीआई का गठन हुआ तभी से यह चला आ रहा है।
फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की गुत्थी को सुलझाने का जिम्मेदारी उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई को सौंपी, जिसके बाद वह मामले की जांच में जुटे गए और सबूत खंगालने लगे। हालांकि, महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई को केस सौंपे जाने का विरोध किया था लेकिन उच्चतम न्यायालय द्वारा आदेश दिए जाने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने इसका विरोध नहीं किया। बाद में खबर आई कि महाराष्ट्र सरकार ने प्रदेश में सीबीआई को जांच के लिए दी गई आम सहमति को वापस ले लिया है।
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महज महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि राजस्थान, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, केरल, मणिपुर, मिजोरम और झारखंड ने भी सीबीआई को जांच करने की पहले दी गई आम सहमति को वापस ले लिया है। जिसकी वजह से केंद्र और राज्य सरकारों के बीच टकराव काफी बढ़ सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जांच सहमति वापस लिए जाने के पीछे राज्य सरकारों का तर्क है कि उनके पास विशेष अधिकार होता है। वहीं, राज्य सरकार लगातार आरोप लगाते रहते हैं कि केंद्र सरकार सरकारी एजेंसियों (सीबीआई भी इसमें शामिल है) का गलत इस्तेमाल करती है। जबकि केंद्र सरकार का कहना है कि सीबीआई एक स्वतंत्र जांच संस्था है और उनके कामकाज में हमारा कोई दखल नहीं है।
सीबीआई को सशक्त बनाने का सही वक्त
राज्यों द्वारा मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस लेने की ताजा घटनाओं की पृष्ठभूमि में सीबीआई मामलों के विशेषज्ञ एस एम खान का कहना है कि इस चलन पर रोक लगाने के लिए सीबीआई को वैधानिक शक्तियां प्रदान कर इसके दायरे को राष्ट्रव्यापी बनाए जाने की जरूरत है। सीबीआई मामलों के विशेषज्ञ और पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के प्रेस सचिव रह चुके एस एम खान ने कहा निर्वाचन आयोग की तर्ज पर सीबीआई को वैधानिक शक्तियां प्रदान कर उसे स्वायत्त स्वरूप देने का यह सही वक्त है क्योंकि केंद्र में सत्तासीन भाजपा के पास लोकसभा और राज्यसभा दोनों में बहुमत है और अधिकांश राज्यों में भी उसकी सरकारें हैं।
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समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में सीबीआई के प्रमुख प्रवक्ता रहे खान ने कहा, ‘‘राज्यों द्वारा सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस लेना कोई नयी घटना नहीं है। जब से सीबीआई का गठन हुआ तभी से यह चला आ रहा है। पहले तो एक ही पार्टी की सरकारें रहा करती थीं। केंद्र और राज्यों में भी। सारी ही सरकारें सीबीआई को जांच की मंजूरी देती रहीं। इस प्रकार सीबीआई बिना रोकटोक के राज्यों में भी काम करती रही।’’
उन्होंने बताया कि बाद में परिस्थितियां बदलीं और गैर-कांग्रेसी सरकारें भी बनने लगीं और तभी से यह समस्या शुरू हुई और कुछ राज्यों ने सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस ले ली। उन्होंने कहा, ‘‘समस्या है सीबीआई का कानून। सीबीआई, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (डीएसपीई एक्ट) के अधीन काम करती है। इसके तहत सीबीआई का दायरा दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेशों तक ही सीमित है।’’
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सीबीआई को सौंपे जाने लगे आपराधिक मामले
उन्होंने कहा कि बाद में सीबीआई को विशेष अपराध के महत्वपूर्ण मामले भी सौंपे जाने लगें। फिर सीबीआई के पास आतंकवाद के मामले और फिर आर्थिक अपराध के मामले भी आने लगे। ऐसे मामलों में विवेकाधिकार राज्य सरकारों का होता है। या फिर उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय हस्तक्षेप करते हुए किसी मामले को सीबीआई को सौंप दे तो वह उसकी जांच करती है। उन्होंने कहा, ‘‘इस प्रकार के मामले राज्यों पर निर्भर होते हैं कि वह सीबीआई को सौंपा जाए या नहीं। इसी को लेकर विवाद होता है। इसके बाद केंद्र पर निर्भर है कि वह राज्य सरकार की संस्तुति को मंजूर करे या ना करे।’’
खान ने कहा कि सबसे बढ़िया ये हो सकता है कि ऐसा कानून बनाया जाए जो सीबीआई को पूरे भारत वर्ष में काम करने का अधिकार प्रदान करे। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा कानून बनता है तो सीबीआई राज्य सरकारों के रहमो करम पर नहीं रहेगी। अपने कानून के तहत अपनी कार्रवाई करेगी। नहीं तो ये समस्या बरकरार रहेगी।’’
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