Birthday Special: कश्मीर के छोटे गांव से निकलकर राजनीति में बनाई अपनी अगल पहचान, गुलाम नबी आजाद के पीएम मोदी भी रहे प्रशंसक

Ghulam Nabi Azad
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ग़ुलाम नबी आज़ाद ने न सिर्फ कांग्रेस पार्टी को अपने काम से अपना मुरीद बनाया, बल्कि उन्होंने विपक्षी पार्टियों पर भी अपनी गहरी छाप छोड़ी। कश्मीर के एक छोटे से गांव से होने के बाद भी आजाद जिस मुकाम तक पहुंचे वह कई लोगों के लिए प्रेरणा है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ग़ुलाम नबी आज़ाद राजनीति में शालीनता और कुशलता की मिसाल हैं। अनुभवी नेता गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस पार्टी से किनारा कर लिया है। आपको बता दें कि कांग्रेस पार्टी से गुलाम नबी आजाद का काफी पुराना रिश्ता रहा है। मनमोहन सिंह की सरकार के पहले कार्यकाल में ग़ुलाम नबी आज़ाद ने संसदीय कार्य मंत्री की जिम्मेदारी संभाली थी। बताया जाता है कि गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस कमेटी के सचिव के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की थी। इसके बाद वह अपने काम करने के अंदाज से लोगों को अपना मुरीद बनाने लगे और साल दर साल राजनीति में बेहतर मुकाम हासिल करते चले गए। बता दें कि इस कद्दावर और वरिष्ठ नेता का 7 मार्च को जन्मदिन है। आइए उनके जन्मदिन पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...

जन्म और शिक्षा

जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले के सोती गांव में 7 मार्च 1949 को ग़ुलाम नबी आज़ाद का जन्म हुआ था। ग़ुलाम नबी के पिता का नाम रहमतुल्लाह बट्ट और मां का नाम वासा बेगम था। उन्होंने सोती गांव से ही अपनी शुरूआती शिक्षा पूरी की थी। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए जम्मू आ गए और गांधी मेमोरियल कालेज से सांइस विषय में डिग्री हासिल की। साल 1972 में गुलाम आजाद ने कश्मीर विश्वविद्यालय से जूलोजी में मास्टर ऑफ साइंस पूरा किया।। बता दें कि यूनिवर्सिटी के समय से वह राजनीति में काफी इंट्रेस्ट रखते थे। 

राजनीतिक सफर

साल 1973 में गुलाम नबी ने अपने राजनीतिक जीवन की पहली सीढ़ी चढ़ी थी। इस दौरान उन्होंने भालेसा में ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के सचिव के तौर पर काम करना शुरू किया था। गुलाम नबी ने अपने काम करने के अंदाज से कांग्रेस को अपना मुरीद बना लिया। इसी के चलते उन्हें जम्मू और कश्मीर प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। जिसके बाद साल 1980 में गुलाम नबी को अखिल भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष के पद से नवाजा गया। साल 1980 उनके राजनीतिक जीवन में एक अहम मोड़ लेकर आया। इस साल वह महाराष्ट्र में वाशिम निर्वाचन क्षेत्र से 1980 में पहला संसदीय चुनाव लड़ने के लिए पार्टी की ओर से मैदान में उतरे। जहां पर उन्होंने शानदार जीत हासिल की और 1982 में केंद्रीय मंत्री के तौर पर कैबिनेट में शामिल हुए। 

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साल 2005 में बने थे सीएम

वहीं साल 1984 में गुलाम नबी आठवीं लोकसभा के लिए चुने गए। ग़ुलाम नबी आज़ाद ने पी. वी. नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान संसदीय कार्य और नागरिक उड्डयन मंत्रालयों का प्रभार संभाला। इस नेता के जीवन में साल 2005 राजनीतिक सफर के तौर पर स्वर्णिम युग बनकर आया। नवंबर 2005 को ग़ुलाम नबी ने जम्मू और कश्मीर के सीएम के रूप में शपथ ली। इसके बाद वह लगातार कामयाबी की सीढ़ी चढ़ते गए। बता दें कि आजाद की अगुवाई में कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में 21 सीटों पर शानदार जीत हासिल की। जिसके बाद इस राज्य में कांग्रेस दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनकर उभरी।

एक फैसले से शुरू हुआ विरोध

गुलाम नबी की सरकार ने 2008 में एक हिंदू मंदिर के बोर्ड में भूमि हस्तांतरण करने की योजना का ऐलान किया। वहीं उनकी सरकार के इस निर्णय ने मुसलमानों को बेहद नाराज किया और उनका विरोध होना शुरू हो गया। इस दौरान हिंसा भी हुई जिसमें 7 लोग मारे गए। जिसके बाद जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के एक गठबंधन दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। वहीं अपनी सरकार को बनाए रखने का प्रयास करने के बजाय गुलाम नबी ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद जब वह मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री बनें तो उन्होंने जम्मू-कश्मीर के लिए कई अहम फैसले लिए। गुलाम नबी ने जम्मू में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल का काम शुरू करवाने के अलावा पांच नए मेडिकल कालेज, दो कैंसर इंस्टीटयूट की स्थापना करवाई।

4 PM के मंत्रिमंडल में किया काम

हालांकि साल 2014 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो यूपीए को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन इस दौरान भी गुलाम नबी अपनी अहमियत बनाए रखने में सफल रहे। इस दौरान पार्टी की ओर राज्यसभा में उन्हें नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई। बता दें कि उन्होंने 4 प्रधानमंत्रियों के मंत्रिमंडल में काम किया। 1980 में इंदिरा गांधी सरकार में वह कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री रहे और फिर सूचना और तकनीकी मंत्रालय में उपमंत्री के तौर पर जिम्मेदारी संभाली। वहीं राजीव गांधी की सरकार में वह संसदीय मामलों के राज्यमंत्री, गृह राज्यमंत्री और खाद्य आपूर्ति राज्यमंत्री बनें। इसके बाद नरसिम्हा राव सरकार में संसदीय मामलों, नागरिक उड्डयन और पर्यटन मंत्री का पद संभाला। फिर गुलाम नबी आजाद ने मनमोहन सिंह की सरकार में पहले संसदीय मामलों और फिर शहरी विकास मंत्री बनें। 

शौक

गुलाम नबी को शेर-ओ-शायरी के अलावा बगीचे का शौक है। उनका बगीचे को लेकर शौक इतना ज्यादा है कि पीएम मोदी ने भी राज्यसभा में एक बार इसका जिक्र किया था। पीएम मोदी ने उस दौरान कहा था कि आजाद ने तो दिल्ली में ही कश्मीर बना रखा है। इसके पीछे का कारण शायद उनका कश्मीर से लगाव था। गुलाम नबी ने एक बार बताया था कि वह रिटायर होने से पहले अपने मुल्क यानि की कश्मीर लौटना चाहते हैं। शायद यही वजह है कि उन्होंने दिल्ली के बगीचे में काफी मेहनत की थी।

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