भुवनेश्वर कलिता: गांधी परिवार के वफादार और अहमद पटेल के सहयोगी, भाजपा का क्यों थामा दामन
कालिता ने इस्तीफा ऐसे समय पर दिया था जब मोदी सरकार ने उच्च सदन में जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा देने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने और डाउनग्रेड करने के लिए विधेयक पेश किया था। भाजपा में आने से पहले कालिता असम कांग्रेस में लगभग सभी पदों पर रहे।
भुवनेश्वर कलिता एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता और नेता हैं। साल 2014 में जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भुवनेश्वर कलिता को राज्यसभा के लिए एक बार फिर से नामित किया, तो असम में उनके पार्टी सहयोगियों को काफी हैरानी हुई। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को छोड़कर पार्टी ने कभी भी असम के किसी भी नेता को तीन बार से अधिक राज्यसभा नहीं भेजा था। कालिता को फिर से नामित करने के खिलाफ गांधी परिवार पर काफी दबाव भी बनाया गया था लेकिन फिर भी उन्होंने लंबे समय से गांधी परिवार के वफादार के पक्ष में फैसला सुनाया। पांच साल बाद, 5 अगस्त 2019 को कालिता ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और उसके चार दिन बाद वह भाजपा में शामिल हो गए।
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कालिता ने इस्तीफा ऐसे समय पर दिया था जब मोदी सरकार ने उच्च सदन में जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा देने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने और डाउनग्रेड करने के लिए विधेयक पेश किया था। भाजपा में आने से पहले कालिता असम कांग्रेस में लगभग सभी पदों पर रहे। उन्हें दिवंगत अहमद पटेल का करीबी माना जाता है, जो गांधी परिवार के बाद कांग्रेस में सबसे प्रभावशाली नेता थे।छात्र कार्यकर्ता के रूप में भुवनेश्वर कलिता ने अपने करियर की शुरूआत की। वह अल्मा मेटर कॉटन में छात्र संघके पदाधिकारी रहे। कालिता एक दशक से अधिक समय तक असम कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। वह प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष थे और एक बार विधायक, मंत्री, लोकसभा सांसद और कांग्रेस से चार बार राज्यसभा सांसद रहे। वह पहली बार 1984 में 33 साल की उम्र में राज्यसभा के लिए चुने गए थे। बता दें कि, वह उस समय प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। साल 2004 से 2014 तक यानि की दस वर्षों तक कालिता असम कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।
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