Aung San Suu Kyi Birthday: म्यांमार की आयरन लेडी मानी जाती हैं आंग सान सू की, मानवाधिकारों के लिए उठाई आवाज

Aung San Suu Kyi Birthday
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हार न मानने वाली और संघर्ष करने वाली आंग सान सू की आज 19 जून को 79वां जन्मदिन मना रही हैं। नाराज लोकतंत्र के पदाधिकारियों ने उनको सताने और डराने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा है।

म्यांमार की लौह महिला माने जाने वाली आंग सान सू की आज यानी की 19 जून को अपना 79वां जन्मदिन मना रही हैं। उन्होंने देश के लोगों के अधिकारों के लिए हमेशा अपनी आवाज को बुलंद किया है। हार न मानने वाली और संघर्ष करने वाली आंग सान सू की को नोबेल पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। वहीं नाराज लोकतंत्र के पदाधिकारियों ने उनको सताने और डराने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा है। नाराज लोकतंत्र के पदाधिकारी लगातार आंग सान सू की पर जुल्म ढाते रहे हैं। तो आइए जानते हैं इनके जन्मदिन के मौके पर आंग सान सू की के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

जन्म और परिवार

रंगून में 19 जून 1945 को आंग सान सू की का जन्म हुआ था। इनका परिवार हमेशा से म्यांमार के लिए समर्पित रहा था। आंग सान सू की के पिता ने आधुनिक बर्मी सेना बनाई थी और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका का साथ दिया था। वह हमेशा बर्मा की आजादी की मांग करते थे। जिसके कारण उनके दुश्मनों ने आंग सान सू की के पिता की हत्या कर दी थी। बता दें कि उस दौरान म्यांमार को बर्मा के नाम से जाना जाता था।

पिता की मृत्यु के समय आंग सान सू की महज दो साल की थी। पिता का साया सिर से उठने के बाद उनकी मां ने इनका पालन-पोषण किया। आंग सान की मां भी म्यांमार की राजनीति का एक अहम चेहरा हुआ करती थीं। वहीं साल 1960 में उनकी मां भारत और नेपाल में बर्मा की राजदूत थीं। दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से आंग सान की पढ़ाई हुई। फिर साल 1964 में राजनीति विज्ञान से ग्रेजुएशन पूरा किया। वहीं आगे की पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड का रुख किया।

मानवाधिकारों की पैरोकार

आंग सान सू की को म्यांमार की मानवाधिकारों की पैरोकार माना जाता था। लेकिन उनका सफर काफी मुश्किलों भरा रहा। आंग सान ने कम उम्र में ही दूसरों के अधिकारों के प्रति आवाज उठाने और अपनी जान की बाजी लगानी शुरूकर दी थी। वर्तमान समय में आंग सान सू की जेल में बंद हैं। जितने अधिक लोग इनकी आलोचना करते हैं, उससे कहीं ज्यादा लोग इनके प्रशंसक हैं। आंग सान ने न्यूयॉर्क में रहकर संयुक्त राष्ट्र में तीन साल तक काम किया। 

कुछ सालों बाद जब वह म्यांमार वापस आईं तो यहां पर सेना की तानाशाही को देखकर काफी ज्यादा परेशान हुईं। फिर उन्होंने निर्णय लिया कि वह न्याय और अधिकारों के लिए आवाज उठाएंगी। आंग सान सू की ने लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथों में लिया। जिसके कारण उनके विदेश जाने पर भी पाबंदी लगा दी गई। इस पाबंदी के कारण वह अपने पति के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो सकी थीं।

नोबेल शांति पुरस्कार

आंग सान को उनके संघर्ष के लिए साल 1991 में शांति के नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया। उस दौरान वह नजरबंद थीं, जिस कारण वह यह पुरस्कार ले न सकी थीं। बाद में दुनियाभर से उनको रिहा किए जाने की मांग बढ़ी तो म्यांमार पर भी दबाव आने लगा। वहीं साल 2008 में उनको अमेरिका के कांग्रेसनल गोल्ड मेडल से भी सम्मानित किया गया। वह पहली ऐसी व्यक्ति बनीं, जिनको जेल में रहते हुए इस सम्मान से सम्मानित किया गया।

राष्ट्रपति बनने से रोका

जब साल 2010 में म्यांमार में आम चुनाव हुए, तो चुनाव होने के 6 दिन बाद आंग सान को नजरबंदी से रिहा कर दिया। इसके बाद वह साल 2012 में यूरोपीय दौरे पर गईं और अपना साल 1991 का नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया। वहीं साल 2015 में आंग सान ने म्यांमार में 25 साल में पहली बार हुए राष्ट्रीय चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी का नेतृत्व में जीत हासिल की। इस तरह से वह विरोधी दल की नेता बन गईं। आंग सान को संवैधानिक तौर पर राष्ट्रपति बनने से रोक दिया गया। फिर उनकी पार्टी ने म्यांमार में सरकार बनाई और वह विदेश मंत्री बनीं।

सेना ने किया तख्तापलट

फिर साल 2020 के चुनाव में आंग सान की पार्टी को भारी बहुमत प्राप्त हुआ। लेकिन सेना ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया। फिर आंग सान को दूसरे राजनेताओं के साथ संसद के पहले दिन ही कैद कर लिया। इस दौरान सेना ने आंग सान पर और उनकी पार्टी पर चुनाव में धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार और कोरोना नियमों का उल्लंघन का आरोप लगाया। इन आरोपों के चलते दिसंबर 2021 में चार साल की सजा सुनाई गई।

इन आरोपों के मामले की सुनवाई में आंग सान सू की को जनवरी 2022 में चार साल की और सजा सुनाई गई। फिर दिसंबर 2022 में अलग-अलग मामलों के तहत आंग सान सू की को कुल 32 साल की सजा मिली।

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