Iran को जवाब इजरायल कब, कहां और कैसे देगा? इसका उत्तर जानकर अमेरिका के भी उड़ जाएंगे होश
इजरायल और ईरान की दूरी को देखते हुए ग्राउंड अटैक का विकल्प नहीं है, लेकिन हवाई हमले और मिसाइल अटैक का विकल्प दोनों के ही पास ही है। हालांकि जानकारों के मुताबिक, इजरायल के लिए अनिश्चितता सबसे सही विकल्प होगा।
ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खमनेई ने करीब पांच बरस के बाद शुक्रवार के दिन धार्मिक भाषण दिया। उन्होंने कहा कि इजरायल पर हमला पूरी तरह से वाजिब था। 1 अक्टूबर की रात ईरान ने इजरायल पर मिसाइल हमला किया था। इजरायल ने बदला लेने की धमकी दी है, लेकिन कब, कहां और कैसे इस पर विचार चल रहा है। रिपोर्ट बताती है कि इजरायल ईरान के स्ट्रैटजिक ठिकानों को निशाना बना सकता है। इनमें तेल और गैस के खदान, न्यूक्लियर साइट्स, एयरबेस, एयर डिफेंस सिस्टम भी शामिल है। इसके अलावा ईरान के किसी बड़े अधिकारी की हत्या का विकल्प भी खुला है। लेकिन उसे ये भी ध्यान रखना है कि मामला रीजनल वॉर में तब्दील न हो। अमेरिका भी यही चाहता है। साथ ही कहा है कि अगर इस्राइल, ईरान के न्यूक्लियर ठिकानों को निशाना बनाता है तो वह उसका सपोर्ट नहीं करेगा। लेकिन ऐसे में इजरायल के पास अब क्या विकल्प है? जानकारों का कहना है कि इजरायल और ईरान की दूरी को देखते हुए ग्राउंड अटैक का विकल्प नहीं है, लेकिन हवाई हमले और मिसाइल अटैक का विकल्प दोनों के ही पास ही है। हालांकि जानकारों के मुताबिक, इजरायल के लिए अनिश्चितता सबसे सही विकल्प होगा।
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भाषण से क्या संकेत मिले
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह खबरों के खामेनेई का तेहरान की ग्रैंड मस्जिद में बात दिया यह भाषण बाहरी दुनिया को ताकत दिखाने और देशवासियों को शांत करने की कोशिश के रूप में देखा गया। यह उन रिपोर्टों के खंडन का प्रयास भी था, जिसमें कहा गया कि वह इस्माइल हानिया और हसन नसरल्ला की हत्याओं के बाद सार्वजनिक रूप से सामने आने से डरते हैं। उनके इस भाषण में नवनिर्वाचित ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान की मौजूदगी को एकजुटता दिखाने की कोशिश के रूप में देखा गया है।
इजरायल की क्या होगी रणनीति ?
जानकार मान रहे हैं कि इजरायल भले ही ईरान पर तुरंत जवाबी कार्रवाई ना करे, लेकिन लेबनान पर उसके अटैक जारी रह सकते हैं। इजरायल साउथ लेबनान में लिटनी नदी तक जाकर वह एरिया अपने कब्जे में ले सकता है। इजरायल की कोशिश यह है कि ब्लू लाइन से लेकर लिटनी नदी तक बफर जोन बने और फिर से वहां इजरायल की सेना तैनात हो। अगर बफर जोन बन जाता है और फिर UNIFIL यानी यूनाइटेड नैशनंस इंटरिम फोर्स इन लेबनान की सक्रिय भूमिका रहती है तो वहां शांति हो सकती है। हिज्बुल्लाह की वजह से नॉर्थ इस्राइल से 80 हजार लोगों को पिछले साल यहां से पलायन करना पड़ा था।
ईरान के न्यूक्लियर साइट इजरायल के टारगेट पर क्यों
इजरायल में ईरान से बदला लेने की मांग तेज हो रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ओर से नेता न्यूक्लियर साइट वाला ऑप्शन अपनाने के लिए कह रहे हैं। इन नेताओं में इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनट भी शामिल हैं। हालांकि दिलचस्प बात ये है कि ईरान के पास अभी तक एक भी परमाणु बम की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक उसने 2000 के दशक में न्यूक्लियर बम हासिल करने की सीक्रेट कोशिश की थी। इसी दौरान अकबर हाशमी रफ़संजानी और 2005 में महमूद अहमदीनेझ़ाद राष्ट्रपति हुआ करते थे। दोनों नेता इजरायल को जड़ से मिटाने की धमकी भी दिया करते थे। इजरायल का कहना है कि जिस दिन ईरान ने परमाणु बम बना लिए उस दिन हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इसी को हथियार बनाकर वो ईरान के वैज्ञानिकों और न्यूक्लियर साइट्स को निशाना बनाने में लगा रहा। जबकि पश्चिमी देशों ने ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध का रास्ता चुना। 2010 में अमेरिका को लगा कि सिर्फ प्रतिबंध लगाने से ईरान को नहीं रोका जा सकता। वर्ष 2015 में ईरान और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई विश्व शक्तियों फ्रांस, ब्रिटेन,रूस, चीन और जर्मनी के बीच हुआ। यह एक ऐतिहासिक समझौता था। सामूहिक रूप से इस समझौते को P5+1 के नाम से भी जाना जाता है। परमाणु बम बनाने का विचार छोड़ने पर प्रतिबंध हटाने की बात कही गई। 2018 में ट्रंप ने अमेरिका को इस डील से बाहर कर लिया और कहा कि ईरान चुपके चुपके न्यूक्लियर डील पर काम कर रहा है। फिर से प्रतिबंध लगा दिए गए। 2020 में न्यूक्लियर बम बनाने का विकल्प ईरान के पास खुल गया।
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किसमें कितना दम
एक्सपर्ट के अनुसार, इस्त्राइल के पीएम बेन्यामिन नेतन्याहू ने ईरान के खिलाफ अभी कदम नहीं उठाया है। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने भी आगे हमले जारी रखने के कोई संकेत नहीं दिए है। फिलहाल, इस्राइल-ईरान के बीच ग्राउंड अटैक की संभावना नहीं है। मिसाइल अटैक और एयर स्ट्राइक ही विकल्प हैं। इस्राइल के एयर डिफेंस सिस्टम की ताकत दिखी भी है। आयरन डोम सिस्टम में रडार है जो आने वाले ऑब्जेक्ट, उसकी स्पीड और डायरेक्शन का पता लगाता है। कंट्रोल सेंटर अनुमान लगाता है कि ऑब्जेक्ट क्या है और उससे नुकसान क्या होगा। अगर वह खतरा लग रहा है तब मिसाइल फायरिंग यूनिट मिसाइल लॉन्च करके उस ऑब्जेक्ट को मार गिराती है। इस्राइल के पास आयरन डोम सिस्टम के साथ और भी सिस्टम हैं जो मीडियम और लॉन्ग रेंज की मिसाइल को इंटरसेप्ट करते है, यानी उसे रोकते हैं और मार गिराते है। वहीं, ईरान ने छोटी दूरी और कम ऊंचाई वाली 'अजारख्श' (जिसका मतलब फारसी में बिजली है) सिस्टम को तैनात किया है। यह एक इन्फ्रारेड डिटेक्शन सिस्टम है, जिसमें रडार और इलेक्ट्रो-ऑप्टिक सिस्टम लगे है, जो टारगेट का पता लगाने और उन्हें रोकने के लिए सक्षम है। ईरान के पास कई तरह की मिसाइल डिफेस सिस्टम भी है। इनमें रूसी एस-200, एस-300 है। साथ ही ईरान का अपना बावर-373 भी है।
क्या अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ेगा?
जैसे-जैसे यह संघर्ष बढ़ रहा है, यह ज्यादा फैलता भी जा रहा है। ईरान के भी इसमें शामिल होने से पूरे क्षेत्र में उथल-पुथल होगी। भारत सहित सभी देशों पर इसका असर पड़ेगा। क्या अब अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ेगा कि इस्राइल हमलों को बंद करे और सब बातचीत से मसले का हल निकालें। विशेषज्ञ कमर आगा कहते है कि अब और इंतजार नहीं करना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय प्रेशर बढ़ाना चाहिए। यह संघर्ष सही नहीं है, चाहे फलस्तीन में या फिर लेबनान में। कोई भी रियायसी बस्तियों पर सीधा अटैक नहीं कर सकता, ये अतरराष्ट्रीय नियम के खिलाफ है।
अमेरिका क्यों है इसके खिलाफ
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से जब एयरपोर्ट पर पत्रकार द्वारा सवाल पूछा गया कि क्या आप ईरान के न्यूक्लियर साइट पर हमले का समर्थन करेंगे। बाइडेन ने नहीं में जवाब दिया। उन्होंने कहा कि हम इजरायल के साथ बात कर रहे हैं कि वे क्या करने वाले हैं। लेकिन उनके अनुपात का ध्यान रखना चाहिए।
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