जब दुनिया जीतने वाला शासक भारत के एक फकीर से हार गया, क्या थी सिकंदर और नागा साधु की कहानी

Alexander
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Dec 20 2023 2:19PM

सिकंदर का युद्ध पंजाब के शासक पोरस से हुआ था। इस युद्ध को हाईडेस्पीज या झेलम के युद्ध के नाम से जाना जाता है। व्यास नदी के किनारे से राजा पोरस से युद्ध के बाद वापस चला गया था।

सदियों पुरानी एक कहानी है, सिकंदर महान की जिसे दुनिया विश्व विजेता का तमगा पहनाती थी। जब सिकंदर ने अपने अभियान की शुरुआत की। उसके रास्ते में पड़ने वाले साम्राज्य एक-एक कर नतमस्तर होते चले गए। एक साल के भीतर उसने एंटोलियो, मेसोपोटामिया और पर्सिया पर कब्जा कर लिया। सिकंदर 326 ईसा पूर्व में भारत का रुख किया। यहां उसने उत्तरी पश्चिमी भाग जो वर्तमान में पाकिस्तान है वहां पर आक्रमण कर दिया। सिकंदर का युद्ध पंजाब के शासक पोरस से हुआ था। इस युद्ध को हाईडेस्पीज या झेलम के युद्ध के नाम से जाना जाता है। व्यास नदी के किनारे से राजा पोरस से युद्ध के बाद वापस चला गया था।

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सिकंदर जब भारत से वापस लौटा तो उसके साथ एक घटना घटी। तट पर बैठे सिकंदर के सामने लोगों का हुजूम लगा हुआ था। बीच में एक चिता लगी थी और उस पर एक शख्स लेटा था। सिकंदर के माथे पर बल पड़े हुए थे। ये मौत का मंजर था लेकिन मौत अभी हुई नहीं थी और होने जा रही थी। चिता पर लेटा हुआ शख्स जिंदा था। ऐसे में जिंदा शख्स इस चिता पर क्यों चढ़ा इस सवाल से ज्यादा ग्रीक इतिहासकारों ने उस शख्स के मौत से पहले के दिए आखिरी बयान को दिया है। 

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सिकंदर की तरफ देखते हुए उस शख्स ने कहा था कि अब तुमसे बेबीलोन में मुलाकात होगी। इस घटना के चंद महीने बाद ही सिकंदर की मौत बेबीलोन में ही हुई। सिकंदर की मौत की भविष्यवाणी करने वाला ये शख्स एक भारतीय फकीर था। सिकंदर जब हिन्दुस्तान की तरफ आया तो उसकी मुलाकात कई साधुओं और फकीरों से हुई थी। कई ग्रीक इतिहासकारों ने इन मुलाकातों को दर्ज किया है। सिकंदर जब भारत आया तो वो कई साम्राज्य जीतने के बाद भी संतुष्ट नहीं था। उसे एक ज्ञानी संत की तलाश थी। वो चाहता था कि भारत से किसी ज्ञानी संत को अपने साथ ले जाए। कुछ लोगों के बताे पर वो अपनी फौज के साथ एक नागा साधु के पास पहुंचा। जब सिकंदर उस फकीर से मिलने पहुंचा तो कुछ ऐसा हुआ कि उसे वो जिंदगी भर नहीं भूल पाएगा। उस फकीर ने सिकंदर का घमंड दो मिनट में चकनाकूड़ कर दिया था। 

उस फकीर का नाम डायोजिनीस था। सिकंदर ने देखा कि वो संत बिना कपड़ों के पेड़ के नीचे ध्यान कर रहा है। एलेंक्जेंडर और उसकी फौज ने संत के ध्यान से बाहर आने तक का इंतजार किया। जैसे ही संत का ध्यान टूटा, पूरी फौज एक स्वर में नारा लगाने लगी एलेक्जेंडर द ग्रेट, एलेक्जेंडर द ग्रेट। संत उन्हें देखकर मुस्कुराया। सिकंदर ने संत को बताया कि वो उन्हें अपने साथ ले जाना चाहता हूं। संत ने जवाब दिया कि तुम्हारे पास ऐसा कुछ भी नहीं है, जो तुम मुझे दे सको। जो मेरे पास न हो। मैं जहां हूं, जैसा हूं, खुश हूं। मुझे यहीं रहना है। मैं तुम्हारे साथ नहीं आ रहा। 

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ये सुनकर सिकंदर गुस्से से लाल हो उठा और अपनी तलवार डायोजिनीस की गर्दन पर रख दी। वह बोला कि अब बताओ, जिंदगी चाहिए या मौत? डायोजिनीस ने हंसते हुए कहा कि इस धरती से मिलने वाला खाना-पानी मेरे लिए काफी है। सोने के लिए जमीन है मैं किसी और चीज का क्या करूंगा। मुझे मौत का भी कोई डर नहीं क्योंकि ये शरीर तो मेरा सिर्फ साथी है, ये मैं नहीं। इसे मैं छोड़ सकता हूं। उन्होंने कहा कि अगर तुम मुझे मार दो तो अपने आपको फिर कभी एलेक्जेंडर द ग्रेट मत कहना क्योंकि तुम्हारे में महान जैसी कोई बात नहीं है। तुम तो मेरे गुलाम के गुलाम हो। ये सुनकर सिकंदर को झटका लगा। वो एक ऐसा व्यक्ति है, जिसने पूरी दुनिया को जीता है और एक साधु उसे अपने दास का दास बता रहा है। एलेक्जेंडर ने पूछा कि तुम कहना क्या चाहते हो? संत ने जवाब दिया कि मैं जब तक नहीं चाहता, तब तक मुझे गुस्सा नहीं आता। गुस्सा मेरा गुलाम है। जबकि गुस्से को जब लगता है वो तुम पर हावी हो जाता है। तुम अपने गुस्से के गुलाम हो। भले ही तुमने पूरी दुनिया को जीता हो। लेकिन रहोगे तो मेरे दास के दास। ये सुनकर सिकंदर दंग रह गया। उसने श्रद्धा के साथ संत के आगे सिर झुकाया। अपनी फौज के साथ वापस लौट गया। बाद में सिकंदर ने डायोजिनीस से आज्ञा ली की वो एक साधु को वापस यूनान ले जाना चाहता है। डायोजिनीस ने कलानोस को सिकंदर के साथ भेजा। ये वही कलानोस थे जिन्होंने सिकंदर की मौत की भविष्यवाणी की थी। 

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