आर्टिकल 370 हटाने पर सुप्रीम मुहर, लेकिन 13 राज्य ऐसे भी जहां आज भी लागू है 'खास' कानून,जानिए क्या है इसकी शक्तियां

Article 370
Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Dec 18 2023 2:19PM

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ हो गया है कि आर्टिकल 370 अब 'इतिहास' बन गया है. जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा तो खत्म हो गया। लेकिन कुछ राज्य अभी कुछ राज्य ऐसे हैं जिन्हें विशेष प्रावधान मिलता है।

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर को खास दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को खत्म करने के फैसले को कायम रखा है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने आर्टिकल 370 को अस्थाई प्रावधान भी बताया। संवैधानिक रूप से भारत की शासन संरचना अर्ध-संघीय है। इससे इतर एकात्मक व्यवस्था में कानून बनाने की शक्ति केंद्र में केंद्रित होती है। भारतीय संदर्भ में जबकि राज्यों को स्वायत्तता प्राप्त है। संविधान कुछ क्षेत्रों में केंद्र की ओर झुकता है, इस प्रकार इसे अर्ध-संघीय बनाता है। संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ, राज्य और समवर्ती सूचियाँ शामिल हैं जो उन विषयों को निर्धारित करती हैं जिन पर केंद्र और राज्यों को कानून बनाने का अधिकार है। समवर्ती सूची में शामिल लोगों के लिए जिस पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं संसद और राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के बीच टकराव की स्थिति में केंद्रीय कानून लागू होगा। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साफ हो गया है कि आर्टिकल 370 अब 'इतिहास' बन गया है. जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा तो खत्म हो गया। लेकिन कुछ राज्य अभी कुछ राज्य ऐसे हैं जिन्हें विशेष प्रावधान मिलता है। 

इसे भी पढ़ें: Jammu-Kashmir से अनुच्छेद 370 हटाने पर SC के फैसले के बाद आया महबूबा मुफ्ती का बयान, जानें क्या बोलीं PDP प्रमुख

स्पेशल स्टेटस 

इस अर्ध-संघीय संरचना में भी सभी राज्य समान नहीं हैं। भारत की बहुलता के लिए ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता है और संविधान राजकोषीय, राजनीतिक और प्रशासनिक से लेकर विभिन्न कारकों के आधार पर राज्यों के लिए विभेदित समानता प्रदान करता है। हालाँकि, असममित संघवाद के ख़िलाफ़ एक तर्क दिया जाता है कि तथाकथित विशेष स्थितियाँ क्षेत्रवाद और अलगाववाद के बीज बोती हैं और यह 'राष्ट्रीय एकता' को प्रभावित करती हैं। जबकि अनुच्छेद 370, जिसने जम्मू और कश्मीर राज्य के साथ भारत के संबंधों को औपचारिक रूप दिया, को भारत में असममित संघवाद का सबसे स्पष्ट उदाहरण माना जाता है, वहीं कई अन्य राज्य भी हैं जो अलग-अलग डिग्री की स्वायत्तता और केंद्र के साथ संबंध का आनंद लेते हैं।

सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही नहीं

अनुच्छेद 370 के ठीक बाद संविधान अनुच्छेद 371ए-1 से कम से कम नौ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान बनाता है। इसके मुताबिक इन राज्यों के राज्यपाल की ये जिम्मेदारी है कि महाराष्ट्र में विदर्भ, मराठवाडा और शेष महाराष्ट्र के लिए और गुजरात में सौराष्ट्र व कच्छ के इलाके के लिए अलग विकास बोर्ड बनाए जाएंगे। इन बोर्डो का काम इन इलाकों के विकास के लिए समान राजस्व का वितरण होगा। साथ ही राज्य सरकार के अंतर्गत तकनीकी शिक्षा, रोजगारपरक शिक्षा और रोगजार के मौके प्रदान करने की जिम्मेदारी भी इन बोर्ड के ऊपर ही होगी। उदाहरण के लिए, नागालैंड और मिजोरम को बातचीत के आधार पर स्वायत्तता प्राप्त है, जो भारत और नागा और मिजोरम स्वतंत्रता आंदोलनों के बीच एक राजनीतिक समझौता था। इसके तहत, संसद ऐसा कोई कानून नहीं बना सकती जो नागाओं और मिज़ोस की धार्मिक और सामाजिक प्रथाओं, या उनकी भूमि और प्राकृतिक संसाधनों के स्वामित्व और हस्तांतरण में हस्तक्षेप करती हो। अनुच्छेद 371 ए को संविधान में 13वें संशोधन के बाद 1962 में जोड़ा गया था। 

इसे भी पढ़ें: Farooq Abdullah, Omar और Mehbooba को लगे झटके से खुश नजर आ रहे हैं Jammu-Kashmir के लोग

53वें संशोधन के बाद जोड़ा गया 371 जी

1986 में किए गए संविधान के 53वें संशोधन के बाद मिजोरम के लिए अनुच्छेद 371 जी को जोड़ा गया था। इस कानून के मुताबिक भारत की संसद मिजोरम की विधानसभा की मंजूरी के बिना मिजो समुदाय से जुड़े रीति-रीविजों, उनके प्रशासन और न्याय के तीरकों और जमीन से जुड़े मसलों पर कानून नहीं बना सकेगी। जम्मू-कश्मीर के मामले में केंद्र के 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि विशेष प्रावधान राज्य के लिए आंतरिक संप्रभुता का एक तत्व देता है जिसे एकतरफा नहीं छीना जा सकता है।  हालाँकि, भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 12 दिसंबर को फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 370 केवल असममित संघवाद की एक विशेषता है, जो आंतरिक संप्रभुता के समान नहीं है।

दिल्ली का 239एए और सुप्रीम कोर्ट

राजनीतिक आवश्यकताओं के अलावा अन्य कारणों से भी राज्यों को रियायतें दी जाती हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली को लीजिए। अनुच्छेद 239एए राष्ट्रीय राजधानी के प्रशासन के लिए एक अनूठी व्यवस्था का प्रावधान करता है। यह संविधान की पहली अनुसूची के तहत एक राज्य नहीं है, फिर भी सातवीं अनुसूची में राज्य और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने की शक्तियाँ हैं। 239 एए(7) के मुताबिक संसद से बने कानून के जरिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की कार्यकारी शक्तियों को नियंत्रित किया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ द्वारा पारित आदेश में कहा गया है, हम तदनुसार निम्नलिखित प्रश्नों को संविधान पीठ के पास भेजते हैं:- पहला प्रश्न यह है कि अनुच्छेद 239-एए(7) के तहत कानून बनाने की संसद की शक्तियों की सीमाएं क्या हैं? और दूसरा क्या संसद अनुच्छेद 239-एए(7) के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (एनसीटीडी) के लिए शासन के संवैधानिक सिद्धांतों को निरस्त कर सकती है? अनुच्छेद-239एए यह भी कहता है कि इसके तहत बनाए गए ऐसे किसी भी कानून को अनुच्छेद-368 के उद्देश्यों के लिए संविधान में संशोधन नहीं माना जाएगा, भले ही उक्त कानून में कोई ऐसा प्रावधान शामिल हो, जो संविधान में संशोधन करता हो या संशोधन करने का प्रभाव रखता हो। केंद्र सरकार ने दिल्ली में ग्रुप-ए अधिकारियों की तैनाती और स्थानांतरण के लिए एक प्राधिकरण बनाने के वास्ते 19 मई को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अध्यादेश-2023 जारी किया था।

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़