क्या है संयुक्त राष्ट्र, क्यों खो रहा अपनी प्रासंगिकता, पीएम मोदी की नसीहत से आएगा सुधार?
संयुक्त राष्ट्र संघ से पूर्व, पहले विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र संघ (लीग ऑफ़ नेशंस) की स्थापना की गई थी। इसका उद्देश्य किसी संभावित दूसरे विश्व युद्द को रोकना था, लेकिन राष्ट्र संघ 1930 के दशक में दुनिया के युद्ध की तरफ़ बढ़ाव को रोकने में विफल रहा और 1946 में इसे भंग कर दिया गया।
गांव में राम लाल और समसुद्दीन नाम के दो लोग रहते थे। दोनों का घर अड़ोस-पड़ोस में ही था। राम लाल ने अपने घर के सामने नीम के पेड़ के नीचे एक चबूतरा बनवाया था। लेकिन समसुद्दीन कहता कि ये तुम्हारा चबूतरा तो हमारी जमीन में आता है। इसे यहां से हटाओ। रामलाल कहता कि ये तुम्हारी जमीन कैसे हो गई भाई, सालों से हमारा नीम का पेड़ यहां पर लगा है। बात बढ़ती गई और फिर देखते ही देखते ये लड़ाई में तब्दील हो गई। आस-पास के लोगों ने सुना तो कहा कि तुम दोनों की लड़ाई की वजह से सभी परेशान हो रहे हैं। मामला फिर पहुंचा गांव की सबसे अनुभवी महिला रामदुलारी देवी के पास। दरअसल, आस-पास में जब भी लोगों के बीच झगड़ा होता तो वे रामदुलारी देवी के पास पहुंच जाते थे और वो अक्सर कोई बीच का रास्ता भी निकाल लिया करती थी। दुनिया के पास भी इसी टाइप का एक सिस्टम है। यूनाइटेड नेशन हिंदी में कहे तो संयुक्त राष्ट्र। संयुक्त राष्ट्र यानी वो संगठन जो पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर सामाजिक प्रगति, मानवाधिकार और विश्व शांति के लिए बेहद महत्वपूर्ण काम करता है। यह अंतरराष्ट्रीय संस्थान जाति, धर्म और देश से ऊपर उठकर पूरे संसार के कल्याण के लिए काम करने का दावा करता है। आज के इस विश्वेषण में बात करेंगे संयुक्त राष्ट्र के इतिहास के बारे में और इसके प्रमुख अंगों की भी जानकारी आपको देंगे। साथ ही बताएंगे कि आखिर क्यों कम होती जा रही है इसकी प्रासंगिकता। क्या है इसकी कमजोरियां और पीएम मोदी ने क्या नसीहत संयुक्त राष्ट्र को दी थी।
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना
सबसे पहले शुरूआत करते हैं इसके इतिहास से यानी की आखिर क्यों संयुक्त राष्ट्र की जरूरत आन पड़ी। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र संघ से पूर्व, पहले विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र संघ (लीग ऑफ़ नेशंस) की स्थापना की गई थी। इसका उद्देश्य किसी संभावित दूसरे विश्व युद्द को रोकना था, लेकिन राष्ट्र संघ 1930 के दशक में दुनिया के युद्ध की तरफ़ बढ़ाव को रोकने में विफल रहा और 1946 में इसे भंग कर दिया गया। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1929 में राष्ट्र संघ का गठन किया गया था। राष्ट्र संघ काफ़ी हद तक प्रभावहीन था और संयुक्त राष्ट्र का उसकी जगह होने का यह बहुत बड़ा फायदा है कि संयुक्त राष्ट्र अपने सदस्य देशों की सेनाओं को शांति के लिए तैनात कर सकता है। राष्ट्र संघ के ढांचे और उद्देश्यों को संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनाया। 1944 में अमरीका, ब्रिटेन, रूस और चीन ने वाशिंगटन में बैठक की और एक विश्व संस्था बनाने की रुपरेखा पर सहमत हो गए। इस रूपरेखा को आधार बना कर 1945 में पचास देशों के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत हुई। फिर 24 अक्टूबर, 1945 को घोषणा-पत्र की शर्तों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई।
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संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य
संयुक्त राष्ट्र का मुख्य उद्देश्य विश्व में युद्ध रोकना, मानव अधिकारों की रक्षा करना, अंतरराष्ट्रीय कानून को निभाने की प्रक्रिया जुटाना, सामाजिक और आर्थिक विकास उभारना, जीवन स्तर सुधारना और बीमारियों से लड़ना है। इस संगठन ने दुनिया भर में कई अहम मौकों पर मानव जीवन की सेवा कर एक आदर्श प्रस्तुत किया है। आज विश्व में कई देश हैं जो दूसरे देशों पर प्रभुत्व जताने और उन्हें हड़पने को तैयार रहते हैं पर संयुक्त राष्ट्र की कड़ी नजर की वजह से वह कुछ भी नहीं कर पाते। चाहे विश्व में शिक्षा को बढ़ावा देना हो या फिर एड्स जैसी बीमारी के प्रति जागरुकता फैलानी हो या तकनीक को आगे बढ़ाना हो यह हमेशा आगे रहता है। संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंग हैं।
संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंग कौन-कौन से हैं-
- संयुक्त राष्ट्र महासभा
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
- आर्थिक और सामाजिक परिषद
- अंतरराष्ट्रीय न्यायालय
- न्यास परिषद
- सचिवालय
यूएनजीए क्या है
संयुक्त राष्ट्र महासभा एक ऐसा मंच है जो दुनियाभर के तमाम छोटे-बड़े देशों को अपनी आवाज, अपने मुद्दों और चिंताओं को उजागर करने का अवसर प्रदान करता है। इस सम्मेलन में लगभग दुनिया के सभी देशों के प्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं। जिनमें से किसी एक प्रतिनिधि को अध्यक्ष चुना जाता है। महासभा की बैठक में देश और दुनिया की तमाम चुनौतियों पर चर्चा और वाद-विवाद किया जाता है। हर वर्ष सितंबर के महीने में देशों के नेता और प्रभाव रखने वाली हस्तियों न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय में एकट्ठा होते हैं। सत्र में दुनियाभर के ज्वलंत मुद्दों पर विचार विमर्श होने के साथ-साथ अगले वर्ष के एजेंडे पर भी गौर किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के बजट, सिक्योरिटी काउंसिल की सदस्यता, अस्थायी सदस्यों की नियुक्ति जैसे सभी काम महासभा के जिम्मे हैं। संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 देश महासभा के सदस्य हैं। अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री के रूप में साल 1977 से 2003 तक कुल 7 बार संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया था। 4 अक्टूबर 1977 को वाजपेयी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली सरकार में बतौर विदेश मंत्री पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा के 32वें सत्र को संबोधित किया था। संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में दिया गया यह पहला संबोधन था।
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क्या है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा एवं शांति बनाये रखने की प्राथमिक जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद (Security Council) की है। इसके अंतर्गत, विश्व के प्रमुख, युद्ध में शामिल रही शक्तियों (राष्ट्रों) - चीन, फ़्रांस, रूस, ग्रेट ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका ने खुद को एक विशेष दर्जा/विशेषाधिकार दिया है, और यह विशेषाधिकार वह शक्तियां हैं जो संयुक्त राष्ट्र के अन्य सदस्य राष्ट्रों को उपलब्ध नहीं है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कुल 15 देश हैं। इनमें अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन स्थाई सदस्य देश हैं। वहीं 10 देशों को अस्थाई सदस्यता दी गई है। इनमें बेल्जियम, कोट डी-आइवरी डोमिनिकन रिपब्लिक, गिनी, जर्मनी, इंडोनेशिया, कुवैत, पेरू, पोलैंड, दक्षिण अफ्रीका और भारत के नाम शामिल हैं। गैर-स्थाई सदस्यों का कार्यकाल दो साल के लिए होता है। इसकी गैर- सदस्यता को चुनाव के बाद बढ़ाया जाता है। इसके लिए यूएनएससी पांच स्थाई सदस्यों की सीटों को छोड़कर हर साल पांच गैर-स्थाई सदस्यों के लिए चुनाव कराती है।
आर्थिक और सामाजिक परिषद
इस परिषद् के 54 सदस्य है। इसकी बैठक वर्ष में 2 बार होती है। (अप्रैल में न्यूयार्क एवं जुलाई में जेनेवा में) इसके कार्यों में युद्ध एवं शस्त की राजनीति को छोड़कर अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के सभी विषय आते हैं। आर्थिक, सामाजिक, शिक्षा तथा स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं का रिपोर्ट तैयार कर संबंधित सुझाव महासभा एवं अन्य संस्थाओं को भेजता है। इस परिषद की सीट का प्रतिनिधित्व के आधार पर आवंटित की जाती है, जहाँ 14 सदस्य अफ्रीकी देशों के लिए 11 सदस्य एशियाई देशों, 6 10 सदस्य लैटिन अमेरिकी व कैरेबियाई देशों और 13 पश्चिमी यूरोपीय एवं अन्य देशों के लिए सदस्य शामिल है।
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अंतरराष्ट्रीय न्यायालय
एक ऐसी संस्था जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न्याय व्यवस्था का कार्यभार संभालती है। दो या दो से अधिक देशों के आपसी विवाद के निपटारे की दृष्टि से ये संस्था बहुत ही अधिक महत्व रखती है। जब किसी देश की तरफ से अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन किया जाता है, तो ये सभी मामले भी न्यायालय के सामने पेश किये जा सकते है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना नीदरलैंड के हेग में 3 अप्रैल 1946 को की गई। इसकी स्थापना कार्य आदि के बारे में संयुक्त राष्ट्र की घोषणा पत्र के अध्याय 14 के अनुच्छेद 92-96 में चर्चा की गई है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जजों की संख्या 15 होती है और ये किसी भी सदस्य देश के नागरिक हो सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधिशों की नियुक्ति संयुक्त राष्ट्र महासभा और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अलग-अलग मतदान द्वारा 9 वर्षों के लिए किया जाता है।
न्यास परिषद
इस परिषद् के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र का उन राष्ट्रों के प्रशासन एवं सुरक्षा से संबंधित दापित स्पष्ट होता है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् भी स्वतंत्र नहीं हो पाये अविकसित देशों की सहायता करना) इसमें 11 राज्यों का नाम है। जिसमें से कुछ ब्रिटिश एवं सामानिका पतिमी सीमा कैमरून सोमतिलेण्ड आदि को स्वतंत्रता प्राप्त हो चुकी है। संयुक्त राष्ट्र संघ के स्वीकृत प्रस्ताव के अनुसार वर्ष 1999 को न्याय परिषद की वार्षिक बैठक संबंधी सदस्यता को समाप्त कर दिया गया है।
सचिवालय
यह संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रशासनिक अंग है। यह संयुक्त राष्ट्र संघ के नित्य प्रतिदिन के कामों को करने के लिए एक सचिवालय होता है। लगभग 10000 कर्मचारी काम करते है। इसका सबसे बड़ा अधिकारी। महासचिव होता है। संयुक्त राष्ट्र संघ का पहला महासचिव त्रिग्वेली थे। सचिवालय में एक महासचिव तथा अन्य कर्मचारी होते हैं। महासचिव की नियुक्ति 5 वर्षों के लिए सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा की जाती है। दक्षिण कोरिया के बान की मून दिसम्बर 2006 से अब तक संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव है। इसमें किसी व्यक्ति प्रमुख को दी कार्यकाल के लिए महासचिव नहीं चुना जा सकता है। सुरक्षा परिषद के किसी भी स्थायी देशों का कोई व्यक्ति महासचिव नहीं चुना जा सकता। जहाँ सचिवालय कर्मचारी अलग-अलग सदस्य देशों के लिए चुने जाते हैं।
वर्तमान दौर में कम हुई प्रासंगिकता
जिस तरह से संयुक्त राष्ट्र संघ की उपयोगिता क्षीण होती जा रही है, वो वर्तमान दौर में गंभीर चिंता का विषय है। इसके पीछे की एक बड़ी वजह है कि हरेक देश इस मंच को सद्धावना मंच नहीं बल्कि एक कूटनीतिक मंच समझता है। वैसे तो इस मंच का प्रयोग या फिर कहे उपयोग दुनिया की समस्या से जुड़े मसलों पर सुझाव देने के लिए या अपनी बात रखने के लिए होना चाहिए। लेकिन अधिकतर समय ये निजी हितों का टकराव मात्र बनकर रह गया है। फौरी तौर पर देखें तो भाषणों से रचनात्मकता लगभग समाप्त सी हो गई है। संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता कम होने का एक बड़ा कारण सुरक्षा परिषद में पांच देशों को मिले वीटो जैसा विशेषाधिकार भी है। जिसके चलते यह संस्था शांति और सुरक्षा के अपने मुख्य उद्देश्य को कभी पूरा नहीं कर सकती। जब तक इस वीटो को हटाकर एक न्यायोचित मतदान प्रणाली द्वारा बहुमत आधारित निर्णयों को मान्य नहीं किया जाता तब तक अधिकांश देश उदासीन बने रहेंगे। आलम तो ऐसा भी हो गया है कि कई देश अपना सालाना शुल्क भी नहीं भर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख एंटोनियो ग्युटेरेस को चेतावनी देनी पड़ी कि यदि शुल्क जल्दी नहीं भरा गया तो संस्था दिवालिया होने की राह पर जा रही है।
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संयुक्त राष्ट्र की कमजोरियां
वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा मामलों की समिति में यूरोपीय राष्ट्रों को स्पष्ट रूप से अधिक प्रतिनिधित्व मिला हुआ है और अन्य क्षेत्र संगत रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। यह शिकायत दीर्घकाल से है जो संयुक्त राष्ट्र की वैधता को चुनौती देती है। बड़े राष्ट्र यह भी जानते हैं कि यदि संयुक्त राष्ट्र संघ कोई कठोर निर्णय ले भी ले तो उसको क्रियान्वित करना उसकी क्षमता से परे है। क्रियान्वयन के लिए उसे महाशक्तियों का सहयोग चाहिए, क्योंकि उसके पास खुद की कोई सेना तो है नहीं ऊपर से आर्थिक रूप से भी वो कमजोर हो चुका है। इसको इस तरह से समझ सकते हैं। जैसे अमेरिका संयुक्त राष्ट्र को सबसे अधिक फंड देता है। लेकिन क्या हो अगर अमेरिका के खिलाफ ही यूएन को कार्रवाई करने की नौबत आए। ऐसे में अमेरिका से ही पैसा लेकर उसी के खिलाफ कार्रवाई करना मुमकिन ही नहीं। वहीं वीटो शक्ति प्राप्त राष्ट्र अपना शुल्क अदा करने में कभी देर नहीं करते, क्योंकि उन्हें इतनी शक्ति मिली हुई है कि एक अकेला राष्ट्र ही पूरे सदन की भावना को ख़ारिज कर सकता है। विश्व के सामने आतंकवाद, पर्यावरण, शरणार्थी समस्या विकराल रूप ले रही हैं, किन्तु इस मंच से देश एक दूसरे से दुश्मनी निकालने में लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र से जुड़े संस्थान विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को दिसंबर 2019 में चीन में कोविड-19 संकट सामने आने के बाद से लगातार आलोचना झेलनी पड़ी।
संयुक्त राष्ट्र और भारत
भारत के साथ संयुक्त राष्ट्र का व्यवहार हमेशा सामान्य ही रहा है। हालांकि कुछेक मौकों पर भारत को इस संस्था से निराशा हाथ लगी। वर्ष 1948 में जम्मू-कश्मीर समस्या, वर्ष 1971 का पूर्वी पाकिस्तान का संकट और आजकल आतंकवाद के मुद्दे पर जिस तरह से संयुक्त राष्ट्र ने भारत के साथ व्यवहार किया उससे आम जनता का इस पर से थोड़ा भरोसा कम हुआ है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत स्थायी सदस्यता की दावेदारी कर रहा है पर उसे अभी तक यह दर्जा हासिल नहीं हुआ है।
पीएम मोदी की नसीहत
भारत के प्रधानमंत्री ने यूएजीए के 76वें सत्र को संबोधित करते हुए इस संस्था को नसीहत भी दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की पुरजोर पैरवी की। उन्होंने नसीहत दी कि अगर वह सुधारों की दिशा में नहीं बढ़ा तो अपनी प्रासंगिकता गंवा देगा। पीएम बोले कि आज यूएन पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। उसे अपनी विश्वसनीयता को बढ़ाना होगा। यह तभी हो पाएगा जब उसमें समय की जरूरत के अनुसार सुधार हों। अपने संबोधन में बड़ी खूबसूरती के साथ उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को नसीहत दी। इसके लिए उन्होंने भारत के महान कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों को चुना।
पीएम मोदी ने UN में सुधार की बाात कही वो कितना सही?
भारत काफी समय से संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग करता रहा है। अभी इसकी ज्यादातर संस्थाओं में विकसित देशों का प्रभुत्व दिखता है। फिर चाहे महासभा हो या सुरक्षा परिषद, सुधारों की जरूरत हर जगह नजर आती है। मसलन, महासभा जो प्रस्ताव पारित करती है, वे बाध्यकारी नहीं होते हैं। यह एक बड़ी कमजोरी है। इसी तरह भारत सुरक्षा परिषद के अस्थायी और स्थायी दोनों ही तरह के सदस्यों की संख्या में बढ़ोतरी चाहता है। उसका मानना है कि बदलती दुनिया में संयुक्त राष्ट्र संघ को मजबूती के साथ सख्ती की भी जरूरत है। विकास को बढ़ावा देना पहली शर्त होनी चाहिए।
-अभिनय आकाश
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