ओवैसी, मायावती, AAP समेत सारे सियासी दल आखिर एक ही सुर में क्यों बोल रहे- रामलला हम आएंगे...

 Owaisi Mayawati aap
अभिनय आकाश । Sep 4 2021 4:08PM

भगवान राम से लेकर अयोध्या तक सियासत का सफर हो रहा है। असदुद्दीन आवैसी भी सात सितंबर से अपनी अयोध्या की यात्रा शुरू कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने भी 14 सितंबर से अपना तिरंगा सम्मेलन अयोध्या से शुरू करने का ऐलान किया है। भारतीय जनता पार्टी का अयोध्या से प्रेम तो जगजाहिर है।

युद्ध का अर्थ हम सभी जानते हैं। योध्य का मतलब जिससे युद्ध किया जा सके। मनुष्य उसी से युद्ध करता है जिससे जीतने की संभावना रहती है। यानी अयोध्या के मायने हैं जिसे जीता न जा सके। अयोध्या की कलकल बहती सरयू की धार में एक तरह की निसंगता है। भक्ति में डूबी अयोध्या का चरित्र अपने नायक की तरह ही धीर, शांत और निरपेक्ष है। सरयू के किनारे बसी राम की नगरी जितनी बड़ी आस्था का केंद्र है उससे भी ज्यादा बड़ी सियासत की धुरी है। यूपी में 2022 का शंखनाद भले ही अभी न हुआ हो लेकिन चुनावी महाभारत शुरू हो चुकी है। भगवान राम से लेकर अयोध्या तक सियासत का सफर हो रहा है। असदुद्दीन आवैसी भी सात सितंबर से अपनी अयोध्या की यात्रा शुरू कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने भी 14 सितंबर से अपना तिरंगा सम्मेलन अयोध्या से शुरू करने का ऐलान किया है। भारतीय जनता पार्टी का अयोध्या से प्रेम तो जगजाहिर है। बहुजन समाज पार्टी ने भी अपना प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन यानी ब्राह्मण सम्मेलन भी अयोध्या से शुरू किया। ऐसे में एक बात तो साफ है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव का केंद्र बिन्दु अयोध्या रहेगा। 

अयोध्या में ओवैसी लेकिन इस नाम से परहेज

यूपी में बीजेपी को सत्ता से बाहर करने का सपना लिए ओवैसी राम-राम जप रहे हैं। उन्होंने अपने मिशन के लिए राम के शहर को तो चुना लेकिन हैरानी की बात ये है कि वो अयोध्या का नाम लेने से बचते दिखे। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने अयोध्या में सम्मेलन का ऐलान कर हर किसी को चौंका दिया है। लेकिन इसके साथ ही वो अयोध्या का नाम लेने से बचते भी नजर आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि मैं फैजाबाद के रूदौली इलाके में जा रहा हूं। जहां जनता से मिलूंगा। अपनी पार्टी एआईएमआईएम को मजबूत करूंगा। अपने लोगों को चुनाव जीता कर विधायक बनाऊंगा और योगी की हुकूमत को हटाऊंगा। ओवैसी अपने दौरे की शुरुआत फैजाबाद से करने की बात कर रहे है जबकि तीन साल पहले ही फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या हो चुका है। फैजाबाद अतीत हो चुका है। ओवैसी चुनावी अखाड़े में पूरे दम-खम से उतरने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसलिए वो अपने सम्मेलन में वंचित-शोषित समुदाय के लोगों से मन की बात करेंगे। एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि अयोध्या में बीजेपी और संघ परिवार ने मिल कर मस्जिद शहीद कर दी थी। उनका कहना है कि अगर मस्जिद शहीद नहीं होती तो शायद सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला कुछ और होता।

सम्मेलन से समीकरण तक

  • ओवैसी 7 अगस्त को अयोध्या से सम्मेलन की शुरुआत करेंगे, जहां 13 फीसदी मुस्लिम हैं। 
  •  8 अगस्त को सुल्तानपुर जाएंगे, जहां 17 फीसदी मुसलमान हैं। 
  • 9 अगस्त को बाराबंकी के लोगों को अपनी तरफ करने की कोशिश करेंगे, जहां 23 फीसदी मुस्लिम आबादी है। 

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ए-टू-जेड समीकरण से सत्ता का रास्ता

देश की सबसे बड़ी आबादी वाले सूबे में करीब 3.48 करोड़ मुस्लिम है। जो राज्य की आबाद की 19 फीसदी हैं। यूपी में 24 से ज्यादा ऐसे जिले हैं जहां 20-60 फीसदी मुस्लिम रहते हैं। 143 सीटों में मुस्लिम काफी असरदार माने जाते हैं। यूपी की करीब तीन दर्जन ऐसी विधानसभा सीटे हैं जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर जीत दर्ज कर सकते हैं। करीब 107 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां अल्पसंख्यक मतदाता चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। ओवैसी उत्तर प्रदेश में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर रहे हैं। अगर बिहार को छोड़ दें तो बंगाल में ओवैसी की पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई है। अपने मिशन को सफल करने के लिए ओवैसी दावा कर रहे हैं कि इस बार यूपी में एम-वाई समीकरण नहीं चलने वाला है। बल्कि इस बार ए-टू-जेड समीकरण ही सत्ता का रास्ता दिखाएगा। 

सपा की चुप्पी मुस्लिम वोट बैंक की ऑल टाइम फेवरेट बनने की कोशिश

मुल्ला मुलायम कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश के हाथों में अब सपा की कमान है। कभी राम भक्तों पर सरेआम गोली चलवाने की बात को सहजता से स्वीकार करने वाले मुलायम सिंह यादव ने नवंबर 2017 में अपने 79वें जन्मदिन के मौके पर सपा कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए अपने इस कृत्य को जायज ठहराया था। मुलायम ने इस गोलीकांड के 27 वर्षों बाद कहा था कि देश की ‘एकता और अखंडता’ के लिए अगर सुरक्षा बलों को गोली चला कर लोगों को मारने भी पड़े तो ये सही था। इतना ही नहीं, उन्होंने कहा था कि अगर इसके लिए और भी लोगों को मारना पड़ता तो सुरक्षा बल ज़रूर मारते। किसी दौर में बीजेपी से निकाले जाने के बाद कल्याण सिंह ने सपा के समर्थन से निर्दलीय लोकसभा का चुनाव भी जीता लेकिन मुस्लिम वोट छिटकने के डर से सपा ने भी कल्याण सिंह से किनारा कर लिया। लेकिन उन्हीं कल्याण सिंह के निधन पर जहां मायावती समेत तमाम दलों के नेताओं ने श्रद्धांजलि दी वहीं यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ना तो पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के अंतिम संस्कार में शामिल हुए और ना ही लखनऊ में आयोजित उनकी शोकसभा में पहुंचे। जिसके पीछे बीजेपी की तरफ से ये भी दावा किया गया कि मुस्लिम वोट बैंक छिटकने के डर से अखिलेश यादव ने यह कदम उठाया है। 

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अबु आजमी पूरी कर पाएंगे आजम खान की कमी

ओवैसी की उत्तर प्रदेश में एंट्री से सपा चिंतित है। खुद को मुसलमानों की पहली पसंद वाली पार्टी होना का दावा करने वाली सपा के बड़े मुस्लिम चेहरे आजम खान लंबी बीमारी और सरकार द्वारा शिकंजा कसे जाने के बाद से राजनीति से गौण हैं। ऐसे में सपा ने आजम खान की भरपाई करने के लिए महाराष्ट्र की राजनीति करने वाले अबू आसिम आजमी को चुनावी रण में उतारने का फैसला किया है। सपा अब उन्हें मुस्लिम चेहरे के रूप में पेश कर रही है। अबू आजमी कांग्रेस से लेकर ओवैसी तक पर हमलावर हैं। चुनाव में सपा का लगातार प्रयास है कि उनका मुस्लिम वोट कहीं छिटक न पाए।

अयोध्या से बनाई दूरी

कांग्रेस और बसपा के साथ हाथ मिलाकर अपना सियासी हश्र देख चुके सपा के मुखिया आगामी विस चुनाव में बड़े दलों की बजाए छोटे दलों के साथ गठबंधन साधने का फॉर्मूला आजमा रहे हैं। बीजेपी के नक्शेकदम पर चलते हुए अखिलेश ने जयंत चौधरी की रालोद, संजय चौहान की जनवादी पार्टी और केशव देव मौर्य के महान दल के साथ चुनाव लड़ने के लिए हाथ मिला लिया है। लेकिन जहां एक तरफ तमाम दल अयोध्या से अपने अभियान की शुरुआत करती नजर आ रही है चाहे सभी दलों की मंशा, मायने अलग हो लेकिन मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश और उनकी पार्टी अयोध्या से परस्पर दूरी बनाई हुई है। अखिलेश ऐसा कोई कदम न उठाना चाह रहे हैं जिससे मुस्लिम वोट बैंक में संदेह की भावना पैदा हो। वो उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की पहली पसंद बने रहना चाहती है। 

बीजेपी से मुकाबले के लिए आप ने हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद को बनाया हथियार

दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने वाली आम आदमी पार्टी अब यूपी के सियासी दंगल में जोर-आजमाइश को बेकरार नजर आ रही है। आप ने सूबे की तख्त पर काबिज बीजेपी से मुकाबले के लिए हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद को ही हथियार बनाने की तैयारी शुरु कर दी है। इसकी शुरुआत अयोध्या से होने जा रही है। दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और यूपी प्रभारी संजय सिंह 14 सितंबर को अयोध्या में तिरंगा यात्रा शुरू करेंगे। इससे पहले दोनों नेता भगवान राम लला के दर्शन कर हिंदुत्व के मुद्दे को धार देंगे। 

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अयोध्या में तिरंगा यात्रा 

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने पूरे एक साल तक आजादी के महोत्सव को मनाने का फैसला किया है। नोएडा और आगरा में तिरंगा संकल्प यात्रा निकालने के बाद अब आम आदमी पार्टी 14 सितंबर को अयोध्या में सियासी ताकत दिखाने की तैयारी में है। आम आदमी पार्टी 14 सितंबर को अयोध्या में तिरंगा यात्रा निकालने जा रही है और दावा ये किया जा रहा है कि इस तिरंगा यात्रा में 10 हज़ार से अधिक भीड़ इकट्ठा होगी। उत्तर प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष के अनुसार दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया और सांसद संजय सिंह शरीक होंगे और ये तिरंगा यात्रा अयोध्या में ऐतिहासिक होगी। तिरंगा यात्रा गुलाब बाड़ी के मैदान से शहर के बीचो बीच से होते हुए गांधी पार्क तक जाएगी। कहा तो ये भी जा रहा है कि इसी दौरान आप अपने 100 उम्मीदवारों की भी घोषणा कर सकती है। 

बीएसपी का राम की नगरी में प्रबुद्ध सम्मेलन

एक जमाने में "तिलक,तराजू और तलवार- इनको मारो, जूते चार" का नारा देकर उत्तरप्रदेश की सत्ता में काबिज़ होने वाली मायावती को अब फिर से ब्राह्मणों की याद आ गई है। शायद उन्हें अहसास हो चुका है कि दलितों व पिछड़ों में उनका जनाधार अब पहले जैसा नहीं रहा। इसलिये ब्राह्मणों की बैसाखी के बग़ैर अब सत्ता की कुर्सी तक पहुंचना मुश्किल है। बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा की अगुआई में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन (ब्राह्मण सम्मेलन) शुरू किया। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की नगरी अयोध्या से इसका आगाज हुआ। घंटों और मजीरों की ध्वनि के बीच वेदमंत्रों के उच्चारण से शुरू हुए बहुजन समाज पार्टी के 'प्रबुद्ध वर्ग विचार संगोष्ठी' का समापन 'जय भीम-जय भारत' के अलावा 'जयश्रीराम' और 'जय परशुराम' के उद्घोष के साथ हुआ। मायावती 2007 के प्रयोग को दोहराना चाहती हैं। तब उन्होंने दलित-ब्राह्मण गठजोड़ का प्रयोग किया था और उसके कारण ही वे सत्ता पाने में कामयाब हुई थीं। हालांकि तब मायावती ने "जूते मारने" वाले अपने पहले स्लोगन की गलती को सुधारते हुए अपनी पार्टी के चुनाव-चिन्ह को लेकर नया नारा दिया था--'हाथी नहीं गणेश है,ब्रह्मा- विष्णु-महेश है, पंडित शंख बजाएगा हाथी बढ़ता जाएगा जैसे नारे खासे लोकप्रिय हुए थे। लेकिन पहले तो 2014 के लोकसभा चुनाव फिर 2017 के चुनाव ने उत्तर प्रदेश में जाति कि राजनीति की मौत की मुनादी कर दी। सवर्ण जातियों+गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलित का समीकरण बना कर बीजेपी ने चुनाव दर चुनाव यूपी के क्षत्रपों के वोट बैंक को उनके जाति विशेष तक ही सीमित कर दिया। ऐसे में मायावती एक बार फिर से अयोध्या के जरिये सम्मेलन आयोजति कर श्री राम के आशीर्वाद से सत्ता प्राप्त करने की लालसा रखे हुए हैं। 

कांग्रेस के बड़े नेता राम लला के दर्शन करते देखे जा सकते हैं

कांग्रेस पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश के चुनाव में करने के लिए क्या है इस बात का आकंलन पार्टी को ही गंभीरता से किए जाने की जरूरत है। चुनाव आते ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी का मंदिर-मंदिर द्वारे-द्वारे भगवान की चौखट पर जाने और खुद को जनेऊधारी हिन्दू बताने की रवायत तो सभी ने देखी है। ऐसा नहीं है कि कांग्रसे राम नगरी के रास्ते खुद को स्थापित करने की कोशिश नहीं कि याद हो कि 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रियंका ने अयोध्या में रोड शो किया था। लेकिन इसका कुछ खास लाभ कांग्रेस को नहीं मिल पाया था। इसके अलावा कांग्रेस जल्द मंदिर निर्माण की मांग करती रही है। कहा तो ये भी जा रहा है कि कांग्रेस के दिग्गज 2022 में राम के दर्शन कर सकते है। 

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बीजेपी के लिए अयोध्या बना ब्रॉन्ड

बात धर्म की हो और धर्मनगरी अयोध्या की तो बीजेपी की बात होना लाजिमी है। शून्य से शिखर तक पहुंचने वाली बीजेपी के लिए अयोध्या सियासत का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। राम लला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे के नारे से सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाली बीजेपी के लिए 2022 के विधानसभा चुनाव में अयोध्या बहुत बड़ा ब्रॉन्ड बन चुका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ किसी न किसी बहाने हर दो से तीन महीने पर रामलला के दर्शन करने आ जाते हैं। योगी आदित्यनाथ जबसे मुख्यमंत्री बने हैं, तबसे वो 26 बार अयोध्या आ चुके हैं। चर्चा तो योगी आदित्यनाथ के भी अयोध्या से ही चुनाव लड़ने की है। अयोध्या से योगी के लगाव की एक बड़ी कहानी भी है. योगी आदित्यनाथ के गुरू महंत अवैद्यनाथ ने राम मंदिर की एक लंबी लड़ाई लड़ी थी। यही नहीं गोरखनाख मठ की 3 पीढ़ियों ने राम मंदिर की लड़ाई लड़ी थी।

विपक्ष के सामने बीजेपी का अयोध्या मॉडल

यूपी के चुनाव में अयोध्या के जरिए बीजेपी अपने हिंदुत्व के मुद्दे को तो उठाने की कोशिश जरूर करेगी, तो वहीं अयोध्या का विकास मॉडल भी योगी के चुनाव प्रचार का अहम हिस्सा रहने वाला है। बीजेपी अयोध्या मॉडल को पूरे देश में एक बड़े उदाहरण के तौर पर भी पेश करने की तैयारी में है। एक तरफ जहां राम मंदिर का निर्माण कार्य चल रहा है तो वहीं दूसरी तरफ अयोध्या के विकास मॉडल का भी पूरा प्लान केन्द्र और यूपी सरकार ने तैयार किया है। अयोध्या का रेलवे स्टेशन राम मंदिर के मॉडल पर बन रहा है। अयोध्या में इसी साल के अंत तक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट का भी शिलान्यास हो सकता है। वहीं 84 कोसी परिक्रमा मार्ग को केन्द्र सरकार ने नेशनल हाईवे घोषित कर दिया। लखनऊ-गोरखपुर हाईवे से सीधे 4 लेन सड़क श्रीराम जन्मभूमि तक बनाई जा रही है।

बहरहाल ये तो साफ है कि अयोध्या 2022 के सियासी सफर का स्टॉपेज बन चुका है। जहां हर राजनीतिक दल की गाड़ी का रूकना जरूरी हो गया है। ऐसे में देखना ये है कि भगवान राम के आशीर्वाद से किसकी गाड़ी लखनऊ तक पहुंचेगी।- अभिनय आकाश

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