किसी के लिए कड़वी तो किसी के लिए कड़क है वडनगर के चाय वाले की दास्तां, जिसकी एंट्री ने वैश्विक राजनीति के प्याले में उबाल ला दिया
नरेंद्र मोदी भारत की कूटनीति का वो सिक्का हैं जिनका डंका दुनियाभर की चौपालों में बजता है। अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया, चीन से लेकर यूरोप तक, नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व और कार्यशैली के प्रशंसक मौजूद हैं। द मॉर्निंग कंसल्ट के एक सर्वे के मुताबिक पीएम दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेताओं की लिस्ट में पहले पायदान पर हैं।
'आपने जो मुझे जिम्मेदारी दी है उसे पूरा करने में शरीर का प्रत्येक कण और समय का प्रत्येक क्षण सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए लगा दूंगा।' वो आए तो सबने कहा आने दो देख लेंगे, उसने देखा तो सबने कहा देखने दो कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन उसने जीत लिया तो सबने कहा भारतीय लोकतंत्र का इतिहास नेपोलियन-हिटलर को देख रहा है। लेकिन इन सब बातों से बेपरवाह उसने वो पुरानी कहावत को सोलह आने सच साबित करके दिखाया कि ‘वो आया, उसने देखा और जीत लिया’। सोलहवीं लोकसभा अपनी सोलहों कलाओं के साथ उस शख्स पर कुर्बान हो गई और 17वीं लोकसभा में तो उसने खुद को प्रधानमंत्री और निरंतर प्रधानमंत्री के दोराहे पर मूर्धन्य की तरह विराजमान कर दिया। पीएम नरेंद्र मोदी 71 साल के हो गए। 17 सितंबर के दिन सन 1950 में उनका जन्म गुजरात के वडनगर में हुआ था। जिसके बाद तमाम झंझावतों से जूझते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने दूसरी बार लगातर देश की बागडोर संभाली। लेकिन सफलता के यह क्षण मोदी की झोली में एक दिन में आकर नहीं गिरे हैं। उसके लिए उन्होंने भारत की जनता का वो भरोसा हासिल किया है कि वही देश का भाग्य बदल सकते हैं। सवा सौ करोड़ के इस देश ने अपना भाग्य उस भाग्य विधाता के नाम कर दिया जिसे नरेंद्र मोदी कहते हैं। संघर्ष की गलियों में अपनी तकदीर की लकीरों को अपने हाथों से बनाने-बिगाड़ने वाला शख्स आज राजनीति की बुलंदियों पर खड़ा है। वो बता रहा है कि अगर हिम्मत हो और जूनून हो तो सारी कायनात आपकी मदद में जुट जाती है। तो आइए वर्तमान की ऊंगली पकड़कर आपको वडनगर की उन गलियों में लिए चलते हैं जब बचपन में नरेंद्र मोदी चाय बेचा करते थे।
नन्हे नरेंद्र ने अपनी गुजरात साधना में आराम को हराम बना दिया
बेबसी की गोद में दर्द की कठिनाईयों में जिसे जिंदगी ने लोरी सुनाई उस बच्चे की किस्मत में हिन्दुस्तान का भाग्य विधाता बनना लिखा है, ये किसको पता था। बचपन में नरेंद्र मोदी का परिवार काफी गरीब था और पूरा परिवार एक छोटे से घर में रहता था। उनके पिता वडनगर के रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते थे। नन्हें नरेंद्र भी अपने पिता का हाथ बंटाया करते थे और जब समय मिलता तो झोला उठा कर भागवताचार्य नारायणाचार्य विद्यालय में पहुंच जाते। ये किसको पता था कि अपने कस्बे के रेलवे स्टेशन पर चाय लेकर दौड़ने वाले नन्हें कदमों के पीछे एक दिन सारा हिन्दुस्तान दिवानों की तरह भागेगा। दो जून की रोटी के भी जिसे लाले पड़ जाते थे, लेकिन कुदरत ने उसे लड़ने और जूझकर जीतने का जज्बा दिया था। उससे आज हिन्दुस्तान का साक्षत्कार हो रहा है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि आराम हराम है। मोदी ने अपनी गुजरात साधना में आराम को हराम बना दिया। बचपन में पीएम मोदी का सपना भारतीय सेना में जाकर देश की सेवा करने का था, हालांकि उनके परिजन उनके इस विचार के सख्त खिलाफ थे। नरेंद्र मोदी की शादी उस वक्त के रिवाज के हिसाब से ही कम उम्र में हो गई। लेकिन जब गौने की बात चली तो उस वक्त नरेंद्र मोदी घर से गायब हो गए। उनके भाई ने कांरवा मैगजीन के इंटरव्यू में कहा था कि 2 साल बाद वो लौटे तो कहा कि मेरा संन्यास खत्म हो गया है और अब मैं अहमदाबाद में चाचा की कैंटीन में जाकर काम करूंगा। उनके चाचा बस स्टैंड के पास कैंटीन चलाते थे। कुछ वर्ष चाचा की कैंटीन में काम करने के बाद अपना काम शुरू करने के इरादे से एक साइकिल खरीदी और अहमदाबाद के गीता मंदिर के पास चाय बेचना शुरू किया। जिसकी गली में स्वयं सेवकों का आना जाना लगा रहता था। बचपन से ही राष्ट्रभक्ति और देशसेवा की लालसा से वशीभूत नरेंद्र मोदी का झुकाव राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर हो गया। गुजरात में आरएसएस का मजबूत आधार भी था। साल 1967 में 17 साल की उम्र में नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता ली।
प्रचारकों के लिए नाश्ता बनाना और झाड़ू लगाना
नरेंद्र मोदी की जीवनी लिखने वाले एमवी कामथ के अनुसार जब लक्ष्मण राव ईनामदार ने नरेद्र मोदी को जुड़ने के लिए बुलाया तो (गुजरात में आरएसएस के मुख्यालय हेडगेवार भवन में) वहां 12 से 15 लोग एक साथ रह रहे थे। तब वे संघ कार्यालय में काम करते थे और उन्हें लगा कि यही वो जगह है, जहां उन्हें होना चाहिए। उनका रोज का रुटीन सुबह प्रचारकों के लिए चाय और नाश्ता तैयार करना था। जिसके बाद पूरी बिल्डिंग जिसमें आठ से नौ कमरे थे,साफ करनी पड़ती थी। इसके साथ ही वो यहां झाड़ू-पोछा भी लगाते थे। यही वो समय था जब नरेंद्र मोदी की मुलाकात कई लोगों से हुई। हेडगेवार भवन में मोदी का आवास संघ के लिए गुजरात और देश भर में एक अहम दौर था। गुजरात आरएसएस में मोदी ने जल्दी ही बड़ी जिम्मेदारियां हासिल कर लीं। जिनमें सफर कर रहे संघ कार्यकर्ताओं के ट्रेन और बस का टिकट करवाना भी शामिल था। वहीं, हेडगेवार भवन में आई चिट्ठियां भी वहीं खोलते थे। इसी दौरान मोदी एक महीने के ऑफर ट्रेनिंग कैंप में हिस्सा लेने आरएसएस के राष्ट्रीय मुख्यालय नागपुर गए। आरएसएस में गंभीरता से लिए जाने के लिए, पहले लेवल की ट्रेनिंग जरूरी थी और मोदी जब 22 या 23 साल के थे, तभी ये ट्रेनिंग उन्होंने पूरी कर ली थी।
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आडवाणी की यात्रा के सारथी
1988-89 में भारतीय जनता पार्टी की गुजरात ईकाई के महासचिव बनाए गए। नरेंद्र मोदी ने लाल कृष्ण आडवाणी की 1990 की सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा के आयोजन में अहम भूमिका अदा की। इसके बाद वो भारतीय जनता पार्टी की ओर से कई राज्यों के प्रभारी बनाए गए। साल 1995 में उन्हें पार्टी ने और ज्यादा जिम्मेदारी दी। नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय सचिव और पांच राज्यों का पार्टी प्रभारी बनाया गया। इसके बाद 1998 में उन्हें महासचिव (संगठन) बनाया गया।
आपातकाल और पीएम मोदी
इसके बाद 1974 में वे नव निर्माण आंदोलन में शामिल हुए। आपातकाल के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहम भूमिका निभाई थी। आपातकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता छीनी जा चुकी थी। कई पत्रकारों को मीसा और डीआईआर के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था। सरकार की कोशिश थी कि लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुंचे। उस कठिन समय में नरेंद्र मोदी और आरएसएस के कुछ प्रचारकों ने सूचना के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी उठा ली। इसके लिए उन्होंने अनोखा तरीका अपनाया। संविधान, कानून, कांग्रेस सरकार की ज्यादतियों के बारे में जानकारी देने वाले साहित्य गुजरात से दूसरे राज्यों के लिए जाने वाली ट्रेनों में रखे गए। यह एक जोखिम भरा काम था क्योंकि रेलवे पुलिस बल को संदिग्ध लोगों को गोली मारने का निर्देश दिया गया था। लेकिन नरेंद्र मोदी और अन्य प्रचारकों द्वारा इस्तेमाल की गई तकनीक कारगर रही।
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केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला का झगड़ा और नरेंद्र मोदी को गुजरात से दिल्ली आना पड़ा
वो शंकर सिंह वाघेला जिनके साथ कभी नरेंद्र मोदी गुजरात घूमा करते थे। लेकिन आडवाणी का झुकाव मोदी तरफ ज्यादा देख वाघेला को यह भान हो गया कि उनका दोस्त ही उनके लिए खतरा बन सकता है। 1995 में जब बीजेपी गुजरात में 121 सीटों पर जीती तब आडवाणी और मोदी ने वाघेला को हटाकर केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री बना दिया। जिसके परिणामस्वरूप वाघेला ने 55 विधायकों के साथ विद्रोह कर दिया। अमूमन बीजेपी के साथ इस तरह का नजारा बहुत कम ही देखने को मिलता है। नाराज वाघेला को मनाने के लिए उनके करीबी सुरेश मेहता को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया गया। इसके साथ ही शंकर सिंह वाघेला ने जिन शर्तों को पार्टी के सामने रखा उनमें से एक थी की नरेंद्र मोदी को गुजरात से बाहर भेजा जाए। जिसके चलते उन्हें अपना गृह राज्य छोड़ना पड़ा था। लेकिन वाघेला को इस बात का इल्म था कि मोदी गुजरात से बाहर तो हैं पर अमित शाह के सहारे उन्होंने अपना दबदबा बनाए रखा है। 1996 के लोकसभा चुनाव में गोधरा से उनकी हार होती है और वाघेला बीजेपी से अलग हो जाते हैं।
जब वाजपेयी ने कहा- अब तुम्हे गुजरात लौटना होगा
नरेंद्र मोदी गांधीनगर से नई दिल्ली तो पहुंच गए थे लेकिन उनका मन अभी भी गृह राज्य में ही लगा हुआ था। शंकर सिंह वाघेला के खजुराहो कांड के बाद दूसरी बार बगावत करने पर नरेंद्र मोदी को पार्टी आलाकमान के सामने यह कहने का मौका मिल गया कि केशुभाई पटेल से सरकार ठीक ढंग से नहीं चल पा रही है। । केशुभाई पटेल के खिलाफ पार्टी संगठन में लगातार नाराजगी सामने आ रही थी। भूज में आए भूंकप के बाद पुनर्वास का काम ठीक ढंग से नहीं हो पाया था और हालिया उपचुनाव में भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा था। सारे माहौल नरेंद्र मोदी के गुजरात में एंट्री के मुफीद थी। एक रोज वाजपेयी ने मोदी को बुलाकर कहा दिल्ली में पंजाबी खाना खाकर तुम काफी मोटे हो गए हो। अब तुम्हे गुजरात लौट जाना चाहिए। ये अटल बिहारी वाजपेयी का तरीका था, नरेंद्र मोदी को गुजरात जाने का आदेश देने के लिए। पार्टी आलाकमान ने अपने तीन वरिष्ठ नेताओं जनाकृष्ण मूर्ति, कुशाभाउ ठाकरे और मदनलाल खुराना को नरेंद्र मोदी के नाम पर दिल्ली और गुजरात में आम सहमति कायम करवाने की जिम्मेदारी दी। 5 अक्टूबर को नरेंद्र मोदी मदन लाल खुराना के साथ गांधीनगर पहुंचे। केशुभाई पटेल अपना विरोध जताते हुए ये तक कह चुके थे कि मुझे इस बार मुख्यमंत्री के पद से हटाया गया तो मैं राजनीति से सन्यांस ले लूंगा। गुजराती में कहावत है हवे तो खमैया करो... यानी बस बहुत हो गया, अब शांत हो जाओ। यह कहावत बापा के नाम से मशहूर केशुभाई पटेल पर सटीक बैठती है। पार्टी के फैसले के आगे केशुभाई पटेल को हथियार डालने पड़े। केशुभाई पटेल ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा और 7 अक्टूबर 2001 को नरेंद्र मोदी ने गुजरात के 14वें मुख्यमंत्री के रूप में कुर्सी संभाली।
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गोधरा कांड और राजधर्म का पालन
फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस गोधरा से वापस लौट रही थी जिसकी एक बॉगी में कारसेवक सवार थे। गोधरा में बॉगी को आग लगा दी गई जिसमें 50 से ज्यादा कार सेवक मारे गए। जिसके बाद गुजरात में दंगे भड़क गए और आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1 हजार 44 लोग इसमें मारे गए। अलग अलग अदालतों में नरेंद्र मोदी पर मुकदमें भी चले जिसमें सभी में दंगों में उनके संलिप्ता की बातों को गलत पाया। आज भी जब 2002 के गुजरात दंगों की चर्चा होती है तो अटल बिहारी वाजपेयी के राजधर्म की सीख की चर्चा भी जरूर होती है। यह वाकया तब का है जब गुजरात में हुई हिंसा के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राज्य का दौरा किया था। उस समय गुजरात में भी भाजपा की सरकार थी और नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे। गुजरात में अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे तब एक पत्रकार ने उनसे सवाल किया कि क्या आप मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कोई संदेश लेकर आए हैं। इस सवाल का जवाब वाजपेयी ने अपनी चिरपरिचित शैली में दिया। उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री के लिए मेरा सिर्फ एक संदेश है कि वह राजधर्म का पालन करे…राजधर्म… ये शब्द काफी सार्थक है। मैं उसी का पालन कर रहा हूं। जब वाजपेयी राजधर्म का संदेश दे रहे थे तब उनके बगल में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी बैठे थे। बीच में ही नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘हम भी वही कर रहे हैं साहेब।’ इसके बाद वाजपेयी ने आगे कहा, ‘मुझे विश्वास है कि नरेंद्र भाई यही कर रहे हैं।
वाजपेयी ने आडवाणी से कहा- मोदी को जाना होगा, लेकिन गोवा पहुंचते ही हवा नरेंद्र मोदी के पक्ष में बहने लगी थी
रामविलास पासवान का इस्तीफा और तेलगू देशम पार्टी के दवाब की वजह से 20 दलों की गठबंधन वाली सरकार में भी विरोध तेज होने लगा था। 11 अप्रैल 2002 को गोवा में बीजेपी की राष्ट्रीयकार्यकारिणी की मीटिंग के लिए एक विमान नई दिल्ली से रवानगी भरता है। जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, अरुण शौरी और जसवंत सिंह सवार थे। कुछ देर की खामोशी के बाद वाजपेयी ने वेंकैया नायडू को नए राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की बात कही और इसके साथ ही कहा वो जिसे टालने की कोशिश में लगातार आडवाणी लगे थे। मोदी को जाना होगा। यानी कि ये तय हो गया था कि गोवा पहुंचते ही नरेंद्र मोदी का इस्तीफा हो जाएगा। लेकिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी गोवा पहुंचते तब तक हवा नरेंद्र मोदी के पक्ष में बहने लगी थी। नरेंद्र मोदी ने लंबे भाषण के बाद सबके सामने मोदी ने इस्तीफे की बात कही। लेकिन तभी इस्तीफा मत दो और नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे लगने लगे। कहा जाता है कि इसमें अरुण जेटली की बेहद ही अहम भूमिका थी। बाद में एक नरेंद्र मोदी के इस्तीफे को नामंजूर करने के प्रस्ताव को केशुभाई पटेल और यहां तक की वाजपेयी को बापजी कहने वाले प्रमोद महाजन ने भी समर्थन किया।
वसुंधरा की रैली में लगे नारे- देखो-देखो कौन आया, गुजरात का शेर आया
अपने के उठते सवाल और विरोधियों के प्रहार को धता बताते हुए दिसंबर 2002 के विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर नरेंद्र मोदी ने साबित किया कि गुजरात की जनता का विश्वास और भरोसा उन पर कायम है। नरेंद्र मोदी 2003 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए रैली करने आए। उदयपुर में वसुंधरा राजे के समर्थन में मोदी मंच से बोलने के लिए खड़े हुए भीड़ से नारे लगने लगे देखो-देखो कौन आया, गुजरात का शेर आया। राजस्थान में बीजेपी की प्रचंड जीत होती है। 2007 के विधानसभा चुनावों में और फिर 2012 में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी गुजरात विधानसभा चुनावों में जीती। 2012 में लगातार तीसरी बार नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की, तब तक ये माना जाने लगा था कि अब मोदी राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करेंगे।
राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री
2004 से सत्ता से बाहर भाजपा ने 2013 में अटल-आडवाणी के दौर के बाद नए नेता के रूप में अपना चेहरा बनाया था। उस दौर में यह शायद पहला ऐसा मौका था जब भाजपा के किसी अध्यक्ष ने अपने टीम के गठन में इतने बड़े स्तर पर बदलाव किए थे। जिनमें 12 में से दस उपाध्यक्ष और सभी महासचिव नए थेl। छह साल पहले संसदीय बोर्ड से हटाए गए नरेंद्र मोदी को फिर बोर्ड में शामिल कर भाजपा ने अपने इरादे साफ़ जाहिर कर दिए थे। जिसके बाद मोदी को सेंट्रल इलेक्शन कैंपेन कमिटी का चेयरमैन बनाया गया। वो एकमात्र ऐसे पदासीन मुख्यमंत्री थे, जिन्हें संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया था। याद कीजिए 2014 की मोदी की यात्राएं और सभाएं। भ्रष्टाचार के आरोपों से धूमिल मनमोहन के मंत्रिमंडल के मुकाबले उन्होंने राजनीति में अलादीन का चिराग रख दिया। गुजरात की चौहद्दी से निकले मोदी ने 2014 के चुनाव में उतरते ही एक इतनी बड़ी लकीर खींच दी थी जिसके सामने सब अपने आप छोटे हो गए थे। बीजेपी तो पहले भी जीत चुकी है लेकिन ऐसी जीत पहले कभी नहीं मिली। 182 की चौखट पर हांफने वाली बीजेपी अपने बूते बहुमत के आंकड़े को पार किया। एक चाय वाले ने भारतीय राजनीति के प्याले में तूफान ला दिया। दसों दिशाओं से आने वाली जीत मोदी की इस शख्सियत के सामने झुकती चली गई। इस अदभुत जीत के विजेता बने मोदी गांधीनगर से दिल्ली चले आए और फिर दिल्ली से वाराणसी। उसी वाराणसी में मोदी ने गंगा को याद किया उनकी आराधना की गंगा आरती की, बाबा विश्वनाथ को नमन किया और नमन किया वाराणसी के मतदाताओं को जिन्होंने देश की सबसे बड़ी पंचायत के लिए मोदी को अपना नुमाइंदा चुना। ये मोदी का जादू है जो न तो परिलोक से आई किसी कहानी का नाम है न कल्पना की पगडंडी पर भटकती कोई अल्हड़ सी दास्तां। ये संघर्ष की भट्टी में तपकर निकली उस शख्सियत की बुलंदी है। जिसके पराक्रम ने 21वीं सदी की भारतीय राजनीति को उसकी मुट्ठी में कैद कर लिया। राम से आगे बढ़ चुकी बीजेपी आज विकास के अखाड़े में सारे विरोधियों को मोदी की बदौलत धूल चटा चुकी है। तभी तो मोदी को भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा महानायक कहा जाने लगा है। भाजपा को हिन्दी पट्टी की पार्टी माना जाता था। विन्धाचल के उस पार कर्नाटक में थोड़ी ताकत जरूर मिली थी। लेकिन सत्ता और भ्रष्टाचार के नाटक ने उसे भी तबाह कर दिया था। जब मोदी का अश्वमेध रथ घर्र-घर्र करते हुए आगे बढ़ा तो उसकी चाप से हिन्दुस्तान का मुकद्दर रचने चले नए सिंकंदर की जयजयकार सुनाई पड़ने लगी। 2019 के नतीजों ने सिद्ध कर दिया कि जनता मोदी पर उठे हर सवालों को खारिज कर चुकी है और इतनी ही नहीं उन्हें हर सवाल का जवाब मान चुकी है। यह तो तय है कि मोदी तो मोदी हैं और मोदी जैसा कोई नहीं।
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वैश्विक पटल पर छाए मोदी
नरेंद्र मोदी भारत की कूटनीति का वो सिक्का हैं जिनका डंका दुनियाभर की चौपालों में बजता है। अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया, चीन से लेकर यूरोप तक, नरेन्द्र मोदी के व्यक्तित्व और कार्यशैली के प्रशंसक मौजूद हैं। द मॉर्निंग कंसल्ट के एक सर्वे के मुताबिक पीएम दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेताओं की लिस्ट में पहले पायदान पर हैं। बाइडेन और जॉनसन जैसे बड़े नेताओं को पछाड़ कर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के लोकप्रिय नेताओं में पहला स्थान हासिल किया है। जबकि बाइडेन और जॉनसन पीएम मोदी से काफी नीचे हैं। टाइम पत्रिका द्वारा जारी 2021 के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शामिल किया है। टाइम’ द्वारा दिए गए मोदी के परिचय में कहा गया है कि एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में भारत के 74 वर्षों में, तीन प्रमुख नेता रहे हैं – जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और मोदी। ‘नरेंद्र मोदी तीसरे नेता हैं जो देश की राजनीति में प्रभावी हैं। पीएम मोदी ने सार्क देशों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मीटिंग का न्योता दिया था, ताकि कोविड-19 के खिलाफ साथ मिलकर लड़ा जा सके।
ट्रंप ने बताया महान तो ऑस्ट्रेलियाई पीएम ने संजीवनी लाने वाला हनुमान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर 7 देशों के राष्ट्र प्रमुख वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में शामिल हुए। सार्क देशों के राष्ट्रीय अध्यक्षों के साथ बैठक की और उन्हें एक मंच पर लाने की कोशिश की जिसकी खूब वाहवाही हुई। प्रधानमंत्री जी-20 के राष्ट्रीय अध्यक्षों की बैठक में शामिल हुए। इस बैठक में जहां विश्व के बाकी देश इस कोरोना काल में उत्पन्न आर्थिक संकट पर चर्चा कर रहे थे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मानवता को बचाने पर जोर दिया। कोरोना महामारी के दौर में जहां तमाम मुल्क अपने देश में इससे जूझने और जीवन बचाने में लगे थे। वहीं एक दवा जिसको लेकर चर्चा सबसे ज्यादा रही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू)की मांग की तो भारत ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ दुनिया के बाकी देशों का भी ख्याल रखा। भारत ने अमेरिका, ब्राजील, कनाडा, ब्रिटेन, ओमान, यूएई, मॉरीशस जैसे देशों के साथ साथ 55 अन्य देशों को हाइड्रोक्लोरिक दवा उपलब्ध कराई है। आलम तो ये भी देखा गया कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पीएम मोदी को महान बताया तो वहीं ब्राजील के राषट्रपति जेर बोलसोनारो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखकर मदद की तुलना हनुमान द्वारा लाई गई संजीवनी से कर दी। नरेंद्र मोदी, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की खुली बहस की अध्यक्षता करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने। यूएनएससी की ओर से आयोजित ओपन डिबेट के अपने अध्यक्षीय संबोधन में पीएम मोदी ने समुद्र को इंटरनेशनल ट्रेड की लाइफलाइन बताया।
बहरहाल, वर्तमान दौर में देखें तो मोदी के करिश्मे ने देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को इतिहास की राजनीति का डब्बा बना दिया और गुजरती हुई सत्ता और आती हुई सत्ता के संधिस्थल पर सियासी सफलता के साम्राज्य हो गए। वो विरोधियों के लिए चाय की कड़वी घूंट की भांति हैं तो लापरवाही बरतने वाले अपने के लिए एकदम कड़क। लेकिन शाश्वत सत्य ये है कि उनकी एंट्री ने वैश्विक राजनीति के प्याले में तूफान ला दिया। -अभिनय आकाश
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