70 मिनट में 21 धमाके और निशाने पर मोदी-शाह, 14 साल बाद आया 7000 पन्नों का आदेश, सबसे बड़े आतंकी हमले में देश की सबसे बड़ी सजा
अहमदाबाद में जुलाई, 2008 में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों में मौतों और तबाही का आंकड़ा जितना भीषण था, लगभग साढ़े तेरह साल बाद उन धमाकों को अंजाम देने वालों को गुजरात की एक विशेष अदालत द्वारा सुनाई गई सजा भी उतनी ही सख्त और उल्लेखनीय है।
26 जुलाई 2008 एक दिन पहले ही कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में एक के बाद एक सात धमाके हुए थे। एक शख्स की मौत हुई और डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए। एक बम जिंदा भी बरामद हुआ। दोपहर में हुए इन धमाकों की खबरें बेंगलुरु से करीब डेढ़ हजार किलोमीटर दूर अहमदाबाद के अखबारों में भी छपी। लेकिन शहर में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि बेंगलुरु की कहानी अहमदाबाद में ठीक एक दिन बाद दोहरा दी जाएगी। वो भी कई ज्यादा तीव्रता के साथ। अहमदाबाद में एक के बाद एक 70 मिनट के भीतर 14 जगहों पर पूरे 21 धमाके हुए, जिसने 56 लोगों की जान ले ली। साढ़े 13 साल तक धमाकों के जख्म सहने वाले अहमदाबाद को 18 फरवरी 2022 की सुबह 11:30 बजे इंसाफ मिला। सात हजार पन्नों के आदेश में अदालत ने इसे दुर्लभ से दुर्लभतम करार दिया। इसके साथ ही विशेष अदालत की तरफ से देश की सबसे बड़ी सजा सुनाई गई। अहमदाबाद में जुलाई, 2008 में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों में मौतों और तबाही का आंकड़ा जितना भीषण था, लगभग साढ़े तेरह साल बाद उन धमाकों को अंजाम देने वालों को गुजरात की एक विशेष अदालत द्वारा सुनाई गई सजा भी उतनी ही सख्त और उल्लेखनीय है। लगभग तेरह साल तक चली सुनवाई के दौरान 1,163 गवाहों से जिरह करने और छह हजार से ज्यादा सुबूतों की रोशनी में अदालत ने न केवल 49 लोगों को दोषी पाया, बल्कि उनमें से 38 लोगों को उसने फांसी की सजा सुनाई, जबकि 11 को उम्रकैद की सजा दी। देश में किसी भी अदालत द्वारा एक साथ इतने लोगों को मौत की सजा सुनाए जाने का यह पहला ही मामला है। गुजरात के अहमदाबाद में 26 जुलाई 2008 को हुए सीरियल ब्लास्ट के दोषियों को एक स्पेशल कोर्ट ने सजा सुनाई है। इस सीरियल ब्लास्ट में कुल 49 आरोपियों को कोर्ट ने दोषी माना था। जिनमें से 38 को फांसी की सजा और 11 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। वहीं 28 आरोपियों को सबूत के आभाव में बरी कर दिया गया। अहमदाबाद में 13 साल पहले हुए इस सीरियल ब्लास्ट में 70 मिनट के अंदर-अंदर 20 जगहों पर एक के बाद एक 21 धमाके हुए थे। जिनमें 56 लोगों की मौत हो गई थी। इनमें 200 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे।
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गोधरा दंगों का बदला लेने के लिए धमाके
आईएम द्वारा भेजे गए ईमेल में 2002 के गुजरात दंगों की छवियां थीं, और दावा किया कि बम विस्फोट दंगों और 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद ध्वंस का बदला लेने के लिए किया गया। आतंकियों ने अस्पतालों, बसों, पार्किंग में मोटरसाइकिलों, कारों व अन्य स्थानों पर सिलसिलेवार धमाके किए थे। कुल मिलाकर, 35 मामले दर्ज किए गए - 20 अहमदाबाद में और बाकी गुजरात के सूरतत से और फिर बाद में सभी को एक जगह कर दिया गया। 78 में से 77 के खिलाफ दिंसबर 2009 में सुनवाई शुरू की गई। एक आरोपी सरकारी गवाह बन गया। अगले सात वर्षों में, विभिन्न राज्यों से 78 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। पुलिस जांच में सामने आया कि आईएम की प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का हाथ था। अहमदाबाद में जितने भी बम विस्फोट हुए, उनमें उर्वरकों में इस्तेमाल होने वाले अमोनियम नाइट्रेट और ईंधन तेल (एएनएफओ) के मिश्रण का इस्तेमाल किया गया था। आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के अलावा आतंकवाद विरोधी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए), शस्त्र अधिनियम, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए गए थे। ट्रायल के दौरान कुल 1100 गवाहों ने कोर्ट में बयान दर्ज कराया।
मोदी शाह आतंकियों के निशाने पर थे
26 जुलाई 2008 को अहमदाबाद में शाम 6 बजकर 45 मिनट पर पहला बम धमाका हुआ था। ये धमाका मणिनगर में हुआ था। मणिनगर उस समय के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का विधानसक्षा क्षेत्र था। इसके बाद 70 मिनट तक 20 और बम धमाके हुए थे। इन धमाकों में 56 लोगों की मौत हो गई थी और 200 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। इंडियन मुजाहिदीन के आतंकियों के निशाने पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह भी थे। इसके साथ ही पूरे गुजरात को दहलाने की साजिश रची गई थी।
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मामले की जांच में सुपर कॉप की भूमिका
डिटेक्शन ऑफ क्राइम ब्रांच (डीसीबी) ने जांच का नेतृत्व किया। डीजीपी आशीष भाटिया, जो उस समय अहमदाबाद के डीसीबी में जेसीपी थे, जांच में एक प्रमुख अधिकारी थे। भाटिया के अनुसार इस मामले को 15 अगस्त 2008 से पहले सुलझा लिया गया था, शुरुआत में 11 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। भाटिया ने कहा कि साजिश रचने वाले व धमाका करने वालों में कई नए और अन्य राज्यों के युवा शामिल थे। पुलिस को सिर्फ उनके नाम पता थे इसके बावजूद यूपी, एमपी, केरल, कर्नाटर से भी आरोपितों को ढूंढ़ निकाला गया। भाटिया ने कहा कि बम पुणे और मुंबई से चुराई गई कारों में रखे गए थे, कारों में गैस सिलेंडर रखे गए थे और बॉल बेयरिंग से बमों को इम्प्रोवाइज किया गया था।
वीडियो लिंक के जरिये मौजूद रहे दोषी
सजा सुनाए जाते वक्त सभी दोषी अलग-अलग जेलों से वीडियो लिंक के जरिये मौजूद रहे। ये लोग साबरमती जेल, दिल्ली की तिहाड़ जेल के अलावा भोपाल, गया, बेंगलुरु,केरल व मुंबई की सेंट्रल जेलों में कैद हैं। नावेद कादरी, जिसे बरी कर दिया गया है, एकमात्र आरोपी था जो 2018 से विस्तारित अस्थायी जमानत पर था, जब उसे सिज़ोफ्रेनिया था।
पहली बार इतने लोगों को एक साथ मौत की सजा
ये पहला मौका है जब इतनी बड़ी संख्या में एकसाथ 38 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई। इससे पहले जनवरी 1998 में कोर्ट ने 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के जुर्म में सभी 26 लोगों को दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई थी।
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सरकारी वकीलों की रही अहम भूमिका
इस मामले को अंजाम तक पहुंचाने में राज्य के सरकारी वकीलों ने भी अहम भूमिका निभाई। मुख्य सरकारी वकील एचएम ध्रुव, अमित पटेल एवं सुधीर ब्रम्हभट्ट बम धमाका प्रकरण की जांच पड़ताल से शुरू से लेकर आखिर तक जुड़े रहे। केस को ऐतिहासिक अंजाम तक पहुंचाने में सभी सरकारी वकीलों का अहम योगदान रहा।
सीरियल ब्लास्ट के गुनाहगार
गुजरात: जावेद कुतबुद्दीन शेख, मुहम्मद रफीक जेब अफरीदी, तौसीफ खान, समसुद्दीन साहबुद्दीन शेख दरियापुर, ग्यासुद्दीन अब्दुल हलीम अंसारी, मोहम्मद आरिफ मोहम्मद इकबाल कागजी, यूनुस मुहम्मद मंसूरी, जावेद अहमद सगीर अहमद शेख, इस्माइल, इमरान इब्राहीम शेख, इकबाल कासम शेख,कयामुद्दीन सरफुद्दीन कापडीया, मुहम्मद अनीस, मोहम्मद गुलाम ख्वाजा।
उत्तर प्रदेश : मुफ्ती अबुबशर शेख, सैफुर रहमान, मुहम्मद आरिफ नसीम अहमद मिर्जा, मुहम्मद राहुल सादाबा अहमद, जीशान अहमद शेख, जियाउर रहमान मुहम्मद शकील लुहार, मुहम्मद तनवीर
मध्य प्रदेश: कमरुद्दीन चांद महमद नागोरी, आमील परवाज काजी शेख, सफदर हुसान नागोरी, आमीन नीजर शेख, मुहम्मद मोबीन।
महाराष्ट्र : अफजल अफसर, मुतलीब उस्मानी, आरिफ बदर, असाफी बशरुद्दीन शेख, मुहम्मद अकबर, फजले रहमान
कर्नाटक: हाफी हुसैन,
केरल: सीबली साबीत अब्दुल करीम, सादुली करीम|
आंध्र प्रदेश: सरफुद्दीन।
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213 फीट लंबी सुरंग खोद भागने का प्रयास
फरवरी 2013 में सीरियल ब्लास्ट के 14 आरोपियों ने कई कैदियों के साथ मिलकर जेल के बैरक नंबर 14 से 213 फीट लंबी सुरंग खोदकर जेल से भागने का प्रयास किया। लेकिन साजिश समय से पहले उजागर हो गई। उनपर 213 फुट लंबी सुरंग खोदने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था। साबरमती जेल में सुरंग खोदने का मामला चल रहा है। सुरंग मामले में तत्कालीन जेल अधीक्षक, 3 जेलर व अन्य 5 पुलिसकर्मियों पर भी केस दर्ज किया गया था।
जेल में पढ़ाई
एक कैदी के शिक्षा के अधिकार को लागू करते हुए सितंबर 2013 में अदालत ने अहमदाबाद सेंट्रल जेल को मोहम्मद सामी बागेवाड़ी से जब्त की गई वास्तुकला पर दो किताबें वापस देने का निर्देश दिया। कर्नाटक के बीजापुर के रहने वाले बागेवाड़ी कर्नाटक के बेलगाम में विश्वेश्वरैया प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में वास्तुकला का छात्र था। अपनी गिरफ्तारी के बाद वह अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सका, और परास्नातक के लिए दो विषयों की परीक्षा पास करना चाहता था। इसलिए उनके पिता ने उन्हें मार्च 2012 में सात किताबें दी थीं। बागेवाड़ी को बरी कर दिया गया है। कई अन्य अभियुक्तों ने भी जेल में रहते हुए शिक्षा प्राप्त की, जिनमें सफदर नागोरी भी शामिल हैं।
नौ जज शामिल हुए
12 साल चली इस मामले की सुनाई में कुल नौ जज शामिल हुए। सबसे पहले जज बेला त्रिवेदी ने इस मामले की सुनवाई शुरू की थी। इनकी अदालत में ही 15 फरवरी 2010 में आरोपपत्र दाखिल हुआ था। जस्टिस त्रिवेदी अब सुप्रीम कोर्ट में जज हैं। फैसला सुनाने वाले जस्टिस एआर पटेल ने 14 जून 2017 को इस मामले की सुनवाई शुरू की थी।
बहरहाल, अहमदाबाद ब्लास्ट मामले में दोषियों को मौत और उम्रकैद की सजा के साथ ही आतंक के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई आगे बढ़ती नजर आ रही है। लेकिन अभी ये कहना कठिन है कि विशेष अदालत के इस निर्णय को जब ऊपरी अदालतों में चुनौती दी जाएगी तो वहां से उसका निस्तारण कब होगा? क्योंकि इस केस में पहले ही फैसला आने में 14 साल का लंबा वक्त लग गया। लेकिन फौरी तौर पर देखा जाए तो विशेष अदालत के इस फैसले का महत्व ये है कि देश को दहला देने वाले मामले में कठोरतम सजा देकर उसने विध्वंसकारी ताकतों को सख्क संदेश देने की कोशिश की है।
-अभिनय आकाश
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