कुंभ, वर्ल्ड वॉर और अटैक का साया: प्रयाग पर बम गिराने वाला है जापान... जब अंग्रेजों ने कुंभ के डर से फैला दी ऐसी अफवाह, बापू लाठी लेकर...

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Prabhasakshi
अभिनय आकाश । Jan 29 2025 2:12PM

आजादी से पहले की बात है, अंग्रेज देश में राज कर रहे थे। भारत वाले कहते जाओ वो नहीं जा रहे थे। इन सब के बीच साल 1942 में प्रयागराज में कुंभ का आयोजन हुआ था। दुनिया युद्ध की मार झेल रही थी और भारत अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था।

अश्वमेध सहस्राणि वाजपेय शतानि च।

लक्षप्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नानेन तत् फलम्।

अर्थात एक हजार अश्मेघ यज्ञ कर लीजिए, एक सौ वाजपेय यज्ञ कर लीजिए, या एक लाख बार पृथ्वी की परिक्रमा कर लीजिए उसके बाद जो फल प्राप्त होता है। वही फल इस मनुष्य शरीर को कुंभ स्नान से मिलता है। गंगा, यमुना और त्रिवेणी के महासंगम पर महाकुंभ आयोजित होता है। ये एक मेटाफिजिकल कास्मिक इवेंट है और इससे हमारी धरती का एक पेसेफिक एरिया कॉस्मिक एनर्जी से जुड़ जाता है। यानी डायरेक्ट कनेक्ट विद गॉड। अब आप कहेंगे कि भई ये क्या भला बात हुई, ईश्वर तो कण कण में व्यापत हैं। लेकिन ईश्वर से सीधा कनेक्शन बना रहे इसके लिए नियमित मंदिर भी जाते हैं। क्योंकि मंदिर एक बैंक की तरह है जहां हजराों वर्षों से प्रार्थनाएं जमा हो रही हैं। हम सुखी हो तो मंदिरों में प्रार्थनाएं जमा करें और किसी संकट में हो तो अपने और अपने पूर्वजों के जमा किए पुण्य प्रताप को विड्रा कर लें। यही सनातन का साइंस है। प्रयाग में होने वाले महाकुंभ के साइंस को सरल भाषा में समझें तो डेढ़ महीनों तक दैवीय शक्तियों के सारे सैटेलाइट उनके सारे सिग्नल संगम तट पर फोकस रहेंगे। जो पुण्य अनगिनित तीर्थ यात्राओं और तपस्याओं के बाद प्राप्त होते हैं। वो संगम तट पर आने से और सूर्य को जल चढ़ाने से हो जाएंगे। हिंदू आस्था का सबसे बड़ा उत्सव। सनातनी परपंरा का सबसे बड़ा मेला भारत ही नहीं विश्व के सबसे बड़े धार्मिक, आध्यात्मिक आयोजन महाकुंभ की धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा का वो अदभुत इतिहास जिसमें न जाने कितनी दैवीय घटनाएं। कितने अदभुत प्रसंग उल्लेखनीय हैं। महाकुंभ की एक ऐसी ही अविस्मरणीय कथा को आपके सामने आज लेकर आए हैं। बिना किसी राग और द्ववेष के इस अवसर विशेष पर आपको लिए चलते हैं इतिहास में। आजादी से पहले की बात है, अंग्रेज देश में राज कर रहे थे। भारत वाले कहते जाओ वो नहीं जा रहे थे। इन सब के बीच साल 1942 में प्रयागराज में कुंभ का आयोजन हुआ था। दुनिया युद्ध की मार झेल रही थी और भारत अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था। 

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अंग्रेजों ने इसे रोकने के लिए किया हर संभव प्रयास 

ये तो सभी को पता है कि भारत की धरती पर जब कुंभ मेले का आयोजन होता है तो केवल ये धार्मिक आयोजन नहीं होता। प्रयागराज के संगम पर उमडती अनगिनत श्रद्धालुओं की भीड़, उनकी आस्था की डुबकी और गंगा, यमुना, सरस्वती का पवित्र संगम ये सब मिलकर कुंभ को अद्वितीय बनाते हैं। लेकिन इस धार्मिक आयोजन ने कभी ऐसा मोड़ लिया था जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींद उड़ा दी थी। ये वो दौड़ था जब भारत अंग्रेजों की गुलामी में जकड़ा हुआ था। महात्मा गांधी ने हाल ही में चंपारण में सत्याग्रह का नेतृत्व किया था। देश की आजादी की लड़ाई ने एक नई दिशा पकड़ ली थी। अंग्रेजों के लिए कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि उनके लिए एक राजनैतिक और सामाजिक खतरा बन चुका था। लाखों श्रद्धालुओं का संगम पर जुटना उनके लिए केवल एक आस्था का प्रदर्शन नहीं बल्कि भारतीयों की एकजुटता का प्रतीक था। ये एक ऐसा मंच था जहां धर्म और स्वतंत्रता की चेतना का संगम होता था। आजादी से पहले जब कुंभ का आयोजन हुआ तो अंग्रजों ने इसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास किए।

जब बापू पहुंचे कुंभ

तत्कालीन रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष आर डब्ल्यू गिलन ने आदेश दिया कि प्रयागराज जाने वाली ट्रेनों की संख्या सीमित की जाए। टिकट की बिक्री  पर रोक लगाई जाए। अंग्रेजों को डर था कि ये भीड़ उनके शासन के खिलाफ विद्रोह का रूप ले सकती है। लेकिन गांधी जी ने इन्हें केवल धार्मिक आयोजन नहीं माना। वो इसे कुंभ में पहुंचे और संगम में डुबकी लगाई और आस्था के उस संगम से लोगों को आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। उस समय असहयोग आंदोलन का बीज बोया जा चुका था। कुंभ मेले में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई गति दी। अंग्रेज ये समझ गए कि कुंभ अब केवल आस्था का पर्व नहीं रहा। ये आजादी के आंदोलन का नया मंच बन चुका है। 

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 रेल टिकटों की बिक्री भी रोक दी

साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल बज चुका था। देश भर में आजादी की लहर दौड़ रही थी। प्रयागराज में कुंभ की तैयारी चल रही थी। लेकिन इस बार माहौल अलग था। 1942 में प्रयागराज में कुंभ मेले की तारीख 4 जनवरी से 4 फरवरी तक तय की गई थी। कुंभ का मेला देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों का केंद्र बन चुका था। अंग्रेजों ने इसे भांप लिया। उन्हें लगा कि कुंभ मेला उनके खिलाफ विद्रोह का सबसे बड़ा मंच बन सकता है। अंग्रेजों को शक था कि मेले के बहाने एक स्थान पर जमा होकर गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। इसलिए उन्होंने एक चौंकाने वाला फैसला लिया। श्रद्धालु मेले में न पहुंच पाएं इसलिए अंग्रेजों ने इसी अवधि के दौरान इलाहाबाद के लिए रेल टिकटों की बिक्री भी रोक दी। लेकिन ये फैसला कारगर नहीं हुआ। लोगों के हौसलों को कोई रोक नहीं पाया। पैदल, साइकिलों पर बैलगाड़ियों पर सवार होकर लोग प्रयागराज पहुंचे। संगम पर डुबकी लगाई। स्वतंत्रता के नारे गूंजने लगा। 1942 का कुंभ मेला अंग्रेजों के लिए एक बड़ा सबक था। 

जापान गिरा सकता है बम

 अंग्रेजों ने अखाड़ों और तीर्थयात्रियों को इस अवधि के दौरान मेला क्षेत्र से दूर रहने के लिए मनाने के लिए हर संभव प्रयास किया, इस बहाने के साथ कि मेले को लेकर अफवाह थी कि मेले पर जापान बम गिरा सकता है। इसलिए एक तरह की युद्ध आपात स्थिति थी। श्रद्धालुओं को जमा होने से रोकने की कई कोशिशों के बावजूद वे नहीं रुके। कुंभ ने हमें सिखाया कि जब लाखों दिल एक साथ धड़कते हैं तो कोई भी ताकत उन्हें रोक नहीं सकती। संगम पर उमड़ती भीड़ ने ये साबित कर दिया कि भारतीयों की स्वतंत्रता की इच्छा को कोई अंग्रेजी हुकूमत दबा नहीं सकती। यही वजह है कि 1942 का कुंभ मेला धर्म और आजादी के संगम का प्रतीक बन गया। 

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