महात्मा गांधी की दांडी यात्रा के 91 वर्ष पूरे, जानें इसका इतिहास

प्रधानमंत्री ने अहमदाबाद से दांडी यात्रा को रवाना किया। 387 किलोमीटर का सफर 6 अप्रैल को ये मार्च खत्म होगा। 81 पदयात्री इस सफर को 6 अप्रैल को पूरा करेंगे।
पहले मोहनिया फिर मोहन और इसके बाद मोहन दास और आखिर में महात्मा। जी हां, दक्षिण अफ्रीका में मोहन दास करमचंद गांधी तो वकालत करने गए थे। लेकिन 21 साल तक वहां रंग-भेद से लेकर हिंदुस्तानियों से होने वाली ज्यादतियों के खिलाफ एक ऐसी लड़ाई लड़ी की हिंदुस्तान लौटने से पहले ही वो पूरी दुनिया में हीरो हो चुके थे। जिसके बाद महात्मा गांधी 9 जनवरी 1915 में हिंदुस्तान लौटे और उनकी इसी वतन वापसी ने हिंदुस्तान का इतिहास बदल दिया। तब अंग्रेजों की ग़ुलामी थी आज अपनों की आज़ादी है। आज उन्हीं यादों की उंगली पकड़कर देशभर में एक बड़ा जलसा हो रहा है। आजादी के अमृत महोत्सव का आगाज हुआ। प्रधानमंत्री ने अहमदाबाद से दांडी यात्रा को रवाना किया। 387 किलोमीटर का सफर 6 अप्रैल को ये मार्च खत्म होगा। 81 पदयात्री इस सफर को 6 अप्रैल को पूरा करेंगे। 81 पदयात्रियों को चुने जाने की वजह ये है कि जब गांधी जी ने पदयात्रा निकालने की सोची थी तो इसके लिए 81 लोगों को चुना गया था लेकिन 2 लोग गिरफ्तार होने की वजह से शामिल नहीं हो सके थे। हुबहू उसी तरह से इस पदय़ात्रा की रूप-रेखा तय की गई। प्रधानमंत्री की ये यात्रा कई मायनों में 90 साल पहले की उस दांडी यात्रा के साथ एक वजह जुड़ी है। वजह कि भारत को कैसे एक सूत्र में पिरोया जाए। उस वक्त भारत को आजादी चाहिए थी, लेकिन उसके लिए भारत को आत्मनिर्भर बनाना था। गांधी जी का सपना ये था कि भारत पहले खुद आत्मनिर्भर बने और दांडी यात्रा के बाद देश स्वदेशी आंदोलन की तरफ आगे बढ़ा। चरखा प्रतीक बन गया आजादी का और आत्मनिर्भरता का। 75 साल बाद देश जब नई ऊंचाईयों को छूने को तैयार है ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का मंत्र दिया है।
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महात्मा गांधी को याद करने की कोई वजह ढूंढी जाए, ऐसा नहीं लगता है। आप गांधी को कभी भी याद कर सकते हैं। पढ़ने के बहाने, विचार के बहाने, नेताओं की चर्चा के बहाने या फिर उनकी कर्मस्थलियों पर जाकर हम आज गांधी को देश में उनके ऐतिहासिक आंदोलन के बहाने याद कर रहे हैं। हम आपको इस विश्लेषण के जरिये लिए चलते हैं दांडी, जहां गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ नमक सत्याग्रह किया था।
साल 1930 अंग्रेजों का जमाना था। भारत में नमक बनाने और उसको बेचने पर मनमाना टैक्स लगा रखा था। गांधी ने सविनय अविज्ञा आंदोलन का प्लान बनाया। मार्च महीने की 12 तारीख को गांधी ने 78 लोगों को अपने साथ लिया। अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से ढांडी तक पैदल मार्च शुरू किया। महात्मा गांधी ने अपने 78 स्वयंसेवकों के साथ साबरमती आश्रम से 358 किलोमीडर दूर दांडी के लिए मार्च किया था। इस मार्च में महात्मा गांधी के साथ सभी वर्गों और जातियों के लोग शामिल थे। 24 दिनों की यात्रा के बाद 6 अप्रैल 1930 को कच्छ भूमि के समुद्र के किनारे गांधी ने एक मुट्ठी नमक उठाया। फिर ब्रिटिश सरकार के काले कानून का विरोध करते हुए नमक पर कोई कर नहीं देने का आह्वाहन किया। गांधी जी ने नमक हाथ में लेकर कहा कि इसके साथ मैं ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिला रहा हूं। इस मुट्ठी भर नमक से गांधी ने अंग्रेज हुकूमत को कड़ा संदेश दिया था। महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा के दौरान सूरत, ढिडौरी, वांझ धमन के बाद नवसारी को यात्रा के आखिरी दिनों में अपना पड़ाव बनाया। गुजरात के समुद्र तट पर यह गांव बसा हुआ है। नमक सत्याग्रह के दौरान महात्मा गाधी ने 24 दिनों तक रोज करीब 16 से 19 किलोमीटर की पदयात्रा की थी। महात्मा गांधी ने दांडी यात्रा से पहले बिहार के चंपारण में सत्याग्रह किया था। नमक सत्याग्रह महात्मा गांधी द्वारा चलाए प्रमुख आंदोलनों में से एक है। 224 दिन 241 मील की दूरी। इस दूरी और इन दिनों में उनके साथ हजारों लोग जुड़े। नवसारी से दांडी का फासला तकरीबन 13 मील का था। भारत में अंग्रेजों की हुकूमत के समय नमक उत्पादन और बिक्री के ऊपर बड़ी मात्रा में कर लगाया गया था। नमक रोजमर्रा के जीवन की जरूरी चीज होने के कारण लोगों को इस कानून से मुक्त करने और अपना अधिकार दिलवाने के लिए महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया था। महात्मा गांधी और भारतीयों द्वारा अंग्रेज हुकूमत का नमक कानून भंग करने के बाद सत्याग्रहियों पर अंग्रेजों ने लाठियां बरसाई लेकिन आंदोलनकारी पीछे नहीं हटे। नमक आंदोलन में अंग्रेजों ने सी राजगोपालाचारी और पंडित नेहरू समेत कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था। गांधी जी के नमक सत्याग्रह के कारण देशभर में बहुत आंदोलन हुए। हर जगह नमक कानूनों की अवहेलना होनी शुरू हो गई। तमिलनाडु में सी राजगोपालाचारी ने नमक कानूनों के खिलाफत का नेतृत्व किया, बंगाल से लेकर आंध्र प्रदेश तक विभिन्न आंदोलन हुए। दांडी मार्च का आंदोलन पूरे एक साल तक चला था। महात्मा गांधी की अगुवाई में चल रहे इस आंदोलन की ताकत समझकर गोरी हुकूमत डर गई थी। अंत में गांधी जी को 4-5 मई की आधी रात को गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी की खबर ने हजारों लोगों को आंदोलन में शामिल होने के लिए उकसाया। 1931 में महात्मा गांधी और इरविन के बीच हुए समझौते से दांडी की यात्रा खत्म हुई। इस काम ने अंग्रेजों को इतनी तगड़ी चोट दी की हाजर बातें इतनी चोट नहीं दे पाती। ये सिर्फ नमक आंदोलन नहीं था बल्कि देश आजाद कराने के लिए संदेश था। ताकी लोगों को इस बड़े लक्ष्य के लिए एकजुट किया जा सके।
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राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक
गुजरात के दांडी स्मारक भी बनाया गया है। राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक बनाने के लिए दांडी स्मारक समिति बनाई गई थी। यह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा समर्थित था। आईआईटीमुंबई ने डिजाइन तैयार किया था। इस स्मारक का उद्धाटन पीएम मोदी ने 30 जनवरी 2019 को किया। मुख्य स्मारक में 80 स्वयंसेवकों के साथ गांधी जी की एक वास्तविक आकार की मूर्ति स्थापित की गई है। ये प्रतिमाएं कांस से बनाई गई है।
स्मारक का आइडिया
गांधी जी के पपौत्र तुषार गांधी ने सुझाव दिया। 2005 की बात है जैसे अमेरिका के वाशिंगटन में वियतनाम वॉटरन मेमोरियल है वैसे ही अपने यहां उन 80 ढांडी यात्रियों का कोई स्मारक बो। उन्होंने अपना आइडिया तब के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तकर पहुंचाया। मनमोहन सिंह ने गोपाल कृष्ण गांधी के उच्चस्तरीय ढांडी स्मारक समिति का अध्यक्ष बनाया औऱ सुदर्शन एंगर को उपाध्यक्ष बनाया गया। 2010 में गोपाल कृष्ण गांधी ने इस्तीफा दे दिया तो एंगर को अध्यक्ष बन गए। लेकिन सरकार की तरफ से फंड नहीं दिया जा रहा था और योजना का आकार देने में देरी हो रही थी। लेकिन एंगर की अध्यक्षता में समिति इसे बनवाने पर अड़ी थी। 2010 में आईआईटी बाम्बे से कृति त्रिवेदी और सेतु दास को लाया गया। 2013 तक रूपरेखा पूरी तरह तैयार हो गई थी, लेकिन सपना साकार होता अब भी नहीं दिख रहा था।। सरकार बदली तो नई सरकार ने इस योजना में रुचि दिखाई। फिर केंद्रीय लोक निर्माण और इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट ने 20 महीने में स्मारक बनाकर खड़ा कर दिया। इस स्मारक में 80 लोगों की मूर्तियां लगी हैं जो ढांडी मार्च के मुख्य लोग थे। इसी बनाने में 42 मूर्तिकार लगे और 9 मूर्तिकार अलग-अलग देशों से से आए। गांधी की मूर्ति 5 मीटर ऊंची है।
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कांग्रेस ने कैसे मनाया था
2005 में केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने दांडी मार्च के 75 साल पूरे करने के लिए इसी तरह की यात्रा शुरू की थी, तब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 12 मार्च को साबरमती आश्रम से एक मार्च को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था। जिसमें उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी शामिल हुए थे। कांग्रेस पार्टी और महात्मा गांधी के पपौत्र तुषार गांधी के महात्मा गांधी फाउंडेशन द्वारा मार्च का आयोजन किया गया था। जिन्होंने खुद भी इसमें हिस्सा लिया था। उस समय के कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों, केंद्रीय मंत्रियों और अहमद पटेल, सलमान खुर्शीद, राहुल गांधी जैसे अन्य नेताओं ने भी विभिन्न हिस्सों में मार्ग का दौरा किया। पूरे देश से मार्च के प्रतिभागियों का चयन किया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जिन्होंने 6 अप्रैल, 2005 को मार्च के समापन की अध्यक्षता की थी ने 386 किलोमीटर के मार्ग को 'विरासत मार्ग' के रूप में नामित करने की घोषणा की थी। मनमोहन सिंह ने यह भी कहा था सभी स्थलों जहां महात्मा गांधी ठहरे थे को धरोहर स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा और साबरमती आश्रम के लिए 10 करोड़ रुपये की तत्काल धनराशि की घोषणा की गई। दांडी के लिए, तत्कालीन यूपीए सरकार ने गांधीवादी अध्ययन और 81 लोगों की प्रतिमाओं को स्थापित करने के लिए समर्पित एक पुस्तकालय की योजना बनाई थी। राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह मेमोरियल नामक यह परियोजना पूरी हो चुकी है।
वैसे तो विश्व का कोई ऐसा देश नहीं होगा जिसने गांधी को अपनाकर अपने मुल्क का विकास न किया हो। गांधी की विश्वव्यापी प्रासंगिकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका, रूस, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जर्मनी, नीदरलैंड, श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार आदि देशों में सैंकड़ों संस्थाएं गांधी सिद्धांत का प्रचार-प्रसार कर रही हैं। -अभिनय आकाश
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